दोस्तों पढ़ना और वो भी किताबें खरीद कर पढ़ना मेरा बरसों पुराना शौक रहा है। मैंने सोचा आप से उन ढेरों किताबों में से, जो मेरी नज़रों से गुजरी हैं, चंद शायरी की किताबों की चर्चा करूँ. आज कल देख रहा हूँ की ग़ज़ल लिखने और सीखने का शौक अपने परवान पर है, इसी के चलते चलिए अच्छी शायरी की बात करें.
हाल ही में जयपुर में
"राष्ट्रीय पुस्तक मेला" आयोजित हुआ था वहीँ घूमते हुए ग़ज़लों की जिस किताब पर निगाह पढ़ी उसका नाम था
" सुबह की उम्मीद" जिसे लिखा था जनाब
बी. आर.'विप्लवी' जी ने.
इसे मेरा अल्प ज्ञान कहें की मैंने इस से पहले न तो इस किताब का नाम सुना था और न ही लेखक का. एक अनजान किताब को खरीदने में जो जोखिम रहता है उसे उठाने की सोच दिल में आयी.
घर आ कर किताब को पढ़ा तो हैरान रह गया. मेरी उम्मीद से कई गुना खूबसूरत एक से बढ़ कर एक ग़ज़लें पढने को मिलीं.
किताब में 'विप्लवी' जी के बारे में अधिक कुछ लिखा नहीं मिलता लेकिन उनका लिखा खूब मिलता है वे भूमिका में कहते हैं की:
"काव्य या शायरी की दुनिया को जज्बाती समझा जाता है इसलिए इसे अक्सर आनंद लेने या रस लेने का साधन समझा गया है. मैं इस बात को यूँ मानता हूँ यह दिल की खुशी आदमी की भावनाओं में झंकार पैदा करके भी मिलती है और उसे झकझोर करके भी. इसलिए इसमें वो ताकत है कि सोये लोगों को जगाये और आगे कि लडाई के लिए तैयार करे.आज कि कविता या शायरी की यह जरूरत भी है."विप्लवी साहेब ने शायरी की प्रेरणा और मार्ग दर्शन मशहूर शायर
जनाब वसीम बरेलवी से प्राप्त किया.
वसीम साहेब फरमाते हैं की
" विप्लवी जी जिस प्रकार हिन्दी संस्कार के फूलों को उर्दू तेहज़ीब की खुशबू में बसने का प्रयत्न कर रहे हैं, उसने उनकी गज़लिया शायरी को लायके- तबज्जो बना दिया है."श्री गोपाल दास "नीरज" जी कहते हैं की
"भाई विप्लवी जी की ग़ज़लें पढ़ कर मन मुग्ध हो गया. आजकल ग़ज़लें तो हर कोई लिख रहा है लेकिन बहुत कम लोग हैं जो ग़ज़ल को आत्मा तक पहुँचा पाए हैं"श्री बेकल उत्साही जी कहते हैं की
" विप्लवी जी ने अपनी गज़लों में रवानी के साथ मायनी को उजागर किया है, यह एक पुख्ताकार का काम है "आयीये पढ़ते हैं विप्लवी जी का चुनिन्दा कलाम...
पहले पन्ने से ही अपनी शायरी का जादू दिखाते उन्होंने लिखा:
पैर फिसले,खताएं याद आयीं
कैसे ठहरे, ढलान लम्बी है
ज़िन्दगी की जरूरतें समझो
वक्त कम है दूकान लम्बी है
झूट,सच,जीत, हार की बातें
छोडिये, दास्तान लम्बी है
आज के हालत पर छोटी बहर में करिश्मा कुछ यूँ बिखेरा है:
कलम करना था जिनका सर जरूरी
उन्हीं को सर झुकाए जा रहे हैं
सुयोधन मुन्सफी के भेष में हैं
युधिष्ठिर आजमाए जा रहे हैं
लड़े थे 'विप्लवी'जिनके लिए हम
उन्हीं से मात खाए जा रहे हैं
उनके कलम की सादगी देखिये, किस सहजता से अपनी बात कहते हैं:
मुझे वो इस तरह से तोलता है
मिरी कीमत घटाकर बोलता है
वो जब भी बोलता है झूठ मुझसे
तो पूरा दम लगा कर बोलता है
ज़ुबां काटी,तआरुफ़ यूँ कराया
यही है जो बड़ा मुहं बोलता है
एक दूसरी ग़ज़ल के दो शेर और पेश करता हूँ
कुँआ खोदा गया था जिनकी खातिर
वही प्यासे के प्यासे जा रहे हैं
कहाँ सीखेंगे बच्चे जिद पकड़ना
सभी मेले तमाशे जा रहे हैंएक ग़ज़ल जिसके सभी शेर मुझे बहुत पसंद आए:
ये कौन हवाओं में ज़हर घोल रहा है
सब जानते हैं,कोई नहीं बोल रहा है
मर्दों की नज़र में तो वो कलयुग हो कि सतयुग
औरत के हँसी जिस्म का भूगोल रहा हैजो ख़ुद को बचा ले गया दुनिया की हवस से
इस दौर में वह शख्स ही अनमोल रहा है
जीवन कि कड़वी सच्चाइयों को बहुत खूबसूरती से बयां करते उनके ये दो शेर पढ़ें:
अदाकारी जिन्हें आती नहीं वे मात खाते हैं
फ़क़त सच होने से ही बात सच मानी नहीं जाती
ये मुंसिफ अपनी आंखों पर अजब चश्मा लगाता है
बिना दौलत कोई सूरत भी पहचानी नहीं जाती
मोहब्बत 'विप्लवी' अब एक घर बैठे का ज़ज्बा है
किसी से भी कहीं कि खाक तक छानी नहीं जाती
पूरी किताब ऐसे एक से बढ़ कर एक उम्दा शेरों से भरी हुई है कि किसे सुनाये और किसे छोडें का चुनाव बहुत मुश्किल है अब इसे पढ़ें:
जूठनों पर कुक्करों सा आदमी का जूझना
आज भी सच है,सितारों पर भले चढ़ जाईये
अब सुना है जंगलों में शेर का है खौफ़ कम
गाँव में लेकिन बिना बन्दूक के मत जाईयेएक सौ छतीस पृष्ठों की इस किताब में कोई एक सौ ग़ज़लें है और सभी शानदार. ऐसे में उनमें से कुछ को छांटना बहुत दुष्कर काम है. नेरी गुजारिश है की हर शायरी के प्रेमी को इसे पढ़ना चाहिए. ये किताब वाणी प्रकाशन २१-ऐ दरिया गंज, नई-दिल्ली से छपी है और इसका मूल्य मात्र साठ रुपये है. आप इसके बारे में इ-मेल से जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं...पता है:vani_prakashan@yahoo.com , vani_prakashan@mantraonline.com , फ़ोन :011-23273167, 51562621
अब चलिए आख़िर में उनकी दो और गज़लों के चुनिन्दा शेर पढ़ते चलते हैं,पहली ग़ज़ल के शेर कुछ यूँ हैं:
वास्ता सीता का देके कहने लगे
इम्तिहानो से रिश्ते निखर जायेंगे
भूले भटके हुओं से कोई ये कहे
रहबरों से मिलेंगे तो मर जायेंगे
घर में रहने को कहता है कर्फ्यू मगर
जो हैं फुटपाथ पर किसके घर जायेंगे
और और दूसरी ग़ज़ल के ये तीन बेहतरीन शेर.....
उन्हीं से उजालों की उम्मीद है
दिए आँधियों में जो जलते रहे
उन्हीं को मिलीं सारी ऊचाईयां
जो गिरते रहे और संभलते रहे
हासिले ग़ज़ल शेर है:
छुपाता रहा बाप मजबूरियां
खिलौनों पर बच्चे मचलते रहे
अगली बार एक नयी किताब और नए अशआर लेकर फ़िर खिदमत में हाज़िर होंगे तब तक के लिए...नमस्कार.
दसवेदानिया