Friday, March 6, 2015

इक रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो

आदरणीय पंकज जी के ब्लॉग पर हुई अद्भुत होली की तरही में भेजी खाकसार की ग़ज़ल। इसे जो पढ़े उसको भी जो न पढ़े उसको भी जो कमेंट करे उसको भी जो न करे उसको भी 
होली की शुभकामनाएं 




आँखों में तेरी अपने, कुछ ख़्वाब सजा दूँ तो 
फिर ख़्वाब वही सारे, सच कर के दिखा दूँ तो 

होली प लगे हैं जो वो रंग भी निखरेंगे 
इक रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो 

जिस राह से गुजरो तुम, सब फूल बिछाते हैं 
उस राह प मैं अपनी, पलकें ही बिछा दूँ तो 

कहते हैं वो बारिश में, बा-होश नहायेंगे 
बादल में अगर मदिरा, चुपके से मिला दूँ तो ? 

फागुन की बयारों में, कुचियाते हुए महुए 
की छाँव तुझे दिल की, हर चाह बता दूँ तो 
(महुए के पेड़ की पत्तियां फागुन में गिरनी शुरू होती हैं और टहनियों में फूल आने लगते हैं ,इस प्रक्रिया को कुचियाना कहते हैं।) 

बस उसकी मुंडेरों तक, परवाज़ रही इनकी 
चाहत के परिंदों को, मैं जब भी उड़ा दूँ तो 

हो जाएगा टेसू के, फूलों सा तेरा चेहरा 
उस पहली छुवन की मैं, गर याद दिला दूँ तो 
( टेसू के फूल सुर्ख लाल रंग के होते हैं ) 

उफ़! हाय हटो जाओ, कहते हुए लिपटेगी 
मैं हाथ पकड़ उसका, हौले से दबा दूँ तो 

इन उड़ते गुलालों के, सुन साथ धमक ढफ की 
 इल्ज़ाम नहीं देना , मैं होश गँवा दूँ तो