Monday, December 21, 2020

किताबों की दुनिया - 221

बच्चे साँस रोके बैठे थे तभी मंच से नाम की घोषणा हुई और उसके बाद जो तालियाँ बजी उन्होंने रुकने का नाम ही नहीं लिया। रूकती भी कैसे ? आखिर ऐसा करिश्मा स्कूल में पहली बार जो हुआ था। लगातार तीसरी बार प्रथम स्थान। आठवीं कक्षा में, नौवीं में और अब दसवीं में भी ।अनवरत बजती तालियों के बीच मुस्कुराता हुआ वो बच्चा मंच पर आया जिसका नाम घोषित करते वक़्त शिक्षक की ख़ुशी का पारावार न था। वो बच्चा इस शिक्षक का ही नहीं स्कूल के हेडमास्टर से लेकर सभी शिक्षकों का चहेता था। सिर्फ़ पढाई में ही नहीं क्रिकेट के मैदान पर जब वो बल्ला ले कर उतरता तो विपक्षी टीम के बॉलर को समझ नहीं आता कि वो उसे कहाँ बॉल डाले जहाँ उसका बल्ला न पहुँच पाये ,कप्तान ये सोच कर परेशान होता कि वो फील्डर कहाँ खड़ा करे ताकि उसके बल्ले से निकली बॉल बाउंडरी पार न कर पाये और जब वो बॉल लेकर ओवर फेंकने जाता तो बल्लेबाज़ अपनी क़िस्मत को कोसता कि कहाँ इसके सामने आ गया। 
वो एक ऐसा बच्चा था जिस पर पूरे स्कूल को गर्व था। स्कूल वालों को तो पक्का यक़ीन था कि अब ग्यारवीं में ये बच्चा टॉप करेगा ही और फिर अगले साल बाहरवीं की बोर्ड परीक्षा में वो मैरिट में आ कर स्कूल का नाम पूरे प्रदेश में रौशन करेगा।  
ग्यारवीं कक्षा में उसके शिक्षकों ने एक मत से उसे साइंस दिलवा दी। शिक्षक चाहते थे कि बच्चा साइंस की पढाई कर इंजिनियर बने जबकि बच्चे का रुझान आर्टस की ओर था। घर और स्कूल वालों के इसरार से बच्चे ने आखिर, बेमन से ही सही, साइंस पढ़ना मंज़ूर किया और क्लास टेस्ट्स में आशा के अनुरूप सबसे आगे रहा। 
वार्षिक परीक्षाएँ सर पर थीं और पढाई पूरे जोर पर, तभी वो हुआ जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। 

खड़े ऊँचाइयों पर पेड़ अक्सर सोचते होंगे 
ये पौधे किस तरह गमलों में रह कर जी रहे होंगे  
*
दहशत के मारे भाग गये दश्त तरफ 
लफ़्ज़ों ने सुन लिया था छपाई का फ़ैसला 
*
बुलन्दियों पे ज़रा देर उसको टिकने दें 
अभी ग़लत है उसे आपका सफल कहना 
*
अफ़सोस, दर्द, टीस, घुटन, बेकली, तड़प 
क्या-क्या पटक के जाती है दुनिया मेरे आगे 
*
आग से शर्त लगाई है तुम्हारे दम पर 
ऐ हवाओं ! न मेरा नाम डुबाया जाए 
*
उसे कुछ इस तरह शिद्दत से ख़ुद में ढूंढता हूँ मैं 
मुसाफ़िर जिस तरह रस्ते में छाया ढूंढते होंगे 
*
रात-भर प्यार हँसी, शिकवे, शिकायत मतलब 
एक कमरे का हंसी ताजमहल हो जाना 
*
बे सबब अपनी  फ़ितरत को बदलने बजाय 
चंद आँखों में खला जाय, यही बेहतर है 
*
रखा था इसलिए काँटों के बीच तूने मुझे 
ऐ मेरी ज़ीस्त ! तुझे इक गुलाब होना था 
*
आँख खुली जब, चिड़िया ने चुग डाले खेत 
अब क्या, अब तो खर्राटे पर रोना था       
 
इस बात को अभी यहीं छोड़ कर चलिए थोड़ा पीछे चलते हैं। राजस्थान के जालोर जिले का एक गाँव है 'सांचोर' जिसका अभी हाल ही में अखबारों में ज़िक्र आया है क्यों कि वहाँ जून 2020 में एक 2.78 किलो का उल्का पिंड बहुत बड़े धमाके साथ गिरा था उसी सांचोर गाँव में 19 सितम्बर 1989 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में उस प्रतिभावान बच्चे का जन्म हुआ जिसका ज़िक्र हम ऊपर कर चुके हैं। बच्चे में पढ़ने की भूख उसके पिता को बचपन से ही नज़र आने लगी। ये बच्चा अपनी क्लास की किताबों के अलावा अपने से बड़े भाइयों की क्लास की किताबें खास तौर पर हिंदी की बड़े चाव से पढ़ डालता। 
पिता ने एक बार उसे बाज़ार से राजस्थान पत्रिका द्वारा प्रकाशित बच्चों की पाक्षिक पत्रिका 'बालहँस ' पढ़ने को ला कर दी। इस पत्रिका को पढ़ कर तो जैसे बच्चे में और पढ़ने की भूख बढ़ गयी। पिता के संग जाकर उसने वो दूकान देख ली जहाँ बालहंस के अलावा और दूसरी बच्चों की पत्रिकाऐं जैसे 'नन्दन' ' 'नन्हें सम्राट' आदि मिला करती थीं। पाठ्यपुस्तकों के अलावा अब ये पत्रिकाऐं भी नियमित रूप से पढ़ी जाने लगीं। पत्रिकाएं देख कर बच्चे का मन करता कि उसकी रचनाएँ और फोटो भी ऐसे ही इन पत्रिकाओं में छपे जैसे दूसरे लेखकों के छपती हैं। पत्रिकाओं में छपने की इस प्रबल चाह में बच्चे ने लिखना शुरू किया।      

बहुत हुआ कि हक़ीक़त की छत पे आ जाओ 
भरी है तुमने अभी तक उड़ान काग़ज़ पर 
*
हैरत है पीपल की शाख़ों से कैसे अरमां 
पतले-पतले धागों में आ कर बँध जाते हैं 
*
पेशानी पर बोसा तेरी चाहत का 
दिल पर कितने जंतर-मंतर करता है 
*
हर इक जगह तलाशते हैं अपना आदमी 
कहने को जात-पात से हैं कोसो दूर हम 
*
अजब-सा ख़ौफ़ है बस्ती में तारी 
शहर को धर्म का दौरा पड़ा है 
*
नाज़ुक मन पर रंग हज़ारों चढ़ते हैं 
दिल से दिल की जब कुड़माई होती है 
*
ज़्यादा सहूलतों के हैं नुक्सान भी ज़्यादा 
साये बड़े तो होंगे ही परबत के मुताबिक़ 
*
कुछ नहीं मुझ में कहीं भी कुछ नहीं है 
पर 'नहीं' में भी तेरी मौजूदगी है 
*
अगरचे छाँव है तो धूप भी है 
कई रंगों में कुदरत बोलती है 
*
 हर क़दम पर हादसों का डर सताता है यहाँ 
ज़िन्दगी है हाइवे का इक सफ़र अनमोल जी  
   
ग्यारवीं में बच्चे ने पहली कविता लिखी जो, कि जैसा उस उम्र का तकाज़ा होता है, थोड़ी रोमांटिक थी, लिहाज़ा उसने किसी को नहीं दिखाई। फिर देश प्रेम से ओतप्रोत एक कविता लिखी जो हर किसी को पढ़वाने लायक थी। बच्चा चाहता था कि इस कविता को वो अपने पिता को दिखाए क्यूंकि उन्हीं की प्रेरणा से ही उसने लेखन शुरू किया था। बच्चा अपनी इस कविता को पिता को दिखाता उस से पहले ही पिता बीमार हो गये। बच्चे ने सोचा कि दो तीन दिन बाद जब पिता ठीक हो जायेंगे तब दिखायेगा लेकिन 'तभी वो हुआ जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी'    
पिता  के अचानक इस तरह दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़्सत होने के बाद जैसे बच्चे के पाँवों तले से ज़मीन ही ख़िसक गयी। घर में एक मात्र वो ही कमाने वाले थे लिहाज़ा उनके जाने के बाद घर की माली हालात बिगड़ गयी। गंभीर आर्थिक संकट मुँह बाए खड़ा हो गया। ग्यारवीं की परीक्षाएँ सर पर थीं लेकिन मातमपुर्सी के रस्मो रिवाज़ के चलते बच्चा उन दिनों एक अक्षर भी नहीं पढ़ पाया जिन दिनों उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। नतीज़ा वो हुआ जो नहीं होना चाहिए था।  प्रथम श्रेणी में पास होने की उम्मीद में पढ़ने वाले बच्चे की सप्लीमेंट्री आयी। आकाश नापने के ख़्वाब देखने वाले परिंदे के मानों पर ही कतरे गये। 

लेखन छूटा, स्कूल छूटा, पढाई छूटी लेकिन हिम्मत और हौंसला नहीं छूटा। बच्चे ने परिवार को आर्थिक सम्बल देने के लिए गाँव में अपनी परचूनी की छोटी सी दूकान खोल ली और साथ ही ख़ाली वक़्त में प्राइवेटली बारहवीं की परीक्षा की तैयारी की और पास हुआ।           

चाय का कप, ग़ज़ल, तेरी बातें 
कैसे अरमान पलने लगते हैं 
*
जो फेंकी ज़िन्दगी ने यार्कर थी 
उस अंतिम गेंद पर छः जड़ चुका हूँ 
*
दफ़्तर, बच्चे ,बीवी, साथी, रिश्ते-नाते, दुनियादारी 
सबके सबको खुश रख पाना इतना तो आसान नहीं है 
*
बहुत आसान है मुश्किल हो जाना 
बहुत मुश्किल है पर आसान होना 
*
बहुत मासूम है दिल गर बिछड़ जाये कोई अपना 
फ़लक पर नाम का उसके सितारा ढूंढ लेता है 
*
आदमी बनने की ख़ातिर छटपटाता वो रहा 
रब समझ कर तुम इबादत उम्र भर करते रहे 
*
पीठ से खंज़र ने करली दोस्ती 
और फिर  बदला अधूरा रह गया 
*
समंदर हो कि मौसम हो या फिर लाचार इंसां हो 
कहाँ समझे जहां वाले किसी की ख़ामोशी की हद 
*
 ख़त के लफ़्ज़ों के बीच मैं खुद को 
उसकी टेबल पे छोड़ आया हूँ 
*
थोड़ा अच्छा होना, होता है अच्छा  
वरना मँहगी पड़ जाती अच्छाई है   

बच्चे की पढ़ने की ललक देखिये कि घोर आर्थिक तंगी होने के बावज़ूद उसने अपनी दूकान पर नियमित अख़बार मँगवाना शुरू दिया क्यूँकि अख़बार के साथ अलग अलग दिन विशेष परिशिष्ट जो आते थे। परचूनी की दूकान से थोड़ी बहुत आमदनी होने लगी। धीरे धीरे कहावत 'हिम्मत ए मर्दां मदद ए ख़ुदा' सच होने लगी। मुश्किल हालात ने बच्चे को मानसिक रूप से मज़बूत बनाया और अपने पाँव पर खड़े होने का हुनर तो सिखाया लेकिन आगे क्या करना है ये समझाने वाला न कोई घर में था न गाँव में । बच्चे ने अपनी समझ के अनुसार सरकारी नौकरी पाने के लिए  बी.ऐ. में अंग्रेज़ी विषय लिए, पास हुआ लेकिन सरकारी नौकरी नहीं मिली। एक दिन अपनी दूकान किसी सौंप कर वो एक प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाने की नौकरी करने लगा। स्कूल में नौकरी इसलिए की ताकि पढ़ने लिखने का मौका मिलता रहे।कुछ समय बाद अपना एक छोटा सा कोचिंग सेंटर खोल लिया जो चल निकला। जिंदगी ढर्रे पर लौटने लगी। 
तभी सं 2009 के अंत में आमिर खान की फ़िल्म आयी 'थ्री इडियट्स ' जिसे देख बच्चे को एहसास हुआ कि वो जो कर रहा है उसे जीना नहीं कहते। ज़िन्दगी में अगर अपने सपने साकार करने का प्रयास न किया तो जीना व्यर्थ है। सपना था लेखक बनने का। सन 2010 इस बच्चे के जीवन में टर्निंग प्वाइंट बन कर आया। अपने सपने साकार करने ये लिए इस बच्चे ने अपने जमे -जमाये काम के साथ-साथ गाँव भी छोड़ दिया।   
सपनों को साकार करने की धुन में जोख़िम उठाने वाला ये बच्चा आज हिंदी ग़ज़ल के आकाश में एक चमकता सितारा है जो के.पी.अनमोल के नाम से जाना जाता है।  इन्हीं की ग़ज़लों की क़िताब 'कुछ निशान कागज़ पर' हमारे सामने है जिसे 'किताबगंज प्रकाशन' ने प्रकाशित किया है। ये ग़ज़लें पाठक के दिल पर निशान छोड़ने में सक्षम हैं।
 

खूब ज़रूरी हैं दोनों 
झूठ ज़रा-सा ज़्यादा सच 
*
ख़ुद को बना सका न मैं सौ कोशिशों के बाद 
और उसने एक बार में छू कर बना दिया 
*
सवाल ये नहीं है लौट कैसे आया वो 
सवाल ये है कि वो लौट कैसे आया है 
*
कुछ रोज़ कोई मेरा भी ज़िम्मा सँभाल ले 
तंग आ चुका हूँ अब तो मैं खुद को सँभाल कर   
*
कुछ न मन का कर सकें, ये वक़्त की कोशिश रही 
काम मन के ही मगर हम, ख़ासकर करते रहे    
               
अनमोल जी ने गाँव छोड़ जोधपुर का रुख़ किया जहाँ उन्हें एक स्वस्थ साहित्यिक माहौल मिला। जोधपुर में स्वतंत्र लेखन के साथ कम्पीटीटिव परीक्षाओं की तैयारी भी चलने लगी। जोधपुर के वरिष्ठ साहित्यकारों के सानिध्य से उन्होंने बहुत कुछ सीखा। इतना सब होने के बावज़ूद अनमोल जी को अपनी मंज़िल का रास्ता सुझाई नहीं दे रहा था। तभी उनके जीवन में आये एक शख़्स ने उन्हें हिंदी में एम.ऐ. करने की सलाह दी। इस सलाह से जैसे मंज़िल का रास्ता आलोकित हो गया। हिंदी शुरू से अनमोल जी का प्रिय विषय रहा था। उन्होंने हिंदी में सिर्फ़ प्रथम श्रेणी से एम. ऐ ही नहीं किया बल्कि कॉलेज में टॉप भी किया। 
व्यक्तिगत कारणों से वो 2014 में जोधपुर से रुड़की आ गए और फिर यहीं के हो कर रह गए। रुड़की में उन्होंने वेब डिजाइनिंग का कोर्स किया और फिर उसी को पेशा बना लिया। वेब डिजाइनिंग से उनकी भौतिक जरूरतें पूरी होती हैं लेकिन अपनी मानसिक ज़रूरीयात को वो 'हस्ताक्षर' वेब पत्रिका निकाल कर पूरा करते हैं। पिछले पाँच से अधिक वर्षों से लगातार प्रकाशित  'हस्ताक्षर' हिंदी की प्रतिष्ठित वेब पत्रिका के रूप में स्थापित हो चुकी है। इस अनूठी मासिक वेब पत्रिका में आप हिंदी में साहित्य की लगभग सभी विधाओं को पढ़ सकते हैं।  यदि आप किसी विधा में लिखते हैं तो अपना लिखा प्रकाशन के लिए भेज भी सकते हैं। हस्ताक्षर वेब पत्रिका का अपना एक विशाल पाठक समूह है जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है। 

जीवन में अब अनमोल वो काम करते हैं जिसे उनका दिल चाहता है। थ्री ईडियट्स फिल्म की टैग लाइन की तरह उनके जीवन में अब 'आल इज वैल' है।

ज़रा सा मुस्कुराने लग गये हैं 
मगर इसमें ज़माने लग गये हैं 

जवां उस दम हुईं रूहें हमारी 
बदन जब चरमराने लग गये हैं 

बस इक ताबीर के चक्कर में मेरे 
कई सपने ठिकाने लग गये हैं 

मुसलसल अश्क़ , बेचैनी उदासी 
मेरे ग़म अब कमाने लग गये हैं 

इस 'ऑल इज वैल' के पीछे कितना संघर्ष छुपा है इसका किसी को अंदाज़ा नहीं है। अनमोल जी के जीवन की कहानी हमें प्रेरणा देती है कि ऊपर वाले के दिए इस जीवन को हमें अपने हिसाब से अपनी ख़ुशी से जियें। ऊपर वाला माना बहुत ही कम लोगों को सब कुछ तश्तरी में परोस कर देता है लेकिन सबको एक चीज बहुतायत में देता है वो है 'हिम्मत'। अफ़सोस बहुत कम लोग ऊपर वाले के दिए इस गुण को अपनाते हैं। अपने सपनों को साकार करने में संघर्ष करना पड़ता है और जो हिम्मत से संघर्ष करता है उसे मंज़िल मिलती ही है।  
अनमोल जी की बचपन से छपने की चाह ने ही उन्हें आज इस मुकाम पर ला खड़ा किया है। 'कुछ निशान कागज़ पर ' से पहले उनका एक ग़ज़ल संग्रह 'इक उम्र मुकम्मल' भी छप चुका है। हिंदी के वरिष्ठ ग़ज़ल कारों जैसे श्री ज़हीर कुरेशी, ज्ञान प्रकाश विवेक , हरेराम समीप , अनिरुद्ध सिन्हा आदि ने उनकी ग़ज़लों को अपने ग़ज़ल संकलन में शामिल किया है उन पर आलोचनात्मक लेख लिखे हैं , ये बात युवा ग़ज़लकार के लिए किसी भी बड़े ईनाम से कम नहीं है।
हिंदी ग़ज़ल पर अनमोल जी के लिखे आलोचनात्मक लेख बहुत चर्चित हुए हैं । उनकी ग़ज़लें देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और वेब पत्रिकाओं में निरंतर प्रमुखता से स्थान पाती हैं। दूरदर्शन राजस्थान और आकाशवाणी से भी उनकी ग़ज़लें प्रसारित हुई हैं। इसके अलावा उनकी ग़ज़लें , न्यूज़ीलैंड की 'धनक', केनेडा की 'हिन्द चेतना', सऊदी अरब की 'निकट', आयरलैंड की 'एम्स्टेल गंगा' और न्यूयार्क की 'NASKA; जैसी लोकप्रिय वेब पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। सहज सरल भाषा में गहरी बात व्यक्त करने में सक्षम ये ग़ज़लें पढ़ते सुनते वक़्त सीधे दिल में उतर जाती हैं। 
  
मृदु भाषी अनमोल जी आज जहाँ हैं, वहाँ बहुत खुश हैं और संतुष्ट हैं यही तो एक सफल जीवन की उपलब्धी होती है। 

इतना सब कुछ मिल जाने पर भी अनमोल जी को अपनी पहली रचना अपने पिता को न सुना पाने का ग़म अभी भी सालता है। वो इस बात का ज़िक्र करते हुए बहुत भावुक हो जाते हैं। हमें यकीन है कि चाहे वो अब उनके आसपास मौज़ूद नहीं हैं लेकिन जहाँ भी हैं आज अपने बेटे को इस मुक़ाम पर देख कर खुश होते होंगे। अनमोल की कामयाबी के पीछे उनके पिता की अदृश्य दुआओं का ही हाथ है। आज वो जो हैं उनकी दी हुई तरबियत का ही नतीज़ा हैं। 
अनमोल जी को उनके उज्जवल भविष्य के लिए आप उनके मोबाईल न. 8006623499 पर शुभकामनायें देते हुए उनसे इस किताब की प्राप्ति का आसान रास्ता पूछ सकते हैं। 
आईये अंत में उनकी ग़ज़ल ये शेर पढ़वाता चलता हूँ।         

ये क्यों सोचूँ किसी ने क्या कहा है 
मेरे जीने का अपना फ़लसफ़ा है 

बहुत गहरी ख़ामोशी ओढ़ मुझमें 
समंदर दूर तक पसरा पड़ा है 

मेरी नज़रों से देखो तुम अगर तो 
इसी दीवार में इक रास्ता है 

नदी बहती है कितना दर्द लेकर 
किनारों को कहाँ कुछ भी पता है

73 comments:

Mumukshh Ki Rachanain said...

यकीनन अनमोल की कामयाबी के पीछे उनके पिता की अदृश्य दुआओं का ही हाथ है। आज वो जो हैं उनकी दी हुई तरबियत का ही नतीज़ा हैं।

नदी बहती है कितना दर्द लेकर
किनारों को कहाँ कुछ भी पता है

नीरज गोस्वामी said...

शुक्रिया भाई

दुर्गा शंकर इजारदार said...

ज़रा सा मुस्कुराने लग गये हैं
मगर इसमें ज़माने लग गये हैं
संघर्ष की कहानी बयां करती हुई.... वाह् क्या कहने

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद दुर्गा जी

नीरज गोस्वामी said...

बहुत ही अच्छा लिखा है आपने अनमोल जी के बारे में। कल ही अनमोल जी से काफी लंबी बात हुई थी ।बहुत अच्छे व्यक्ति भी हैं वह। गजल के प्रति उनकी लगन देखने लायक है। बहुत अच्छा लगा उनके बारे में ये पढ़कर

नितिन सेठी

नीरज गोस्वामी said...

Pankaj Pandey Parag: एक कमरे का हसीं ताजमहल हो जाना
अहा केपी अनमोल जी अद्भुत प्रतिभा हैं।।

नीरज गोस्वामी said...

Bahot khoob

Sadiqa Nawab
Khopoli
Maharashtra

नीरज गोस्वामी said...

नीरज गोस्वामी जी नमस्कार आप का लेखन हमेशा लाजवाब होता है। ये आप कि क़लम का कमाल है जिस शायर के लिए क़लम दवात उठा लेते है उसे आसमानों तक पहुंचा देते आख़िर कार चिराग़ को जलाने के लिए दो हाथों की ज़रूरत होती है वो दस्तेकमाल नीरज गोस्वामी जी के पास है।सदाकतों के औराक़ हर शख़्स तहरीर ओ तस्दीक नहीं कर सकता है आप की काविशों को मेरा सलाम है
अब आते हैं किताबों की दुनिया-221के सफ्फात पर जनाब के.पी.अनमोल**और आप का नज़रिया। आप ने उनके बचपन पर जो तपसीली तबसरा किया है काबिले-तारीफ और क़ाबिले ग़ौर है। अनमोल जी किस तरह ज़िंदगी के ज़ेरो ज़बर से दो-चार हुए हैं और आज शायरी के जिस मुकाम पर हैं मैं उन की लग्न और मेहनत को सलाम करता हूं।
*जितनी बार भी देखा उनको इक नया अंदाज मिला
इतने रंग कहां होते हैं एक शख़्स की शख़िसयत में
क़लम ए विदाई आप दोनों को नमन ख़ाकसार सागर सियालकोटी लुधियाना
आप का ख़ैर अंदेश
एक अदना सा क़ारी

Manoj Mittal said...

नीरज जी,
आप नियमित रूप से नए-नए ग़ज़लकारों से परिचय कराते रहते हैं। हमेशा की तरह यह आलेख भी दिलचस्प है। अनमोल जी का लेखन भी दिलचस्प है और उसमें एक आकर्षित करने वाली सहजता भी है।

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद मनोज भाई

कर्नल तिलक राज (सेवा निवृत्त चीफ़ पी एम जी) said...

ग़ज़ल की दुनिया का एक नया सितारा जो हमेशा चमकता रहेगा। उसकी आहें और निगाहें समाज के यथार्थ को बखूबी पेश करती हैं। के पी अनमोल से रूबरू करवाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार । आदरणीय को सलाम ।

नीरज गोस्वामी said...

शुक्रिया सर

kavita vikas said...

यथार्थ।अनमोल जी के बारे में कितना भी कह लो कम ही रहेगा। आपने बहुत बढ़िया लिखा है नीरज जी। वो तो ऐसे सितारा हैं जसकी चमक कभी धूमिल नहीं होगी क्योंकि जो निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करता हो वो सदा चमकता रहता है। कितनो को उन्होंने लिखना सिखाया। उन्हें इस किताब के लिए बधाई और आपको इससे रूबरू करवाने के लिए साधुवाद।

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद कविता जी

के० पी० अनमोल said...

आप कमाल हैं दादा। बेहतरीन लेख है। इसलिए कि यह पक्ष मेरे बहुत क़रीबियों में भी किसी को नहीं पता। और इसका उल्लेख भी ज़रूरी था मेरे समग्र मूल्यांकन के लिए। सटीक और ज़रूरी लिखा आपने। बिलकुल नपा-तुला, खरा-खरा। इसलिए इस लेख का सालों से इंतज़ार था। शुक्रिया बेहद छोटा शब्द है इसके लिए। दिल की गहराइयों से नमन आपको।

तिलक राज कपूर said...

के पी अनमोल उन ग़ज़ल कहने वालों में से हैं जिनकी ग़ज़ल यात्रा के लगभग सभी पड़ाव मेरी नज़रों में रहे हैं और उसके आधार पर मैं कह सकता हूँ कि:
सितारों की बुलंदी का सफ़र लंबा है लेकिन
तुम्हारी चाल पर मेरा भरोसा कम नहीं है।
साहित्य सृजन की यात्रा में दौड़ने से अधिक महत्वपूर्ण होता है दृढ़ता से अपने पैरों पर टिके रहना, और यह प्रतिबद्धता अनमोल की ग़ज़ल-यात्रा की प्रगति से स्पष्ट है।

mgtapish said...

नीरज जी आपका लेख पढना शुरू करने के बाद चंद पंक्तियाँ पढ़ कर एक ललक जागती है जिसके बारे में आपने लिखा है उनका नाम क्या है और आप पाठक को उस शख़्स की शायरी के पेच ओ ख़म में उलझाते एक जिज्ञासा शांत करते हैं 30-40 पंक्तियों के बाद |के. पी. अनमोल के बारे में सुन्दर शब्दों का प्रयोग करते अच्छा तब्‍सरा लिखा है ज़िन्दाबाद क्या कहने आपको नमन
रात-भर प्यार हँसी, शिकवे, शिकायत मतलब
एक कमरे का हंसी ताजमहल हो जाना
मोनी गोपाल 'तपिश'

Unknown said...

अनमोल मेरे खास साहित्यिक दोस्तों में से हैं उम्र में मुझसे कुछ छोटे हैं पर साहित्य के क्षेत्र में बहुत आगे निकल चुके है उनके अंदर बहुआयामी प्रतिभा है जिसके विषय मे बहुत से लोग पहले ही लिख चुके हैं लिखते रहते है मेरे पास उस बारें में लिखने के लिए बहुत ज्यादा नहीं है क्योंकि मेरी अभिव्यक्ति गद्य में बहुत सटीक और विस्तृत नहीं है लेकिन इतना ज़रूर कहुगा कि वो मेरे परिचित ग़ज़लकारों में सबसे अधिक सक्रिय हैं
गोस्वामी जी ने तो खैर बेहद गहन लिख दिया है उन्हें उनकी इस शैली पर भी विशेष बधाई

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद तिलक जी

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद तिलक जी

नीरज गोस्वामी said...

शुक्रिया भाई साहब

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद भाई...आपका नाम नहीं जान सका

नीरज गोस्वामी said...

ज़रा सा मुस्कराने लग गए हैं,
मगर इसमें ज़माने लग गए हैं.

किताबों की दुनिया( आद. नीरज गोस्वामी) और आप मैं दोनों ही की क़ाबिलियत, लगन और मेहनत का अरसे से शाहिद रहा हूँ. बहुत बेहतरीन शायर, संपादक दोस्त और भाई की बेहतरीन शाइरी की कशिश को निहायत ख़ूबसूरत पेशकश ने दोबाला कर दिया है....ईश्वर आप दोनों को सलामत रखे...ख़ुश रखे और कामयाबी व शोहरत की बुलंदियाँ अता करें.
नेक ख़्वाहिशें.
अशोक नज़र

नीरज गोस्वामी said...

अतिसुंदर व अनिर्वचनीय वाकयाए हकीकत है अनमोलजी की।सही कहा है- हिम्मते मर्दां , मदद ए खुदा ।उनसे मेरी इल्तिजा कर दीजिएगा कि वो लगातार लिखते रहे और उम्दा उम्दा शाह कारों की रचना करते जाएँ ।मंगल हो ।

नवीन श्रीवास्तव

नीरज गोस्वामी said...

आपके अनछुए पहलुओं को जानकर बहुत ख़ुशी हुई।आप वाक़ई अनमोल हैं भाई।मुझे गर्व है कि मैं आपसे जुड़ा हूँ।💐💐💐💐🌹🌹♥♥🙏🙏

ईशान अहमद

नीरज गोस्वामी said...

अद्भुत। सचमुच क़माल समीक्षा की है छुटके भाई की बड़के भाई ने अनमोल तुम सचमुच अनमोल हो और नीरज जी भाई जी ने तुझे लाजवाब कर दिया क़माल के जौहरी हैं वे तुम तो हीरा हो ही😊

आशा पांंडे ओझा

नीरज गोस्वामी said...

अद्भुत समीक्षा की है

नवीन गौतम

नीरज गोस्वामी said...

बेहतरीन तअस्सुरात , शानदार तब्सिरा , बहुत बहुत मुबारक हो KP Anmol भाई
अल्लाह आपका एज़ाज़ और बुलंद फ़रमाये

अय्यूब खाँ बिस्मिल

नीरज गोस्वामी said...

क्या कहूँ..... आप जानते हैं भैया, मेरी आँखों के सामने पूरा मंज़र खींच गया है |
आप सचमुच में अनमोल हो, और हम रूड़की वाले ख़ुशक़िस्मत कि आप भी अब रूड़की में ही बसते हैं😊😊😊

असमा सुभानी

नीरज गोस्वामी said...

संघर्ष ही जीवन का सार है। विरले ही होते हैं जो अपने दिल की आवाज़ सुनते हैं। प्रणाम स्वीकार करें 🌾🙏🏽🌾🙏🏽🌾🙏🏽🌾🙏🏽🌾🙏🏽

मंगल सिंह नाचीज़

नीरज गोस्वामी said...

अनमोल जी आपके बारे में लिखना सूरज को दीया दिखाने जैसा है।हम सभी लोग बहुत भाग्यशाली हैं कि हमें आपका सानिध्य मिला है।हार्दिक शुभकामनाएँ आपको👏👏🌹🌹

अमृता कश्यप

नीरज गोस्वामी said...

वाह भाई बिल्कुल सही लिखा नीरज जी ने ......दिली मुबारकबाद भाई

जावेद पठान

नीरज गोस्वामी said...

रुला दिया भाई साहब। ऐसा लगा कि सारा मंज़र सामने हो और सब कुछ घटित हो रहा हो। अनमोल जी बहुत अच्छे व्यक्तित्व के धनी और विनम्र हैं। उनके एक अनछुए पहलू से रूबरू करवाने के लिए बहुत बहुत आभार और अनमोल जी को बहुत बहुत बधाई।

संजीव गौतम

नीरज गोस्वामी said...

पूरा लेख पढ़ा ।बहुत अच्छा लिखा है। आपके बारे में काफी निजी जानकारी मिली

जावेद आलम खान

नीरज गोस्वामी said...

यह संघर्षशील लाडला बालक एक सफल और उच्चकोटि का ग़ज़लकार ही नहीं बल्कि एक बेहतरीन इंसान भी है! ... बहुत बहुत शुभकामनायें! बहुत बहुत बधाइयाँ प्रिय भाई!
साथ ही आदरणीय नीरज जी को भी हृदय से साधुवाद! परिचय और पुस्तक समीक्षा का उनका निराला बेहतरीन अंदाज़ ही उन्हें औरों से अलग रेखांकित करता है!

कृष्ण सुकुमार

नीरज गोस्वामी said...

नीरज गोस्वामी जी, आपको साधुवाद।आप स्वस्थ एवं दीर्घायु रहें।
अनमोल जी को हार्दिक बधाई एवं अनेक शुभकामनाएं। उनकी ग़ज़लों में उनका संघर्ष बार बार आता है और अन्य लोगों को प्रेरित भी करता है। रचनाकार की यही सबसे बड़ी दौलत है उनके पास। उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं। अनेक शुभकामनाएं।

Medabalimi Shriram

नीरज गोस्वामी said...

नीरज गोस्वामी किसी किताब पर हर बार बतकही करते हुए आकर्षक अंदाज में लफ्जों से एक ऐसा चित्र गढ़ते हैं कि धीरे धीरे हमारे जहन में वह रचनाकार अंकित होता जाता है। इस किताब की समीक्षा में इतने विवरणों के बीच न रचनाकार खोया है न रचना और न नीरज भाई की समीक्षा। शब्द-संयोजित बेहतरीन समीक्षा के लिए उन्हें साधुवाद और आपको बधाई।

हरेराम समीप

नीरज गोस्वामी said...

अरे वाह बहुत खूब लिखा गया है, आप के बारे में।

सूर्यनारायण शूर

नीरज गोस्वामी said...

पढ़कर हतप्रभ हूँ
मुझे समझ नहीं आ रहा है क्या लिखूँ, मैं उस गहरी पीड़ा के सानिध्य में चला गया हूँ जिसे शब्दों
में व्यक्त करना मेरे लिए असंभव है,
आंखों में कुछ ठहर सा गया है
कितने भावों का मिश्रण आँसू के रूप में झिलमिला रहा है पता नहीं,
ख़ुशी और ग़म दोनों को एक साथ सम्भालना कितना मुश्किल है

नीरज सर आप नहीं जानते मेरे लिए यह लेख कितना महत्वपूर्ण है,
आपको सादर नमन👏👏👏👏
Abhishek Singh

नीरज गोस्वामी said...

बहुत सटीक समीक्षा की है नीरज जी ने,
बधाई अनमोल भाई, लिखते रहिये
और बेहतर से बेहतरीन

PN Bhatt

बेबाक आवाज़ said...

waaaaaa
बहुत उम्दा
कमाल लिखते हैं
दोनों को बधाई

नीरज गोस्वामी said...

केपी अनमोल जी को बड़ी उम्र के लोगों से लेकर छोटी उम्र का हर बच्चा जो ग़ज़ल सीख रहा है जानता है, हालांकि आपने उनके जीवन संघर्ष को लेकर उनसे लगाव बढ़ा दिया।आपने एक लेख में ऐसे ही कुमार शिव के जीवन संघर्ष को लिखा था जिसे पढ़कर कुमार शिव से मैं एकदम से जुड़ा था। केपी अनमोल सर के शेर मेैं पढ़ता रहता हूं पुस्तक पीडीएफ रूप में मैंने पढ़ी है और हस्ताक्षर में मैं छप भी चुका हूं और उनसे मेरा संबंध काफी अच्छा है। हस्ताक्षर लगभग मेरी घर की पत्रिका है और जब चाहो तब छप सकता हूं लेकिन केपी अनमोल सर के इस संघर्षशील जीवन था उस पर विजय प्राप्त करने की बारंबार शुभकामनाएं
अभी हाल ही में उन्होंने फेसबुक पर किस प्रकार से गजलें होती है और उनके एक एक शेर किस प्रकार से बनते हैं इस पर एक लंबा सा लेख लिखा था और अपने ग़ज़ल का स्क्रीनशॉट डाल कर के समझाया था।नमन

त्रिपाठी गोरखपुर

डॉ.अरुण कुमार निषाद Dr. Arun Kumar Nishad said...

दफ़्तर, बच्चे ,बीवी, साथी, रिश्ते-नाते, दुनियादारी
सबके सबको खुश रख पाना इतना तो आसान नहीं है
बहुत सुन्‍दर । एकदम यथार्थ । जीवन का अनुभव और अनमोल की अनमोल गजलें ।
अत्यन्‍त की ज्ञानवर्धक आलेख । साधुवाद सर जी

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद अरूण जी

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

भाईसाहब क्या बात है । आप का गद्य भी दिन ब दिन और भी निखार के साथ सामने आ रहा है । आप की क़िस्सा गोई भी कमाल की है । के पी अनमोल भाई को बहुत-बहुत बधाई । आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ ।

Amit Thapa said...

नीरज जी का तहेदिल शुक्रिया एक बार फिर से किताबों की दुनिया में एक और अनमोल नगीना खोज लाये हैं और वो भी ऐसा की जिसका नाम ही अनमोल हैं, ये बात वास्तव में सत्य है की प्रतिभा उम्र और हालात की मोहताज नहीं है,इतनी कम उम्र में विपरीत हालातों से लड़ते हुए यहाँ तक पहुँच जाना क़ाबिले तारीफ़ हैं

अनमोल जैसे शायरों को पढ़ कर एक बात की तस्सली तो होती है की जिस जोत को हिंदी ग़जल में दुष्यंत ने जलाया था उसे ये अनमोल जैसे शायर आगे ले जा रहे है भले ही हालात कितने ही विपरीत क्यों ना हो

आज के बच्चों को देख कर बहुत दुःख होता हैं उन्हें मोबाइल और लैपटॉप के अलावा किसी और चीज़ का ज्ञान नहीं, एक अनमोल जैसे उद्धारहण हैं जिन्होंने नंदन नन्हे सम्राट और बालहंस जैसी पत्रिकाओं को पढ़ कर अपनी मेहनत के दम पर ये मुक़ाम हासिल कर लिया


ये क्यों सोचूँ किसी ने क्या कहा है
मेरे जीने का अपना फ़लसफ़ा है

इस शेर को पढ़ कर जॉन एलिया की याद आ गई

काम की बात मैं ने की ही नहीं
ये मिरा तौर-ए-ज़िंदगी ही नहीं


कई कई बार पढ़ा कुछ शेरों को पर फैसला करना मुश्किल कौनसा बेहतरीन और किसको अपनी टिप्पणी में लिखा जाये

हर इक जगह तलाशते हैं अपना आदमी
कहने को जात-पात से हैं कोसो दूर हम

इस शेर के लिये बस एक शब्द "हक़ीक़त"

चाय का कप, ग़ज़ल, तेरी बातें
कैसे अरमान पलने लगते हैं

ओये ये तो अपना अंदाज हैं

शायद ये अनमोल की खासियत होगी जिंदगी और लोगों का बहुत गहराई से अवलोकन

बहुत आसान है मुश्किल हो जाना
बहुत मुश्किल है पर आसान होना

होना तो ये ही चाहिये दोस्त जिंदगी में

खैर नीरज जी को इस अनमोल नगीने से परिचय कराने के लिए बहुत बहुत साधुवाद और अनमोल को उनके भविष्य के लिए शुभकामनाएं, कोशिश रहेंगी अनमोल से बात करने की क्योंकि हमे नहीं पता था ये की अनमोल नगीना हमारे पड़ोस में छुपा था

सर जी आपने बहुत ही बेहतरीन तरीक़े से अनमोल का परिचय दिया है सब कुछ ऐसे लगता है जैसे आँखों के सामने ही हो रहा है

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद नवीन भाई

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद अमित भाई

नीरज गोस्वामी said...

नीरज भैया से भी पूर्व वफ़िक हूँ और अनमोल भाई से तो सीखा है बहुत कुछ ,आज ये समीक्षा पढ़कर कई बार रुलाई आई, कई बार दिल ने बहुत तेज धड़कना शुरू कर दिया तो कई बार दिल धक्क से करके बैठता हुआ सा महसूस हुआ ,अनमोल भाई आप मेरे लिए क्या स्थान रखते हो ,मैं शब्दों में कभी बयान नहीं कर सकता ,मगर मैं ये ज़रूर कह सकता हूँ कि आप आने वाला एक ऐसा आफ़ताब हो जो समूचे विश्व में अपनी रोशनी बिखेरने वाला है ,बहुत बहुत बधाई व बहुत शुभकामनाएं तो दोनों को इस किताब और सुखमय जीवन के लिए ।

अनुज अब्र

Onkar said...

बेहतरीन समीक्षा

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद ओंकार भाई

नीरज गोस्वामी said...

अनमोल तो अनमोल है ही , आप भी कमाल है नीरज जी

अश्विनी शर्मा

नीरज गोस्वामी said...

संघर्ष से तपकर निकले स्वर्ण कुछ ऐसे ही होते हैं ।
उच्च भाव ज़मीनी लगाव यूँ ही नहीं उभरते क़लम में ,अनछूए पहलूओं के वास्ते सदैव सम्मान रहेगा अनमोल जी।

शिल्पी अनूप

नीरज गोस्वामी said...

बहुत अच्छा लगा अनमोल भाई! आप और ऊँचाइयाँ प्राप्त करे यही शुभकामना है।

अनिमेष चंद्र

नीरज गोस्वामी said...

व्यक्ति की लगन और दृढ़ इच्छाशक्ति ही उसे 'अनमोल 'बनाती है।हार्दिक मंगलकामनाएं भाई के०पी०अनमोल जी।लेख तो अद्भुत है ही।

राजमूर्ती सौरभ

Gyanu manikpuri said...

अद्भूत। जैसे- जैसे पढ़ते गया घटनाएं आँखो के सामने आने लगे। बहुत बहुत बधाई अनमोल सर।

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद ज्ञानू जी

Rashmi sharma said...

आपको लाखों सलाम इतनी उम्दा शायरी से रूबरू करवाने के लिए और अनमोल जी को भी लाखों सलाम ज़िन्दगी को ऐसे जीने वाले विरले ही होते हैं। बेहतरीन वालाम उम्दा पेशकरी

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद रश्मि जी

नीरज गोस्वामी said...

इस पूरे लेख को पढ़ने के उपरांत यही कह सकता हूँ कि ये शब्द सह सत्य है...अनमोल भैया की कहानी भले आज पढ़ी हो लेकिन उनके बातचीत,दृष्टिकोण, दुनिया देखने के आयाम से ही संघर्ष का वृतांत झलकता है...एक बेहतरीन व्यक्तित्व को मेरा सलाम...जल्द इस किताब पर बात होगी.....❤️❤️❤️❤️

सिद्धांत दीक्षित

नीरज गोस्वामी said...

बहुत ख़ूब लिखा नीरज जी ने.
आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.

विजय राही

नीरज गोस्वामी said...

आज फ़ुरसत में पढ़ ही लिया सर...
ग़ज़ब का ख़ाका खींच देते हो सर आप...दिलचस्प,रोचक और प्रेरणादायक...
वास्तव में एक *अनमोल* व्यक्तित्व से रु-ब-रु करवाया है आपने...

*हैरत है पीपल की शाख़ों से कैसे अरमां*
*पतले-पतले धागों में आ कर बँध जाते हैं*...


वाह वाह वाह ...ग़ज़ब...
प्रणाम सर आपको🙏🏻

Looking forward to next one...✨

नकुल गोयल

B J Gautam said...

अद्भुत! बहुत प्रेरक व्यक्तित्व है अनमोल जी का। उनके जीवन के इस पक्ष को सामने लाने के लिए आपको साधुवाद !

नीरज गोस्वामी said...

गौतम जी धन्यवाद

Himkar Shyam said...


बहुत बढ़िया लिखा आपने। अनमोल जी अच्छे शायर हैं। ख़ूबसूरत, उम्दा शायरी करते हैं। फेसबुक मित्र भी हैं। इस आलेख से उनकी निजी ज़िंदगी को भी जानने, समझने को मिला। अनमोल जी को बधाई और शुभकामनाएं।

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद हिमकर भाई...

चोवा राम "बादल" said...

आदरणीय नीरज जी।
सादर नमन।
अनमोल जी की प्रेरक कहानी लेखन के लिए हार्दिक बधाई आपको।

नीरज गोस्वामी said...

शायर की ग़ज़लें तो कमाल की हैं ही, पर नीरज भाईजी की समीक्षा का अन्दाज तो बहुत ही कमाल का और नायाब है, जिसकी तारीफ़ के लायक लफ़्ज ही नहीं मिल रहे हैं ! शायद सर्दी की बर्फ़ उन पर भी जम गई या किसी अदृश्य कोरोना का प्रभाव है।
जो भी हो, आलेख पढ़ कर आनन्द आ गया, असंख्य धन्यवाद...

जया गोस्वामी
जयपुर

नीरज गोस्वामी said...

धन्यवाद चोवा राम जी

Ajay Agyat said...

बेहतरीन शायरी और बेहतरीन समीक्षा। speechless.
Anmol ji and Neeraj ji,दिल की गहराई से धन्यवाद। साधुवाद।

के० पी० अनमोल said...

नीरज भाई का ब्लॉग वर्ष 2011-12 से जब इन्टरनेट का उपयोग करना सीखा ही था, तबसे पढ़ता आ रहा हूँ। इसलिए मेरे ग़ज़ल लेखन सीखने के कुछ पड़ावों में यह ब्लॉग भी कहीं न कहीं हिस्सेदार है। 2013 में पहला संग्रह आने पर उसकी समीक्षा यहाँ लगवाने की चाह थी लेकिन उस वक़्त यह समझ नहीं थी कि इसके लिए लेखन परिपक्व होना ज़रूरी है। आज अपने लेखन को ग़ज़ल के इस महत्वपूर्ण मंच पर पाकर अभिभूत हूँ।

नीरज भाई की शैली का हर कोई दीवाना है। अपनी बतकही की शैली में इन्होंने मेरे व्यक्तित्व के जिन पहलुओं का ख़ुलासा किया है, वह मेरे बहुत क़रीबी मित्र भी नहीं जानते थे, वे भी जिन से फोन पर घण्टों संवाद होता है। इस लेख का महत्त्व इसलिए बढ़ जाता है क्यूँकि इसके ज़रिये ही मेरे समग्र व्यक्तित्व तथा कृतित्व का मूल्यांकन संभव है। नीरज भाई का तहे-दिल से आभारी हूँ।

आप सभी विद्वजनों का आशीष व स्नेह पाकर बहुत ख़ुश हूँ। आप सभी ने फ़ोन, मैसेज तथा कमेंट्स के माध्यम से भरपूर प्रोत्साहित किया, इसके लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।

Ramesh Kanwal said...

मेरी नज़रों से देखो तुम अगर तो
इसी दीवार में इक रास्ता है

नदी बहती है कितना दर्द लेकर
किनारों को कहाँ कुछ भी पता हैन

के.पी. अनमोल
विलक्षण प्रतिभा के धनी साहित्यकार हैं ये तो पता है लेकिन संघर्ष की सीढ़ियों के इस सफ़र से वाकिफ़ नहीं था।
लेकिन आपको यह बताना चाहिए था कि उनका पूरा नाम बताने से परहेज़ करने में आपको कितना जद्दोजहद करनी पड़ी ।
अच्छी शायरी अच्छा शायर से रुबरु कराने के लिए मशकूर हूं।
रमेश कंवल

Vikash 3 said...

भैया आपको सैल्यूट 🙏 हौसला मिलता है आप जैसे लोगों को पढ़ कर के