(आज प्राण साहेब की वो ग़ज़ल पेश करता हूँ जो मुझे हमेशा हौसला देती है)
नफरत की हर गली से निकलने की बात कर
तू प्यार वाली राह पे चलने की बात कर
माना की हर तरफ ही अँधेरी है ज़ोर की
उसका न कर ख़याल संभलने की बात कर
आयी हुई मुसीबतें जाती कभी नहीं
ऐसे सभी ख़याल कुचलने की बात कर
चेहरे पे हर घड़ी ही उदासी भली नहीं
ये खुरदरा लिबास बदलने की बात कर
आएगी अपने आप ही चेहरे पे रौनकें
मन्दिर में दीप की तरह जलने की बात कर
पत्थर सा ही बना रहेगा कब तलक, मियाँ
तू मोम सा कभी तो पिघलने की बात कर
ऐ "प्राण" तेरे होने का एहसास हो जरा
अम्बर में मेघ जैसा मचलने की बात कर
नफरत की हर गली से निकलने की बात कर
तू प्यार वाली राह पे चलने की बात कर
माना की हर तरफ ही अँधेरी है ज़ोर की
उसका न कर ख़याल संभलने की बात कर
आयी हुई मुसीबतें जाती कभी नहीं
ऐसे सभी ख़याल कुचलने की बात कर
चेहरे पे हर घड़ी ही उदासी भली नहीं
ये खुरदरा लिबास बदलने की बात कर
आएगी अपने आप ही चेहरे पे रौनकें
मन्दिर में दीप की तरह जलने की बात कर
पत्थर सा ही बना रहेगा कब तलक, मियाँ
तू मोम सा कभी तो पिघलने की बात कर
ऐ "प्राण" तेरे होने का एहसास हो जरा
अम्बर में मेघ जैसा मचलने की बात कर