Monday, May 16, 2011

किताबों की दुनिया - 52

पहले जैसा गाँव नहीं है
पेड़ बहुत हैं छाँव नहीं है
**
गाँवों में जो घर होता है
शहरों में नंबर होता है
****
तुमसे जितनी बार मिला हूँ
पहली पहली बार मिला हूँ
**
मैं कुछ बेहतर ढूंढ रहा हूँ
घर में हूँ घर ढूंढ रहा हूँ
**
रहने दे ये परिभाषाएं
घर का मतलब घर होता है
**
तुम हो तो ये घर लगता है
वर्ना इसमें डर लगता है

किताबों की दुनिया की इस श्रृंखला में आज हम आपकी पहचान एक ऐसे शायर से करवाने जा रहे हैं जिसकी प्रतिभा हैरत में डाल देने वाली है. ये इंसान मूल रूप से चित्रकार है या शायर ये तय करना बहुत जटिल मामला है क्यूँ की उनकी चित्रकारी में ग़ज़ल और ग़ज़ल में चित्रकारी नज़र आती है. यूँ इश्वर ने हम सभी को कोई न कोई प्रतिभा दी है लेकिन हम में से चंद ही अपने में छुपी प्रतिभा को प्रकाश में ला पाते हैं. अपने में छुपी प्रतिभा को चमकाने में महनत और लगन का होना बहुत जरूरी होता है , शिखर पर वो ही पहुँचते हैं जिनमें महनत करने का माद्दा कूट कूट कर भरा हो. कुंदन तप कर ही निखरता है ये बात तो जग जाहिर है फिर भी इसका प्रमाण हम आपको आज दे रहे हैं.

आज हम उस विलक्षण प्रतिभा के इंसान की किताब की बात करने जा रहे हैं जिसकी पेंटिंगस भारत के राष्ट्रपति भवन , जयपुर के जवाहर कला केंद्र , पंजाब यूनिवर्सिटी के फाइन आर्ट म्यूजियम, मुरारी बापू के गुरुकुल, साहित्य कला परिषद् आदि के अलावा देश- विदेश की प्रसिद्द कला वीथियों की दीवारों की शोभा बढ़ा रही हैं. उसी इंसान ने जब कलम उठाई तो अपने आपको छोटी बहर की ग़ज़ल कहने की विधा में बहुत बड़ा उस्ताद सिद्ध कर दिया. छोटी बहर में कही उनकी ग़ज़लों के चार संकलन अब तक प्रकाशित हो चुके हैं.

"विज्ञान व्रत" जी के उन्हीं चार संकलनो में से एक " बाहर धूप खड़ी है " की चर्चा हम करने जा रहे हैं.



एक जरा सी दुनिया घर की
लेकिन चीजें दुनिया भर की

पापा घर मत लेकर आना
रात गए बातें दफ्तर की

बाहर धूप खड़ी है कब से
खिड़की खोलो अपने घर की

डा. विनय मिश्र जी ने विज्ञान जी के शेरों पर बहुत बढ़िया टिप्पणी की है " घर को लेकर विज्ञान व्रत ने अद्भुत शेर कहे हैं ये घर इस मायने में अनेकार्थी हैं जिसमें अपने समय में विखरती जा रही घर की सम्वेदनाओं से लेकर वसुधैव कुटुम्बकम के निरंतर छीजते जाते हुए एहसास का स्पंदन दिखाई देता है " 17 अगस्त 1947 को एक अनाम से ग्राम तेडा, मेरठ में जन्में विज्ञान जी ने आगरा से फाइन आर्ट में एम् ऐ. किया और फिर राजस्थान से फाइन आर्ट में ही डिप्लोमा भी किया.

जब तक एक विवाद रहा मैं
तब तक ही आबाद रहा मैं

महलों के लफ्फाज़ कंगूरे
गूंगी सी फ़रियाद रहा मैं

शब्दों के उस कोलाहल में
अनबोला संवाद रहा मैं

छोटी बहर में बात कहने की एक कठिन तकनीक को विज्ञान जी ने अपने हुनर से वो ऊँचाई प्रदान की है जिस तक पहुंचना एक साधारण शायर के लिए सिर्फ सपना ही हो सकता है. आम भाषा में कहे गए उनके शेर सपाट नहीं हैं बल्कि काव्य की गहराई लिए हुए हैं.छोटी बहर में बड़ी बात कहना वैसे ही है जैसे गागर में सागर भरना. ये ऐसा हुनर है जो अनवरत प्रयास लगन और महनत मांगता है.शायद इसीलिए विज्ञान व्रत की गिनती उस्ताद शायरों में की जाती है

कोई रस्ता बेहतर ढूंढो
खुद को अपने अन्दर ढूंढो

सुबह मिले ना सिलवट जिसमें
ऐसा कोई बिस्तर ढूंढो

सिर्फ इमारत बनवाई है
इसमें घर का मंज़र ढूंढो

"अयन प्रकाशन" दिल्ली ने विज्ञान व्रत जी की ग़ज़लों की चारों पुस्तकों "बाहर धूप खड़ी है", "चुप की आवाज़", "जैसे कोई लौटेगा" और "तब तक हूँ" के अलावा दोहा संकलन "सप्तपदी " का भी प्रकाशन किया है . आप अयन प्रकाशन के श्री भोपल सूद जो स्वयं शायरी के बहुत अच्छे जानकार होने के अलावा पाठकों से बेपनाह मुहब्बत करने वाले इंसान हैं, से उनके मोबाइल न. 9818988613 पर बात कर किताब प्राप्त करने की जानकारी ले सकते हैं. सूद साहब पुस्तक प्रेमियों से बात कर कितने खुश होते हैं इसका यादगार अंदाज़ा आपको उनसे बात करने के बाद ही होगा.

जब घर में हों सब मेहमान
कौन करे किसका सम्मान

बढ़ता जाता है सामान
छोटा होता घर दालान

घर है रिश्तों से अनजान
अपने घर में हूँ मेहमान

प्रतिभाशाली व्यक्ति को सम्मानित करने से सम्मान की गरिमा बढती है. विज्ञान जी पर सम्मान और पुरुस्कारों की बारिश सी हुई है : वातायन (लन्दन), समन्वय(सहारनपुर),सुरुचि(गुडगाँव),परम्परा(बिजनौर),कंवल सरहदी (मेरठ) आदि संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है और उत्तर प्रदेश की राज्य ललित कला अकादमी ने उन्हें पुरुस्कृत किया है. विज्ञान जी की ग़ज़लों को प्रसिद्द ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह, धनञ्जय कौल और निशांत अक्षर अपना स्वर दे चुके हैं. उनकी ग़ज़लों का एक अल्बम "चुप की आवाज़" बाज़ार में उपलब्ध है.

रोशन सारा घर अन्दर से
लेकिन ताला है बाहर से

सो जाने तक बच्चे तरसे
तब लौटे पापा दफ्तर से

कैसे सुस्ता सकता है वो
रिश्ते झूल रहे कांवर से

विज्ञान जी का ईस्ट आफ कैलाश में स्टूडियो है और वो स्वयं नोएडा (यू.पी) के सेक्टर 25 में रहते हैं. एक दिलचस्प बात ये भी जान लीजिये कि उन्हें अभिनय का शौक भी है. इसी के चलते उन्होंने टी.वी. धारावाहिक "वापसी" के लिए गीत भी लिखे और अभिनय भी किया. ऐसे बहु मुखी प्रतिभा के व्यक्ति से आप उनके मोबाईल न. 9810224571 पर बात कर उन्हें इन शानदार ग़ज़लों के लिए बधाई दे सकते हैं और जिन्हें पेंटिंग्स में दिलचस्पी हो वो भी उनसे बात कर सकते हैं.

आज़ादी की परिभाषा भी
जनम जनम का बंधन भी वो

बिंदी की ख़ामोशी भी है
खन-खन करता कंगन भी वो

प्रश्नों का भी हल लगता है
और जटिल सी उलझन भी वो

पेंटिंगस से याद आया इस किताब में आपको विज्ञान जी की 74 ग़ज़लें तो पढने को मिलेंगी ही साथ की उनके बनाये कुछ दुर्लभ रेखा चित्र भी दिखाई देंगे. यूँ तो विज्ञान जी और उनकी ग़ज़लों पर जितना लिखें कम ही होगा लेकिन हमें अब यहीं रुकना होगा. पोस्ट के अधिक लम्बा होने पर आप मुंह बिचकाएं इस से पहले ही हम आपसे रुखसत होते हैं एक नयी किताब की तलाश के लिए. चलते चलते बता दें के विज्ञान जी के बारे में विस्तार से आप उनकी वेब साईट http://vigyanvrat.com पर जा कर पढ़ सकते हैं इसके अलावा भाई जय कृष्ण राय तुषार जी के ब्लॉग http://sunaharikalamse.blogspot.com/2011/03/blog पर जा कर भी पढ़ सकते हैं जिस पर उन्होंने बहुत मेहनत से विज्ञान जी पर लिखा है और उनकी पांच बहुत प्यारी सी ग़ज़लें भी पोस्ट की हैं.
आखरी में उनके ये तीन शेर आप तक पहुंचा कर विदा लेते हैं.

ऊंचे लोग सयाने निकले
महलों में तहखाने निकले

आहों का अंदाज़ नया था
लेकिन ज़ख्म पुराने निकले

जिनको पकड़ा हाथ समझ कर
वो केवल दस्ताने निकले

38 comments:

पंकज सुबीर said...

विज्ञान व्रत जी की बात हो और मैं टिप्‍पणी नहीं करू़ ऐसा हो ही नहीं सकता । अपने सर्वकालिक पसंदीदा शायर पर कैसे टिप्‍पणी नहीं करूं । विज्ञान व्रत जी हिंदी की उस पीढ़ी के शायर हैं जिन्‍होंने ये बताया कि हिंदी में सलीकेदार ग़ज़ल कैसे लिखी जा सकती है । उनकी ग़ज़लों में जो बिम्‍ब आते हैं वो जबरदस्‍त होते हैं । विज्ञान जी की ग़ज़लें अपने आप में ग़ज़ल की पूरी पाठशाला होती हैं । तुमसे जितनी बार मिला हूँ
पहली पहली बार मिला हूँ जैसा शेर लिख देना कितना जटिल काम है ये कोई शायर ही जान सकता है । विज्ञान जी ने ग़ज़लों को एक नई दिशा दी है । उनकी ग़ज़लें जिस सफाई से अपनी बात कहती हैं उससे कभी कभी रश्‍क हो जाता है । और इन सबके पीछे जो कारण है वो ये है कि वे स्‍वयं एक बहुत ही अच्‍छे इंसान हैं । नीरज जी आपका बहुत शुक्रिया कि आपने मेरे आलटाइम फेवरिट शायर को आज यहां रूबरू करवाया ।

अरुण चन्द्र रॉय said...

किताबों और शायरों से परिचय करने का आपका अंदाज़ बेहद अनूठा और दिलचस्प होता है.. दिल्ली में ही हूँ सो उनसे मिलने का प्रबंध करता हूँ और उनके हस्ताक्षर वाली पुस्तक ही प्राप्त करूँगा... नीरज जी आपका बहुत बहुत आभार....

रचना दीक्षित said...

नीरज जी आपकी पुस्तक समीक्षा इतनी दिलचस्प होती है कि पुस्तक के प्राप्त करने के लिए एक जबरदस्त उत्सुकता स्वमेव ही बन जाती है. इस बार भी विज्ञान वृत जी के विषय में आपने बहुत सुंदर लिखा है. उनके शेर तो लाजवाब है. जितने सीधे उतने ही गंभीर गूढ़ विचार समाहित किये हुए.पुन्ह शुक्रिया.

दर्शन कौर धनोय said...

नीरज जी ,आपकी पुस्तक के अंश बहुत अच्छे लगे --मेरी तरफ से बधाई स्वीकार करे ..कोशिश करुँगी की पढने को भी मिले ...

रश्मि प्रभा... said...

रहने दे ये परिभाषाएं
घर का मतलब घर होता है
**
तुम हो तो ये घर लगता है
वर्ना इसमें डर लगता है
aapke likhne ka dhang itna khaas hota hai ki sabkuch khaas ho jata hai

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी समीक्षा! पुस्तक पढ़ने और ग़ज़ल कार से मिलने की रुचि बढ़ गई है।

vandana gupta said...

हर बार की तरह कलम के धनी शायर से मिलवाने के लिये आपकी हार्दिक आभारी हूँ।

सदा said...

आपकी यह समीक्षा भी हमेशा की तरह भा गई बहुत ही अच्‍छा लगा ...आभार ।

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छी समीक्षा!

दिगम्बर नासवा said...

एक बार दुबारा से आप बहुत ही कमाल के शायर और लाजवाब ग़ज़लों का गुलदस्ता ले कर आए हैं ... विज्ञान जी की ग़ज़लों की ताज़गी ... छोटी बाहर में उनका ग़ज़लें कहने का अंदाज़ ... बिल्कुल ही नये अंदाज़ की ग़ज़लें पढ़ने को मिलीं हैं ... और ये सब संभव हुवा ...... नीरज जी आपके द्वारा ...

Anonymous said...

नीरज जी आपका आभार इतने उम्दा शायर से परिचय करवाने का |

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

मज़ा आ गया आप के द्वारा कोट किए गये शेर पढ़ कर, बाकी काम पंकज जी की टिप्पणी से पूरा हो गया|

Shiv said...

घर के ऊपर कहे गए विज्ञान जी के अश-आर अद्भुत हैं. इतनी बड़ी-बड़ी बातें इतने कम शब्दों में कह देना, यह बिना प्रतिभा के कहाँ मुमकिन है. मैं विज्ञान जी की रचनाएं अपने घर में ज़रूर रखना चाहूँगा.

"अर्श" said...

विज्ञान व्रत जी के बारे में गुरु जी से बराबर सुनता रहा हूँ , उनकी शायरी के बारे में हमेशा उनसे ज़िक्र होता रहा है ! हालाँकि उनको पढने का मौक़ा नहीं मिला आज आपके इस किताबों की दुनिया के क्रम में उनको और नज़दीक से जानने का मौका मिला ! इसके लिए बहुत- बहुत शुक्रिया नीरज जी !

अर्श

Anonymous said...

कुछ भी कहना, इन् सरल-जटिल शब्दों और उनमे छिपे अर्थ के लिए, कम होगा.
इनमे सरल शब्दों का एक नया संसार दिखा है. इन् अंशो से बहुत कुछ सीखने को मिला है.
इसी संकलन से हिंदी किताबो के संग्रह की शुरुवात करेंगे.
इस पोस्ट के माध्यम से हमें नयी चेतना देने लिए के लिए धन्यवाद.
-मुग्धा

तिलक राज कपूर said...

व्‍याकरण की मर्यादा का ससम्‍मान पालन करते हुए छोटी बह्र में बात कह देना और वो भी यूँ कि सीधी उतर जाये, सरल नहीं होता। मेरा निजि अनुभव तो यही रहा है कि बहुत खलबली सी मची रहती है अंदर ही अंदर तब कहीं एक शेर ऐसा होता है कि कहने वाले को कुछ ठंडक पहुँचती है, यह खलबली छोटी बह्र में एक तूफ़ान का रूप ले लेती है और फिर दिखता है एक शेर। ऐसे मुकम्‍मल अश'आर लिये मुकम्‍मल ग़ज़ले कहने वाले शायर से परिचय कराने का आभार।

Rajeysha said...

बहुत हकीकी पंक्‍ि‍तयां पढ़वाने के लि‍ये आभार।

Gyan Dutt Pandey said...

सिरफिरा जी के सारगर्भित कमेण्ट के बाद क्या कहें!

यही कह सकता हूं कि विज्ञान व्रत जी कि किताब दिख जाने पर आव देखा न ताव, खरीद लूंगा!

डॉ टी एस दराल said...

विज्ञानं व्रत जी की शायरी बिलकुल एक अलग अंदाज़ में बहुत भली लगी । सचमुच तारीफ़ के लिए शब्द नहीं मिल रहे ।
आभार इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए ।

प्रवीण पाण्डेय said...

अब तो पुस्तक पढ़ने का मन है।

सौरभ शेखर said...

Neeraj jee Vigyan Vrat jee kuch ghazalen yahan-vahan padhi thin.Lekin aapne jis andaz me unse parichay karaya usse unko pura padhne ki iksha behad balwati ho gai hai.Aap jis nisprih saadhna se ye amulya jankariyan ham tak pahuncha rahe hain uske liye koi bhi aabhar chhota hai.

राज भाटिय़ा said...

पुस्तक समीक्षा बहुत सुंदर लगी जी धन्यवाद

शारदा अरोरा said...

पहले जैसा गाँव नहीं है
पेड़ बहुत हैं छाँव नहीं है
छोटी बहर के शानदार शेर पढने को मिले ..जब शुरुवाद इतनी सुन्दर हुई तो समझ में आ गया ...कलाकार का हुनर ...विज्ञानं व्रत ...नाम ही एक संगम लिए हुए है ...व्रत यानि साधना ..बधाई

निर्मला कपिला said...

शुक्रिया नीरज जी.इस प्रतिभा का परिचय करवाने के लिये.

Pawan Kumar said...

नीरज जी
एक मुद्दत से विज्ञान व्रत जी की रचनाएँ अलग अलग पत्रिकाओं में पढ़ते रहे हैं...!! उनके बारे में आपने ये पोस्ट लिख कर हम जैसे ग़ज़ल प्रेमियों पर उपकार ही किया है. विज्ञान जी पढना हमेशा सुखकर होता है...... साथ ही आपको पढना भी आनंद की अनुभूति है.

विनोद कुमार पांडेय said...

विज्ञान व्रत जी के ग़ज़लें वाकई कमाल की होती है..छोटी बहर में बेहतरीन से बेहतरीन भाव रख देना आसान नही है..हिन्दी साहित्य जगत के एक महान ग़ज़लक़ार के बारे में विस्तार से जानकर और उनके ग़ज़लों को पढ़ कर बहुत अच्छा लग रहा है..किताब तो ज़रूर लूँगा पर आपने जिस प्रकार से प्रस्तुति की वो भी कमाल की है...नीरज जी बहुत बहुत आभार..

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
किताबों की दुनिया के नायाब खजाने में, आपने एक बेशकीमती मोती जोड़ दिया है.
विज्ञान व्रत जी, के कहें शेर अपने में एक मिसाल हैं, जो बहुत कुछ सिखा जाते हैं. छोटी बहर में लिखना आसान तो लगता है मगर लिखो तो हकीकत मालूम चल जाती है. एक ज़रा सी फिसलन शेर की शेरियत से समझौता कर देती है लेकिन विज्ञान जी इतनी सहजता से शेर कहते हैं कि कुछ कहने के लिए ही नहीं बचता.

किस को कोट करूं किसको छोडू, हर शेर मतला खूबसूरत नगीना है,
"पहले जैसा गाँव नहीं है,पेड़ बहुत हैं छाँव नहीं है",
"गाँवों में जो घर होता है, शहरों में नंबर होता है"
"तुमसे जितनी बार मिला हूँ.पहली पहली बार मिला हूँ"
"तुम हो तो ये घर लगता है.वर्ना इसमें डर लगता है"
"एक जरा सी दुनिया घर की.लेकिन चीजें दुनिया भर की"

बस कमाल ही कमाल है.

Kunwar Kusumesh said...

विज्ञान व्रत जी के ग़ज़ल संग्रह की समीक्षा पढ़कर अच्छा लगा. छोटी बहरों में ग़ज़ब के शेर निकालते हैं विज्ञान व्रत जी.

pallavi trivedi said...

वाह...इतने शानदार शेर घर के ऊपर शायद ही पहले किसी ने कहे होंगे! विज्ञान व्रत जी के बारे में बताने के लिए आपका शुक्रिया...

Rajeev Bharol said...

विज्ञान व्रत जी की ग़ज़लें बहुत सरल भाषा में बहुत बड़ी बात कह जाती हैं. शेर मन में गूंजते रहते है.. ये शेर शायद मैंने कई साल पहले पढ़ा था.. कहाँ पढ़ा था, याद नहीं. लेकिन अभी भी ज़ेह्न में जिंदा है.:

पापा घर मत लेकर आना
रात गए बातें दफ्तर की

मीनाक्षी said...

किताबों की खूबसूरत दुनिया में हर बार की सैर आनन्द देती है...शुक्रिया

mridula pradhan said...

गाँवों में जो घर होता है
शहरों में नंबर होता है
wah....kya baat hai.

Anonymous said...

बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ।

Amrita Tanmay said...

जगजीत सिंह की आवाज़ में कई गजल सुना है..विज्ञान व्रत जी का कोई सानी नहीं है..

Rahul Paliwal said...

Awesome collection!

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र said...

विज्ञान व्रत जी का तो मैं पुराना प्रशंसक हूँ। उन्हें यहाँ पढ़वाने और इस शानदार समीक्षा के लिए नीरज जी को कोटिशः धन्यवाद।

Pawan Paagal said...

मैं कितना खुश नसीब हूं कि उनसे मिलने का सौभाग्य अनायास ही प्राप्त हो जाता है

Pawan Paagal said...

मैं कितना खुश नसीब हूं कि उनसे मिलने का सौभाग्य अनायास ही प्राप्त हो जाता है