Monday, June 23, 2014

आसमाँ किस सहारे होता है ?


एक ग़ज़ल यूँ ही बैठे -ठाले 




कौन कहता है छुप के होता है 
क़त्ल अब दिन दहाड़े होता है 

गर पता है तुम्हें तो बतलाओ 
इश्क कब क्यों किसी से होता है 

ढूंढते हो सदा वहाँ उसको 
जो हमेशा यहाँ पे होता है 

धड़कनें घुँघरुओं सी बजती हैं 
दिल जब उसके हवाले होता है 

आरज़ू क्यों करें सहारे की 
आसमाँ किस सहारे होता है ? 

चीख कर क्यों सदायें देते हो 
जब असर बिन पुकारे होता है 

उम्र ढलने लगी समझ 'नीरज ' 
दर्द अब बिन बहाने होता है