![](http://4.bp.blogspot.com/_8VHwyKVsxqI/SYM1pDHiU5I/AAAAAAAAA1Y/hz_KO4zEc30/s320/2.jpg)
कुछ लोग बहुत विलक्षण होते हैं. चुपचाप ऐसे काम कर जाते हैं जिसकी कल्पना आम इंसान कभी कर ही नहीं पाता, ऐसे ही एक विशेष दंपत्ति हैं संजय और सुधा भारद्वाज. लम्बी चौडी भूमिका के बिना आप को बता हूँ की एक दिन श्री विजय जी का एक मेल आया जिसमें उन्होंने लिखा की उनकी कविता और उस पर बने चित्र को एक पोस्टर प्रदर्शनी में चुन लिया गया है इसलिए मैं उसे देखने पूना आऊं. विजय जी से एक आध बार उनकी पोस्ट को लेकर मेल का आदान प्रदान हुआ था बस इतनी ही पहचान थी उनसे. प्रदर्शनी २३,२४ व् २५ जनवरी को पूना में थी इसलिए जाने की कोई विशेष समस्या नहीं थी. विजय जी ने २३ को पूना पहुँच कर फोन किया और आने का आग्रह किया. पता नहीं उनके बुलाने में ऐसी क्या बात थी की मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और बेहत व्यस्त कार्यक्रम को बीच में छोड़ शाम पूना के लिए निकल गया.
रास्ता पूछते पूछते आख़िर मंजिल तक पहुँच ही गया और जैसे ही प्रदर्शनी हाल में घुसा,अवाक रह गया. बेहद मार्मिक रचनाओं और चित्रों का आतंकवाद के विरुद्ध ऐसा प्रदर्शन ना कभी देखा और सुना था . बिना भारी भरकम नारों के, शोर शराबे के एक एक चित्र अपनी कहानी स्वयं कह रहा था.
विजय जी को उनके ब्लॉग (http://poemsofvijay.blogspot.com)पर छपी तस्वीर से पहचान लिया, वे मुझसे मिल जितने प्रसन्न हुए उससे कई गुना मैं उनसे मिल कर हुआ क्यूँ की उन्ही की बदौलत मुझे इस प्रदर्शनी को देखने का सुअवसर मिला था. विजय जी निहायत ही संवेदनशील कवि हैं उनकी बातों और हाव भाव में एक छोटा बच्चा छिपा मिलता है जो अपने आसपास के माहौल से दुखी भी है और किसी अच्छी चीज को देख तालियाँ भी बजाता है. उनकी बड़ी बड़ी आंखों में बहुत से अधूरे हसीन ख्वाब हैं जिन्हें पूरा करने में वे अपनी पूरी ऊर्जा लगाते नहीं थकते. आज के युग में इतने विनम्र व्यक्ति का मिलना किसी अजूबे से कम नहीं.
विजय जी ने ही भारद्वाज दंपत्ति से मेरा परिचय करवाया जिनसे मिलना उस शाम की एक न भुलाये जा सकने वाली घटना थी. पहली ही मुलाकात में इतनी आत्मीयता इस दंपत्ति ने दिखाई की मैं भाव विभोर हो गया. मैंने इस अद्भुत आयोजन के लिए उन्हें दिल से बधाई दी. प्रदर्शनी श्री संजय और उनकी पत्नी सुधा भरद्वाज जी के अथक मेहनत का परिणाम थी. पोस्टर प्रदर्शनी का शीर्षक था "शब्द युद्ध- आतंक के विरुद्ध" .
हालाँकि विजय जी ने इस पोस्टर प्रदर्शनी के बारे में अपने ब्लॉग( http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/01/blog_26.html) पर बहुत खूबसूरती से लिखा है और मेरे लायक कुछ अधिक नहीं छोड़ा है फ़िर भी कोशिश करता हूँ की जो उनसे छूट गया है उसे पेश करूँ.
सबसे अधिक प्रभावित करने वाली जो बात थी वो ये की पोस्टर प्रदर्शनी को देखने आए युवाओं में जबरदस्त उत्साह था.वो प्रत्येक रचना और चित्र को ध्यान से देखते और प्रतिक्रिया करते.(युवाओं का ऐसे संवेदन शील विषय के प्रति रुझान देख कर बहुत अच्छा लगा.
![](http://3.bp.blogspot.com/_8VHwyKVsxqI/SYM2CYA4y0I/AAAAAAAAA1g/IsOTm54D0eE/s320/1.jpg)
प्रदर्शित रचनाओं में कुछ स्थानीय कवि शायर थे और कुछ ख्याति प्राप्त नाम भी. मेरे लिए सम्भव नहीं है की मैं आपको प्रर्दशित हर रचना को पढ़वा पाऊं लेकिन कोशिश करूँगा की आप को प्रदर्शित रचनाओं की एक छोटी लेकिन ईमानदार झलक दिखा सकूँ.
![](http://4.bp.blogspot.com/_8VHwyKVsxqI/SYM3rDTGMyI/AAAAAAAAA1o/VRhanEfc2ns/s320/8.jpg)
प्रदर्शनी में गुलज़ार साहेब की एक नज़्म है जो सबकी आकर्षण का केन्द्र बनी हुई थी...कितने कम शब्दों में गुलज़ार साहेब क्या कुछ नहीं कह जाते ये देखिये इस नज़्म में :
कुछ बेवा आवाजें अक्सर
मस्जिद के पिछवाडे आकर
ईंटों की दीवारों से लगकर
पथराये कानो पे
अपने होंठ लगा कर
एक बूढे अल्लाह का मातम करती हैं
जो अपने आदम की सारी नस्लें
उनकी कोख में रख कर
खामोशी की कब्र में जाकर लेट गया है
मशहूर शायर निदा फाजली साहेब की एक ग़ज़ल भी यहाँ प्रदर्शित जिस के ऊपर के एक चित्र में ताज होटल की गुम्बद से निकलता धुआं दिखाई दे रहा है. निदा साहेब फरमाते हैं:
![](http://3.bp.blogspot.com/_8VHwyKVsxqI/SYM3-RbAXiI/AAAAAAAAA1w/Jtl1GY5HPFw/s320/DSCN1406.jpg)
इंसान में हैवान यहाँ भी है वहां भी
अल्लाह निगेहबान यहाँ भी है वहां भी
खूंखार दरिंदों के फकत नाम अलग हैं
शहरों में बयाबान यहाँ भी है वहां भी
हिंदू भी मजे में है मुसलमाँ भी मजे में
इन्सान परेशान यहाँ यहाँ भी है वहां भी
उठता है दिलो जां से धुआं दोनों तरफ़
ये मीरका दीवान यहाँ भी है वहां भी
![](http://4.bp.blogspot.com/_8VHwyKVsxqI/SYM4dd2p0rI/AAAAAAAAA14/65F0J18ONPM/s320/DSCN1408.jpg)
श्री बाल स्वरुप राही और गोपाल दास नीरज जी की ग़ज़लों को एक साथ प्रदर्शित किया गया था जिसमें नीरज जी के ये दो शेर पढने वाला हमेशा के लिए अपने साथ ले जाता है:
प्यार की धरती अगर बन्दूक से बांटी गयी
एक मुर्दा शहर अपने दरमियाँ रह जायेगा
आग लेकर हाथ में पगले जलाता है किसे
जब न ये बस्ती रहेगी तू कहाँ रह जाएगा
श्री उदय प्रकाश, अरुण कमल, तेजेंद्र शर्मा, दिव्या माथुर, संजय भारद्वाज, सुधा भारद्वाज जैसे अनेक ख्याति प्राप्त रचनाकारों के बीच स्थानीय युवा रचनाकार श्री राजेंद्र श्रीवास्तव ( 09371456630 ) जो पूना में बैंक आफ महाराष्ट में उच्च अधिकारी हैं की रचना "हत्यारों के प्रति" बहुत प्रभावित कर गयी:
![](http://2.bp.blogspot.com/_8VHwyKVsxqI/SYM40MMYNDI/AAAAAAAAA2A/Vks3ENjWoqA/s320/9.jpg)
आयीए
हम मुश्किल चीजों पर कुछ बात करें
बड़ा मुश्किल है
किसी निर्दोष व्यक्ति को मार देना
उस व्यक्ति को मारना तो और कठिन है
जो अपनी बूढी माँ
या फ़िर अपने बच्चों के लिए
रिजक(धन) कमा कर ले जा रहा हो
थोड़ा और मुश्किल है
उस दुल्हिन की हत्या करना
जिसके अधरों पर लाली, हाथों पर मेहँदी
देह में ऋतुओं की गंध
और आंखों में रतजगे का खुमार अभी बाकी हो !
सोच से भी परे तकलीफदेह काम है
मार देना उस बच्ची को
जिसके चेहरे पर बचपन की मासूमियत
और चमकीली हँसी
अभी पूरी तरह आकार भी न ले सकी हो
ऐसे बड़े सारे मुश्किल काम हैं
पर इन तमाम चीजों से भी
कठिन बर्बर और जघन्य कार्य है
किसी व्यक्ति को संवेदना शून्य कर देना
प्रेम, कोमलता, भय, करुणा जैसी
समस्त भावनाओं को सोख कर
उसके मन को उजाड़ रेगिस्तान बना देना
उसकी धमनियों में बहते सभी रसों को
निचोड़कर उनमें ज़हर भर देना
घिन नहीं आती तरस आता है तुम्हारे हाल पर
तुम्हारी ऐसी दुर्गति किसने की दयनीय हत्यारों
रोंगटे खड़े कर देने वाली इस रचना को जिसने पढ़ा वाह वा कर उठा और इसी वाह वा में शब्द-युद्ध का ये आयोजन अपने मकसद में कामयाब भी हुआ. आतंकवाद को एक दिन विदा होना ही होगा ये निश्चित है लेकिन इस की विदाई से पूर्व कितनो का खून बहेगा कह पाना मुश्किल है. संजय भारद्वाज जी
![](http://4.bp.blogspot.com/_8VHwyKVsxqI/SYM5YNKGI5I/AAAAAAAAA2Q/wAp6LShA_gc/s320/3.jpg)
की इस विलक्षण रचना "ये आदमी मरता क्यूँ नहीं है"
से मैं अपनी इस पोस्ट का समापन करता हूँ.
![](http://3.bp.blogspot.com/_8VHwyKVsxqI/SYM5IB056lI/AAAAAAAAA2I/wgxj0gv5BAs/s320/11.jpg)
हार कबूल करता क्यूँ नहीं है
ये आदमी मरता क्यूँ नहीं है
कई बार धमाकों से उड़ाया जाता है
गोलियों से परखच्चों में बदल दिया जाता है
ट्रेनों की छतों से खींच कर
नीचे पटक दिया जाता है
अमीर जादों की "डरंकन ड्राइविंग"
के जश्न में कुचल दिया जाता है.......
कभी दंगों की आग में
जला कर ख़ाक कर दिया जाता है
कहीं बाढ़ रहत के नाम पर
ठोकर दर ठोकर कत्ल कर दिया जाता है
कभी थाने में उल्टा लटकाकर
दम निकलने तक बेदम पीटा जाता है
कभी बराबरी जुर्रत में
घोडे के पीछे बाँध कर खींचा जाता है
सारी ताकतें चुक गयीं
मारते मारते ख़ुद थक गयीं
न अमरता ढोता कोई आत्मा है
न अश्वथामा न परमात्मा है
फ़िर भी जाने इसमें क्या भरा है
हजारों साल से सामने खड़ा है
मर मर के जी जाता है
सूखी जमीन से अंकुर सा फूट आता है
ख़त्म हो जाने से डरता क्यूँ नहीं है
ये आदमी मरता क्यूँ नहीं है
ये प्रदर्शनी मेरे ख्याल से हर भारतवासी को एक बार जरूर देखनी चाहिए, इसलिए इसे हर गावं शहर के स्कूलों कालेजों या सार्वजनिक स्थलों पर लगाना चाहिए. आप अपने शहर गावं स्कूल या कालेज में जहाँ चाहे इसके प्रदर्शन की व्यवस्था श्री संजय भारद्वाज जी से सीधे उनके मोबाईल 09890122603 पर बात कर के कर सकते हैं या उनके ई मेल sanjaybhardwaj@hotmail.com पर संपर्क कर सकते हैं लेकिन दोनों ही हालात में आप उनके इस अभूतपूर्व काम की मुक्त कंठ से प्रशंशा जरूर करें.
![](http://3.bp.blogspot.com/_8VHwyKVsxqI/SYM5zZvEgeI/AAAAAAAAA2Y/MzZim3dzlFA/s320/40.jpg)