Monday, January 4, 2010

किताबों की दुनिया - 21

नये साल में सोचा किसी ऐसी किताब की चर्चा की जाये जिस की ग़ज़लें किताब के पन्नो से निकल कर लोगों के दिलों में बस गयीं हैं. बहुत कम शायर हुए हैं जिनकी ग़ज़लों को किसी ने गाया है. ग़ालिब, साहिर. मजरूह, जावेद अख्तर और गुलज़ार जैसे शायर बहुत कम हुए हैं...इनके कलाम लोगों के दिलों में घर किये हुए हैं. वजह सिर्फ ये नहीं है की ये बेहतरीन शायर थे वजह ये भी है की इन्हें जन मानस तक पहुँचाने का काम बहुत से ग़ज़ल गायकों ने किया है. लोग पढ़ें भले ही न लेकिन ग़ज़लों को सुनते जरूर हैं. आज जिस शायर का जिक्र कर रहा हूँ उसकी ग़ज़लें इंसानी सरहदों को अंगूठा दिखाती हुई हर ग़ज़ल प्रेमी की अज़ीज़ बन गयीं. पाकिस्तान में जन्में और ग़ुलाम अली साहब की आवाज़ से दिलों पर राज करने वाले उस अजीम शायर का नाम है " नासिर काज़मी ".पहचाना ? जी हाँ वो ही "नासिर काज़मी" जिनकी बेहद खूबसूरत ग़ज़लों से हम सब वाकिफ हैं. शायद ही कोई ऐसा ग़ज़ल प्रेमी होगा जिसने उनकी लिखी ये ग़ज़लें ना सुनी हों:-

अपनी धुन में रहता हूँ
मैं भी तेरे जैसा हूँ

औ पिछली रुत के साथी
अब के बरस मैं तनहा हूँ

तेरी गली में सारा दिन
दुःख के कंकर चुनता हूँ

तू जीवन की भरी गली
मैं जंगल का रास्ता हूँ

याद आया? सुनी है ना आपने ये ग़ज़ल, ऐसी एक नहीं अनेक ग़ज़लें हैं जिन्हें ग़ुलाम अली साहब ने अमर कर दिया है या यूँ कहूँ जिनको गा कर ग़ुलाम अली साहब अमर हो गये :-

दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी

भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी

वक्त अच्छा भी आएगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी

अफ़सोस अच्छे वक्त की इंतज़ार में 'नासिर' साहब सिर्फ सैंतालीसवें बरस में दुनिया से कूच कर गये. उनका दीवान उनकी मौत के कुछ महीनो बाद प्रकाशित हुआ और उसने उर्दू जगत में ऐसी धूम मचाई जिसकी मिसाल नहीं मिलती. उनके सिर्फ तीन ग़ज़ल संग्रह ही प्रकाशित हुए हैं और उन्हीं तीनो ग़ज़ल संग्रह की चुनिन्दा ग़ज़लों को 'सुरेश कुमार' जी ने संकलित किया है "मैं कहाँ चला गया" किताब में ,जिसका जिक्र आज हम करेंगे.


मैं कोशिश करूँगा की आपको इस किताब में से नासिर साहब के वो शेर नज़र करूँ जिन्हें गाया नहीं गया या कम सुना गया है. ग़ज़ल के घनघोर प्रेमी अलबत्ता इन अशआरों से पहले रूबरू हो चुके होंगे. 'नासिर' साहब की शायरी की सबसे बड़ी खूबी है उसका सादा पन. आम बोल चाल की भाषा में वो ऐसे शेर कह जाते हैं की मुंह हैरत से खुला का खुला रह जाता है:

आज देखा है तुझको देर के बाद
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं

न मिला कर उदास लोगों से
हुस्न तेरा बिखर न जाए कहीं

आरज़ू है कि तू यहाँ आये
और फिर उम्र भर न जाए कहीं

अब उनका कमाल देखिये छोटी बहर की इस ग़ज़ल में और तालियाँ बजाइए उनकी याद में

कड़वे ख़्वाब ग़रीबों के
मीठी नींद अमीरों की

रात गये तेरी यादें
जैसे बारिश तीरों की

मुझसे बातें करती है
ख़ामोशी तस्वीरों की

जो लोग उर्दू हिंदी को लेकर बवाल मचाये रहते हैं उनकी शान में पेश कर रहा हूँ 'नासिर' साहब के ये अशआर ताकि वो समझें की ग़ज़ल में ज़बान ही सब कुछ नहीं बात कहने का सलीका सबसे अहम् है. इन अशआरों को पढ़कर शायद ही कोई अंदाज़ा लगा सके की ये एक उर्दू ग़ज़ल के बादशाह ने लिखे है या हिंदी ग़ज़ल सम्राट ने :

फिर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आये
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी, तुम याद आये

फिर कूँजें बोलीं घास के हरे समंदर में
रुत आई पीले फूलों की, तुम याद आये

फिर कागा बोला घर के सूने आँगन में
फिर अमृत रस की बूँद पड़ी, तुम याद आये

दिन भर तो मैं दुनिया के धंधों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली, तुम याद आये

भला हो डायमंड पाकेट बुक्स का , जिनका फोन न. 011-51611861 है और ई-मेल एड्रेस sales@diamondpublication.com .इन्होने इस अनमोल खजाने को हम तक पहुँचाने के लिए हमसे मात्र 75 रु. की ही दरख्वास्त की है. ये मुफ्त में हीरे मिलने जैसी बात हो गयी. इस संग्रह में 'नासिर' साहब की लगभग वो सभी ग़ज़लें हैं जिन्होंने ग़ुलाम अली साहब का सितारा बुलंदियों पर पहुंचा दिया, उनमें प्रमुख हैं :"दिल धड़कने का सबब याद आया, वो तेरी याद थी अब याद आया","किसे देखें कहाँ देखा न जाये, वो देखा है जहाँ देखा न जाये", "दिल में और तो क्या रख्खा है, तेरा दर्द छुपा रख्खा है", "ग़म है या ख़ुशी है तू, मेरी ज़िन्दगी है तू", " दुःख की लहर ने छेड़ा होगा, याद ने कंकर फैंका होगा", "गये दिनों का सुराग लेकर, किधर से आया किधर गया वो", आदि आदि और हाँ एक ग़ज़ल जो मेरी बहुत पसंदीदा है और जिसे आबिदा परवीन साहिबा ने कुछ इस अंदाज़ से गाया है की उफ्फ्फ्फ़ क्या कहूँ, अगर आपने नहीं सुनी तो कहीं से भी जुगाड़ कर इसे जरूर सुनें...वर्ना मुझे ही कुछ करना पड़ेगा आपके लिए...वो ग़ज़ल है" शहर सुनसान है किधर जाएँ, ख़ाक हो कर कहीं बिखर जाएँ".

हमेशा की तरह मैं फिर परेशान हूँ...समझ में नहीं आता कौनसा शेर आपके लिए चुनुं और कौनसा छोड़ दूं...लेकिन मजबूरी है सारी की सारी किताब तो यहाँ नहीं छापी जा सकती क्यूँ की प्यास जगाना मेरा काम है बुझाना नहीं, इसे बुझाने के लिए जतन आपको ही करने होंगे. आखरी में चलते चलते मैं आपको 'नासिर' साहब की चंद मुक्तलिफ़ ग़ज़लों के एक आध शेर पढवाता चलता हूँ...

तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमइन न था
गुजरी है मुझ पे ये भी क़यामत कभी-कभी
***
जब तक हम मसरूफ़ रहे, ये दुनिया थी सुनसान
दिन ढलते ही ध्यान में आये कैसे कैसे लोग
***
बहुत ही सादा है तू और ज़माना अय्यार
खुदा करे कि तुझे शहर की हवा न लगे
***
मुझे ये डर है तेरी आरज़ू न मिट जाए
बहुत दिनों से तबियत मेरी उदास नहीं

अभी बस इतना ही. दुआ करें की "किताबों की दुनिया" का ये सफ़र आप सब की मोहब्बत से यूँ ही मुसलसल चलता रहे और मुझे आपके लिए अच्छी अच्छी किताबें खरीदने को उकसाता रहे. आमीन.

47 comments:

सदा said...

कड़वे ख़्वाब ग़रीबों के
मीठी नींद अमीरों की

रात गये तेरी यादें
जैसे बारिश तीरों की

मुझसे बातें करती है
ख़ामोशी तस्वीरों की

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति, आभार ।

Kusum Thakur said...

वाह नीरज जी !
मज़ा आ गया , आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
इतने अच्छे अच्छे नासिर साहब के शेर हम तक ब्लॉग के माध्यम से पहुँचाने के लिए .
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना !

निर्झर'नीर said...

सुन्‍दर प्रस्‍तुति

सतपाल ख़याल said...

जो लोग उर्दू हिंदी को लेकर बवाल मचाये रहते हैं उनकी शान में पेश कर रहा हूँ 'नासिर' साहब के ये अशआर ताकि वो समझें की ग़ज़ल में ज़बान ही सब कुछ नहीं बात कहने का सलीका सबसे अहम् <<

bahut sahi farmaya aapne auris baat par waseem saab ka yih she'r nazr hai-

पूछना है तो ग़ज़ल वालों से पूछो जाकर
कैसे हर बात सलीक़े से कही जाती है

naye saal ki shubhkamnayeN.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर जानकारी मिली, बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

रंजू भाटिया said...

यह किताब बहुत पहले पढ़ी थी आज यहाँ इसका जिक्र आपके द्वारा देख कर अच्छा लगा ..शुक्रिया

Pawan Kumar said...

नीरज जी......
नासिर जी के विषय में अब तक का सबसे बेहतरीन आलेख आपने लिखा......क्या कहूं....नासिर साहब के कलाम में जादू है जो हमें बाँध लेता है...
कड़वे ख़्वाब ग़रीबों के
मीठी नींद अमीरों की

...... नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनायें.....!
ईश्वर से कामना है कि यह वर्ष आपके सुख और समृद्धि को और ऊँचाई प्रदान करे.

सतपाल ख़याल said...

Neeraj ji,
Nassir kazmii ki ek ghazal share karna chahta hooN-
nae kapRe pahan kar jaa'uuN kahaaN awr baal banaa'uuN kis ke liye
vuh shaKHs to shahr hii chhoR gayaa maiN baahar jaa'uuN kis ke liye


jis dhuup kii dil meN ThaNDak thii vuh dhuup usii ke saath ga'ii
in jaltii-baltii galiyoN meN ab KHaak uRaa'uuN kis ke liye*


vuh shahr meN thaa to us ke liye auroN se bhii milnaa paRtaa thaa
ab aise vaise logoN ke maiN naaz uThaa'uuN kis ke liye


ab shahr meN us kaa badal hii nahiiN ko'ii vaisaa jaan-i-Ghazal hii
nahiiN
aivaan-i-Ghazal meN lafzoN ke gul-daan sajaauuN kis ke liye


muddat se ko'ii aayaa nah gayaa sunsaan paRii hai ghar kii fazaa
in KHaalii kamroN meN Naasir ab sham' jalaa'uuN kis ke liye

तिलक राज कपूर said...

जब हम किसी ग़ज़ल गायक को सुनते हैं तो अक्‍सर शायर का नाम जानने की इच्‍छा होती है। ग़ुलाम अली साहब की कद्दावर ग़ज़ल गायकी के पीछे छुपे कद्दावर शायर को सामने लाने का नेक काम आपने किया है। शुक्रिया।
तिलक राज कपूर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"मैं कहाँ चला गया" किताब की आपने बहुत बढ़िया समीक्षा की है!

डॉ .अनुराग said...

क्या कहूं आज आपने मेरे फेवरेट शख्स का जिक्र किया है ......बस शुक्रिया !!!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

नासिर काज़मी साहब से परिचय कराने का शुक्रिया, कुछ शेर सुना तो था ही
ग़ज़ल संग्रह तो कमाल ही होगी...

Udan Tashtari said...

नासिर काज़मी साहब की गज़लों में दीवाना बना लेने की खासियत है...आनन्द आ गया इस समीक्षा को पढ़कर. आपका कितना आभार कहा जाय.


’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

नायाब हीरे चुन कर लाते है आप .

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत बढ़िया ,जल्द ही पुस्तक देखता हूँ . धन्यवाद.

निर्मला कपिला said...

नये साल मे लाजवाब तोहफा वाह् हम आपको नहीं उकसा रहे किताबें खरीदने के लोये बल्कि आप हमे उक्सा रहे हैं आप्की तारीफ सुन कर भला कौन ऐसी पुस्तकें महीं पढना चाहेगा?
बहुत बहुत धन्यवाद और नये साल की शुभकामनायें

pallavi trivedi said...

सारी उन ग़ज़लों का ज़िक्र कर दिया जिन्हें एक ज़माने में सुने बिना दिन नहीं कटता था!
शोर बरपा है खाना ए दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी

पुरानी यादें ताज़ा हो उठीं....

डॉ टी एस दराल said...

दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी

मेरी पसंदीदा ग़ज़ल।
आभार नासिर साहब से मिलवाने के लिए।

संजय भास्‍कर said...

यह किताब बहुत पहले पढ़ी थी आज यहाँ इसका जिक्र आपके द्वारा देख कर अच्छा लगा ..शुक्रिया

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगी किताब की चर्चा, गज्ले भी बहुत अच्छी लगी

वन्दना अवस्थी दुबे said...

कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज़ हैं हम भी,
और ये चोट भी नई है अभी.

जितना बेहतरीन लिखा है नासिर साहब ने उतनी ही खूबसूरती से गुलाम अली साहब ने उसे आवाज़ का अन्दाज़ दिया है. सुन्दर और सुरीली चर्चा.
नये साल की मुबारकबाद भी ले लें.

अर्कजेश said...

अपनी धुन में रहता हूँ
मैं भी तेरे जैसा हूँ

नासिर काजमी की लिखी और गुलाम अली की गायी सारी गजलें बेहद पसंद हैं । यह बिल्‍कुल सोने पे सुहागे जैसा है ।

बहुत शुक्रिया किताब की जानकारी देने के लिए ।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

दिन भर तो मैं दुनिया के धंधों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली, तुम याद आये
--हमेशा की तरह एक नायाब तोहफा दिया है आपने
" नासिर काज़मी " जी के ऊपर के शेर की तरह जब अपने शरीर से धूप का असर कम होता है
थकान दूर होती है तो आपके ब्लाग पर आ जाता हूँ।
--अच्छी खोज के लिए बधाई स्वीकार करें।

vandana gupta said...

neeraj ji

hamesha ki tarah ek baar phir ek bahut hi umda shakhsiyat se milwa diya..........aur shero ki tarif ke liye to shabd bhi kam pad rahe hain...........bahut bahut shukriya.

नीरज गोस्वामी said...

E-mail received from Om Prakash Sapra Ji:-

shri neeraj ji
thanks for presenting dam good gazals from nasir kazmi's treasurer of urdu gazals.

this time you have increased my knowledge also, that some of gazals sung by shri gulam ali belong to nasir kazmi ji.

with good wishes for your unending journey and travelogue for urdu poetry.
regards,
-om sapra,

Shiv said...

मुझे ये डर है तेरी आरज़ू न मिट जाए
बहुत दिनों से तबियत मेरी उदास नहीं

कमाल कर देते हैं नासिर साहेब. इस पुस्तक के बारे में बताने का शुक्रिया. खोपोली आ रहा हूँ तो वहीँ से ले लूंगा....:-)

गौतम राजऋषि said...

नासिर साब की दीवानगी तो एक छुटपन से रही है अपनी। एक और किताब जो आपकी और मेरी आलमारी साझा करती है।

श्रद्धा जैन said...

Aadarneey Neeraj ji
ye kitaab mere pass bhi hai aur waqayi Nasir ji ki gazalen nazmen sabhi bahut adbhut hai

Manish Kumar said...

नासिर की ग़ज़लों को पढ़ा कम सुना ज्यादा है। दिल धड़कने का सबब याद आया उनकी सर्वप्रिय ग़ज़ल रही है। इस संकलन को यहाँ प्रस्तुत करने के लिए आभार !

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

neeraj ji nav varsh ki shubhkamnayen.aapne jin gazalon ka zikra kiya hai wo sab meri pasandida gzlen hain aur gulam ali mere favrioute gazal singer.shayer se parichay karane ka shukriya,10 jan aur 17 jan ko mumbai kavi sammelan me rahungi.shayed aapse mulakat ho.apna gazal sangrah'tumhi kuch kaho na!'bhi aapki nazra karna hai.dhanywad.

"अर्श" said...

सोचा था जबतक हासिल ना करलूं कमेन्ट नहीं करूँगा मगर क्या कहूँ अभी तक नसीब नहीं हुई है नासिर साहिब की ये मोती ... ऊपर दिया नो. नहीं लग रहा ... क्या करी जाये ... मेल कर चुका हूँ... इंतज़ार है उनके रिप्लाई का ...
bagair hasil kiye dam nahi lunga,, :)

अर्श

Roshani said...

गुरु जी प्रणाम! क्या कलात्मकता है आपके प्रस्तुतीकरण में?....बहुत ही शानदार....मोतियाँ तो बिखरी हुई हैं पर उन्हें चुनकर मोती बनाने का कार्य बहुत कम ही लोग करते हैं......

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

नीरज जी, आदाब
नासिर साहब की यही खूबी रही,
कि उन्होंने गूढ़ शब्दों के बजाय
आम ज़बान को शायरी का ज़रिया बनाया
और बता दिया कि सादा अल्फ़ाज़ में भी
गहरी बातें कही जा सकती हैं..
आपकी प्रस्तुति हमेशा की तरह काबिले-दाद है...
नववर्ष की शुभकामनाएं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

अपूर्व said...

क्या समीक्षा कर डाली आपने नीरज साहब..पिछली सदी के शायरों मे से साहिर और नासिर मुझे सबसे अजीज रहे..एक अपने काव्य को जमीन और उसकी हकीकत से जो्ड़ कर अपनी शायरी से वक्त के दरवाजे पर दस्तक देने के लिये....तो दूसरा अपने काव्य मे मीर के जैसी एक दुर्लभ सहजता के साथ जज्बातों के समंदर को एक कतरे मे भींच देने के लिये..और भला को डायमंड प्रकाशन वालों का कि ’मैं कहाँ चला गया’ के सफ़्हे अनगिनत बार पलटे होंगे मैने..और वापस होश मे आ पाना हमेशा मुश्किल पाया है मैने..
अफ़सोस होता है कि तमाम अन्य बेहतरीन शायरों की तरह नासिर साहब की शायरी को वास्तविक शोहरत उनके गुजरने के बाद ही हासिल हुई..
...कलम का यह कैसा ’कर्स’ है जो कवि/लेखकों का कफ़न उनके कपड़ों से ज्यादा कीमती हो जाता है...खुदा जाने....

शुक्रिया

कुश said...

आपका ब्लॉग तो आने वाले टाईम में मास्टरपीस बन जाएगा..

सर्वत एम० said...

सबसे पहले नए साल की मुबारकबाद पेश करता हूँ ताकि आपका गुस्सा थोड़ा कम हो जाए. यह सच है कि लम्बे अरसे पर आप तक पहुंचा हूँ लेकिन यह भी सच है कि पिछले ३ दिनों कोशिश कर रहा था और कभी कमेन्ट बॉक्स नहीं खुलता, कभी पेज. इसी कैफियत और कशमकश में आपने ३५ कमेन्ट हासिल कर लिए और प्रार्थी कतार में पीछे खड़ा, अपनी बारी का इंतजार कर रहा है.
नासिर काजमी, गजलों का एक ऐसा उस्ताद जिसने आसान जबान और छोटी बहर में आम आदमी को दीवाना तो बनाया ही, सरहदें भी तोड़ कर दिखा दीं. नासिर काजमी, पहले ही मकबूल थे, गुलाम अली ने उनकी गजलों का ग्राफ देखकर ही उन्हें पेश किया.
लेकिन फिर एक बात कहने के लिए मजबूर हुआ मैं, भाषा और जबान में बदतमीजी शामिल करते हुए यह दरयाफ्त करता कि तुम किस मिट्टी के बने हो? आज हर शायर-नाशायर अपने अलावा किसी को तस्लीम करने को तैयार नहीं और तुम! दूसरों की तारीफों में मशगूल हो. खुद गजलें, अच्छी गजलें कहने वाला शख्स दूसरों के ब्लोग्स पर उन्हें तारीफें बाँट रहा है, कभी दूसरे शायरों की किताबों के बारे में अपना दिमाग खपा रहा है. किस मिटटी के बने हो भाई? मैं आपकी अजमत, आपके जज्बे, आपके अंदर छुपे उस अज़ीम इंसान को सलाम करता हूँ जो इस युग में भी पता नहीं किस युग की बातें करता है.

कडुवासच said...

नीरज जी का ब्लाग एक सुहाने व आकर्षक समुन्दर की तरह है जिसमें समय-समय पर कोई नई सुनहरी व मनभावन मछली दिखाई देती है जो सभी लोगों की आंखों मे बस जाती है ... इस बार भी नीरज जी ने जिस शायर से रूबरू कराया है उसकी प्रसंशा मे शब्द छोटे ही पढेंगें, कुछेक शेर तो अत्यंत ही प्रभावशाली हैं जो एक अमिट छाप छोड रहे हैं ये शेर तो ....
तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमइन न था
गुजरी है मुझ पे ये भी क़यामत कभी-कभी
...बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय प्रस्तुति, बधाई !!!!!

Creative Manch said...

बहुत सुन्दर समीक्षा
इस पुस्तक के बारे में बताने का शुक्रिया.
अच्छा लगा पढ़कर

शुभ कामनाएं


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श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
क्रियेटिव मंच

Satish Saxena said...

सर्वत जमाल से सहमत हूँ ! नीरज जी आपकी विनम्रता को एक बार फिर सलाम !

Urmi said...

आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!

vijay kumar sappatti said...

neeraj ji

namaskar

pahle to deri se aane ke liye maafi chahunga , abhi parso hi aapki khoob yaad ki thi kush ke saath baate karte hue .. aur surprisingly dono ne ek saath yahi kaha ki aap adbut insaan hai .. , sir aap to mere inspiration ho ji..

is kitaab ke baare me jaan kar bahut accha laga ji ..
saare blog jagat me sirf aap hi hai , jo dusre lekhko ki kitaabo ke baare me itni acchi jaankari dete hai .,.

dil se badhai ..
aapka
vijay

Dr. Sudha Om Dhingra said...

मेरे मनपसंद शायर की बात कही है आपने, पुस्तक मंगवा लूँगी.

Rajeysha said...

खूबसूरत गजले पढ़वायीं नीरज जी, धन्‍यवाद।

Unknown said...

waaaaaah waaaaaah

Unknown said...

बहुत खूब नीरज जी हक अदा कर दिया आपने बहुत उम्दा

IQBAL MEHDI KAZMI said...

नासिर काज़मी साहब अपने क़लाम से आज भी ज़िन्दा है हमारे बीच । बहुत बहुत शुक्रिया

IQBAL MEHDI KAZMI said...

सूखी टहनी पर- महक़ता गुलाब आ जाता ।
तुम जो आते तो खिज़ा पे शबाब आ जाता ।

ख़ुद मुहब्बत की निगाहों पर हया छा जाती ।
मौसम-ऐ-इश्क़ पे बादल का नक़ाब आ जाता ।

साथ -होता -अग़र -जो- मेरे मुकद्दर -मेरा ।
फ़िर तो शायद मेरे हक़ में ही जवाब आ जाता ।

वो तो अच्छा हुआ ठुकरा दिया तूने मुझकों।
वरना दुनिया मे नया इंकलाब आ जाता ।

हम भी भर लेते वो नूर अपनी आँखों में।
काश "मेंहदी" तेरा वो माहताब आ जाता ।

इक़बाल मेंहदी काज़मी