Monday, October 3, 2011

किताबों की दुनिया - 61

ग़र तुझसे मुझे इतनी मोहब्बत नहीं होती
यूँ रंज उठाने में भी लज्ज़त नहीं होती

ये दिल है कि जो टूट गया, टूट गया बस
शीशे की किसी तौर मरम्मत नहीं होती

फिर कौन तुझे मानता यकता-ऐ-ज़माना
अशआर में तेरे जो ये जिद्दत नहीं होती
यकता-ऐ-ज़माना=संसार में अद्वितीय, जिद्दत =अनोखापन

"अशआर में तेरे जो ये जिद्दत नहीं होती"… वाह...देखिये कितनी सही और गहरी बात की है. दुनिया में जो सब कर रहे हैं उसी को किये जाने में भला क्या लुत्फ़ है ? अपनी पहचान बनाने के लिए आपको कुछ अलग करना ही पड़ता है, अगर नहीं करेंगे तो आप भीड़ में गुम हो जायेंगे. हमारे आज के शायर जनाब " डा. महताब हैदर नक़वी" जिनकी किताब "हर तस्वीर अधूरी " का हम जिक्र करने जा रहे हैं, भीड़ में होते हुए भी भीड़ से अलग हैं.


अब तक तो हम-से-लोग किसी काम के न थे
अब काम मिल गया है मेरे रब किया है इश्क़

पहले तो थीं हर एक से शिकवे-शिकायतें
अब क्यूँ रहेगा कोई गिला जब किया है इश्क़

वाइज़ को एतराज़ अगर है तो होने दो
पहले नहीं किया था मगर अब किया है इश्क़

अलीगढ निवासी जनाब डा. महताब हैदर नक़वी साहब की शायरी पर उनके उस्ताद जनाब शहरयार साहब का असर साफ़ दिखाई देता है. शहरयार साहब के साथ और अब उनके रिटायरमेंट के बाद भी वो अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग में बतौर लेक्चरार काम कर रहे हैं . नक़वी साहब अपनी शायरी का सारा श्रेय शहरयार साहब को ही देते हैं.

समन्दरों के किनारों की रेत पर अब लोग
बनायें और कोई चीज़ भी घरों के सिवा

परिंदे पूछ रहे हैं हवाओं से अब के
उड़ान के लिए क्या चाहिए परों के सिवा

हमारी नस्ल ने ऐसे में आँख खोली है
जहाँ पे कुछ नहीं बेरंग मंज़रों के सिवा

नक़वी साहब पिछले तीन दशकों से शेर कह रहे हैं. इनकी दो किताबें 'शब् आहंग' और 'मावरा-ऐ-सुखन' प्रकाशित हो चुकी हैं. डायमंड पाकेट बुक्स के हम, हिंदी में शायरी पढने के शौकीन, एहसानमंद हैं जिन्होंने उनकी ग़ज़लों का हिंदी में ये पहला संकलन प्रकाशित किया है. संपादन का काम सरेश कुमार जी ने किया है. इस किताब में नक़वी साहब की एक सौ चालीस से ऊपर ग़ज़लें संकलित हैं जो पाठकों का मन मोह लेती हैं.

मेहरबाँ आज मुझ पर हुआ कौन है
तू नहीं है तो फिर ये बता कौन है

सब हिकायत-ऐ-माज़ी भुला दी गयी
तेरे ग़म को मगर भूलता कौन है
'हिकायत-ऐ-माज़ी= अतीत की कथाएं

वो भी खामोश है, मैं भी खामोश हूँ
दरमियाँ आज फिर आ गया कौन है

समकालीन उर्दू शायरी के आठवें दशक में उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज करवाने में जावेद अख्तर ,निदा फ़ाज़ली, जुबैर रिज़वी, अमीन अशरफ, शीन काफ़ निजाम, तरन्नुम रियाज़, आलम खुर्शीद आदि के साथ जनाब महताब हैदर नक़वी साहब का नाम भी लिया जाता है. उनकी शायरी में हमारे आज की समस्याएं परेशानियाँ सुख दुःख झलकते हैं, इसलिए उनकी शायरी हमें अपनी सी लगती है. वो आज के बिगड़ते हालत को देख चिंतित भी हैं तो कहीं उसी में उन्हें उम्मीद की किरण भी नज़र आती है.

अपनी वहशत का कुछ अंदाज़ा लगाया जाए
फिर किसी शहर को वीराना बनाया जाए

पहले उस शोख़ को गुमराह किया करते हैं
फिर ये कहते हैं उसे राह पे लाया जाए

अक्ल कहती है कि शानों पे ये सर भारी है
दिल की ये ज़िद है कि यही बोझ उठाया जाए

सुरेश कुमार ने किताब की भूमिका में लिखा है " ज़िन्दगी को बेहतर बनाने के लिए जिन ख्वाबों की जरूरत होती है, उन्हें देखने के लिए नक़वी साहब एक वातावरण तैयार करने में लगे हैं.महज़ ख़्वाब देखना उनकी फितरत में नहीं है, व्यवहारिक धरातल पर वो उन्हें हकीक़त में भी बदलना चाहते हैं. उनकी ये कोशिश उनके अशआर में साफ़ दिखाई देती है.”

दूर तक राह में अब कोई नहीं, कोई नहीं
कब तलक बिछड़े हुए लोगों का रस्ता देखूं

आँख बाहर किसी मंज़र पे ठहरती ही नहीं
घर में जाऊं तो वही हाल पुराना देखूं

रात तो उसके तसव्वुर में गुज़र जाती है
कोई सूरत हो कि मैं दिन भी गुज़रता देखूं

जनाब नक़वी साहब के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने में मुझे बहुत मशक्कत करनी पड़ी. नैट पर सिर्फ उन लोगों के बारे में लिखा मिलता है जो चाहे नक़वी साहब जैसे दानिश्वर नहीं है लेकिन उनसे अधिक प्रचलित हैं. आज के युग में अपने आपको बाज़ार में बेचने का हुनर आना चाहिए. आपने देखा होगा अक्सर मुशायरों में आप को शायरी सुनने को नहीं मिलती जो शायरी कहते हैं उन्हें मुशायरों में बुलाया नहीं जाता. भीड़ शायरी को मनोरंजन का सामान मानती है, उसकी गहराई में नहीं उतरना चाहती. चाहे हमें नक़वी साहब के बारे में नैट पर बहुत अधिक पता नहीं चला लेकिन इस किताब को पढ़ कर उनके विचारों को भली भांति जाना है और ये बात उन्हें जानने से अधिक महत्वपूर्ण है.

आईने भी अब देख के हैराँ नहीं होते
ये लोग किसी तौर परेशां नहीं होते

पलकों के लिए धूप के टुकड़ों की दुआ हो
साए कभी ख़्वाबों के निगेहबां नहीं होते
निगेहबां =देखरेख करने वाले

होते हैं कई काम मोहब्बत में भी ऐसे
मुश्किल जो नहीं हैं, मगर आसाँ नहीं होते

उम्मीद करता हूँ के आपको नक़वी साहब की शायरी पसंद आई होगी. शायर की हौसला अफजाही के लिए गुज़ारिश है के आप उन्हें इस बेहतरीन शायरी के लिए उनके मोबाइल 09456667284 पर फोन कर मुबारकबाद जरूर दें .ये मोबाईल नंबर मुझे नैट से बहुत मुश्किल से मिला है, मेरी इस मेहनत का सिला सिर्फ उन्हें फोन पर दाद दे कर ही दिया जा सकता है. अगली किताब की तलाश में चलने से पहले लीजिये पेश करता हूँ नक़वी साहब की एक ग़ज़ल के तीन और शेर :

हमें तुझ से मोहब्बत है, हमें दुनिया से यारी है
ये दुनिया भी हमारी है, वो दुनिया भी हमारी है

जहाँ के खेल में सब एक जैसे हम को लगते हैं
ये बाज़ी किसने जीती है, ये बाज़ी किसने हारी है

खुली आँखों से देखो तो, ये दुनिया खूबसूरत है
हंसी तू है , जवान हम हैं , कहाँ की सोगवारी है

36 comments:

रविकर said...

KHUUBSUURAT
PRASTUTI

जयकृष्ण राय तुषार said...

भाई नीरज बहुत सुंदर सजी संवरी पोस्ट लाजवाब ग़ज़लें बधाई बंधु दशहरे की शुभकामनाओं के साथ

सदा said...

हमें तुझ से मोहब्बत है, हमें दुनिया से यारी है
ये दुनिया भी हमारी है, वो दुनिया भी हमारी है

जहाँ के खेल में सब एक जैसे हम को लगते हैं
ये बाज़ी किसने जीती है, ये बाज़ी किसने हारी है
बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति ।

डॉ. मनोज मिश्र said...

सुंदर प्रस्तुति.

नीरज गोस्वामी said...

Comment received from Akash Lalwani Jain on fb:-

अब तक तो हम-से-लोग किसी काम के न थे
अब काम मिल गया है मेरे रब किया है इश्क़

bahut khub

रेखा said...

बेहतरीन प्रस्तुति ..

डॉ टी एस दराल said...

बेहतरीन शायर से परिचय कराया है . एक एक शेर लाज़वाब हैं .
बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए बधाई .

vandana gupta said...

नकवी साहब को पढकर आनन्द आ गया …………हर शेर दिल को छूता है ………पढवाने के लिये हार्दिक आभार्।

वाणी गीत said...

पहले उस शोख़ को गुमराह किया करते हैं
फिर ये कहते हैं उसे राह पे लाया जाए...

अच्छा लगा विस्तार से पढना !

दर्शन कौर धनोय said...

मेहरबाँ आज मुझ पर हुआ कौन है
तू नहीं है तो फिर ये बता कौन है

सब हिकायत-ऐ-माज़ी भुला दी गयी
तेरे ग़म को मगर भूलता कौन है
'हिकायत-ऐ-माज़ी= अतीत की कथाएं

वो भी खामोश है, मैं भी खामोश हूँ
दरमियाँ आज फिर आ गया कौन है

नकवी साहेब की शायरी पढकर हम तो धन्य हुए नीरज साहेब .....

रश्मि प्रभा... said...

अब तक तो हम-से-लोग किसी काम के न थे
अब काम मिल गया है मेरे रब किया है इश्क़
waah... chunker late hain aap, shukriyaa

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन शेर पढ़वाने का आभार।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

शानदार ग़ज़लगो नकवी साहब से मुलाक़ात अच्छी लगी... शानदार अशआर पढ़कर आनंद आगया...
उन्हें सादर बधाई...
सादर आभार...

तिलक राज कपूर said...

'अक्सर मुशायरों में आप को शायरी सुनने को नहीं मिलती जो शायरी कहते हैं उन्हें मुशायरों में बुलाया नहीं जाता'

उनकी शिकायतें कि बुलाया नहीं गया
अपना मिज़ाज़ है कि वहॉं जा सके न हम।

हुजूर आपका ब्‍लॉग कौनसा कम है किसी मुशायरे से, शायर के साथ-साथ उसकी शायरी से रू-ब-रू होने का ऐसा अवसर कहॉं।

मुशायरे ही नहीं आज की दुनिया में सब कुछ रिश्‍तों पर चलता है।
वो मुतमईन तो है कि मैं उम्‍दा कहूँगा कुछ
रिश्‍तों में तल्‍खि़यत है, बुलाता नहीं मुझे।

ताऊ रामपुरिया said...

परिचय के लिये बहुत आभार, शुभकामनाएं.

रामराम.

Onkar said...

In sheron ka jawab nahin

रचना दीक्षित said...

सुंदर परिचय, सुंदर समीक्षा. नकवी साहब की शायरी लाजवाब है. बधाई नकवी साहब.

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

i go with tilak bhai saab, niraj bhaaii aap kaaa bahoooooooot puranaa yaaraanaa jo hai un ke sath. thx 4 another exceptional sharing. :)

Dr Varsha Singh said...

" डा. महताब हैदर नक़वी" की किताब "हर तस्वीर अधूरी " की शानदार समीक्षा.....पढ़वाने के लिए हार्दिक आभार...

मनोज कुमार said...

इस किताब का परिचय अच्छा लगा।

नीरज गोस्वामी said...

On twitter from gtechinnovator:--

Kya baat !

'मेहरबाँ आज मुझ पर हुआ कौन है, तू नहीं है तो फिर ये बता कौन है'

आकर्षण गिरि said...

मैं तो यही कहूंगा.... बहुत खूब
वाईज को अगर ऐतराज है तो होने दो...

आपको दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं

Kailash Sharma said...

बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !

दीपक बाबा said...

पोस्ट के शुरू में ही लिखे शेर ....

ये दिल है कि जो टूट गया, टूट गया बस
शीशे की किसी तौर मरम्मत नहीं होती

नीरज जी, धन्य है आपकी निगायें जो हीरे छांट लाती है हमारे लिए... पता नहीं क्यों पर आज दिल कुछ अजीब सा महसूस कर रहा है और उपर से आपकी ये पोस्ट पढ़ ली..

आप ऐसी ही पोस्टें लिखते रहिये कि हमारे जैसों के दिल को सकूं मिलता रहे...

सुनील गज्जाणी said...

नकवी साहब को पढकर आनन्द आया , हर शेर दिल को छूता है, पढवाने के लिये हार्दिक आभार्।

दिगम्बर नासवा said...

नकवी शाहब के लाजवाब शेरों का गुलदस्ता बता रहा ही की पूरा बाग कितना कमाल का होगा ... और आपका तो जवाब नहीं है नीरज जी ... हीरों को परखने की आपकी महारत है ..

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
नवीन सी. चतुर्वेदी

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

बहुत उम्दा शायरी से रूबरू कराया आपने नीरज जी...बधाई
संवाद मीडिया के लिए रचनाएं आमंत्रित हैं...
विवरण जज़्बात पर है
http://shahidmirza.blogspot.com/

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

शारदा अरोरा said...

bahut badhiya aur sabse sundar ...
परिंदे पूछ रहे हैं हवाओं से अब के
उड़ान के लिए क्या चाहिए परों के सिवा

Pawan Kumar said...

नकवी साहब के दिलकश शेरों का गुलदस्ता पेश करने का शुक्रिया......... आपकी ये मुहिम कमाल की है.

नीरज गोस्वामी said...

shri neeraj ji
namastey
gud introduction of a new book 'har tasveer adhoori' especially the following lines:-
समन्दरों के किनारों की रेत पर अब लोग
बनायें और कोई चीज़ भी घरों के सिवा

परिंदे पूछ रहे हैं हवाओं से अब के
उड़ान के लिए क्या चाहिए परों के सिवा

thanks for the same, regds,
-om sapra

Udan Tashtari said...

बहुत आभार इस परिचय का...

Amrita Tanmay said...

आप बेहतरीन जौहरी हैं .

avanti singh said...

aap ka blog bahut hi umda hai.....bdhai........

parm said...

Nice , I am happy by reading this.
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