फोटोग्राफी मेरा शौक है लेकिन इस विधा में मैं पारंगत नहीं हूँ. मेरे ख्याल से फोटोग्राफी में जो सबसे अहम् बात है वो है आपकी आँख. आप किस वक्त क्या, कैसे देखते हैं, ये बहुत महत्वपूर्ण है . उसके बाद कैमरे की गुणवत्ता और आपके हुनर का नंबर आता है. दरअसल ये सब कुछ होने के बावजूद एक चीज और जरूरी है वो है किस्मत...आप किस समय कहाँ हैं और कैमरे की आँख से क्या पकड़ पाते हैं ये सब आपके हाथ में नहीं होता. बहुत बार बहुत अच्छा दृश्य होने के बावजूद रौशनी या कैमरा आपका साथ नहीं देता या फिर रौशनी और कैमरे का साथ सही होने पर जैसे दृश्य चाहें वैसे नहीं मिलते. अगर इन का सही संगम हो तो फोटोग्राफ यादगार बन जाता है.
भूमिका में ही आपका सारा समय नष्ट किये बैगैर मैं सीधे मुद्दे पर आता हूँ.
अभी कुछ दिनों पहले पूना में फोटोग्राफी प्रदर्शनी लगी हुई थी.एक शाम फैक्ट्री से सीधे प्रदर्शनी देखने जा पहुंचा. अपना सस्ता मोबाईल साथ था ही, उसी से खींची प्रदर्शनी में प्रदर्शित कुछ फोटो दिखाता हूँ जिनको देख मेरे मुंह से वाह निकल गयी थी..
प्रदर्शनी का नाम था "दृष्टिकोण" स्थल के मुख्य द्वार के बाहर लगे बैनर को देख कर ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल था की अन्दर इतनी खूबसूरत फोटो प्रदर्शित की गयी होंगीं.
प्रदर्शन हाल में कुछ फोटोग्राफी के घनघोर प्रेमियों को देखा जा सकता था .ये लोग आधे आधे घंटे तक एक ही फोटो के सामने खड़े उसकी कम्पोजीशन कैमरे के एंगल, रौशनी आदि तकनिकी बातों पर चर्चा कर रहे थे.
सबसे पहले मुझे शाम के आखरी पहर में झील के किनारे एक ठूंठ से दिखने वाले चित्र ने आगे बढ़ने से रोक दिया. आपजो देख रहे हैं वो असली चित्र का प्रतिबिम्ब मात्र है इसलिए हो सकता है की इसकी असली खूबसूरती पकड़ में ना सके, फिर भी काले, हलके नीले, बैगनी और नारंगी रंगों की छटा तो आप देख ही सकते हैं...
तार पर बैठे दो प्रतीक्षा रत छोटे पक्षी और दूर से उनकी और आती उनकी माँ का ये फोटो, फोटोग्राफर की अच्छी किस्मत का ही परिणाम है, क्यूँ की ये दृश्य क्षणिक है और उसे सही समय में पकड़ना इतना आसान नहीं है.
इसी तरह एक पक्षी द्वारा अपने शिकार को खाते हुए का ये फोटो दांतों तले ऊँगली दबाने को बाध्य करता है क्यूँ की इस फोटो में पक्षी ने अपने भोजन के लिए पकडे पतंगे को चौंच द्वारा काट कर दो टुकड़े कर डाले हैं और एक टुकड़ा टूट कर गिरता हुआ नज़र आ रहा है. ये भी किस्मत से सही समय पर लिया गया फोटो है.
पक्षी का ही एक और फोटो, फोटो ग्राफी कला का अनूठा नमूना है. इस फोटो में पक्षी के पंखों से झरती रौशनी को क्या खूब कैद किया है. मेरी नज़र में ये एक दुर्लभ फोटो है. विशेषग्य शायद इस बारे में कुछ और राय रखें लेकिन मुझे ये चित्र ग़ज़ब का लगा.
ब्लैक एंड वहाईट याने श्वेत श्याम फोटो अब गुज़रे कल की बात हो गयी है. कुछ फोटो ग्राफर अब भी ये मानते हैं की जो तिलिस्म श्वेत श्याम फोटो से पैदा होता है, रंगीन फोटो उस तक नहीं पहुँच सकती. इस प्रदर्शनी में प्रदर्शित दो चार श्वेत श्याम चित्र इस बात की पुष्टि भी करते नज़र आये. आप बताएं क्या ये भावी सचिन तो नहीं?
इसी कड़ी में एक लद्दाखी वृद्ध महिला का अपने चश्मे को पोंछते हुए का फोटो भी उलेखनीय है. फोटो ग्राफर इसके लिए प्रशंशा का पात्र है.
पोर्ट्रेट फोटोग्राफी में खासी अहमियत रखता है. स्टूडियो की चार दिवारी में पोर्ट्रेट खींचना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है लेकिन उस चार दिवारी के बाहर कोई पोर्ट्रेट खींचना बहुत मुश्किल काम है. आप इस फोटो को देख कर शायद मेरी बात पर यकीन करें.
एक और चित्र जिसने मुझे ठिठकने पर मजबूर किया वो था एक प्रतीक्षा रत युवती का. इस चित्र का गहरा प्रभाव देखने वाले के साथ दूर तक चलता है.
आयीये अब जरा रंगों का खेल देखा जाए. सबसे पहले देखते हैं एक नदी में सूर्यास्त के समय एकाकी नौका का ये फोटो जो हतप्रभ कर देता है. ढलता सूर्य कहीं नहीं है लेकिन उसकी लालिमा से सारा माहौल लाल हो गया है .
इसी लालिमा को अब देखते है आकाश पर. इन चित्रों को देख कर भरत व्यास जी का गीत " ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार ..." याद आ जाता है.
अब देखिये अजीब विरोधाभास इस फोटो में. होली के रंगों के बीच एक सफ़ेद कपडे पहना व्यक्ति अपने आपको लगता है बहुत असहज महसूस कर रहा है.
नृत्य और रंगों का एक गहरा सम्बन्ध है. नृत्य उल्हास का प्रतीक हैं और रंग भी तभी अधिकाँश नृत्यों में रंग बिरंगे वस्त्रों का उपयोग किया जाता है.शायद ही कोई नृत्य बिना श्रृंगार और तड़क भड़क वाले रंगीन कपड़ो के संपन्न किया जाता हो. इसी बात को फोटो ग्राफर ने अपनी इस फोटो में प्रदर्शित किया है.
इस प्रदर्शनी में सौ से ऊपर फोटो प्रदर्शित किये गए थे जिनमें से कुछ को ही मैं आप तक पहुंचा पाया हूँ. उम्मीद करता हूँ की मेरी ये पोस्ट भी पिछली बार की 'रंगोली' की तरह ही पसंद की जाएगी. आप अपने उदगार व्यक्त करें ताकि भविष्य में इस तरह के काम और भी किये जाएँ.