तू है सूरज तुझे मालूम कहां रात का दुख
तू किसी रोज़ मेरे घर में उतर शाम के बाद
लौट आए ना किसी रोज़ वो आवारा मिज़ाज
खोल रखते हैं इसी आस पे दर शाम के बाद
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हम इर्द-गिर्द के मौसम से जब भी घबराए
तेरे ख़्याल की छांव में बैठ जाते हैं
*
आबादी से निकले तो मालूम हुआ
आगे तन्हाई है, पीछे से साए हैं
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वो मेरे अंदर छुपा है और उसे
बोलते रहने की आदत हो गई है
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घर जाने से इतनी खौफ़-ज़दा हैं लोग
रात गए तक बाज़ारों में फिरते हैं
*
तुम गए हो तो सर-ए-शाम ये आदत ठहरी
बस किनारे पर खड़े हाथ हिलाते रहना
बात सन 1989 की है। लाहौर का फोर्ट्रेस स्टेडियम खचाखच भरा हुआ है।बहुत से करतब वहां दिखाए जा रहे हैं। तभी अनाउंसमेंट होता है 'ख़्वातीन ओ हज़रात , दिल थाम के बैठे अभी आपके सामने एक नौजवान अपनी कोहनी से बर्फ की सिल्लियां तोड़ेगा। ये नौजवान बर्मीज मार्शल आर्ट (Bando ) का मास्टर है जिसने ये आर्ट ग्रैंड मास्टर जनाब अशरफ़ ताई से सीखा है'। काले कपडे पहने एक दुबला पतला लड़का लोगों के सामने आया और झुक कर सबका अभिनन्दन किया। कुछ ने उसे देख हलके से तालियां बजाई लेकिन ज्यादातर उसकी कद काठी देख हंसने लगे। बर्फ की सिल्ली लाइ गयी , लोग उत्सुक थे देखने को कि लड़का इसे कैसे तोड़ेगा, तभी उस सिल्ली पे दूसरी सिल्ली रख दी गयी। लोग खुसरफुसर करने लगे और ये खुसर फुसर शोर में तब्दील तब हुई जब सिल्लियों की संख्या दो से दस हो गयी। लेकिन जब ग्यारवीं सिल्ली लायी लायी गयी तो स्टेडियम में सन्नाटा पसर गया। लोगों ने दम साध लिया, हैरत से आँखें चौड़ी कर लीं क्यूंकि ऐसा कारनामा इस से पहले दुनिया में किसी ने नहीं किया था। लड़का सीढ़ियों से ग्यारवीं सिल्ली के तक पहुंचा गहरी सांस ली एक दो बार कोहनी को सिल्लियों तक लाया और फिर, लोगों को दिखाई ही नहीं दिया कि कब लड़के की कोहनी बिजली की रफ़्तार से सिल्ली पर गिरी और ग्यारह की ग्यारह सिल्लियां चूर चूर हो गयीं। लोगों को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ कि उन्होंने जो अभी देखा वो एक ऐसा विश्व रिकॉर्ड है जो आज तक नहीं टूटा। इस करिश्मे को अंजाम देने के बाद ये लड़का लोगों की तालियां सुनने के लिए रुका नहीं बल्कि स्टेडियम के बाहर खड़ी कारों के पीछे गया और घुटनों पे बैठ कर ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया। आज इस लड़के के लगभग 40000 से ज्यादा शागिर्द दुनियाभर में लोगों को 'बर्मीज मार्शल आर्ट' (Banda ) सिखा रहे हैं।
आप सोच रहे होंगे कि किसी किताब का जिक्र करने के बजाय मैं आपको ये गैर शायराना किस्सा क्यों बता रहा हूँ ? मुझे याद है कि ऐसा आपने तब भी सोचा था जब मैंने एक पहलवान शायर जनाब 'क़तील शिफ़ाई' साहब की किताब का ज़िक्र किया था। हमारे आज के शायर पाकिस्तान के पहले ब्लैक बेल्ट निंजा ही नहीं हैं और भी बहुत कुछ हैं और ये बहुत कुछ उन्हें ऊपर वाले ने छप्पर फाड़ नहीं दिया बल्कि इन्होने अपनी मेहनत से कमाया है। उन्होंने जो कारनामे किये हैं उसे ठीक से बताने के लिए ऐसी न जाने कितनी पोस्ट मुझे लिखनी पड़ेंगी।
चलिए शुरू से शुरू करते हैं।
अपना दुख बस अपना ही होता है ये जान लिया
अपने आप से अपनी सारी बातें कहना सीख लिया
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कोई गुमान मुझे तुमसे दूर कैसे करे
कि एतबार मेरे चार-सू अभी तक है
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दूर से कैसा हंसते-बसते शहरों जैसा लगता था
लेकिन पास आए तो आया हाथ खंडर वीरान
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खुशियां हमारे पास कहां मुस्तक़िल रहीं
बाहर कभी हंसे भी तो घर आ के रो पड़े
मुस्तक़िल: हमेशा के लिए
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सच ना बोलो कि अभी शहर में मौसम ही नहीं
इन हवाओं में चराग़ों का है जलना मुश्किल
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बारिश हुई तो घर के दारीचे से लग के हम
चुपचाप सोगवार तुम्हें सोचते रहे
पाकिस्तान के झंग जिले में 15 नवम्बर 1964 को हमारे आज के शायर जनाब 'फरहत अब्बास शाह' का जन्म हुआ।उनके कोई बहन भाई नहीं था। माँ - बाप की मृत्यु भी जल्दी हो गयी। उनके मन और घर में गहरी उदासी ने घर कर लिया। ये उदास लड़का किसी से अपनी उदासी नहीं बांटता था। लोगों की टीका टिप्पणियों को कड़वे घूँट की तरह पी जाया करता था। अपनी घुटन को कम करने के लिए उसने लफ़्ज़ों का सहारा लिया। कोई आठ नौ साल की उम्र में बाकायदा लिखने लगा। तेरह चौदह साल की उम्र में उसकी रचनाएँ पाकिस्तान के बड़े बड़े अखबारों और रिसालों में छपने लगी। मात्र 25 साल की उम्र में याने जून 1989 में उनकी पहली किताब ' शाम के बाद' शया हुई और तहलका मच गया। ये किताब पाकिस्तान के इतिहास की, उर्दू में छपी ग़ज़लों और नज़्मों की अब तक की सबसे लोकप्रिय किताब साबित हुई। इस किताब के पिछले 35 सालों में इस कोई सवा सौ से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। दुनिया की बहुत सी भाषाओँ में ये छपी है और अब इसे अगस्त 2024 में 'नायाब बुक्स, नयी दिल्ली' ने अरब अमीरात के 'अप्लॉज़ अदब' के सहयोग से पहली बार हिंदी में प्रकाशित किया है।
फरहत अब्बास कहते हैं कि 'मैं फ़ितरी शायर हूँ। शायरी मुझ पर ऊपर से उतरती है। अगर आपके अंदर शायरी नहीं है तो आप शायर नहीं हो सकते तुक्केबाज़ हो सकते हैं। आप शेर का ढांचा तो बना सकते हैं उसमें रूह नहीं डाल सकते। बड़ा शेर वो है जो इतनी आसानी से अता हो जाय कि आप बस वाह कर उठें , मसलन ' तुम मेरे पास होते हो गोया , जब कोई दूसरा नहीं होता। अच्छे शेर पर इंसान का इतराना बनता ही नहीं है , ये इल्हाम है। पाकिस्तान के बहुत बड़े शायर जो आसानी से किसी भी शायर को गिनती में लाते ही नहीं थे ने कहा था कि 'फरहत अब्बास अहद ऐ हाज़िर में शायरी का वारिस है।' जनाब 'अहमद नदीम क़ासमी' ने कहा है कि ' अब्बास शाह जदीदतरीन नस्ल का जदीदतरीन शायर है।' उनके कुछ शेर जैसे :
हम तुझे शहर में यूँ ढूंढते हैं
जिस तरह लोग सुकूँ ढूँढ़ते हैं
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बाद आँखों के मेरा दिल भी निकाला उसने
उसको शक था कि मुझे अब भी नज़र आता है
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वो जो टल जाती रही सर से बला शाम के बाद
कोई तो था कि जो देता था दुआ शाम के बाद
लौट आती है मेरी शब की इबादत खाली
जाने किस अर्श पे रहता है खुदा शाम के बाद
सोशल मिडिया पर करोड़ों लोगों द्वारा पसंद किये जाने से वायरल हो गए हैं। आप यकीन करें न करें लेकिन हकीकत ये है कि 'फरहत अब्बास शाह की अब तक 75 किताबें मंज़र-ऐ आम पर आ चुकी हैं जिनमें से 52 तो सिर्फ उनकी शायरी की हैं। उनकी शोहरत से कमज़ोर शायर ख़ौफ़ज़दा हो जाते हैं और उनके खिलाफ साज़िशें रचते रहते हैं। फरहत अब्बास शाह को इस से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता क्यूंकि वो दिल से लिखते हैं जो सुनने पढ़ने वाले के सीधा दिल में उतर जाता है।
मैं उसकी आंखों में झांकूं तो जैसे जम जाऊं
वो आंख झपके जब तो चाहूं ज़रा ठहर जाये
*
वह एक चेहरा जो आंखों में आ बसा था कभी
तमाम उम्र मेरे आंसुओं में क़ैद रहा
*
इक ज़रा पांव में झंकार बजे सिक्कों की
फिर मेरे नाम के हर शख़्स हवाले देगा
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नींद नाराज़ हो गई हमसे
हमने जिस रात तुमको याद किया
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बहुत कठिन था पस-ए-चश्म रोकना सैलाब
जो बोलते हुए आवाज़ फट गई तो क्या
*
मैंने उसका सोग मनाया कुछ ऐसे
ख़ाली रखा पैमानों को शाम के बाद
फ़रहत चांद के ख़ौफ़ से कर लेता हूं बंद
कमरे के रोशनदानों को शाम के बाद
झंग से साइक्लॉजी में एम एस सी करने के बाद फरहत साहब लाहौर चले आये जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब से फिलॉसफी में पोस्ट ग्रेजुएशन किया और उसके बाद अंग्रेज़ी में भी एम ऐ की डिग्री हासिल की। बात यहीं ख़तम नहीं हुई उन्होंर इकोनॉमिक्स पढ़ी , माइक्रो इकोनॉमिक्स पढ़ी। उनके लिखे पेपर्स पर देश विदेश की यूनिवर्सिटीज में चर्चे हुए। उन्होंने इस्लामिक माइक्रो फाइनैंसिंग में अद्भुत काम किया और दस हज़ार से भी अधिक महिलाओं को बहुत कम पूँजी से व्यापर शुरू करवा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने में मदद की।
फरहत अब्बास का रेडिओ चैनल 'ऍफ़ एम् 103' पाकिस्तान के बेहद मशहूर रेडिओ चैनलों में से एक रहा। रेडिओ से वो टेलीविज़न की और मुड़े और लाहौर टी वी की स्थापना की। इस टी वी चैनल पर प्रसारित होने वाले प्रैंक यूं ट्यूब पर लाखों की संख्या में पसंद किये जा रहे हैं। लाहौर टी वी पर उनका मज़ाहिया रूप देख कर हँसते हँसते लोटपोट हो जायेंगे। एक जनर्लिस्ट की हैसियत से उन्होंने पूरी दुनिया में अपनी खास पहचान बनाई।
पाकिस्तान के मशहूर क्लासिकल गायक उस्ताद बदर उल ज़मां से फरहत साहब ने बरसों संगीत सीखा। रेडिओ पाकिस्तान से उनके गायन के प्रोग्राम लगातार आते रहे। उन्होंने बिना तबले के शास्त्रीय वाद्यों पर अपनी कविताएँ गाने का सफल प्रयोग किया जो सुखन सराय के नाम से लोकप्रिय हुआ। उन्होंने जितने काम अपनी 55 साल की उम्र में कर लिए हैं उतने कोई 55 जन्म लेकर भी नहीं कर पायेगा। .
उन्होंने पाकिस्तानी राइटर्स यूनियन की स्थापना की जिस के अंतर्गत वो अदब की खिदमत कर रहे ऐसे गोलों को दुनिया के सामने लाने की कोशिश करते हैं जिनको कम अक़्ल लेकिन ताकतवर स्वार्थी बेईमान लोग आगे नहीं आने देते। फरहत साहब का मानना है कि ऐसे नौजवान जो हुनरमंद हैं उन्हें सामने आने का मौका मिलना चाहिए। उनका ये इदारा नॉन पोलिटिकल है।
फ़रहत अब्बास शाह' साहब पर एक पोस्ट में लिखना मुमकिन नहीं है। इसलिए आप थोड़े को ही ज्यादा लिखा माने और इस किताब को अमेज़न से ऑन लाइन या फिर नायाब पब्लिकेशन से 9910482906 पर संपर्क करें।
बना था रेतीली मिट्टी से जीवन
बिखरता ही बिखरता जा रहा है
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परायेपन की वसी-ओ-अरीज़ दुनिया में
ये इक ख़ुशी ही बहुत है कि दर्द अपना है
वसी-ओ-अरीज़: दूर तक फैली हुई
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रो देता है आप ही अपनी बातों पर
और फिर ख़ुद को आप हंसाया करता है
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तुम से पहले दिल से बुज़दिल कोई न था
और फिर दिल से दुनिया डरती देखी है
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हर इक ख़ानें में तेरे बुत सजे हैं
किसी देवी का मंदिर हो रहा हूं
*
रुका हुआ है अजब धूप-छांव का मौसम
गुज़र रहा है कोई दिल से बादलों की तरह
*
मेरी निगाह पे तूने बिठा दिया रास्ता
नहीफ़ सीने पे रख दी पहाड़ हिज़्र की शाम
नहीफ़: कमज़ोर