आज आप को मशहूर शायर प्राण शर्मा जी की ग़ज़ल से रूबरू करवाता हूँ. प्राण साहेब यू. के. में पिछले कई सालों से रहते हैं, उनकी एक किताब "ग़ज़ल कहता हूँ" बहुत चर्चित हो चुकी है. बुजुर्ग शायर प्राण शर्मा जी ने मुझे अपने ब्लॉग पर उनकी ग़ज़ल पोस्ट करने की अनुमति देकर बहुत उपकार किया है. देखिये उनकी शायरी का एक दिलचस्प और निराला अंदाज़.
वो सबके दिल लुभाता है कभी हमने नहीं देखा
की कौवा सुर में गाता है कभी हमने नहीं देखा
ये सच है झोपड़े ढ़ाते हुए सब ही को देखा है
कोई महलों को ढ़ाता है कभी हमने नहीं देखा
जवानी सबको भाती है चलो हम मान लेते हैं
बुढापा सबको भाता है कभी हमने नहीं देखा
उड़ाओ तुम भले ही,पर कोई बरखा के मौसम में
पतंगों को उडाता है कभी हमने नहीं देखा
वे आपस में तो लड़ते हैं मगर पंछी को पंछी से
कोई पंछी लड़ाता है कभी हमने नहीं देखा
बहुत कुछ देखा है जग में मगर ऐ "प्राण" दुश्मन को
गले दुश्मन लगाता है कभी हमने नहीं देखा
वो सबके दिल लुभाता है कभी हमने नहीं देखा
की कौवा सुर में गाता है कभी हमने नहीं देखा
ये सच है झोपड़े ढ़ाते हुए सब ही को देखा है
कोई महलों को ढ़ाता है कभी हमने नहीं देखा
जवानी सबको भाती है चलो हम मान लेते हैं
बुढापा सबको भाता है कभी हमने नहीं देखा
उड़ाओ तुम भले ही,पर कोई बरखा के मौसम में
पतंगों को उडाता है कभी हमने नहीं देखा
वे आपस में तो लड़ते हैं मगर पंछी को पंछी से
कोई पंछी लड़ाता है कभी हमने नहीं देखा
बहुत कुछ देखा है जग में मगर ऐ "प्राण" दुश्मन को
गले दुश्मन लगाता है कभी हमने नहीं देखा