Sunday, September 30, 2007

आंखे खोल के देखो







जान उन बातों का मतलब

जो होती हैं सी कर लब


सब जब कहते एक ही है

क्यों हिस्सों में बांटों रब


शाम हुई दिल बैठ रहा है

अभी बितानी सारी शब


रोना हँसना घुटना मरना

इस जीवन में मिलता सब


जलती जाती देह की बाती

बुझ जायेगी जाने कब


तुमको कल का बड़ा भरोसा

पर होता जो करलो अब


जाम उठाके पियो आज तो
कल जो होगा देखेंगे तब


"नीरज" आंखे खोल के देखो

हर सू उसके ही करतब




Saturday, September 29, 2007

मैं हूँ डॉन




नींद अभी पूरी तरह से खुली भी नहीं थी कि मोबाइल की घंटी बजी. यूं कह सकते हैं कि मोबाईल की घंटी की वजह से ही नींद खुल गई.
"हेलो" मैंने अलसाई आवाज़ मैं कहा.
"क्या बावा, सुबेरे-सुबेरे नींद का आनंद ले रयेला है? एक बात बता, ये तुम लोग सुबेरे सोता कैसे है? " सवाल और भाषा से नींद जाती रही. आवाज़ के कड़क पन ने आलस्य को भी डपट दिया.
मैंने हड़बड़ा कर कहा; "जी मैं नीरज और आप?"
"अपुन डॉन... क्या?"
"डॉन..??? कौन शाहरुख़? "
"क्या रे. ये शाहरुख कभी से डान बना, बे ढक्कन "
"ओह तो क्या अमिताभ जी?" मैं चहका.
"क्यों बे, रात को लगा ली थी क्या? या सुबह-सुबह दिमाग मोर्निंग वाक को गए ला तेरा ? खवाब देख रए ला है क्या बे?" उधर से आवाज आई.
अब मैं उठ के बैठ गया दिमाग मैं घंटी बजी की मामला कुछ गड़बड़ है. गले से गों गों की आवाज निकलने लगी .
"अपुन असली डॉन ,बोले तो बड़ा सरोता, समझा क्या? तू अपुन का नाम तो सुना ही होगा."
"बड़ा सरोता?" मैं हकलाया. "वो ही जो किसी की भी सुपारी ले कर उसे कुतर डालता है?"
"वोहीच रे. आदमी पढ़ा लिखा है तू, क्या?" वो खुश हो के बोला.
"थैंक्यू थैंक्यू सर" मैंने थूक निगलते हुए कहा. "आप ने मुझे कैसे फ़ोन किया सर?" डर अच्छे अच्छे को तेहजीब से बोलना सिखा देता है. डॉन के लिए "सर" का संबोधन अपने आप मेरे मुह से झरने लगा. अब मैं बिस्तर छोड़ खड़ा हो गया था.
"मुझे हुक्म कीजिये सर मैं आप के क्या काम आ सकता हूँ?" मैंने ज़बान मैं जितनी मिठास लायी जा सकती थी ला कर कहा.
"ऐ स्याणे जास्ती मस्का मारने का नहीं, समझा क्या? बोले तो तू अपुन के क्या काम आएगा? अपुन अपने काम ख़ुद इच आता है " बड़ा सरोता बोला.
"येस सर येस सर" मैं फिर से हकलाया.
"देख बावा डरने का नहीं. पन अपुन सुना है, तूने कोई ब्लॉग खोले ला है."डॉन के मुहं से ब्लॉग की बात सुन के मैं चकराया. सोचने लग गया कि इसे कैसे पता चला.
मैंने कहा; " सर ब्लॉग भी कोई खोलने की चीज है. ब्लॉग तो लिखने के लिए होता है."
उसने कहा; "क्या बे, अपुन को एडा समझा है क्या तू?"
मैंने कहा; "क्या बात कर रहे हैं सर, मैं और आप को ऐसा समझूं!"
"अभी जास्ती पकाने का नहीं. एक ईच बात बताने का. तेरा ब्लॉग है या नहीं?" सरोता ने पूछा.
मैंने कहा; " है सर, है. पर इसमें मेरी कोई गलती नहीं है. वो तो शिव और ज्ञान जी ने मुझे ब्लॉग लिखने के लिए कहा. आप मेरी बात का यकीन कीजिये, मुझे मालूम होता कि आप नाराज होंगे तो मैं उन्हें ब्लॉग बनाने ही नहीं देता."
सरोता जी बोले; "क्या रे, ये तुम पढ़ा-लिखा लोग इतना सोचता काई को है? अभी तू बोल, मैं नाराज है, ऐसा बोला क्या मैं?"
"नहीं. लेकिन मुझे लगा कि आप मेरे ब्लॉग को देखकर नाराज गए हैं", मैंने उनसे कहा.
"देख, जास्ती सोचने का नहीं. अभी इतना सोचेगा, तो दिमाग का दही बन जायेगा. अपुन को देख, अपुन गोली चलाने से पहले सोचता है क्या? नई न. फिर? बोले तो, सोचने का नई. नौकरी करने का और ब्लॉग लिखने का." डान बोला.
मुझे थोड़ी राहत मिली. मैंने कहा; " ये तो अच्छी बात है न सर, कि आप नाराज नहीं हैं. अच्छा बताईये, मुझसे क्या काम है." सरोता बोला, "देख, तू मेरा काम करीच नई सकता. मैं बोल रहा था, तू तो बस अपना काम कर. क्या, ग़लत बोला क्या मैं? नई न? मेरे को बस इतना ईच काम है तेरे से कि मेरा एक ब्लॉग बना दे"
"क्या बात कर रहे हैं, सर. आपका ब्लॉग???" मैं आसमान से गिरा और खजूर पर भी नहीं अटका.
"क्यों बे, तेरे को कोई प्रॉब्लम है क्या? नई न? नहीं बोल, प्राब्लम होने से बता, मैं तेरा भी गेम बजा दूँ अभिच . अपुन कभी-कभी शौकिया भी एक दो को टपका डालता है " डान दहाड़ा.
"नहीं सर, मुझे कोई प्राब्लम नहीं है, लेकिन आप ठहरे भाई. आपका ब्लॉग हो, इसकी क्या जरूरत है?" मैंने डरते-डरते कहा.
"काई को? अभी पुलिस का ब्लॉग हो सकता है तो अपुन का भी हो सकता है." डान बोला.
"पुलिस का ब्लॉग! ऐसा कोई ब्लॉग है क्या?" मैंने उनसे पूछा.
डान बोला; "क्या रे, तू केवल लिखता है. पढ़ता नहीं है क्या? लेकिन तेरा भी गलती नईं है. तू अभी नया है न इस धंधे में. तू देखा नई होगा." आगे कुछ सोचते हुए बोला; "लेकिन एक बात बता. ऐसा तो नहीं कि तेरे को केवल लिखने आता है, पढ़ने नहीं"
"नहीं सर. ऐसी बात नहीं है, मुझे पढ़ने भी आता है.", मैंने उसे बताया.
डान बोला; "अच्छा एक बात बोल. तेरे को पढ़ने आता है तो फिर तूने बाड़मेर पुलिस का ब्लॉग नहीं पढ़ा क्यों?"
मैंने कहा; "पुलिस का ब्लॉग! ऐसा कोई ब्लॉग है क्या?"
डान बोला; "इसीलिए तो. इसीलिए तो अपुन को भी अपना ब्लॉग माँगता. अपुन पुलिस के साथ आँख मिचोली खेलता है, तो ब्लॉग-मिचोली भी तो खेल सकता है. बोल है कि नहीं? ग़लत बोला क्या मैं?"
"नहीं नहीं सर आपका ब्लॉग तो होना ही चाहिए, आप का नहीं तो किसी का भी नहीं होना चाहिए सर" मैं रिरियाया. मन ही मन मैंने सोचा की क्या दिन आ गए हैं एक डॉन को भी अब ब्लॉग की चाह होने लगी है .
"वो ईच तो, वो ईच तो बोल रए ला हूँ मैं इतनी देर से. तेरे भेजे में अपुन की बात उतरती ही नहीं. क्या बे, भेजा है कि नई, या दुनिया को खाली-पीली हूल देता फिरता है?"
"जी जी सर, है. भेजा है " मैंने घिघियाते हुए बताया.
"है न. तो फिर मेरे वास्ते एक ताजा ब्लॉग बना. और सुन ब्लॉग में तेरे को ईच लिखना है. समझा क्या?" डान ने मुझे धमकाते हुए बताया.
"याने मैं लिखूं आपका ब्लॉग सर ?" मैंने उससे पूछा.
"अबे एक बात बता. अभी तू बोला कि तेरे पास भेजा है. मेरे को एक ईच बात बोल, ये कैसा भेजा है बे, जो मक्खन का माफिक प्लेन बात भी नई समझता?" आगे बोला; "अभी तू सोच, अपुन ब्लॉग लिखेगा, तो अपुन का गेम बजाने का काम क्या तू करेगा? अपुन एक ईच चीज नई, वो है टाइम. समझा क्या? अपुन के पास बंदूक है. दुनिया का नियम है बे, जिसके पास टाइम नहीं उसके पास बन्दूक है और जिसके पास टाइम है उसके पास बंदूक नही होती." डान ने समझाते हुए कहा.
इतने ज्ञान की बात सुन के मेरी इच्छा हुई की मैं डॉन भाई के पांव छू लूँ.
"सर मैं कुछ बहुत बड़े बड़े ब्लोगियों को जानता हूँ सर जो मुझसे भी बहुत अच्छा ब्लॉग आप के लिए लिख सकते हैं सर, आप का नाम रोशन कर सकते हैं सर"
"अपुन का भेजा खाने का नहीं समझा क्या अपुन का ब्लॉग होने का मतलब की होने का बस . अब तू चाहे ख़ुद लिख या लिखवा ये अपुन का टेंशन नहीं समझा क्या? बस और अपुन कुछ नहीं बोलेगा. बात खल्लास." डान ने धमकाते हुए कहा.
मैं चुप रहा ,बोलने के लिए था ही क्या?
"और सुन ब्लॉग का नाम होना "मैं हूँ डॉन"."
"लिखना क्या होगा सर?"
"अबे ब्लॉग में भी सोचके लिखने का होता है क्या? अपुन की तारीफ लिखने का, पुलिस की बुराई लिखने का, चाक़ू, छुरी, कटार, तमंचा ,बन्दूक, बोम्ब का ताजा जानकारी लिखने का और क्या लिखने का रे? हाँ और लिखने का की डॉन से डरने का नहीं, डॉन को भाई मानने का, बस डॉन से पंगा लेने का नहीं सिर्फ़ उसकी बात पे मुण्डी हिलाने का"
"जी जी समझ गया सर"
"ब्लॉग जल्दी लिखने का समझा क्या? अपुन को इंटरनेशनल फ़टाफ़ट बनने का रे और सुन अगली बार अपुन का फ़ोन नहीं आएगा,या तो भेजे में गोली आएगा या डॉलर का बंडल आयेगा, अपुन उधार का धंदा नहीं करता समझा क्या?
फ़ोन कट गया. तब से परेशान हूँ की क्या लिखूं ? कोई है जो मेरी मदद करे? डॉलर के बंडल से आधा उसका जो मेरी मदद करेगा . चलो आधा नहीं पूरा का पूरा बंडल उसका, अपनी तो जान बच जाए ये ही बहुत है रे.
यहाँ अपने ब्लॉग पे लिखने के लिए कुछ नहीं मिल रहा ऊपर से डॉन के ब्लॉग के लिए टेंशन.... एक बात और आज तो डॉन का फ़ोन हमारे पास आया है हो सकता कल को किसी और ब्लॉग लेखक के पास चला आए . मुझे लगता है की कोई है जो ब्लॉग लेखकों के बढ़ते समुदाय से परेशान है आप सब सावधान रहिएगा फ़िर न कहियेगा की मैंने बताया नहीं.

Thursday, September 27, 2007

मेरा जूता है जापानी!




जिस तरह कस्बे का छोटा सा स्टेशन, लाईन क्लिअर न होने पे अचानक ठहर गयी शताब्दी और दूसरी ऐसी ही तेज चलने वाली गाड़ियों को देख ये समझ बैठता है की वो जंक्शन बन गया है उसी तरह मैंने भी अपने ब्लॉग पर बड़े बड़े सूरमाओं को जब आते और कमेंट करते देखा तो लगा की मैं भी बहुत बड़ा ब्लोगिया हो गया हूँ. ये ग़लत फ़हमी जल्दी ही दूर हो गयी. थोड़े ही दिनों बाद सूरमाओं को छोड़िये यहाँ तक कि नये ब्लॉगर भाईयों तक का आवागमन भी कम से कमतर होता गया. मुझे जान लेना चाहिए था की अगर एक ही प्लेटफॉर्म हो तो लम्बी दूरी की प्रतिष्ठित गाडियां उस स्टेशन पर नहीं ठहरा करतीं चाहे ज्ञान भईया अपने कौशल से उन्हे कितना ही रोकने की कोशिश करें. इसलिए सोचा की अब शायरी के अकेले प्लेटफॉर्म के अलावा कोई दूसरा प्लेटफॉर्म भी बनाना होगा. आजकल शोपिंग मॉल का ज़माना है जबतक सब कुछ एक ही छत के नीचे न मिले कोई आता नहीं!

इसीलिये मेहरबानो, कद्रदानों मैंने शायरी के अलावा भी कुछ लिखने का सोचा है.

लेकिन क्या लिखें? राम सेतु ,फिल्में, राजनीति, क्रिकेट और साहित्य आदि के नाम पर हमारे श्रेष्ट ब्लोगियों ने अपने ज्ञान से पढने वालो का समय पहले ही काफी कुछ ले लिया है तब ऐसे में हमारे लिए लिखने को बचता क्या है? अगर हम भी वो ही सब कुछ लिखने लग गए तो हमें पढ़ेगा कौन? समस्या वहीं की वहीं रह जायेगी! सोचते हैं कुछ हट के लिखें क्यों की हट के कुछ लिखने से हिट होने की संभावना बढ़ जाती है! उदाहरण के लिए गुलज़ार साहेब को ही लें , जब उनको लगा की "नाम गुम जाएगा" जैसे गाने सुनने वाले नहीं रहे हैं तो "बीडी जलाईले जिगर से पिया" लिख के फ़िर से हिट हो गए.

अभी पिछले दिनों जापान जाना हुआ! जापान का नाम तो सुने ही होंगे आप? नहीं सुने हैं (कमाल है!) तो कृपया मेरा ब्लॉग पढ़ना छोड़िये और अपना सामान्य ज्ञान पहले बढाइये क्यों की मैं वहीँ की बात करने जा रहा हूँ! तो साहेब जापान में ऐसा बहुत कुछ है जिस से अगर हम कुछ सीखना चाहें तो सीख सकते हैं लेकिन उसके लिए हमें अपनी सिर्फ़ "सायोनारा तक सीमित" सीखने की प्रवृति को छोड़ना होगा!

मैं सिर्फ़ अनुशासन की बात ही करुंगा अभी! जापान में एक अलिखित नियम है स्वचालित सीढियों पर चलने का - वह ये की सब लोग रेलिंग के दाईं और खड़े होते हैं ताकि जिस व्यक्ति को जल्दी है, वो बाकी लोगों को बिना धक्का दिए बाईं और से तेजी से चढ़ या उतर सकता है! ये नियम पूरे जापान मैं पालन किया जाता है, बिना किसी को इसके पालन के लिए बाध्य किए हुए! आप कहीँ चले जाएँ लोग आप को एक साइड पर ही खडे नज़र आएंगे! सोचिये की यदि हमारे देश मैं भी ये सुविधा हो जाए तो बिचारे जेबकतरों को कितनी असुविधा हो जायेगी, नहीं? दूसरे हम लोगों को बिना दूसरे को धक्का दिए चलने मैं कितनी दिक्कत होगी?

और सबसे अच्छी बात जो देखने मैं आयी वो थी के अंधे लोगों के लिए रेलवे स्टेशन , एअर पोर्ट , शॉपिंग मॉल , या सड़क के किनारे एक पीले रंग की पट्टी बिछाई जाती है जिस पर ब्रेल नुमा चिह्न उभरे रहते हैं जिस से की वे लोग उसपे चलते हुए ये जान लेते हैं की कहाँ आराम से चलना है कहाँ मोड़ हैं या कहाँ रुकना है !

अंधे लोगों के लिए इस प्रकार की सुविधा मैंने तो दुनिया में और कहीँ नहीं देखी आप ने देखी हो तो कह नहीं सकता! अपने मोबाइल से जैसी फोटो मैं खींच सकता था खींच लाया हूँ आप भी देखिये!


अब बात करें हमारे देश की तो साहेब ये देखिए मुम्बई की एक सड़क की फोटो जो आज के अखबार से ली गयी है (दायीं तरफ देखें) और जिसकी स्थिति आँख वालों के और यहाँ तक की वाहनों के चलने के लिए भी ठीक नहीं है तो अंधों की क्या बात करें? सोचिये और जवाब दीजिये यदि आप के पास है तो !

हमारे देश में लोग "मेरा जूता है जापानी" गाने पे ही पे अटके रह गए और जापानी जूता पहन के न जाने कहाँ से कहाँ चले गए.!

Monday, September 24, 2007

काश बरसात बन बिखर जाये



कब अंधेरों से खौफ खाता है
वो जो तन्हाईयों में गाता है

गम तो अक्सर ये देखा है मैंने
उसका बढ़ता है जो दबाता है

जिसके हिस्से में खार आए हों
देख कर फूल सहम जाता है

कहना मुश्किल है प्यार में यारों
कौन देता है कौन पाता है

काश बरसात बन बिखर जाये
जो घटाओं सा मुझपे छाता है

आप इस को मेरी कमी कह लें
मुझको हरकोई दिल से भाता है

हर बशर को उठाके हाथों में
वक्त कठपुतलियों सा नचाता है

नींद बस में नहीं मेरे "नीरज"
जो चुराता है वो ही लाता है





Saturday, September 22, 2007

कभी याद न आओ




तन्हाई की रातों में कभी याद न आओ

हारूंगा मुझे मुझसे ही देखो न लडाओ


किलकारियाँ दबती हैं कभी गौर से देखो

बस्तों से किताबों का जरा बोझ हटाओ


रोशन करो चराग ज़ेहन के जो बुझे हैं

इस आग से बस्ती के घरों को न जलाओ


खुशबु बड़ी फैलेगी यही हमने सुना है

इमान के कटहल को अगर आप पकाओ


बाज़ार के भावों पे नज़र जिसकी टिकी है

चांदी में नहाया उसे मत ताज दिखाओ


ये दौड़ है चूहों की जिसका ये नियम है

बढता नज़र जो आये उसे यार गिराओ


होती हैं राहें "नीरज" पुर पेच मुहब्बत की

ग़र लौटने का मन हो मत पांव बढाओ




Friday, September 21, 2007

जो सुकूं गाँव के मकान में है




वो ना महलों की ऊंची शान में है
जो सुकूं गांव के मकान में है


जब चढ़ा साथ तब ज़माना था
अब अकेला खडा ढलान में है


हम को बस हौसला परखना था
तू चला तीर जो कमान में है


लूटा उसने ही सारी फसलों को
हमने समझा जिसे मचान में है


बोल कर सच हुए हैं शर्मिंदा
क्या करें मर्ज़ खानदान में है


जिसको बाहर है खोजता फिरता
वो ही हीरा तेरी खदान में है


जिक्र तेरा ही हर कहीँ " नीरज"
जब तलक गुड तेरी ज़बान में है





उसी की बात होती है


मजे की बात है जिनका, हमेशा ध्यान रखते हैं
वोही अपने निशाने पर, हमारी जान रखते हैं

मुहब्बत, फूल, खुशियाँ,पोटली भर के दुआओं की
सदा हम साथ में अपने, यही सामान रखते हैं

यही सच्ची वजह है, मेरे तन मन के महकने की
जलाये दिल में तेरी याद का, लोबान रखते हैं

पथिक पाते वही मंजिल, भले हों खार राहों में
जो तीखे दर्द में लब पर, मधुर मुस्कान रखते हैं

मिलेगी ही नही थोड़ी जगह, दिल में कभी उनके
तिजोरी है भरी जिनकी, जो झूटी शान रखते हैं

उसी की बात होती है, उसी को पूजती दुनिया
जो भारी भीड़ में अपनी, अलग पहचान रखते हैं

गुलाबों से मुहब्बत है जिसे, उसको ख़बर कर दो
चुभा करते वो कांटे भी, बहुत अरमान रखते हैं

बहारों के ही हम आशिक नहीं, ये जान लो 'नीरज'
खिजाओं के लिये दिल में, बहुत सम्मान रखते हैं

Wednesday, September 5, 2007

फूल उनके हाथ में जँचते नहीं







झूठ को ये सच कभी कहते नहीं
टूट कर भी आइने डरते नहीं

हो गुलों की रंगो खुशबू अलहदा
पर जड़ों में फ़र्क तो दिखते नहीं

जिनके पहलू में धरी तलवार हो
फूल उनके हाथ में जँचते नहीं

अब शहर में घूमते हैं शान से
जंगलों में भेड़िये मिलते नहीं

साँप से तुलना ना कर इंसान की
बिन सताए वो कभी डसते नहीं

कुछ की होंगी तूने भी ग़ुस्ताखियाँ
खार अपने आप तो चुभते नहीं

बस खिलौने की तरह हैं हम सभी
अपनी मर्ज़ी से कभी चलते नहीं

फल लगी सब डालियाँ बेकार हैं
गर परिंदे इन पे आ बसते नहीं

ख़्वाहिशें नीरज बहुत सी दिल में हैं
ये अलग है बात कि कहते नहीं