सुबह सो कर उठा तो बाहर बारिश गिरने की आवाज आ रही थी...बालकनी का दरवाजा खोला तो मुंह खुला का खुला ही रह गया...चारों तरफ़ पानी ही पानी था...सारी रात बारिश होती रही. सामने के पहाड़ मानो गा गा कर बुला रहे थे.."आयीये बारिशों का मौसम है....."
अब भला कोई मूर्ख ही होगा जो इस न्योते को मना करे... और आप तो जानते ही हैं की मूर्खता में अपना कोई सानी नहीं है...लेकिन कभी कभी अपने आप को ग़लत सिद्ध करने में भी मजा आता है, इसलिए चाय पी और निकल लिए घर से...
जहाँ सड़क हुआ करती थी वहीँ पानी था..ये तो भला हो मेरे ड्राईवर का, जिसे इस सड़क के कंकर पत्थर तक का भान है, जिसने मुझे आराम से पहाडों के नजदीक पहुँचा दिया...
घर से कोई एक किलो मीटर की दूरी से ही लोनावला की चडाई शुरू हो जाती है... अभी हम कुछ मीटर ही आगे गए थे की एक शानदार झरना हमारे स्वागत को बहता मिला...
थोडी ही दूर आगे गए थे की उसी झरने के बड़े भाईसाहेब हँसते हुए मिल गए, बड़ी अदा से इठलाते हुए पाँव पर लोट लगाते हुए...फुहारों की मनुहार से भिगोते हुए
उनसे मिल कर आगे चले तो तो "ऐ भाई जरा देख के चलो...आगे ही नहीं पीछे भी...दायें ही नही बाएं भी...ऊपर ही नहीं नीचे भी..ऐ भाई... गाते हुए झरनों की कतार दिखाई दी....और सच ही सब तरफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ झरने ही झरने थे...
रास्ते में एक बोगदा याने टनल आती है जिस में से एक तरफा ट्राफिक चलता है उसके ऊपर तो झरने बहुत ही मेहरबान दिखाई दिए.
ऐसा लगता था मानो झरनों ने अपनी चादर पहाड़ से नीचे गिरा रखी है जो हवा के जोर से हिलती थी ,फड़फड़ाती थी और गाती थी...
हम प्रकृति इस छटा पर मुग्ध आगे चले जा रहे थे की आवाज आयी..."आजा आजा मैं हूँ प्यार तेरा...अल्लाह अल्लाह इनकार तेरा हो...ओ आजा आजा आजा आ आजा आ आ आ... उतर कर देखा तो एक झरने महाशय दूर पहाड़ की चोटी से ये गीत गा रहे हैं...मैंने उन्हें कहा की आप बुला रहे हैं ठीक है लेकिन एक तो आप दूर बहुत हैं फिसलन भी है और सच ये भी है अब उम्र आप का गीत सुनके झूमने लायक तो है लेकिन वहां आ कर गले मिलने लायक नहीं है इसलिए क्षमा करें.
उस झरने ने क्षमा किया या नहीं ये तो कह नहीं सकते लेकिन आगे जब "नैना बरसे रिमझिम रिमझिम......" गाती एक झरनी( झरने का स्त्री लिंग) जंगल में दिखाई दी तो हम भी आहें भर के रह गए.
मेरा ड्राईवर अब मेरी इस यात्रा से ऊब चुका था बोला सर भूख लगी है वापस चलें...मैं जैसे नींद से जगा...ये कमबख्त भूख भी क्या शै है इंसान को,जो वो करना चाहता है कभी करने ही नहीं देती...इश्वर अगर इंसान को भूख नहीं देता तो ना जाने कितनी समस्याएँ जन्म ही ना लेतीं...अस्तु ये समय दार्शनिक होने का नहीं था, अपने ड्राईवर की बात मानने का था. लौटते हुए देखा खोपोली पर झरनों की बरसात हो रही है, ये दृश्य गगन गिरी महाराज के आश्रम के पीछे का है( गगन गिरी महाराज के बारे में जानकारी मेरी "चलो खोपोली-परलोक सवारें " पोस्ट में है)
आख़िर में एक झरने ने उछालते हुए मचलते हुए हमसे कहा " ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना..."मैंने मन में सोचा की मैं तो लौट के आ जाऊंगा लेकिन उनका क्या होगा जो मेरे लाख बुलाने पर भी नहीं आए और इन सब दृश्यों से महरूम रहे.
सब पूर्व जन्म के कर्मों का फल है. क्या किया जा सकता है. मैंने तो भरसक प्रयास किया था की आप लोग भी इन खूबसूरत वादियों में गिरते झरनों की जलतरंग सुने, देखें लेकिन हे
पाषाण हृदय ब्लोगरो आप लोगों ने मेरी एक ना सुनी. अब इन तस्वीरों को देख कर मन मसोसने से अच्छा है की आगे से मेरी बात को जरा ध्यान से सुना करें, कभी कभी हम जैसे भी बहुत काम की बात कर जाते हैं.