शायरी और समंदर में एक गहरा रिश्ता है इनमें जितना डूबेंगे उतना आनंद आएगा। उथली शायरी और उथले समंदर में कोई ख़ास बात नज़र नहीं आती लेकिन जरा गहरी डुबकी लगायें, आपको किसी और ही दुनिया में चले जाने का अहसास होगा। गहराई में आपको वो रंग नज़र आयेंगे जो सतह पर नहीं दिखाई देते। जो किताब आपको शायरी की गहराइयों में ले जाय उसके बारे में क्या कहा जाय। यूँ तो हर किताब कुछ न कुछ नया पढने को देती है लेकिन कुछ किताबें पढ़ कर दिल करता है इसे फिर से पढ़ा जाय। ऐसी ही एक किताब का जिक्र हम आज अपनी "किताबों की दुनिया" श्रृंखला में करेंगे:
शायरी का ये नया खूबसूरत मिजाज़ आपको युवा शायर "मनीष शुक्ला" जी किताब "ख़्वाब पत्थर हो गए " में एक जगह नहीं बहुत जगह पर बिखरा मिलेगा। बकौल मुंबई के मशहूर शायर "देव मणि पाण्डेय", शायरी में नग्मगि और नजाकत जरूर होनी चाहिये वर्ना ग़ज़ल का शेर, शेर न लग कर अखबार की खबर सा बेमज़ा लगने लगता है।" ये नग्मगि और नजाकत मनीष जी की शायरी में भरपूर दिखाई देती है .
बहुत अच्छा हुआ अहसास अब मरने लगे हैं
बकौल प्रो.शारिब रुदौलवी "ज़बान की ये सादगी और इज़हार-ऐ-ज़ज्बात का ये अंदाज़ मनीष की खुसूसियत है। उनकी शायरी में जो चीज़ मुतास्सिर करती है वो उनके अहसासात की ताजगी और उनका सादा मासूम इज़हार है। उर्दू ज़बान उनकी मादरी ज़बान नहीं है उसके बावजूद उन्होंने उर्दू को इज़हार-ऐ-ज़ज्बात का जरिया बनाया इसकी मुझे ख़ुशी है "
किताबों की दुनिया श्रृंखला में मनीष जी जैसे युवा शायरों का जिक्र बहुत कम हुआ है। शायरी में जिन एहसासों को पिरोया जाता है उसके लिए ज़िन्दगी के अलग अलग रंगों का तजुर्बा होना जरूरी है और ये रंग बहुत बिरले संवेदनशील लोग ही कम उम्र में देख पाते हैं। सन 1971 में उन्नाव उत्तरप्रदेश में जन्मे मनीष ने लखनऊ विश्व विद्यालय से अन्थ्रोपोलोजी में ऍम ऐ किया और अब प्रांतीय सिविल सेवा (वित्त एवम लेखा) के अधिकारी के रूप में शासकीय सेवा रत हैं। वित्त एवम लेखा जैसे के शुष्क विषय में काम करने के बावजूद शायद उनकी अन्थ्रोपोलोजी की पढाई ही मानव के विभिन्न स्वभावों को उनकी शायरी में सहजता से ढाल पायी है।
"ख़्वाब पत्थर हो गए" किताब में न केवल खूबसूरत शायरी है बल्कि उसका कलेवर मुद्रण आदि सभी कुछ शायराना है। एक अच्छी किताब में जो जो खूबियाँ होनी चाहियें वो सभी इस किताब में हैं। इसे स्काई लार्क हाउस आफ पब्लिकेशन , 52 शिव विहार , सेक्टर आई, जानकी पुरम , लखनऊ उत्तर प्रदेश ने प्रकाशित किया है। आप इस किताब की प्राप्ति के लिए उन्हें 09415107895 पर संपर्क कर सकते हैं .
जैसे मैं हमेशा कहता हूँ इस बार भी कहूँगा के शायरी के हर पाठक का फ़र्ज़ बनता है के वो अच्छे शायर और उसके अशआर को दाद दें। शायर की हौसला अफजाही होगी तो वो और बेहतर कहने की कोशिश करेगा। आपसे गुज़ारिश है के आप मनीष जी को उनकी इस बेहतरीन किताब और लाजवाब शायरी के लिए चाहे shukla_manish24@rediffmail.com पर मेल करके या फिर उन्हें उनके मोबाइल 09415101115 पर बात कर के बधाई दें। अगर आप चाहें तो उनसे इस किताब को पढने की ख्वाइश जताते हुए इसे आपके पास भेजने की इल्तेज़ा भी कर सकते हैं। मैंने बहुत से शायरों और उनकी शायरी की किताबों को पढ़ा है, मुझे मनीष जी की किताब ने उन्हें बार बार पढने के लिए मजबूर किया है। इस युवा शायर की शायरी है ही ऐसी जितनी बार पढो अलग मज़ा आता है :-
उड़ने के अरमान सभी के पूरे कब हो पाते हैं
उड़ने का अरमान अगरचे हर बेकस में होता है
चाँद सितारों पर रहने की ख्वाइश अच्छी है, लेकिन
चाँद सितारों पर रह पाना किसके बस में होता है
एक इरादा करके घर से चलने में है दानाई
लोगों का नुक्सान हमेशा पेश-ओ-पस में होता है
दानाई: समझदारी ; पेच-ओ-पस : दुविधा
मेरे जैसा लोहा आखिर सोने में तब्दील हुआ
तुझमें शायद वो सब कुछ है जो पारस में होता है
शायरी का ये नया खूबसूरत मिजाज़ आपको युवा शायर "मनीष शुक्ला" जी किताब "ख़्वाब पत्थर हो गए " में एक जगह नहीं बहुत जगह पर बिखरा मिलेगा। बकौल मुंबई के मशहूर शायर "देव मणि पाण्डेय", शायरी में नग्मगि और नजाकत जरूर होनी चाहिये वर्ना ग़ज़ल का शेर, शेर न लग कर अखबार की खबर सा बेमज़ा लगने लगता है।" ये नग्मगि और नजाकत मनीष जी की शायरी में भरपूर दिखाई देती है .
बहुत अच्छा हुआ अहसास अब मरने लगे हैं
हजारों ज़ख्म हैं लेकिन कोई दुखता नहीं है
भला किसको दिखाएँ जाके दिल के आबले हम
सभी जल्दी में हैं कोई ज़रा रुकता नहीं है
आबले: छाले
सभी ने तल्खियों की गर्द इस चेहरे पे मल दी
और उस पर ये शिकायत भी कि अब हँसता नहीं है
बकौल प्रो.शारिब रुदौलवी "ज़बान की ये सादगी और इज़हार-ऐ-ज़ज्बात का ये अंदाज़ मनीष की खुसूसियत है। उनकी शायरी में जो चीज़ मुतास्सिर करती है वो उनके अहसासात की ताजगी और उनका सादा मासूम इज़हार है। उर्दू ज़बान उनकी मादरी ज़बान नहीं है उसके बावजूद उन्होंने उर्दू को इज़हार-ऐ-ज़ज्बात का जरिया बनाया इसकी मुझे ख़ुशी है "
कफ़स ही अब तो घर लगने लगा है
रिहा होने से डर लगने लगा है
कफ़स: कैदखाना
छुपा लेता है खद्द-ओ-खाल मेरे
अँधेरा मोतबर लगने लगा है
खद्द-ओ-खाल: नाक-नक्श; मोतबर: विश्वस्त
दिल-ऐ-नादान अब खामोश हो जा
तिरी बातों से डर लगने लगा है
किताबों की दुनिया श्रृंखला में मनीष जी जैसे युवा शायरों का जिक्र बहुत कम हुआ है। शायरी में जिन एहसासों को पिरोया जाता है उसके लिए ज़िन्दगी के अलग अलग रंगों का तजुर्बा होना जरूरी है और ये रंग बहुत बिरले संवेदनशील लोग ही कम उम्र में देख पाते हैं। सन 1971 में उन्नाव उत्तरप्रदेश में जन्मे मनीष ने लखनऊ विश्व विद्यालय से अन्थ्रोपोलोजी में ऍम ऐ किया और अब प्रांतीय सिविल सेवा (वित्त एवम लेखा) के अधिकारी के रूप में शासकीय सेवा रत हैं। वित्त एवम लेखा जैसे के शुष्क विषय में काम करने के बावजूद शायद उनकी अन्थ्रोपोलोजी की पढाई ही मानव के विभिन्न स्वभावों को उनकी शायरी में सहजता से ढाल पायी है।
प्यास की शिद्दत के मारों की अज़ीयत देखिये
खुश्क आँखों में नदी के ख्वाब पत्थर हो गए
अज़ीयत: परेशानी
सबके सब सुलझा रहे हैं आसमां की गुत्थियाँ
मसअले सारे ज़मीं के हाशिये पर हो गए
हमने तो पास-ए -अदब में बंदा परवर कह दिया
और वो समझे कि सच में बंदापरवर हो गए
"ख़्वाब पत्थर हो गए" किताब में न केवल खूबसूरत शायरी है बल्कि उसका कलेवर मुद्रण आदि सभी कुछ शायराना है। एक अच्छी किताब में जो जो खूबियाँ होनी चाहियें वो सभी इस किताब में हैं। इसे स्काई लार्क हाउस आफ पब्लिकेशन , 52 शिव विहार , सेक्टर आई, जानकी पुरम , लखनऊ उत्तर प्रदेश ने प्रकाशित किया है। आप इस किताब की प्राप्ति के लिए उन्हें 09415107895 पर संपर्क कर सकते हैं .
गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं
तनावर जिस्म गाड़े जा रहे हैं
तनावर : हृष्ट-पुष्ट
तुम्हें बदनाम हम होने न देंगे
हर इक तहरीर फाड़े जा रहे हैं
तहरीर: लेख
बहुत रोओगे हमको याद करके
तुम्हें इतना बिगाड़े जा रहे हैं
खिज़ां की उम्र भी आने को है अब
चले आओ कि जाड़े जा रहे हैं
जैसे मैं हमेशा कहता हूँ इस बार भी कहूँगा के शायरी के हर पाठक का फ़र्ज़ बनता है के वो अच्छे शायर और उसके अशआर को दाद दें। शायर की हौसला अफजाही होगी तो वो और बेहतर कहने की कोशिश करेगा। आपसे गुज़ारिश है के आप मनीष जी को उनकी इस बेहतरीन किताब और लाजवाब शायरी के लिए चाहे shukla_manish24@rediffmail.com पर मेल करके या फिर उन्हें उनके मोबाइल 09415101115 पर बात कर के बधाई दें। अगर आप चाहें तो उनसे इस किताब को पढने की ख्वाइश जताते हुए इसे आपके पास भेजने की इल्तेज़ा भी कर सकते हैं। मैंने बहुत से शायरों और उनकी शायरी की किताबों को पढ़ा है, मुझे मनीष जी की किताब ने उन्हें बार बार पढने के लिए मजबूर किया है। इस युवा शायर की शायरी है ही ऐसी जितनी बार पढो अलग मज़ा आता है :-
उस से हाल छुपाना तो है ना-मुमकिन
हमने उसको आँखें पढ़ते देखा है
अश्क रवाँ रखना ही अच्छा है वरना
तालाबों का पानी सड़ते देखा है
दिल में कोई है जिसको अक्सर हमने
हर इल्जाम हमीं पर मढ़ते देखा है
इस उम्मीद के साथ कि आप मनीष जी से संपर्क करेंगे मैं आपसे अगली किताब को तलाशने तक विदा लेता हूँ। चलते चलते पेश हैं मनीष जी की एक बेजोड़ ग़ज़ल के ये खूबसूरत शेर:
सर सब्ज़ खेत, दूध के दरिया की छोडिये
फ़ाकाकशों के चन्द निवालों का क्या हुआ
किसको खबर है रौशनी के इस निजाम में
मिटटी के दिए बेचने वालों का क्या हुआ
दरिया को हद में बाँध कर जंगल डुबो दिया
पर सोचिये हसीन गज़ालों का क्या हुआ
गज़ालों : हिरण
लीजिये अब मनीष जी को अपना कलाम पढ़ते हुए सुनिए :-