Monday, November 19, 2018

किताबों की दुनिया - 204

मिला था एक यही दिल हमें भी आप को भी 
सो हम ने इश्क रखा, आपने ख़ुदा रक्खा
 *** 
है इंतज़ार उसे भी तुम्हारी खुशबू का 
हवा गली में बहुत देर से रुकी हुई है
 *** 
बीच में कुछ भी न हो यानी बदन तक भी नहीं 
तुझसे मिलने का इरादा है तो यूँ है मेरा 
*** 
ये कैसे मलबे के नीचे दबा दिया गया हूँ 
मुझे बदन से निकालो मैं तंग आ गया हूँ 
*** 
ये तो अच्छा किया तन्हाई की आदत रक्खी 
तब इसे छोड़ दिया होता तो अब क्या करते 
*** 
तिरे होने न होने पर कभी फिर सोच लूँगा 
अभी तो मैं परेशां हूँ खुद अपनी ही कमी से
 *** 
फैसला लौट के आने का है दुश्वार बहुत 
किस से पूछूँ वो मुझे भूल चुका है कि नहीं 
*** 
जरा आंसू रुकें तो मैं भी देखूं उसकी आँखों में 
उदासी किस कदर है और पशेमानी कहाँ तक है 
*** 
जो रात बसर की थी मिरे हिज़्र में तूने 
उस रात बहुत देर तिरे साथ रहा मैं 
***
 धूल नज़र में रह गई उसको विदाअ कर दिया 
और उसी गुबार में, उम्र गुज़ार दी गयी 

 इस से पहले कि हम आगे बढ़ें मुझे बताएं कि क्या आपने कभी www.greeniche.com पर क्लिक किया है ? आप इसके बारे में कुछ जानते हैं ? यदि हाँ तो अपना समय बचाएं और नीचे दिए शेरों पर जाएँ और यदि नहीं तो जो बता रहा हूँ उसे जरा गौर से पढ़ें। ये जो वेब साइट है इसका लोगो है "पैशन फार लाइफ़" याने "ज़िन्दगी से मुहब्बत" और ये वेब साइट कैनेडा की एक मशहूर कंपनी की है जो हेल्थ केयर प्रोडक्ट बनाती है जिसमें विटामिन्स और सप्लीमेंट्स, नेचरल हेल्थ फ़ूड, स्किन और बालों की केयर के प्रोडक्ट्स आदि शामिल हैं । ये कंपनी बहुत पुरानी नहीं है लेकिन इसने कैनेडा में बहुत सी बरसों पुरानी कंपनियों , जो इसी प्रकार के प्रोडक्ट बनाती आ रही हैं ,के पैर बाज़ार से उखाड़ दिए हैं। ये कंपनी अपनी क़्वालिटी के चलते कैनेडा ही नहीं पूरी दुनिया में अपना नाम कमा रही है और तेजी से आगे बढ़ रही है। आप सोच रहे होंगे कि मैं इस पोस्ट की आड़ में कहीं इस कंपनी का प्रचार तो नहीं कर रहा हूँ, तो जवाब है जी नहीं। मैं सिर्फ हमारे आज के शायर की पहचान इस कंपनी के माध्यम से करवा रहा हूँ जो इसकी सफलता के पीछे हैं।

 रात के पिछले पहर पुरशोर सन्नाटों के बीच 
तू अकेली तो नहीं ऐ चश्मे-तर मैं भी तो हूँ 

 खुद-पसंदी मेरी फ़ितरत का भी वस्फ़े-ख़ास है 
बेखबर तू ही नहीं है, बेख़बर मैं भी तो हूँ 

 यूँ सदा देता है अक्सर कोई मुझमें से मुझे 
तुझको ख़ुश रक्खे ख़ुदा यूँ ही मगर मैं भी तो हूँ 

 फ़्लैश बैक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए चलिए जरा पीछे लौटें।18 फ़रवरी 1968 का दिन है कराची के एक नामी डाक्टर के घर के रौनक देखते ही बन रही है। सबके चेहरे पे खिली ख़ुशी देख अंदाज़ा हो रहा है कि कोई बहुत अच्छी खबर है, जी बिलकुल सही। अच्छी खबर ये है कि डाक्टर साहब के यहाँ बेटा हुआ है. मिठाई बांटी जा रही है, गीत गाये जा रहे हैं। दो साल बाद डाक्टर साहब काम के सिलसिले में लीबिया चले जाते हैं पूरे परिवार के साथ और वहां पूरे 9 साल रहते हैं। ये बच्चा अब थोड़ा बड़ा हो गया है जिसे लीबिया में इंग्लिश मीडियम स्कूल न होने के कारण कराची भेज दिया गया है। कराची से स्कूलिंग करने के बाद उसने टी.जे. साइंस कॉलेज कराची से ग्रेजुएशन किया। पाकिस्तान में ग्रेजुएशन के करने के बाद कैरियर के लिए कोई बहुत ज्यादा ऑप्शन नहीं थे। क्या किया जाय इसी सोच में जब ये हज़रत अपने दोस्त के साथ कार में घर जा रहे थे तो दोस्त ने एक जगह कार रोक कर उन्हें कहा कि आप बैठे मैं सामने के कॉलेज से एम.बी ऐ. के लिए एक फार्म ले आता हूँ। एम,बी.ऐ की डिग्री को उस वक्त तक बहुत कम स्टूडेंट जानते थे। दोस्त के साथ इन हज़रत ने भी फार्म भर दिया , दोस्त तो परीक्षा में रह गए लेकिन ये चुन लिए गए।

 हमारे साथ जब तक दर्द की धड़कन रहेगी 
तिरे पहलू में होने का गुमाँ बाक़ी रहेगा 

 बहुत बे-ऐतबारी से गुज़र कर दिल मिले हैं 
बहुत दिन तक तकल्लुफ़ दर्मियाँ बाक़ी रहेगा

 रहेगा आसमाँ जब तक जमीं बाक़ी रहेगी 
जमीं क़ायम है जब तक आसमाँ बाक़ी रहेगा 

 एम,बी.ऐ. के बाद ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो यूनिवर्सिटी कराची से एम्. एस. किया और एक मल्टीनेशनल हेल्थ केयर कंपनी से जुड़ गए। इस तरह की कंपनियां किसी को कुछ नया करने की आज़ादी नहीं देती। लिहाज़ा इन का मन इस काम से उखड़ने लगा। बड़ी कंपनी की शानदार नौकरी को छोड़ने का निर्णय आसान नहीं था लेकिन इन्होने लिया और एक छोटी लोकल कम्पनी में काम करने लगे जहाँ उन्हें अपने हिसाब से काम करने की आज़ादी थी। सभी कंपनियाँ अपने प्रोडक्ट के प्रमोशन के लिए डॉक्टर्स को गिफ्ट्स दिया करती हैं। इस शख़्स ने जिसका नाम 'इरफ़ान सत्तार' है, प्रोडक्ट प्रमोशन का नया तरीक़ा सोचा। उन्होंने नामचीन शायरों जैसे ग़ालिब मीर आदि के सौ चुनिंदा शेरों की खूबसूरत बुकलेट छपवायी और वितरित कीं। उनके इस प्रयास को बहुत सराहना मिली। एक नयी फैक्ट्री के उद्घाटन के लिए उन्होंने बजाय किसी नेता या अफसर को बुलाने के पाकिस्तानी शायर अहमद फ़राज़ को बुलाया जो उस समय लिया गया एक बहुत बड़ा कदम था. हमारे यहाँ तो ये अभी भी मुमकिन नहीं है। ऐसे अलग सोच वाले प्रतिभाशाली शख़्स ने जब कलम उठाई तो ग़ज़ब ढा दिया।

 पहले जो था वो सिर्फ तुम्हारी तलाश थी 
लेकिन जो तुमसे मिल के हुआ है ,ये इश्क है 

 क्या रम्ज़ जाननी है तुझे अस्ले-इश्क की 
जो तुझमें इस बदन के सिवा है ,ये इश्क है 
रम्ज-भेद ,सिवा=अधिक  

जो अक़्ल से बदन को मिली थी वो थी हवस 
जो रूह को जुनूं से मिला है, ये इश्क है 

 पाकिस्तान में आगे बढ़ने के लिमिटेड मौकों और माहौल को देखते हुए इरफ़ान सत्तार साहब ने कैनेडा बसने का इरादा किया। कैनाडा में ज़िन्दगी दो तरह से गुज़ारी जा सकती थी पहली किसी बड़ी कंपनी में नौकरी करके और दूसरी अपनी कंपनी खोल के। दूसरा रास्ता क्यूंकि बहुत मुश्किल था लिहाज़ा इरफ़ान साहब ने आदतन वही चुना। उनकी मेहनत लगन और अलग ढंग की सोच ने नई कंपनी को कुछ ही सालोँ में कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया। उनके प्रोडक्ट्स की डिमांड कैनेडा में तो है ही अमेरिका मिडल ईस्ट भारत पाकिस्तान के अलावा चीन में भी खूब हो रही है। अपने बेहद व्यस्त शेड्यूल में से सत्तार साहब शायरी के लिए वक्त निकाल लेते हैं। जैसे उनके हेल्थ प्रोडक्ट बहुत अलग हट के हैं वैसे ही उनकी शायरी भी बेहद दिलकश और खास है। उर्दू में इरफ़ान साहब की दो किताबें शाया हो चुकी हैं हिंदी में छपी उनकी किताब "ये इश्क है" जिसमें उन दो किताबों से चुनिंदा ग़ज़लें ली गयीं हैं आज हमारे सामने है।महेन कुमार सानी और नदीम अहमद काविश ने किताब का सम्पादन किया है, उसी में से पेश हैं कुछ चुनिंदा ग़ज़लों के शेर :



 तेरी याद की खुशबू ने बाहें फैला कर रक़्स किया 
कल तो इक एहसास ने मेरे सामने आकर रक़्स किया 

 पहले मैंने ख़्वाबों में फैलाई दर्द की तारीक़ी
 फिर उसमें इक झिलमिल रौशन याद सजा कर रक़्स किया 

 रात गए जब सन्नाटा सरगर्म हुआ तन्हाई में 
दिल की वीरानी ने दिल से बाहर आ कर रक़्स किया 

 इरफ़ान सत्तार साहब की शायरी और टॉक शो के यू ट्यूब पर वीडियो देखते-सुनते हुए यकीन होता है कि इरफ़ान साहब के पास एक बिलकुल अलहदा लेकिन साफ़ सोच है। ये शख़्स अपनी बात कहने में ख़तरनाक हद तक ईमानदार, सच्चा और नेक है। पाकिस्तान के ही नहीं पूरी दुनिया के लोगों को अपनी शायरी से दीवाना बना देने वाले जनाब जॉन ऐलिया साहब उनके उस्ताद हैं. इस किताब में उनकी लगभग 100 से ज्यादा ग़ज़लें संग्रहित की गयीं हैं जो पाठकों को देर तक अपनी गिरफ्त से बाहर नहीं आने देती। मैं सोचता हूँ की अपनी अपनी बकबक को कुछ देर के लिए रोक कर आप तक उनके चुनिंदा अशआर पहुंचाऊं तो लीजिये मैं एक तरफ हो जाता हूँ अब आप हैं और इरफ़ान साहब का कलाम है :

 गुज़र रहा है तू किस से गुरेज़ करता हुआ
 ठहर के देख ले ऐ दिल कहीं ख़ुशी ही न हो

 वो आज मुझसे कोई बात कहने वाला है
मैं डर रहा हूँ कि ये बात आख़िरी ही न हो

 अजीब है ये मिरी ला-तअल्लुक़ी जैसे
 जो कर रहा हूँ बसर मेरी ज़िन्दगी ही न हो
***
 मैं तुझसे साथ भी तो उम्र भर का चाहता था
सो तुझ से अब गिला भी उम्र भर का हो गया है

 मिरा आलम अगर पूछे तो उनसे अर्ज़ करना
 कि जैसा आप फ़रमाते थे वैसे हो गया है

 मैं क्या था और क्या हूँ और क्या होना है मुझको
मिरा होना तो जैसे इक तमाशा हो गया है
***
वो इक रोजन कफ़स का जिसमें किरनें नाचती थीं
मिरी नज़रें उसी पर थीं रिहा होते हुए भी

 मुझे तूने बदन समझा हुआ था वरना मैं तो
तिरी आगोश में अक्सर न था होते हुए भी

मुसलसल क़ुर्ब ने कैसा बदल डाला है तुझको
 वही लहज़ा वही नाज़ो-अदा होते हुए भी
मुसलसल क़ुर्ब =लगातार नज़दीकी
 ***
हमें तुम्हारी तरफ रोज़ खींच लाती थी
 वो एक बात जो तुमने कभी कही ही नहीं

 वो एक पल ही सही जिसमें तुम मयस्सर हो
 उस एक पल से जियादा तो ज़िन्दगी भी नहीं

 हज़ार तल्ख़ मरासिम सही प' हिज़्र की बात
 उसे पसंद न थी और हमने की भी नहीं
 तल्ख़ मरासिम=कड़वे रिश्ते , हिज़्र -जुदाई
 ***
धूप है उसकी मेरे आँगन में
 उसकी छत पर है चांदनी मेरी

 जाने कब दिल से आँख तक आ कर
 बह गयी चीज़ क़ीमती मेरी

 क्या अजब वक्त है बिछुड़ने का
 देख रूकती नहीं हंसी मेरी

 तेरे इंकार ने कमाल किया
 जान में जान आ गयी मेरी
 ***
एक मैं हूँ जिसका होना हो के भी साबित नहीं
 एक वो है जो न हो कर जा-ब-जा मौजूद है

 ताब आँखें ला सकें उस हुस्न की, मुम्किन नहीं
 मैं तो हैराँ हूँ कि अब तक आइना मौजूद है

 एक पल फ़ुर्सत कहाँ देते हैं मुझको मेरे ग़म
 एक को बहला दिया तो दूसरा मौजूद है

 अब देखिये ग़ज़लें तो इस किताब में जैसा मैंने बताया 100 से ऊपर हैं और सभी ऐसी हैं जिन्हें यहाँ पढ़वाने का मन है लेकिन आप भी जानते हैं और मैं भी कि ये संभव नहीं. इन ग़ज़लों को पढ़ना तभी संभव है जब ये किताब आपके पास हो और इसे अपने पास रखने के लिए आपको ऐनी बुक्स G -248 ,2nd फ्लोर , सेक्टर -63 नोएडा-201301 को लिखना होगा या www. anybook. org की साइट पे जाना होगा , सबसे आसान तो ये होगा कि आप श्री पराग अग्रवाल जो ऐनी बुक्स के कर्त्ता धर्ता है और खुद भी बेमिसाल शायर हैं , को उनके मोबाईल न 9971698930 पर संपर्क करें। पराग को आप बधाई दें जिनका शायरी प्रेम ही उनसे ऐसी अनमोल शायरी की किताबों को मंज़र-ए-आम पर लाने की हिम्मत पैदा करता है, वरना आज के युग में भला कौन जान बूझ कर ऐसा जोखिम लेगा ? कितने लोग शायरी की किताबें पढ़ते हैं और वो भी ऐसी मयारी शायरी की किताब ? मेरे दिल से पराग के लिए हमेशा दुआएं निकलती हैं। ये किताब अमेजन पर भी ऑन लाइन उपलब्ध है। आप किताब मंगवाइये और चलते चलते उनकी एक और ग़ज़ल के ये शेर पढ़िए :

 माहौल मेरे घर का बदलता रहा, सो अब 
 मेरे मिज़ाज़ का तो ज़रा सा नहीं रहा 

 मैं चाहता हूँ दिल भी हक़ीक़त पसंद हो 
 सो कुछ दिनों से मैं इसे बहला नहीं रहा 

 वैसे तो अब भी खूबियां उसमें हैं अनगिनत 
 जैसा मुझे पसंद था , वैसा नहीं रहा

6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-11-2018) को ."एक फुट के मजनूमियाँ” (चर्चा अंक-3161) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Shashank Sharma said...

अप्रतिम,

Onkar said...

बहुत बढ़िया

Vishal mishra said...

Lajawab.. Neeraj uncle.. Aapko hamaree bhi umra lag jaye.. Ishwar behtar swasthy k saath deerghayu Karen.. Aapka vishal

mgtapish said...

जरा आंसू रुकें तो मैं भी देखूं उसकी आँखों में
उदासी किस कदर है और पशेमानी कहाँ तक है
*** बेहतरीन मंज़रकशी
बहुत बे-ऐतबारी से गुज़र कर दिल मिले हैं
बहुत दिन तक तकल्लुफ़ दर्मियाँ बाक़ी रहेगा

जो अक़्ल से बदन को मिली थी वो थी हवस
जो रूह को जुनूं से मिला है, ये इश्क है

मुझे तूने बदन समझा हुआ था वरना मैं तो
तिरी आगोश में अक्सर न था होते हुए भी

हमें तुम्हारी तरफ रोज़ खींच लाती थी
वो एक बात जो तुमने कभी कही ही नहीं
ख़ूबसूरत अश'आर लाजवाब तबस्‍रा वाह वाह नीरज जी आपको नमन
मोनी गोपाल'तपिश'

Anu Shukla said...

बेहतरीन!
कोटि कोटि नमन :)

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