Monday, June 28, 2010

किताबों की दुनिया - 32

आप इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं याने इसमें कोई शक नहीं के आप उर्दू शायरी को चाहने वाले हैं. इस से पता चलता है के आप आम इंसान नहीं हैं क्यूँ की आप रोज़मर्रा की मसरूफियत के बीच भी अपने शौक के लिए वक्त निकाल रहे हैं. शायरी पढने की आदत अब बहुत सीमित लोगों तक ही रह गयी है, मुशायरों में जमा होने वाली भीड़ जरूरी नहीं शायरी की किताबें भी पढ़ती हो. वैसे भी मुशायरों में शायरी की वो खुशबू नहीं आती जो किताब पढने से उठती है . खुशबू के लिए जरूरी है के वो सीधे आप तक पहुंचे, किताब पढ़ते वक्त अशआर सीधे आप तक ही पहुँचते हैं.इधर उधर भटकते नहीं. भूमिका को यहीं ख़तम करते हुए मुद्दे पर आते हैं. तो ये तय पाया के आप शायरी के शौकीन हैं और अगर शौकीन हैं तो ये शेर आपकी नज़रों से जरूर गुज़रे होंगे:

बादल हो तो बरसो कभी बेआब ज़मीं पर
खुशबू हो अगर तुम तो बिखर क्यूँ नहीं जाते

जब डूब ही जाने का यकीं है तो न जाने
ये लोग सफीनों* से उतर क्यूँ नहीं जाते
सफीनों*= किश्तियों

तुम राह में चुपचाप खड़े हो तो गए हो
किस किस को बताओगे कि घर क्यूँ नहीं जाते

आपने क्या जवाब दिया? आपकी नज़रों से गुजरें हैं ये अशआर...मुझे मालूम था शायरी के शौकीन हैं तो इन्हें पढ़े बिना कैसे रहे होंगे. अक्सर हम लोग किसी शेर को तो ज़ेहन में बिठा लेते हैं लेकिन शायर का नाम याद नहीं रख पाते. आपकी याददाश्त को हरा करते हुए बता दूं के ऊपर आपके द्वारा पढ़े अशआर उर्दू के मशहूर शायर मरहूम जनाब "अमीर आग़ा क़ज़लबाश" साहब के कहे हुए हैं. जिनके व्यक्तित्व के बारे में उर्दू के व्यंगकार मुज्तबा हुसैन साहब ने कहा है "एक खुश शक्ल, खुश लिबास, खुश मिजाज़, खुश गुलू और खुश गुफ्तार इंसान". आज हम उसी इंसान की शायरी की किताब की चर्चा करेंगे जिसे संकलित किया है श्री कन्हैया लाल नन्दन जी ने और प्रकाशित किया है "राजपाल एंड सन्ज" ने. राजपाल वालों ने उर्दू हिंदी के शायरों की किताबों की एक बेहतरीन श्रृंखला "आज के प्रसिद्द शायर " नाम से प्रकाशित की है, उसी श्रृंखला की एक कड़ी आज की ये पुस्तक है.



कुछ तो अपनी निशानियाँ रख जा
इन किताबों में तितलियाँ रख जा

लोग थक-हार के न लौट आयें
रास्ते में कहानियां रख जा

इन दरख्तों से फल नहीं गिरते
इनके नज़दीक आंधियां रख जा

हो रहा है अगर जुदा मुझसे
मेरी आँखों पै उँगलियाँ रख जा

क़ज़लबाश साहब की शायरी का न सिर्फ कैनवास बहुत बड़ा है बल्कि उनके कहने का ढंग भी अपने समकालीनो से बिलकुल जुदा और असरदार है. उनके कहने के अंदाज़ में सिर्फ तल्खी ही नहीं है बल्कि शायरी की खूबसूरत नजाकत भी है. उनका कलाम हमेशा जिंदा रहने वाला है और हर दौर में वो ताज़ा ही लगेगा.

काम आएँगी कल ये तहरीरें*
उँगलियों को लहू में तर रखना
तहरीरें*=लिखी हुई इबारतें

ख़ाली घर तो बुरा सा लगता है
ख़्वाब आँखों में कोई भर रखना

जानलेवा बहुत है बाखबरी
खुद को थोडा सा बेख़बर रखना

आखरी शेर के मिसरा ऐ सानी में 'थोडा सा' कह कर कमाल की ख़ूबसूरती बख्शी है अमीर साहब ने इस शेर में. ऐसी ख़ूबसूरती पूरी किताब में फैली उनकी शायरी में हर कहीं नज़र आती है और इस अजीम शायर की शान में सर अपने आप झुक जाता है.

तू कि दरिया है मगर मेरी तरह प्यासा है
मैं तेरे पास चला आऊंगा बादल की तरह

रात जलती हुई एक ऐसी चिता है जिस पर
तेरी यादें हैं सुलगते हुए संदल की तरह

इस किताब की भूमिका जाने माने कवि-शायर कन्हैया लाल नंदन जी ने लिखी है जिसमें उन्होंने अमीर साहब की शख्शियत और शायरी पर विस्तार से प्रकाश डाला है. वो एक जगह लिखते हैं " अमीर की शायरी से गुज़रते हुए आप ज़िन्दगी की कड़ी धूप में कांच के शामियानों से होकर गुज़रते हैं .ज़िन्दगी देखने का उनका नजरिया बिलकुल अपना होता है .ये निजता की पहचान अमीर की शायरी को बुलंदियों की तरफ लेकर चलती है."

मैं वह मुजरिमे-ज़िन्दगी हूँ कि जो
सज़ा काट ले और बहाली न हो

सरों को सलीबों पे रोशन रखो
ये दुनिया चरागों से ख़ाली न हो

मात्र एक सौ पचास रुपये की इस किताब में एक सौ पचास से अधिक लाजवाब ग़ज़लें हैं जो पाठकों को इंसान के दुःख-दर्द, खुशियों, खुद्दारियों, बुलंदियों और पस्तियों से रूबरू करवाती हैं. ज़िन्दगी के हर रंग का दीदार आप इस किताब में कर सकते हैं. इस के आपको करना ही क्या है, संपर्क के लिए राजपाल एंड सन्ज की साईट www.rajpalsons.com पर जाइये और इस किताब के दूसरे संस्करण को खरीदने की और पहला कदम बढाइये...बस. अगली किताब की खोज में निकलते हैं हम, आपको अमीर साहब के ये चंद और अशआर पढवाते हुए...खुदा हाफिज़...अपना ख्याल रखियेगा.

मोहब्बत का अज़ब दस्तूर देखा
उसी की जीत है जो हार जाये

इनायत गर्दिशें दौरां इनायत
नज़र में आ गए अपने पराये

न कर मिन्नत 'अमीर' इस नाखुदा* की
सफीना** डूबता है डूब जाये
नाखुदा*= नाविक
सफीना**=नाव

Monday, June 21, 2010

थम सा गया है वक्त





होगी तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में
निकले तलाशने जो वफ़ा आप प्‍यार में

चल तो रहा है फिर भी मुझे ये गुमाँ हुआ
थम सा गया है वक्त तेरे इन्तजार में


जब भी तुम्हारी याद ने हौले से आ छुआ
कुछ राग छिड़ गये मेरे मन के सितार में


किस्मत कभी तो पलटेंगे नेता गरीब की
कितनों की उम्र कट गयी इस एतबार में


दुश्वारियां हयात की सब भूल भाल कर
मुमकिन नहीं है डूबना तेरे खुमार में

ये तितलियों के रक्स ये महकी हुई हवा
लगता है तुम भी साथ हो अबके बहार में

वो जानते हैं खेल में होता है लुत्फ़ क्या
जिनको न कोई फर्क हुआ जीत हार में


अपनी तरफ से भी सदा पड़ताल कीजिये
यूँ ही यकीं करें न किसी इश्तिहार में


'नीरज' किसी के वास्ते खुद को निसार कर
खोया हुआ है किसलिये तू इफ्तिखार में

इफ्तिखार= मान, कीर्ति, विशिष्ठता, ख्याति


( अज़ीज़ दोस्त और छोटे भाई तिलक राज जी को शुक्रिया कहे बगैर ये ग़ज़ल मुकम्मल नहीं होगी )

Monday, June 14, 2010

किताबों की दुनिया - 31

दोपहर का समय था जब डोर बेल बजी. भयंकर गर्मी में कौन चला आया सोचते जब दरवाज़ा खोला तो सामने कोरियर वाले को खड़ा पाया. जब वो बोला के साब आपके लिए कोरियर सीहोर से आया है यहाँ साइन करिए तब उसके हाथ में मैंने एक मोटा सा बण्डल देखा. ख़ुशी के मारे चीख सी निकल गयी...अरे ये क्या ले आये भाई? कोरियर वाले को अन्दर बुलाया, ठंडा पानी पिलाया और जब तक वो पानी पीकर गिलास मेज़ पर रखता तब तक बण्डल को मैं उत्सुकता वश खोल चुका था. बण्डल में से किताबों का ज़खीरा निकल आया. मेरे लिए किताबों से मूल्यवान और कुछ नहीं है. एक से बढ़ कर एक आकर्षक आवरण में लिपटी पांच अलग अलग किताबें थीं, जिन्हें शिवना प्रकाशन से प्रकाशित किया गया था. सबसे पहले इस बहुमूल्य भेंट के लिए श्री पंकज सुबीर जी को फोन पर धन्यवाद दिया और फिर एक एक कर उन्हें खोलना और पढना शुरू किया.

आज उसी जखीरे में प्राप्त हुई ग़ज़लों की किताब " चाँद पर चांदनी नहीं होती " का जिक्र करूँगा, जिसे लिखा है आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी अत्यंत प्रतिभाशाली युवा मेजर संजय चतुर्वेदी ने. हमें गर्व है अपनी सेना पर जिसमें मेजर संजय जैसे संवेदन शील योद्धा हैं.


संजय अत्यंत युवा हैं इसलिए उनकी शायरी में कच्चे दूध की सी खुशबू आती है. उन्होंने अपनी शायरी में बेजोड़ प्रयोग किये हैं, इसलिए उनके अशआर बहुत अलग और ताज़ा लगते हैं. आईये अब अधिक देर ना करते हुए इस किताब के सफ्हे पलटते हैं और रूबरू होते हैं संजय जी की विलक्षण शायरी से और आगाज़ करते हैं उनकी इस किताब के पहले सफ्हे पर शाया हुई पहली ग़ज़ल के अद्भुत रदीफ़ काफियों से:-

घर के चौकीदार हुए दादा दादी
सबके पहरे दार हुए दादा दादी

कौन खरीदे नहीं रहे पढने वाले
उर्दू के अखबार हुए दादा दादी

घर में उनका नहीं रहा हिस्सा कोई
कपड़ों वाला तार हुए दादा दादी

आखरी शेर में 'कपड़ों वाला तार' ने तो कहर ही ढा दिया है. आँखें स्तिथि सोच कर नम हो जाती हैं.अपने चारों और बिखरी छोटी छोटी चीजों पर ध्यान देने पर ही आप ऐसा शेर कह सकते हैं. मैंने शायरी की बेशुमार किताबें पढ़ी हैं लेकिन किसी व्यक्ति के लिए जिसकी कोई पूछ न हो के लिए 'कपड़ों वाला तार' वाली उपमा नहीं पढ़ी. ऐसे नयी सोच और काफिये आपको इस किताब के आखरी पृष्ठ पर छपी ग़ज़ल में भी पढने को मिलते हैं , मुलाहिजा फरमाइए:-

कोयलें, बच्चे, हवाएं और कोल्हू गाँव के
मिलके गायें तो नयी इक सिम्फनी हो जायेगी

चूमने को आ गये बादल पहाड़ी का बदन
देख लेगी धूप तो कुछ अनमनी हो जायेगी

तुम अकेले हम अकेले क्या करेंगे घूम कर
साथ बैठेंगे तो अच्छी कंपनी हो जायेगी

संजय जी की कोई कोई ग़ज़ल हो सकता है उस्तादों की नज़र में ग़ज़ल लेखन की कड़ी कसौटी पर सही न उतरती हों लेकिन मुझे उन्हें पढ़ते और गुनगुनाते हुए बहुत आनंद आया. मैं ग़ज़ल के तकनिकी पक्ष पर कुछ कहने में असमर्थ हूँ क्यूँ के अभी मैं इस क्षेत्र का विद्यार्थी हूँ और उम्मीद है के ता उम्र विद्यार्थी ही रहूँगा मेरी नज़र में आम पाठक के लिए अनिवार्य होता है के शायर के कहे अशआर उसे अपने लगें और सीधे सीधे दिल में उतर जाएँ, संजय जी इस दृष्टि से कामयाब हुए हैं. वो सहजता से अपनी ग़ज़लों में ऐसे सवाल पूछ लेते हैं के पाठक को जवाब देते नहीं बनता और उसे बगलें झांकनी पड़ती हैं .उधाहरण के लिए नीचे दिए प्रश्नवाचक चिन्ह वाले शेर को पढ़िए...

दिल जला फसलें जलीं छप्पर जला
सिर्फ चूल्हा छोड़ सारा घर जला

आग तो हर घर में होती है मियां
क्या कभी उस आग में शौहर जला ?

खून की गर्मी बचाने के लिए
आग स्याही में लगा अक्षर जला

पांच जुलाई सन उन्नीस सौ उन्यासी में जन्मे संजय ने स्नातक परीक्षा पास की और फिर राष्ट्रिय केडेट कोर में पांच वर्षों का प्रशिक्षण के बाद अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी चेन्नई से सैन्य प्रशिक्षण लिया जिसके बाद उनकी नियुक्ति सत्रवीं बटालियन ब्रिगेड आफ दि गार्ड्स में लेफ्टिनेंट के पद पर हुई. सैनिक गतिविधियों में लिप्त रहने के बावजूद उनका संवेदन शील मन उनसे लगातार खूबसूरत अशआर लिखवाता रहा. उनकी रचनाएँ विभिन्न सैनिक, असैनिक और इलेक्ट्रोनिक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं.

सिर्फ बिजली के लिए पानी न रोकिये
सूखते हैं प्यास में झरने पहाड़ पर

आँधियों के शोर में ढूंढें हैं लोरियां
वक्त से लड़ते हुए बच्चे पहाड़ पर

फिर नहाने चल पड़ीं चश्में पे लड़कियां
बादलों ने कर दिए परदे पहाड़ पर

अंतिम शेर के मिसरा-ऐ- सानी में 'बादलों ने कर दिए परदे पहाड़ पर' कह कर बहुत दिलचस्प मंज़र खींच दिया है. ये उनकी पैनी दृष्टि का परिचायक है. पहाड़ पर उमड़े बादलों का इस से खूबसूरत चित्रण भला क्या होगा.ज़िन्दगी का हर रंग उन्होंने अपनी ग़ज़लों में समेटा है और बखूबी समेटा है. इस छोटी सी उम्र में वो बहुत गहरे अनुभव वाली बड़ी बात सहजता से कह जाते हैं .

ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती
आँख में गर नमी नहीं होती

कोई तकता है किसी का रस्ता
वर्ना खिड़की खुली नहीं होती

दूर होने का है मज़ा अपना
चाँद पर चांदनी नहीं होती

शिवना प्रकाशन, सीहोर, मध्य प्रदेश, की भर पूर प्रशंशा करनी होगी जिन्होंने इस युवा और अपेक्षा कृत नए शायर की किताब छापने का साहस दिखाया है. देश के अन्य प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थान सिर्फ स्थापित लेखकों और साहित्यकारों की किताबें ही प्रकाशित करते हैं इस दृष्टि से शिवना का ये प्रयास अभूतपूर्व कहलाया जायेगा क्यूँ की उन्होंने एक नहीं ऐसे पांच एक दम अनजान लेकिन उत्कृष्ट लेखकों की किताबें आम जन तक पहुँचाने को प्रकाशित की हैं. इस किताब का कलेवर और छपाई देश के अन्य किसी भी प्रकाशन संस्थान से उन्नीस नहीं है. किताब प्राप्ति के लिए आप शिवना प्रकाशन के श्री पंकज सुबीर जी से 09977855399 या 07562-405545 पर संपर्क कर सकते हैं या उन्हें shivna.prakashan@gmail.com पर मेल डाल सकते हैं.

लोग पढ़ते हैं कसीदे शान में
जाने ऐसा क्या है उस मुस्कान में

कौन है जिसने हवा को मात दी
फूल अब खिलते हैं रेगिस्तान में

मैं खुद को आदमी उस दिन कहा
राम जब मुझको दिखे कुरआन में

एक राज़ की बात और बताता चलता हूँ आपको और वो ये के संजय खुद बहुत दिलकश अंदाज़ में अपनी ग़ज़लें गाते हैं. ये एक ऐसा अनुभव है जिसे प्राप्त कर आप शायद ही उसे कभी भूल पायें. संजय जी के गले में माँ सरस्वती का वास है अगर आपको मेरी इस बात पे यकीन नहीं हो तो आप उनसे उनके मोबाइल न. 08094791434 पर बात कीजिये और ग़ज़ल सुनने की तमन्ना का इज़हार कीजिये मुझे यकीन है के अगर वो व्यस्त ना हुए तो आपकी अभिलाषा को जरूर पूरा करेंगे.

कौन रोया है बोल ऐ कुदरत
आज दरिया में खूब पानी है

हर तरफ सांप घूमते देखे
किसके आँगन में रातरानी है

आप ईमान का करें सौदा
हम करें तो ये बेईमानी है

हर ग़ज़ल प्रेमी के घर इस जाँ बाज़ मेजर की किताब का अलमारी में होना जरूरी है तो फिर देर काहे की? उठाइए फोन और घुमाइए बस...कुछ समय बाद किताब आपके हाथ में होगी. आप मेजर से बात करें , हम ढूंढते हैं आपके लिए एक और किताब...तब तक...अपनी राम राम राम सबको राम राम राम...





Monday, June 7, 2010

मुश्किलों का गणित ये कैसा है



हाल बेताब हों रुलाने को
तू मचल कहकहे लगाने को

मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को

दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
थम गये थे तुझे उठाने को

सांस लेना मुहाल कर देगा
सर चढ़ाया अगर ज़माने को

बिजलियों का है खौफ़ गर तारी
भूल जा आशियाँ बनाने को

हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
चल दिए जब कहा निभाने को

सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को