Monday, November 24, 2008

लुटेरे यार सब मेरे




समझ में कुछ नहीं आता बता मैं यार क्या लिख्खूं
गमों की दासतां लिख्खूं खुशी की या कथा लिख्खूं

जहां जाता हूं मैं तुझको वहीं मौजूद पाता हूं
अगर लिखना तुझे हो खत तेरा मैं क्या पता लिख्खूं

गणित ये प्यार का यारो किसी के तो समझ आये
सिफर बचता अगर तुझको कभी खुद से घटा लिख्खूं

अगर मुजरिम बना हाकिम कहेगा वो यही सबसे
लुटेरे यार सब मेरे मैं अब किसको सजा लिख्खूं

किये तूने बहुत अहसां कहां इन्कार है मुझको
गवारा पर नहीं ऐ दोस्त तुझको मैं खुदा लिख्खूं

जिसे देखूं वही दिखता हमेशा दौड़ता पीछे
अजब ये चीज है दौलत न छूटे वो नशा लिख्खूं

नजर होती है बद ‘नीरज’ पता जब ये चला मुझको
जतन कर नाम मैं तेरा जमाने से छुपा लिख्खूं
( आदरणीय प्राण साहेब के आशीर्वाद से मुकम्मल ग़ज़ल )

Monday, November 17, 2008

बदलता रंग गिरगट सा




कभी वो देवता या फिर,कभी शैतान होता है
बदलता रंग गिरगट सा ,अज़ब इंसान होता है

भले हो शान से बिकता, बड़े होटल या ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है

गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
हमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है

जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है

उमंगें ही उमंगें हों, अगरचे लक्ष्य पाने की
सफर जीवन का तब यारो बड़ा आसान होता है

न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है

कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
मेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है



(आदरणीय प्राण साहेब की रहनुमाई में लिखी ग़ज़ल)

Monday, November 10, 2008

ख़ौफ़ का ख़ंज़र




ख़ौफ़ का ख़ंज़र जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
आजकल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ

साथियो ! गर चाहते हैं आप ख़ुश रहना सदा
लीजिए फिर हाथ में जो काम है छूटा हुआ

दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
रोटियों में यार,जिसका ध्यान है अटका हुआ

फूल ही बिकता हैं यारो, हाट में बाजार में
क्या कभी तुमने सुना है, ख़ार का सौदा हुआ

झूठ सीना तान कर, चलता हुआ मिलता है अब
हाँ, यहाँ सच दिख रहा है काँपता-डरता हुआ

अपनी बद-हाली में भी,मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू नहीं है, फूल भी मसला हुआ

तजरिबों से जो मिला हमने लिखा ‘नीरज’ वही
आप की बातें कहाँ हैं, आप को धोखा हुआ



( शुक्रिया छोटे भाई द्विज जी का जिनकी मदद के बिना ये ग़ज़ल लिखनी सम्भव नहीं थी )

Monday, November 3, 2008

रात की रानी सी तेरी याद है



जब दिलों में रौशनी भर जायेगी
वो दिवाली भी कभी तो आएगी

खोल कर रखिये किवाड़ों को सदा
फिर खुशी ना लौट जाने पायेगी

रात की रानी सी तेरी याद है
शाम होते ही मुझे महकायेगी

तिश्नगी यारों अगर मिट जाए तो
फिर कहाँ वो तिश्नगी कहलायेगी

बेगुनाही ही तेरी, इस दौर में
इक वजह बनकर,सजा दिलवायेगी

सोच बदलो तो तुम्हारी जिंदगी
फूल खुशियों के सदा बरसायेगी

दर्द को महसूस शिद्दत से करो
दर्द में लज़्ज़त नजर आ जायेगी

गुनगुनाते हैं वही "नीरज" ग़ज़ल
बात जो दिल की ज़बाँ पे लायेगी

(नमन पंकज जी को जिन्होंने मेरी बार बार की जाने वाली गलतियों को मुस्कुराते हुए सुधारा )