कभी कभी तो वो इतनी रसाई* देता है
कि सोचता है तो मुझको सुनाई देता है
रसाई* = पहुँच, प्रवेश
अजीब बात है वो एक सी खताओं पर
किसी को कैद किसी को रिहाई देता है
अगर वो नाम तुम्हारा नहीं तो किसका है?
हवा के शोर में अक्सर सुनाई देता है
आज हम आपको, ऐसे कालजयी शेर कहने वाले, बदायूं में जन्में और अलीगढ में पले बढे अजीम शायर जनाब "मंज़ूर हाशमी", जिनका इन्तेकाल फरवरी २००८ में हुआ, की मर्मस्पर्शी ग़ज़लों का हिंदी में पहला संकलन, "फूलों की कश्तियों" के बारे में बताएँगे. इस किताब को भी "डायमंड बुक्स" वालों ने ही पिछली किताब की भांति छापा है और मूल्य भी सिर्फ ७५ रुपये ही रखा है. इस किताब में "मंज़ूर हाशमी " साहब की बेजोड़ ग़ज़लों को संकलित किया है "सुरेश कुमार" जी ने.
कुछ इस अंदाज़ से होती है नवाजिश भी कभी
फूल भी आये, तो पत्थर की तरह लगता है
जब हवाओं में, कोई जलता दिया देखता हूँ
वो मिरे उठे हुए सर की तरह लगता है
तेज़ होता है, तो सीने में उतर जाता है
लफ्ज़ का वार भी, खंज़र की तरह लगता है
मंजूर साहब मुशायरों में अपनी ग़ज़लें धीरे धीरे तरही में सुनाते और सुनने वाले उनके दिलकश अंदाज़ पर तालियाँ पीटते थकते नहीं थे.निहायत सादा इंसान अपने अशआर की गहराईयों से सबको डुबो देता था.
मंजूर साहब को सुनने का सिर्फ एक मौका ही इस खाकसार को मिला वो सादा पैंट बुशर्ट में, आँखों पर लगे बड़े से फ्रेम के चश्में को साफ़ कर मुस्कुराते हुए माईक पर आये बैठे और अपने मिसरों से फिजा में मिसरी सी घोलने लगे...मुझे याद है उन्होंने इस शेर से अपनी शायरी का आगाज़ किया था :-
तिरे खतूत* की खुशबू, तो अब भी जिंदा है
पढूं तो अब भी महकती हैं उँगलियाँ मेरी
खतूत*= चिठ्ठियाँ
तालियों के बीच उन्होंने अपनी जिस ग़ज़ल का मतला और चंद शेर सुनाये वो इतेफ़ाक से इस किताब में भी है:
उसका तो हर अंदाज़, निराला-सा लगे है
कातिल है मिरा, और मसीहा-सा लगे है
वो जिससे कोई ख़ास तअर्रुफ़ भी नहीं है
जब भी नज़र आ जाये है अपना सा लगे है
हम उनके बिना जैसे मुकम्मल ही नहीं हैं
जो काम भी करते हैं अधूरा सा लगे है
मैं उसकी हर इक बात को किस तरह न मानूं
वो झूट भी बोले है तो सच्चा सा लगे है
बहुत दिनों से तो वो याद भी नहीं आया
तो फिर ये नींद में किसको पुकारा करते हैं
नहा के पंख सुखाती है धूप में तितली
तो रंग अपनी नज़र खुद उतारा करते हैं
फ़िराक* बिछड़ी हुई खुशबुओं का सह न सकें
तो फूल अपना बदन पारा-पारा** करते हैं
फ़िराक*= वियोग
पारा-पारा**= टुकड़े टुकड़े
आज की सामाजिक और राजनितिक विसंगतियों पर भी उनकी शायरी कमाल ढाती है. बड़ी सादा जबान में वो अपने अशआर से दिल चीर कर रख देते हैं:
उन्हीं पत्तों पे मिटटी मल रही है
हवा जिनकी बदौलत चल रही है
अजब शै है ये शम-ऐ-ज़िन्दगी भी
कि बुझने के लिए ही जल रही है
यही तो बस्तियों में फैलती है
अभी जो आग दिल में जल रही है
अफ़सोस की बात ये है की इस अजीम शायर की सिर्फ एक ये ही किताब हिंदी में उपलब्ध है, लगभग एक सौ साठ पृष्ठों की इस किताब में मंजूर साहब की एक सौ चौंतीस ग़ज़लें संकलित हैं. अब इन एक सौ चौतीस ग़ज़लों के लगभग नौ सौ शेरों में से कुल जमा पन्द्रह बीस छांटना कितना मुश्किल काम है ये आप किये बिना नहीं जान पाएंगे. आप से गुज़ारिश है की इस किताब को खरीदिये जो शायद और कहीं नहीं तो आपके निकट तम रेलवे स्टेशन की बुक स्टाल पर जरूर मिल जाएगी और फिर इस काम को अंजाम देने की कोशिश करें. वैसे जैसा मैंने अपनी पिछली पोस्ट में बताया था आप इसे सीधे डायमंड बुक्स वालों को लिख कर भी मंगवा सकते हैं, उनका पता है :ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज़-२, नई दिल्ली, फोन:011-51611861 और ईमेल:sales@diamondpublication.com है.
और अब जैसा की मैं पहले भी करता आया हूँ अब भी करता हूँ, नयी किताब ढूँढने से पहले चलते चलते इस किताब के चंद अशआर और पढवा देता हूँ...लेकिन मेरी गुज़ारिश है की आप किताबें खरीदने की आदत जरूर डालें क्यूँ की किताबों के दोस्त उम्र के साथ बूढ़े नहीं होते.
जाने किस किस को मददगार बना देता है
वो तो तिनके को भी पतवार बना देता है
लफ्ज़ उन होंटों पे फूलों की तरह खिलते हैं
बात करता है तो गुलज़ार बना देता है
जंग हो जाये हवाओं से तो हर एक शजर
नर्म शाखों को भी तलवार बना देता है
38 comments:
बहुत ही शुक्रिया नीरज भाई ,
आप उम्दा शायिरी ,किताबों से परिचित कराते रहते हैं वर्ना तो हम जैसे लोग महरूम ही रह जाते रहते .
नीरज जी , शुक्रिया सुन्दर सुन्दर दुर्लभ शेरों से ,किताबों से तवारुख़ (परिचय , सही कह रही हूँ न ?) करवाने का |
क्या आप कोई ऑफ लाइन रोमन हिंदी टूल लोड करने का लिंक बता सकते हैं ? एक बार फिर शुक्रगुजार रहूँगी |
एक सौ चौंतीस ग़ज़लें....???
नमन है मंज़ूर जी और आपको भी ......कोई गजलों का shoukin हो तो आप जैसा ....लगता नहीं कोई किताब bachegi आपके hathon .....!!
तिरे खतूत* की खुशबू, तो अब भी जिंदा है
पढूं तो अब भी महकती हैं उँगलियाँ मेरी
subhanallah ......!!
bahut acchee kitab se ,shayar v unke shero se parichay karane ke liye tahe dil se shukrguzaar hai hum .
डाका तय हुआ ......बस तारीख ओर समय डिसाइड करना है.....
नीरज जी, आदाब
एक शेर का भाव है कि हुस्न देखने वाले की निगांहों में होता है
आप ऐसे कीमती हीरे तलाश कर पेश करते हैं
और उनके बारे में इतनी खूबसूरती से बताते हैं,
कि पढ़ने की ख्वाहिश जाग जाती है...
आपकी पसंद है, तो हमारे लिये अनमोल है,
चलिये मंगाते हैं सर...
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
अगर वो नाम तुम्हारा नहीं तो किसका है?
हवा के शोर में अक्सर सुनाई देता है
तेज़ होता है, तो सीने में उतर जाता है
लफ्ज़ का वार भी, खंज़र की तरह लगता है
मंज़ूर साहब की शायरी का हर शेर भी खंज़र की तरह सीने में उतार गया नीरज जी .......... आपका दिलकश अंदाज़ हमेशा की तरह मजबूर करता है की किताब बस अभी ही मिल जाए कहीं से .......... पर हमारे जैसे वतन से डोर रहने वालों की किस्मत इतनी अच्छी नही ..... हां आपके ब्लॉग पर आ कर कुछ सकूँ ज़रूर मिलता है ......
लगता है आपकी शायरी की पोस्ट पढ कर हम ताऊ से शायर बन जायेंगे. बहुत सुंदर.
रामराम.
अजीब बात है वो एक सी खताओं पर
किसी को कैद किसी को रिहाई देता है
अगर वो नाम तुम्हारा नहीं तो किसका है?
हवा के शोर में अक्सर सुनाई देता है..
वाह इसके क्या कहने......
आपकी प्रस्तुति की सबसे अच्छी बात जो लगातार देखने में आ रही है वह है पूर्णता। आधी अधूरी जानकारियॉं तंग ज्यादह करती हैं, अब आपने कृतित्व से परिचय कराया तो उसकी मुद्रित प्रति प्राप्त करने का साधन भी बताया।
बहुत बहुत धन्यवाद एक अच्छे शायर के कृतित्व को सहज पहुँच में लाने के लिये।
नीरज जी, जितनी खूबसूरत शायरी है, उतनी ही खूबसूरत प्रस्तुति।
शब्दों का अर्थ देकर आप हम जैसे नादानों का भी कम आसान कर देते हैं। आभार।
achchhe shaayar se mulaqat karane k liye, dhanyaad..
अरे वाह एक और अच्छी किताब गजलों की
लिस्ट बन रही है जब जाउंगी तब एक साथ खरीद लूंगी
और इसके लिए आपकी ता उम्र आभारी रहूंगी
tusi te hameshaa ee kamaalaaN karde o ji,,,hun maiN aini saari 'akkal' kitthoN liaavaaN jihde naal kujh tuhaadi treef kar sakaaN ji...
par....
meraa
salaam
haazir
hai
janaab !!
इतने अच्छे अच्छे शायरों के किताब की जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!
आदरणीय नीरज जी,
ये तो बिल्कुल अपने काम की किताब लग रही है। जो शेर आपने पढ़वाये, सीधे दिल में उतर गये। बेहतरीन किताब का उतना ही सुंदर विवरण प्रस्तुत करने के लिये आभार।
एक से बढ़कर एक सुंदर रचना...बेहतरीन प्रस्तुति नीरज जी बहुत बहुत धन्यवाद बड़े ही मनभावन ग़ज़ल प्रस्तुत किए हमें तो बहुत ही अच्छे लगे...बधाई
... समुन्दर मे डुबकी लगाकर जा रहे हैं,बधाईयों का सिलसिला जारी रहे,बधाई !!!!
खूबसूरत शायरी!
खूबसूरत प्रस्तुति.
आभार
Ek naye blog se gujari thi--socha aap ko iska link dena chaheeye--kyonki 'Madhubala' se related hai-
http://biographyofmadhubala.blogspot.com/
कुछ इस अंदाज़ से होती है नवाजिश भी कभी
फूल भी आये, तो पत्थर की तरह लगता है
nayab prastuti...........seedhe dil mein utar gayi..........shukriya.
bahut bahut khoobsoorat...saare sheir maine note kar liye hain...i love this post neeraj ji..
sorry..pahle to ye bataiye ki kaise hain aap? khuda kare bilkul theek hun..
तिरे खतूत* की खुशबू, तो अब भी जिंदा है
पढूं तो अब भी महकती हैं उँगलियाँ मेरी
..मुझे तो इसी शेर ने दीवाना बना दिया है।
आप यूँ ही लगे रहें हम भी होशियार बैठे हैं।
वाह आपका ये पोस्ट मुझे बेहद पसंद आया! एक अच्छे शायर के साथ मुलाकात करवाने के लिए धन्यवाद! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती!
नीरज जी ये लिस्ट मैं भी बना रही हूँ जिस दिन देलही गयी जरूर ले आऊँगी अगर मिली तो नही तो पबलिशर से मंगवा लूँगी। बहुत हैरान हूँ कि ऐसी नायाब किताब की कीमत सिर्फ 75 रुपये? दोनो किताबें नोट कर ली हैं धन्यवाद बाकी इन उस्ताद शायरों की शायरी पर कुछ नही कह सकती सिवा इस के कि हैरान हूँ, दिल को छू गयी इनकी कलम को सलाम आपका धन्यवाद इस सुन्दर प्रस्तुति के लिये
सच में किताबों से बेहतर दोस्त कोई और नहीं हो सकता नीरज जी ..
इस किताब पर तो बस सड़के जावां ... बसंत पंचमी की बधाईयाँ और शुभकामनाएं...
आपका
अर्श
बहुत दिन बाद हाजिर हूँ इसके लिये माफी चाहता हूँ. मंजर दा की गजलें पढवाने के लिये शुक्रिया. ऍक ऍक शेर रात की तन्हाई में झूम झूम के पढने का मन कर रहा है.
E mail received from Om Sapra Ji:-
shri neeraj ji,
namastey,
good, as usual this piece of selection
of poetry from "Manzoor sahab" is also
very good,
congrats.
-om sapra, delhi-9
मंजर साब तो चलती-फिरती दीवान हैं....
एक और कितान है इनकी जिसपर इस नाचीज़ का आधिपत्य है।
"किताबों की ये दुनिया" अमर-श्रृंखला होने जा रही हैं अपने हिंदी ब्लौगिंग की।
आपके ब्लॉग पर आने का ये लालच तो रहता ही है कि फिर कोई शायरी का अनमोल मोती आप खोज लाये होंगे । मंजूर साहब का परिचय करवाने का आभार ।
क्या खूबसूरत शेर हैं ।
वो जिससे कोई ख़ास तअर्रुफ़ भी नहीं है
जब भी नज़र आ जाये है अपना सा लगे है
हम उनके बिना जैसे मुकम्मल ही नहीं हैं
जो काम भी करते हैं अधूरा सा लगे है
मैं उसकी हर इक बात को किस तरह न मानूं
वो झूट भी बोले है तो सच्चा सा लगे है
और
जाने किस किस को मददगार बना देता है
वो तो तिनके को भी पतवार बना देता है
अच्छे शेर पढवाने और किताब की जानकारी देने हेतु आभार
पुनश्च +गीत के साथ मधुवाला के बहुत सारे चित्र दिखाने के लिये धन्यबाद
लफ्ज़ उन होंटों पे फूलों की तरह खिलते हैं
बात करता है तो गुलज़ार बना देता है
जंग हो जाये हवाओं से तो हर एक शजर
नर्म शाखों को भी तलवार बना देता है
खूबसूरत
और बेहतरीन
लफ्ज़ उन होंटों पे फूलों की तरह खिलते हैं
बात करता है तो गुलज़ार बना देता है
जंग हो जाये हवाओं से तो हर एक शजर
नर्म शाखों को भी तलवार बना देता है
खूबसूरत
और बेहतरीन
किताबों के बारे में बताकर प्यार बाँटते हैं. आखिर गजल, कविता से बढ़कर और क्या है?
बहुत दिनों से तो वो याद भी नहीं आया
तो फिर ये नींद में किसको पुकारा करते हैं
नहा के पंख सुखाती है धूप में तितली
तो रंग अपनी नज़र खुद उतारा करते हैं
बहुत खूबसूरत.....
नमस्ते नीरज जी,
आप तो खजाने ढून्ढ ढून्ढ के लाते हैं,
मंज़ूर साहेब तो वैसे ही एक बड़े नाम हैं,
कभी कभी तो वो इतनी रसाई देता है
कि सोचता है तो मुझको सुनाई देता है
अब अगर इस शेर की तारीफ की जाये तो ये इसकी तौहीन ही होगी, हर शेर उम्दा है. आप तो अनमोल मोतियों का एक खूबसूरत हार बना रहे हैं, इस नेक काम के लिए शुभकामनायें.
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