मिलेंगी तब हमें सच्ची दुआयें
किसी के साथ जब आंसू बहायें
बहुत बातें छुपी हैं दिल में अपने
कभी तुम पास बैठो तो सुनायें
फकीरों का नहीं घर बार होता
कहाँ इक गाँव ठहरी हैं हवायें
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें
बिछुड़ कर घर से हम भटके हैं जैसे
गिरे पत्ते शजर से धूल खायें
लगा गलने ये चमड़े का लबादा
चलो बदलें रफू कब तक करायें
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
( प्राण साहेब से आशीर्वाद लिए बिना ये ग़ज़ल मुकम्मल नहीं हो सकती थी )
27 comments:
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
" yes rightly said, these lines are essence of the poem, wonderful"
Regards
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
क्या बात है भाई. ये हुआ न रिश्ता. बहुत बढ़िया
बहुत सुंदर गजल. एक-एक शेर मन को छूने वाला.
वाह!
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
नीरज जी,
हमारा आपसे ऐसा ही रिश्ता है.
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और यह भी कि -
बजाई बांसुरी अब हँसी दे दी
हम ये फ़ितरत बताओ कैसे पाएँ.
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शुक्रिया...प्राण साहब का भी...
आपका
चन्द्रकुमार
फकीरों का नहीं घर बार होता
कहाँ एक ठौर ठहरी हैं हवायें
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें
पूरी गजल बहुत अच्छी है .पर यह विशेष रूप से पसंद आए
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें"
सुंदर!
अति सुंदर!
उम्दा... बेहतरीन
उत्कृष्ट रचना.
बहुत खूब.
जवाब नहीं आपका.
भाई नीरज जी,
बकौल आप के ही
"एक बात मैंने अनुभव की, जो बहुत बढ़िया लगी.....दुनिया के सारे इंसान एक जैसे हैं.....मैं जहाँ कहीं गया...लोग मुझको देख कर हँसे."
कहीं यही बात तो आपके इस शेर में तो नही ............
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
ग़ज़ल के सारे शेर एक से बढ़ कर एक है . बधाई स्वीकार करें
चन्द्र मोहन गुप्त
लगा गलने ये चमड़े का लबादा
उसे बदलें रफू कब तक करायें
bahut khoob....neeraj ji man moh liya is sher ne ...
आपकी पोस्ट की बदौलत मैने उर्दू का एक शब्द सीखा - शजर। इण्टरनेट पर डिक्शनरी से पता चला "पेड़"।
यह अच्छा है - एक आध शब्द न समझ आये तो आदमी सीखता है। सिखाने के लिये धन्यवाद।
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ज्यादातर अपने को शजर के टूटे पत्ते की मानिन्द पाते हैं। कोई इलाज है यह सोच मिटाने का?!
hamesha ki tarah is baar bhi aapka lekhan man moh gaya ,abhi bahut kuch sekhna hai aapse
बहुत सुन्दर रचना है।बहुत बढिया रचना है।
बिछुड़ कर घर से हम भटके हैं जैसे
शजर से टूट पत्ते धूल खायें
लगा गलने ये चमड़े का लबादा
उसे बदलें रफू कब तक करायें
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
बहुत गहरी बाते कहते हे आप अपने शेरॊ मे,अब किस किस शेर की चरचा करे, सभी एक से बड कर एक...
लगा गलने ये चमड़े का लबादा
उसे बदलें रफू कब तक करायें
बहुत ध्न्यवाद
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें
लगा गलने ये चमड़े का लबादा
उसे बदलें रफू कब तक करायें
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
अति सुन्दर। बहुत खूब।
हर शेर अपने आप में गौहर समान है!!
मिलेंगी तब हमें सच्ची दुआयें
किसी के साथ जब आंसू बहायें
वाह हुज़ूर!! क्या सच्ची बात कही!! जब आगाज़ यूं हो तो आगे क्या कहें...
फकीरों का नहीं घर बार होता
कहाँ एक ठौर ठहरी हैं हवायें
क्या बात है!! बहुत खूब!!!
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें
आफ़रीन!! बेहद खूबसूरत शेर!!
बिछुड़ कर घर से हम भटके हैं जैसे
शजर से टूट पत्ते धूल खायें
दिल छू लिया साहेब!!
लगा गलने ये चमड़े का लबादा
उसे बदलें रफू कब तक करायें
बहुत सारी परतें लिये है ये शेर! हर बार और ज़्यादा कह जाता है!!
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
और ये तो कत्ल है!! हासिल-ए-गज़ल है ये मक्ता!!
बस आपके शेरों पर यही कहूंगा कि
इसे कहते हैं खूबी सादगी की,
हंसी आए पर आंखें भीग जाएं
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
-इसे तो यूं मानें कि हमने आपके लिये यह सत्य वचन कहे हैं. :) बहुत उम्दा. बधाई.
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें---वाह!! बहुत खूब!!
इस पर एक पंक्ति याद आ रही है किसी गज़ल की-
"परखना मत परखने से कोई अपना नही रहता "।
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें
लगा गलने ये चमड़े का लबादा
उसे बदलें रफू कब तक करायें
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
वाह!!! नीरज जी, हर शेर गहरा है। हर शेर में सागर है..
***राजीव रंजन प्रसाद
बहुत अच्छी है आपकी यह ग़ज़ल, जैसे दिल में लहू बहे!
बहुत गजब की गहरी व सुन्दर रचना रची है आपने। कहने को शब्द नहीं हैं।
घुघूती बासूती
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें
बिछुड़ कर घर से हम भटके हैं जैसे
शजर से टूट पत्ते धूल खायें
वाह बंधुवर आनंद आ गया
सधी हुई रचना
प्राण साहब को प्रणाम
आपको साधुवाद
बहुत सुंदर!
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
हर पंक्ति सुंदर है मगर इन लाइनों में उस मुस्कान का ज़िक्र है जो आपकी कविता (और टिप्पणी भी) हमारे चेहरे पर लाती है. सचमुच अच्छे लोगों की अच्छाई को मीलों दूर से बिना मिले भी महसूस किया जा सकता है.
निम्न पंक्तियों में बहुत सच्चाई है:
लगा गलने ये चमड़े का लबादा
उसे बदलें रफू कब तक करायें
Excellent, Keep it up!
Neerajbhai
Bahut khub.
I got the meaning of Shajar from the comments.
Now what is Chamdeka Labada?
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
मिलेंगी तब हमें सच्ची दुआयें
किसी के साथ जब आंसू बहायें
बहुत बातें छुपी हैं दिल में अपने
कभी तुम पास बैठो तो सुनायें
फकीरों का नहीं घर बार होता
कहाँ एक ठौर ठहरी हैं हवायें
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें
बिछुड़ कर घर से हम भटके हैं जैसे
शजर से टूट पत्ते धूल खायें
लगा गलने ये चमड़े का लबादा
उसे बदलें रफू कब तक करायें
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
bahut achchi ........
mazedaar rachna.....
अजब रिश्ता है अपना तुमसे "नीरज"
करें जब याद तुमको मुस्कुरायें
वाह वाह किया कहने हैं नीरज साहिब
अर्ज़ किया है
मैं ख़यालों में उसके रहता हूँ
वो मेरे दिल में मुस्कुराती है
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें
अर्ज़ किया है
दोस्त होते हैं चाँद शीशे से
दोस्तों को न आज़माया कर
नीरज भाई आया तो था आपकी खुबसूरत ग़ज़ल पर कुछ कहने
लेकिन अपने २ अशआर भी ठोक दिए
बड़ा मलाल सा हो रहा है
अपने किये पे क्यों अब पछता रहा हूँ मैं
चाँद शुक्ला डेनमार्क
फकीरों का नहीं घर बार होता
कहाँ एक ठौर ठहरी हैं हवायें
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें
क्या बात है, क्या कहूँ,पूरी ग़ज़ल दिल में उतर गई,बहुत खूब नीरज जी,
बहुत बातें छुपी हैं दिल में अपने
कभी तुम पास बैठो तो सुनायें
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें
लगा गलने ये चमड़े का लबादा
उसे बदलें रफू कब तक करायें
दिल को छू लेने वाले शेर कहे हैं आपने। बधाई स्वीकारें।
बनालें दोस्त चाहे आप जितने
मगर हरगिज़ ना उनको आजमायें --
बहुत पते की बात कही..
बिछुड़ कर घर से हम भटके हैं जैसे
गिरे पत्ते शजर से धूल खायें --
हम भी सालो से भटक रहे है अपने देश से दूर.
वैसे पूरी गज़ल लाजवाब है.
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