मैं एक छोटी बहर की ग़ज़ल आज पेश कर रहा हूँ जिसके कुछ शेर में ऐसे शब्द प्रयोग किए गए हैं जो अमूनन रिवायती ग़ज़ल में पढने को नहीं मिलते. मेरा ये प्रयोग पसंद आया या नहीं कृपया बताएं.
जिक्र तक हट गया फ़साने से
जब से हम हो गए पुराने से
लोग सुनते कहाँ बुजुर्गों की
सब खफा उनके बुदाबुदाने से
जोहै दिलमें जबांपे ले आओ
दर्द बढ़ता बहुत दबाने से
रब को देना है तो यूंही देगा
लाभ होगा ना गिड़गिड़ाने से
याद आए तो जागना बेहतर
मींच कर आँख छटपटाने से
राज बस एक ही खुशी का है
चाहा कुछ भी नहीं ज़माने से
गम के तारे नज़र नहीं आते
याद का तेरी चाँद आने से
देख बदलेगी ना कभी दुनिया
तेरे दिन रात बड़बड़ाने से
बुझ ही जाना बहुत सही यारों
बेसबब यूं ही टिमटिमाने से
वो है नकली ये जानलो "नीरज "
जो हँसी आए गुदगुदाने से
12 comments:
वाह! वाह! क्या गजल है ! क्या शायरी है! एक एक शेर जिंदगी जीने का सलीका सिखलाता नज़र आता है.
"जोहै दिलमें जबांपे ले आओ
दर्द बढ़ता बहुत दबाने से"
"राज बस एक ही खुशी का है
चाहा कुछ भी नहीं ज़माने से"
"बुझ ही जाना बहुत सही यारों
बेसबब यूं ही टिमटिमाने से"
क्या कहे वड्डे वप्पजी आप तो छा गए पूरे ब्लोगिंग आकाश पे.
"क्या करूँगा मैं सूरज को लेकर
रोशन हुआ जंहा बस तेरे आने से."
बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने। तमाम शेर लाजवाब हैं पर इस शेर के दूसरे मिसरे में वो प्रवाह नहीं आ पा रहा
गम के तारे नज़र नहीं आते
याद का तेरी चाँद आने से
गहरी बात है जी।
वो है नकली ये जानलो "नीरज "
जो हँसी आए गुदगुदाने से
बहुत सही...बहुत सुंदर।
यह तो ईर्ष्या का विषय हो गया। न ऐसे शब्द कभी हमारे जेहन में आये, न भाव।
बहुत खूब।
गजल क्या यह तो जीवन दर्शन है। बहुत खूब।
कुछ ना बदला है ना बदलेगा यहा नीरज
पर दिल तो बहलेगा तेरी गजल गुनगुनाने से
बहुत बढ़िया...मैं भी अरुण जी से सहमत हूँ...
सुकूँ देती हैं आपकी गजलें
मजा आता है गुनगुनाने से
जिक्र तक हट गया फ़साने से
लोग जब हो गए पुराने से.
मुझे अधिक अच्छा लगता है.बाकी जो भी बदलाव किए गए हैं,बहुत ही अच्छे बन पड़े हैं.आपने जीवन को और जीवन ने आपकी ऊँगली को ऐसे पकड़ रखा है ,दोनों के बीच इतनी अच्छी समझदारी बनी हुई है कि जब भी आप आपस मे बातें करते हैं संवेदनाओं का आदान प्रदान होता है तो सबसे अधिक लाभ मे हम पाठक ही रहते हैं.ईश्वर आपको ऐसे ही जीवंत बनाये रखें और आपकी आंखों हम भी इसकी खूबसूरती देखते रहें ,यही कामना है.
नीरज भाई,
इतनी सदाशयता से आप मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी लिखते हैं सबसे पहले तो उसके लिए धन्यवाद कहूँगी। फिर आपकी एक गज़ल के एक शेर पर क्या कहूँ आपका पूरा साहित्य मुझे व मेरे पाठकों को प्रिय है और यह तो ब्लॉग शुरू होने से बहुत पहले से ही है और इंशाअल्लाह सदा रहेगा। मुलाहिज़ा फ़रमाएं-
जितना होता है पुराना शायर
जुड़ता जाता है इस ज़माने से
आप अनुभूति की शोभा हैं और आपको पढ़ना आपने आप में एक काव्यात्मक अनुभूति है। आप इसी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ते रहें आपकी नई ग़ज़लें जल्दी ही प्रकाशित होंगी। और यहाँ जो भी नीरज जी के पाठक हैं वे अनुभूति (www.anubhuti-hindi.org) पर उन्हें पढ़ना न भूलें
नीरज जी बहुत खूब ..........
Waahhhhhhhhhhhh!!!
लोग सुनते कहाँ बुजुर्गों की
सब खफा उनके बुदाबुदाने से
Pahle se vo udaas hai Neeraj
ab rahe vo bhi mskraane se.
Devi
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