मैंने देखा है, जरूरी नहीं के मैंने जो देखा है उस से आप भी सहमत हों, के खूबसूरत अशआर कहने वाले शायर अक्सर खूबसूरत नहीं होते. शायर का नाम आने पर हमारे ज़ेहन में एक दाढ़ी वाले अचकन टोपी पहने हुए शख्स का चेहरा उभरता है. हमें फिल्मों में और पत्र पत्रिकाओं में ऐसे ही चेहरे देखने की आदत पड़ चुकी है. बहुत हुआ तो सूट बूट में या फिर कमीज़ बुशर्ट में भी आजकल कभी कभार शायर मुशायरों में दिखाई दे जाते हैं.चलिए आप पहनावे को पहनावे को छोडिये और एक बात नोट कीजिये कि खुदा ने जिन्हें भी शायरी की सौगात दी है उनसे अच्छी शक्लो सूरत छीन ली है. लेकिन साहब अपवाद कहाँ नहीं होते. आज हम किताबों की दुनिया में एक ऐसे शायर की किताब की बात करेंगे जो देखने में भी उतना ही खूबसूरत है जितनी कि उसकी शायरी.
ये चाह कब है मुझे सब-का-सब जहान मिले
मुझे तो मेरी जमीं, मेरा आसमान मिले
जवां हैं ख़्वाब क़फ़स में भी जिन परिंदों के
मेरी दुआ है उन्हें फिर नयी उड़ान मिले
हो जिसमें प्यार की खुशबू, मिठास चाहत की
हमारे दौर को ऐसी भी इक जुबान मिले
प्यार की खुशबू और चाहत की मिठास से लबरेज़ इस खूबसूरत शायर का नाम है "देव मणि पांडेय " जिनकी किताब "खुशबू की लकीरें" का हम आज जिक्र करने जा रहे हैं. शायरी का शायद ही कोई ऐसा चाहने वाला होगा, खास तौर पर मुंबई में, जो देव मणि जी के नाम से वाकिफ़ न हो. मुंबई में होने वाली नशिश्तें, कविता और शायरी से सम्बंधित कार्यक्रम उनकी मौजूदगी के बिना अधूरे माने जाते हैं. अपने आकर्षक व्यक्तित्व और दिलकश अंदाज़ से वो हर महफ़िल में जान डाल देते हैं.
इस तरह कुछ आजकल अपना मुकद्दर हो गया
सर को चादर से ढका तो पाँव बाहर हो गया
जब तलक दुःख मेरा दुःख था, एक कतरा ही रहा
मिल गया दुनिया के ग़म से तो समंदर हो गया
इस कदर बदलाव आया आदमी में इन दिनों
कल तलक जो आइना था आज पत्थर हो गया
हमेशा मुस्कुराते, खुश मिजाज़ देव मणि जी से मेरी पहली मुलाकात मुंबई की बतरस काव्य संस्था द्वारा अनीता कुमार जी के घर पर आयोजित काव्य संध्या में लगभग पांच वर्ष पहले हुई थी. उसके बाद उनसे मिलने मिलाने का सिलसिला चल निकला. खोपोली के भूषण गार्डन में हुई पहली
काव्य संध्या भी उनकी रहनुमाई में ही आयोजित की गयी थी.
"बतरस" की सभा में रचना पाठ करते हुए देवमणि पांडेय
दिल के आँगन में उगेगा ख़्वाब का सब्ज़ा जरूर
शर्त है आँखों में अपनी कुछ नमी बाकी रहे
आदमी पूरा हुआ तो देवता बन जाएगा
ये जरूरी है कि उसमें कुछ कमी बाकी रहे
दिल में मेरे पल रही है ये तमन्ना आज भी
इक समंदर पी चुकूं और तिश्नगी बाकी रहे
4 जून 1958 को सुल्तानपुर (यु.पी.) में जन्में देवमणि जी ने हिंदी एवं संस्कृत में प्रथम श्रेणी में एम्.ऐ. किया है और अब आयकर विभाग की मुंबई शाखा में कार्यरत हैं. उनकी अब तक दो किताबें दिल की बातें -1999 और खुशबू की लकीरें-2005 प्रकाशित हो चुकी हैं. इसके अलावा दूरदर्शन और आकाशवाणी से भी उनकी रचनाएँ प्रसारित हुई हैं. हिंदी के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में भी उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं. उन्हें फिल्म पिंजर के लिए लिखे गीत "चरखा चलती माँ..." पर सन 2003 का “सर्वोत्तम गीत” पुरूस्कार मिल चुका है.
कितने दिलों में आज भी जिंदा हैं कुछ रिवाज़
पक्के घरों के बीच में अंगनाईयां मिलीं
हर शै में जैसे आज भी खुशबू है प्यार की
छू कर किसी को झूमती पुरवाइयाँ मिलीं
पलकों ने जब सजाया है कोई हसीन ख़्वाब
वादी में दिल की गूंजती शहनाईयां मिलीं
"खुशबू की लकीरें" किताब में देव मणि जी की न केवल तीस के लगभग ग़ज़लें हैं बल्कि इतने ही गीत और नगमें भी हैं. गीत ग़ज़लों के रसिक पाठकों के लिए ये किताब खास तौर से पठनीय है. इस किताब से आप देवमणि जी के बहु आयामी लेखन की एक झलक पा सकते हैं. आज के जीवन की आपाधापी, हर्ष-विषाद, मिलन-विछोह, ठोकर-पुचकार ,राग-विराग, सफलता-असफलता, आशा-अवसाद, उतार-चढाव जैसे सभी रंग इस किताब की रचनाओं में मिलते हैं.
ईद, दशहरा, दीवाली का रंग है फीका फीका सा
त्योंहारों में इक दूजे को गले लगाना भूल गए
बचपन में हम जिन गलियों की धूल को चंदन कहते थे
बड़े हुए तो उन गलियों में आना जाना भूल गए
शहर में आ कर हमको इतनी खुशियों के सामान मिले
घर-आँगन, पीपल-पगडण्डी,गाँव सुहाना भूल गए
मेघा बुक्स एक्स -11, नवीन शाहदरा, दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस किताब को 01122323672 पर फोन करके इसकी प्राप्ति का रास्ता पूछा जा सकता है अथवा श्री देव मणि जी को इन खूबसूरत अशआरों के लिए उनके मोबाइल
+ 919821082126 पर बधाई देते हुए उनसे इस किताब के लिए आग्रह किया जा सकता है. दोनों में से कोई सा भी रास्ता चुनने को आप स्वतंत्र हैं. मेरी आपसे बस इतनी सी प्राथना है के इन खूबसूरत अशआरों के लिए देवमणि जी को कम से कम बधाई जरूर दें.
जीवन ऐसे पनप रहा है साए में दुःख दर्दों के
जैसे फूल खिला हो कोई काँटों की निगरानी में
दुनिया जिसको सुबह समझती तुम कहते हो शाम उसे
कुछ सच की गुंजाइश रख्खो अपनी साफ़ बयानी में
खुदगर्ज़ी और चालाकी में डूब गयी दुनिया सारी
वर्ना सच्चा ज्ञान छुपा है बच्चों की नादानी में
छीन लिया दुनिया ने सबकुछ फिर भी माला माल रहा
जब-जब मुझको हँसते देखा, लोग पड़े हैरानी में
लोग उन्हें हँसते देख भले ही हैरानी में न पड़ते हों लेकिन पचास के ऊपर की उम्र में भी उनके चेहरे की ताजगी और मासूमियत जरूर लोगों को हैरानी में डाल देती है. पचास क्या वो चालीस के भी नहीं लगते. एक बार उनकी इस सदा बहार जवानी का रहस्य मेरे पूछने पर उन्होंने हँसते हुए जवाब दिया "बहुत सीधा जवाब है नीरज भाई न हम किसी को टेंशन देते हैं और न किसी बात का टेंशन लेते हैं, जो है जैसा है हर हाल में खुश रहते हैं बस." बात यकीनन बहुत सरल और सीधी है लेकिन हम में से अधिकाँश इसका पालन नहीं करते. दूसरों के सुख से उपजा दुःख और नकारात्मक सोच हमें समय से पहले ही बूढा कर देती है.
यकीन कीजिये ये देवमणि जी हैं अपने नाती सार्थक के साथ
जब तलक रतजगा नहीं चलता
इश्क क्या है पता नहीं चलता
ख़्वाब की रहगुज़र पे आ जाओ
प्यार में फासला नहीं चलता
उस तरफ चलके तुम कभी देखो
जिस तरफ रास्ता नहीं चलता
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि देवमणि जी अपना एक ब्लॉग भी
"खुशबू की लकीरें" नाम से है.जिसमें वो अपनी ताज़ा रचनाएँ और साहित्य से सम्बंधित लेख पोस्ट करते रहते हैं. साहित्य प्रेमियों को उनके ब्लॉग पर जरूर जाना चाहिए. चलते चलते देवमणि जी की ग़ज़ल के चंद शेर और पढ़िए:-
अभी तक ये भरम टूटा नहीं है
समंदर साथ देगा तश्नगी का
न जाने कब छुड़ा ले हाथ अपना
भरोसा क्या करें हम ज़िन्दगी का
लबों से मुस्कराहट छिन गयी है
ये है अंजाम अपनी सादगी का