(दोस्तों ये सच्ची घटना तब की है जब खुद के ब्लॉग का होना किसी के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रतीक था. समाज की नज़रों में हर इंसान का रुतबा, ब्लॉग होने से ऊंचा उठ जाता था. बड़े अच्छे दिन थे वो. जिसका ब्लॉग होता था उसके पाँव जमीन पर नहीं होते थे और जिनका नहीं होता वो शर्म से जमीन में गड़ जाया करता था. आज ब्लॉग, मोबाईल की तरह हर एक की जरुरत हो गया है...किसी किसी के पास तो एक से ज्यादा भी)
{ संवैधानिक सूचना: इस पोस्ट को पढ़ते समय बुद्धि का प्रयोग वर्जित है ,ऐसा ना करने पर आप को हुई हानि के लिए आप स्वयं ही जिम्मेवार होंगे , लेखक नहीं }
नींद अभी पूरी तरह से खुली भी नहीं थी कि मोबाइल की घंटी बजी. यूं कह सकते हैं कि मोबाईल की घंटी की वजह से ही नींद खुल गई.
"हेलो" मैंने अलसाई आवाज़ मैं कहा.
"क्या बावा, सुबेरे-सुबेरे नींद का आनंद ले रयेला है? एक बात बता, ये तुम लोग सुबेरे सोता कैसे है? "
सवाल और भाषा से नींद जाती रही. आवाज़ के कड़क पन ने आलस्य को भी डपट दिया.
मैंने हड़बड़ा कर कहा; "जी मैं नीरज और आप?"
"अपुन डॉन... क्या?"
"डॉन..??? कौन शाहरुख़? "
"क्या रे. ये शाहरुख कभी से डान बना, बे ढक्कन "
"ओह तो क्या अमिताभ जी?" मैं चहका.
"क्यों बे, रात को लगा ली थी क्या? या सुबह-सुबह दिमाग मोर्निंग वाक को गए ला तेरा ? खवाब देख रए ला है क्या बे?" उधर से आवाज आई.
अब मैं उठ के बैठ गया दिमाग मैं घंटी बजी की मामला कुछ गड़बड़ है. गले से गों गों की आवाज निकलने लगी .
"अपुन असली डॉन ,बोले तो बड़ा सरोता, समझा क्या? तू अपुन का नाम तो सुना ही होगा."
"बड़ा सरोता?" मैं हकलाया. "वो ही जो किसी की भी सुपारी ले कर उसे कुतर डालता है?"
"वोहीच रे. आदमी पढ़ा लिखा है तू, क्या?" वो खुश हो के बोला.
"थैंक्यू थैंक्यू सर" मैंने थूक निगलते हुए कहा. "आप ने मुझे कैसे फ़ोन किया सर?" डर अच्छे अच्छे को तेहजीब से बोलना सिखा देता है. डॉन के लिए "सर" का संबोधन अपने आप मेरे मुह से झरने लगा. अब मैं बिस्तर छोड़ खड़ा हो गया था.
"मुझे हुक्म कीजिये सर मैं आप के क्या काम आ सकता हूँ?" मैंने ज़बान मैं जितनी मिठास लायी जा सकती थी ला कर कहा.
"ऐ स्याणे जास्ती मस्का मारने का नहीं, समझा क्या? बोले तो तू अपुन के क्या काम आएगा? अपुन अपने काम ख़ुद इच आता है " बड़ा सरोता बोला.
"येस सर येस सर" मैं फिर से हकलाया.
"देख बावा डरने का नहीं. पन अपुन सुना है, तूने कोई ब्लॉग खोले ला है."डॉन के मुहं से ब्लॉग की बात सुन के मैं चकराया. सोचने लग गया कि इसे कैसे पता चला.
मैंने कहा; " सर ब्लॉग भी कोई खोलने की चीज है. ब्लॉग तो लिखने के लिए होता है."
उसने कहा; "क्या बे, अपुन को एडा समझा है क्या तू?"
मैंने कहा; "क्या बात कर रहे हैं सर, मैं और आप को ऐसा समझूं!"
"अभी जास्ती पकाने का नहीं. एक ईच बात बताने का. तेरा ब्लॉग है या नहीं?" सरोता ने पूछा.
मैंने कहा; " है सर, है. पर इसमें मेरी कोई गलती नहीं है. वो तो शिव और ज्ञान जी ने मुझे ब्लॉग लिखने के लिए कहा. आप मेरी बात का यकीन कीजिये, मुझे मालूम होता कि आप नाराज होंगे तो मैं उन्हें ब्लॉग बनाने ही नहीं देता."
सरोता जी बोले; "क्या रे, ये तुम पढ़ा-लिखा लोग इतना सोचता काई को है? अभी तू बोल, मैं नाराज है, ऐसा बोला क्या मैं?"
"नहीं. लेकिन मुझे लगा कि आप मेरे ब्लॉग को देखकर नाराज गए हैं", मैंने उनसे कहा.
"देख, जास्ती सोचने का नहीं. अभी इतना सोचेगा, तो दिमाग का दही बन जायेगा. अपुन को देख, अपुन गोली चलाने से पहले सोचता है क्या? नई न. फिर? बोले तो, सोचने का नई. नौकरी करने का और ब्लॉग लिखने का." डान बोला.
मुझे थोड़ी राहत मिली. मैंने कहा; " ये तो अच्छी बात है न सर, कि आप नाराज नहीं हैं. अच्छा बताईये, मुझसे क्या काम है."
सरोता बोला, "देख, तू मेरा काम करीच नई सकता. मैं बोल रहा था, तू तो बस अपना काम कर. क्या, ग़लत बोला क्या मैं? नई न? मेरे को बस इतना ईच काम है तेरे से कि मेरा एक ब्लॉग बना दे"
"क्या बात कर रहे हैं, सर. आपका ब्लॉग???" मैं आसमान से गिरा और खजूर पर भी नहीं अटका.
"क्यों बे, तेरे को कोई प्रॉब्लम है क्या? नई न? नहीं बोल, प्राब्लम होने से बता, मैं तेरा भी गेम बजा दूँ अभिच . अपुन कभी-कभी शौकिया भी एक दो को टपका डालता है " डान दहाड़ा.
"नहीं सर, मुझे कोई प्राब्लम नहीं है, लेकिन आप ठहरे भाई. आपका ब्लॉग हो, इसकी क्या जरूरत है?" मैंने डरते-डरते कहा.
"काई को? अभी अमिताभ का आमिर का अल्लू बल्लू कल्लू का ब्लॉग हो सकता है तो अपुन का भी हो सकता है." डान बोला.
"सर अमिताभ ,आमिर तो मैं जान गया सर लेकिन ये अल्लू बल्लू कल्लू कौन हैं सर?" मैंने डरते डरते पूछा.
"अबे अल्लू बल्लू कल्लू माने तेरे माफिक फालतू का लोग ,समझा क्या?"
मेरी चुप रहने में ही भलाई थी सो चुप ही रहा.
"अपुन को भी फेमस होने का...इंटर नेशनल होने का...क्या ?" डॉन ने आगे कहा." अभी देख तेरे को कौन जानता था रे...तूने ब्लॉग बनाया तो कित्ता लोग तुझको जानता है,...नहीं क्या? ऐसे अपुन को भी फेमस होने का...बस." अभी बोल अपुन का ब्लॉग होना की नहीं होना चाहिए...बोल बे...मुंह सियेला है क्या?"
"नहीं नहीं सर, आपका ब्लॉग तो होना ही चाहिए, आप का नहीं तो किसी का भी नहीं होना चाहिए सर" मैं रिरियाया. मन ही मन मैंने सोचा की क्या दिन आ गए हैं एक डॉन को भी अब ब्लॉग की चाह होने लगी है .
"वो ईच तो, वो ईच तो बोल रए ला हूँ मैं इतनी देर से. तेरे भेजे में अपुन की बात उतरती ही नहीं. क्या बे, भेजा है कि नई, या दुनिया को खाली-पीली हूल देता फिरता है?"
"जी जी सर, है. भेजा है " मैंने घिघियाते हुए बताया.
"है न. तो फिर मेरे वास्ते एक ताजा ब्लॉग बना. और सुन ब्लॉग में तेरे को ईच लिखना है. समझा क्या?" डान ने मुझे धमकाते हुए बताया.
"याने मैं लिखूं आपका ब्लॉग सर ?" मैंने उससे पूछा.
"अबे एक बात बता. अभी तू बोला कि तेरे पास भेजा है. मेरे को एक ईच बात बोल, ये कैसा भेजा है बे, जो मक्खन का माफिक प्लेन बात भी नई समझता?" आगे बोला; "अभी तू सोच, अपुन ब्लॉग लिखेगा, तो अपुन का गेम बजाने का काम क्या तू करेगा? अपुन के पास एक ही ईच चीज नई है...पूछ क्या?
"क्या सर" मैंने पूछा
"वो है टाइम. समझा क्या? अपुन के पास बंदूक है. दुनिया का नियम है बे, जिसके पास टाइम नहीं उसके पास बन्दूक है और जिसके पास टाइम है उसके पास बंदूक नही होती." डान ने समझाते हुए कहा.
इतने ज्ञान की बात सुन के मेरी इच्छा हुई की मैं डॉन भाई के पांव छू लूँ."अभी तेरे पास बन्दूक नहीं सिर्फ टाइम है इसलिए तू अपुन का ब्लॉग लिख...समझा क्या?"
"मैं तो सिर्फ शायरी करता हूँ सर लेकिन मेरे भाई लोग अपने ब्लॉग में ऐसी ऐसी बातें लिखते हैं सर की दिमाग भन्ना जाता है सर...मुझसे बहुत ज्यादा विद्वान लोग हैं सर आप कहें तो उनसे बात करूँ सर..."मैंने लगभग रोती आवाज़ में अपनी जान बचने को कहा"
"अपुन का भेजा खाने का नहीं समझा क्या अपुन का ब्लॉग होने का मतलब की होने का बस . अब तू चाहे ख़ुद लिख या लिखवा ये अपुन का टेंशन नहीं समझा क्या? बस और अपुन कुछ नहीं बोलेगा. बात खल्लास." डान ने धमकाते हुए कहा.
मैं चुप रहा ,बोलने के लिए था ही क्या?
"और सुन ब्लॉग का नाम होना "मैं हूँ डॉन --ठाँय "
"ठाँय??? ठाँय क्या सर?" मैंने मूर्खता पूर्ण प्रश्न किया...
उधर से गोली चलने की आवाज़ आयी...थोडी देर की खामोशी के बाद डॉन बोला..."समझा क्या ठाँय?? "
"समझ गया समझ गया सर...बिना ठाँय के क्या डॉन सर...वाह सर आप ग्रेट हो सर...क्या नाम दिया है ब्लॉग का सर... लेकिन ब्लॉग में लिखना क्या होगा सर?"
"अबे ब्लॉग में भी सोचके लिखने का होता है क्या? अपुन की तारीफ लिखने का, पुलिस की बुराई लिखने का, चाक़ू, छुरी, कटार, तमंचा ,बन्दूक, बोम्ब का ताजा जानकारी लिखने का और क्या लिखने का रे? हाँ और लिखने का की डॉन से डरने का नहीं, डॉन को भाई मानने का, बस डॉन से पंगा लेने का नहीं सिर्फ़ उसकी बात पे मुण्डी हिलाने का"
"जी जी समझ गया सर"
"ब्लॉग जल्दी लिखने का समझा क्या? अपुन को इंटरनेशनल फ़टाफ़ट बनने का रे और सुन अगली बार अपुन का फ़ोन नहीं आएगा,या तो भेजे में गोली आएगा या डॉलर का बंडल आयेगा, अपुन उधार का धंदा नहीं करता समझा क्या?
फ़ोन कट गया. तब से परेशान हूँ की क्या लिखूं ? कोई है जो मेरी मदद करे? डॉलर के बंडल से आधा उसका जो मेरी मदद करेगा . चलो आधा नहीं पूरा का पूरा बंडल उसका, अपनी तो जान बच जाए ये ही बहुत है रे.
यहाँ अपने ब्लॉग पे लिखने के लिए कुछ नहीं मिल रहा ऊपर से डॉन के ब्लॉग के लिए टेंशन.... एक बात और आज तो डॉन का फ़ोन हमारे पास आया है हो सकता कल को किसी और डॉन की घंटी किसी ब्लोगर के पास बज जाये...एक डॉन का ब्लॉग खुला नहीं की दूसरी गेंग वाला डॉन भी अपना ब्लॉग खोलने के लिए मेरे जैसे किसी और निरीह ब्लोगर को ढूंढ़ना शुरू कर देगा...आप सब सावधान रहिएगा फ़िर न कहियेगा की मैंने बताया नहीं.और हाँ एक और बात डॉन भाई ने बोली है वो ये की जिस किसी ने उनका ब्लॉग नहीं खोला और टिपण्णी नहीं दी...तो "ठाँय"