वो तो टुल्लू की मदद से अपनी छत धोते रहे
और हमारी प्यास को पानी के लाले पड़ गए
जब हमारे क़हक़हों की गूंज सुनते होंगे ग़म
सोचते होंगे कि हम भी किसके पाले पड़ गए
हम इसे इत्तिफ़ाक ही कहेंगे, एक हसीन इत्तिफ़ाक क्यूंकि हमारी आज किताबों की दुनिया श्रृंखला के शायर का नाम वही है जो पिछली बार वाले शायर का था.जी हाँ सही पहचाना श्री "ओम प्रकाश" जी. लेकिन इनके सिर्फ नाम ही एक है वर्ना दोनों में अन्तर है और अंतर न सिर्फ उनके तख्खलुस में है बल्कि उनकी शायरी में भी है.
जो असर टी.वी. का बच्चों पर हुआ, होना ही था
कार्बाइड वक़्त से पहले पका देता है फल
पेड़ के किरदार पर जिस वक़्त आता है शबाब
कोई तोड़े या न तोड़े ख़ुद गिरा देता है फल
ज़िन्दगी की रोजमर्रा वाली साधारण बातों को अपनी शायरी में असाधारण ढंग से ढालने वाले इस बाकमाल शायर
ओम प्रकाश 'नदीम'की किताब
"दिया खामोश है" का आज हम जिक्र करेंगे. हिंदी और उर्दू लिपि में एक साथ छपी लगभग नब्बे ग़ज़लों को समेटे उनका ये ग़ज़ल संग्रह जिसे 'मशअल-ऐ-राह (फोरम) मिर्देगान,बिजनौर द्वारा प्रकाशित किया गया है, सचमुच में अद्भुत है.
मर्तबा हो, इल्म हो या तजरुबा हो कुछ तो हो
कुछ न हो तो बात करने की कला हो कुछ तो हो
इस तरह बेसूद रिश्तों से भला क्या फायदा
या तो कुछ कुर्बत बढे या फासला हो कुछ तो हो
कुर्बत:नजदीकी
और कितना वक्त मुल्ज़िम की तरह काटें 'नदीम'
या तो बाइज्ज़त बरी हों या सज़ा हो कुछ तो हो
ओम जी की सबसे बड़ी खूबी है नए नए काफियों का चयन. ऐसे काफिये वो अपने ग़ज़लों में पिरोते हैं जो अन्यंत्र आसानी से दिखाई नहीं देते.इन काफियों को वो जिस अंदाज़ से निभाते हैं वो भी विलक्षण है. इस से साफ़ ज़ाहिर होता है के वो प्रयोग धर्मी है और बंधी बंधाई लीक पर चलने में विश्वाश नहीं करते. वो खुद भी अपने लिए नयी राहें तलाशते हैं और अपने पाठकों को भी नयी राहें तलाशने को प्रेरित करते हैं. इस प्रयोग धर्मिता की वजह से उनकी शायरी हमेशा ताज़े हवा के झोंके जैसा अहसास करवाती है.
आँधियों में भी न चूके जुल्म से लम्बे दरख़्त
जब गिरे तो दूसरों को ले मरे लम्बे दरख़्त
डूबने वाले का बन जाता है तिनका आसरा
देखते रहते हैं साहिल पर खड़े लम्बे दरख़्त
धूप उन मासूम सब्जों की ये खाते हैं 'नदीम'
जिन में पल बढ़कर हुए इतने बड़े लम्बे दरख़्त
फतहपुर,उत्तरप्रदेश में 26नवम्बर1956 को ओम जी का जन्म हुआ. इन दिनों आप रूडकी में रहते हैं.उनका दूसरा ग़ज़ल संग्रह "सामना सूरज से है" अभी हाल ही में प्रकाशित हुआ है. इस किताब की भूमिका में ओम जी ने कहा है " मेरे विचार से ग़ज़ल, साहित्यिक अभिव्यक्ति की श्रेष्ठतम विधा है. लेकिन मैं न तो अपनी ये राय किसी पर थोपना चाहता हूँ और न ही किसी और की राय को अपनी इस राय पर हावी होने देना चाहता हूँ क्यूंकि अपनी अपनी मंजिल अपना अपना रास्ता है." उनकी शायरी पढ़ते हुए हमें उनकी राय से इत्तेफ़ाक होने लगता है.
सर जोड़ के बैठो कोई तदबीर निकालो
हर बात पे ये मत कहो शमशीर निकालो
देखूं जरा कैसा था मैं बेलौस था जब तक
बचपन की मेरे कोई सी तस्वीर निकालो
दुनिया मुझे हैवान समझने लगी अब तो
गर्दन से मेरी धर्म की ज़ंजीर निकालो
नदीम साहब की शायरी का खमीर सांप्रदायिक सौहार्द, दर्द मंदी, मनोविज्ञान,सर्वधर्म समभाव,भावुकता, संवेदना और दार्शनिकता जैसे तत्वों से तैयार हुआ है. उनकी शायरी में जहाँ जुल्म और साम्प्रदायिकता के विरुद्ध लड़ने के लिए मशवरे मिलते हैं वहीँ बदले हुए हालात से जन्म लेने वाली मंज़र निगारियाँ जहाँ तहां दिखाई देती है.
किसी चराग का आंधी के सामने जलना
इसी को कहते हैं हक़ बात के लिए लड़ना
जो ठेकेदार हैं मज़हब के उनसे क्या कहना
हवा से आग बुझाने की बात क्या करना
बिछे हुए हैं बबूलों की छाँव में कांटे
कि इनकी छाँव से बेहतर है धूप में चलना
अगर न बन सको इंसां खुदा ही बन जाओ
कि मेरे देश में आसान है खुदा बनना
चूँकि इस किताब को बिजनौर की एक फोरम ने प्रकाशित किया है इसलिए इसका सहज ढंग से बाज़ार में मिलना टेढ़ी खीर है. इसे प्राप्त करने के लिए आपको ओम जी से निम्न में से किसी एक माध्यम से संपर्क करना पड़ेगा. आप किस माध्यम को प्राथमिकता देते हैं ये निर्णय मैं आप पर छोड़ता हूँ. उनका इ मेल एड्रेस है :
omprakashnadeem@gmail.com तथा मोबाईल और फोन नंबर :
+91-9368169593 / 9456460659.आखरी में प्रस्तुत हैं उनकी एक ग़ज़ल के ये शेर जो उनके अपने बारे में हैं. वो जैसे हैं उन्हें वैसे ही अपनाना होगा लेकिन एक बात मैं बता दूं अगर आपने एक बार उनसे बात कर ली तो फिर आपका दिल बार बार उनसे बात करने को चाहेगा क्यूँ के आज के युग में इतने अच्छे और सच्चे इन्सान किस्मत से ही मिला करते हैं:
हर किसी की हाँ में हाँ करता नहीं हूँ
इसलिए मैं आदमी अच्छा नहीं हूँ
लोग मुझसे इसलिए कटने लगे हैं
तयशुदा रस्तों पे मैं चलता नहीं हूँ
मेरे भड़काने से कोई क्यूँ लडेगा
मैं किसी के धर्म का फ़तवा नहीं हूँ
मुझमें उतरो प्यार के मोती चुरा लो
मैं समंदर हूँ मगर गहरा नहीं हूँ
ओम जी आपको अपने में उतरने का आव्हान कर रहे हैं तो फिर देर किस बात की सोच क्या रहे हैं फोन उठाइए और ओम जी को उनके लाजवाब कलाम पर दाद दीजिये, तब तक हम निकलते हैं एक और शायर की तलाश में.