पहले जैसा गाँव नहीं है
पेड़ बहुत हैं छाँव नहीं है
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गाँवों में जो घर होता है
शहरों में नंबर होता है
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तुमसे जितनी बार मिला हूँ
पहली पहली बार मिला हूँ
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मैं कुछ बेहतर ढूंढ रहा हूँ
घर में हूँ घर ढूंढ रहा हूँ
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रहने दे ये परिभाषाएं
घर का मतलब घर होता है
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तुम हो तो ये घर लगता है
वर्ना इसमें डर लगता है
किताबों की दुनिया की इस श्रृंखला में आज हम आपकी पहचान एक ऐसे शायर से करवाने जा रहे हैं जिसकी प्रतिभा हैरत में डाल देने वाली है. ये इंसान मूल रूप से चित्रकार है या शायर ये तय करना बहुत जटिल मामला है क्यूँ की उनकी चित्रकारी में ग़ज़ल और ग़ज़ल में चित्रकारी नज़र आती है. यूँ इश्वर ने हम सभी को कोई न कोई प्रतिभा दी है लेकिन हम में से चंद ही अपने में छुपी प्रतिभा को प्रकाश में ला पाते हैं. अपने में छुपी प्रतिभा को चमकाने में महनत और लगन का होना बहुत जरूरी होता है , शिखर पर वो ही पहुँचते हैं जिनमें महनत करने का माद्दा कूट कूट कर भरा हो. कुंदन तप कर ही निखरता है ये बात तो जग जाहिर है फिर भी इसका प्रमाण हम आपको आज दे रहे हैं.
आज हम उस विलक्षण प्रतिभा के इंसान की किताब की बात करने जा रहे हैं जिसकी पेंटिंगस भारत के राष्ट्रपति भवन , जयपुर के जवाहर कला केंद्र , पंजाब यूनिवर्सिटी के फाइन आर्ट म्यूजियम, मुरारी बापू के गुरुकुल, साहित्य कला परिषद् आदि के अलावा देश- विदेश की प्रसिद्द कला वीथियों की दीवारों की शोभा बढ़ा रही हैं. उसी इंसान ने जब कलम उठाई तो अपने आपको छोटी बहर की ग़ज़ल कहने की विधा में बहुत बड़ा उस्ताद सिद्ध कर दिया. छोटी बहर में कही उनकी ग़ज़लों के चार संकलन अब तक प्रकाशित हो चुके हैं.
"विज्ञान व्रत" जी के उन्हीं चार संकलनो में से एक " बाहर धूप खड़ी है " की चर्चा हम करने जा रहे हैं.
एक जरा सी दुनिया घर की
लेकिन चीजें दुनिया भर की
पापा घर मत लेकर आना
रात गए बातें दफ्तर की
बाहर धूप खड़ी है कब से
खिड़की खोलो अपने घर की
डा. विनय मिश्र जी ने विज्ञान जी के शेरों पर बहुत बढ़िया टिप्पणी की है " घर को लेकर विज्ञान व्रत ने अद्भुत शेर कहे हैं ये घर इस मायने में अनेकार्थी हैं जिसमें अपने समय में विखरती जा रही घर की सम्वेदनाओं से लेकर वसुधैव कुटुम्बकम के निरंतर छीजते जाते हुए एहसास का स्पंदन दिखाई देता है " 17 अगस्त 1947 को एक अनाम से ग्राम तेडा, मेरठ में जन्में विज्ञान जी ने आगरा से फाइन आर्ट में एम् ऐ. किया और फिर राजस्थान से फाइन आर्ट में ही डिप्लोमा भी किया.
जब तक एक विवाद रहा मैं
तब तक ही आबाद रहा मैं
महलों के लफ्फाज़ कंगूरे
गूंगी सी फ़रियाद रहा मैं
शब्दों के उस कोलाहल में
अनबोला संवाद रहा मैं
कोई रस्ता बेहतर ढूंढो
खुद को अपने अन्दर ढूंढो
सुबह मिले ना सिलवट जिसमें
ऐसा कोई बिस्तर ढूंढो
सिर्फ इमारत बनवाई है
इसमें घर का मंज़र ढूंढो
"अयन प्रकाशन" दिल्ली ने विज्ञान व्रत जी की ग़ज़लों की चारों पुस्तकों "बाहर धूप खड़ी है", "चुप की आवाज़", "जैसे कोई लौटेगा" और "तब तक हूँ" के अलावा दोहा संकलन "सप्तपदी " का भी प्रकाशन किया है . आप अयन प्रकाशन के श्री भोपल सूद जो स्वयं शायरी के बहुत अच्छे जानकार होने के अलावा पाठकों से बेपनाह मुहब्बत करने वाले इंसान हैं, से उनके मोबाइल न. 9818988613 पर बात कर किताब प्राप्त करने की जानकारी ले सकते हैं. सूद साहब पुस्तक प्रेमियों से बात कर कितने खुश होते हैं इसका यादगार अंदाज़ा आपको उनसे बात करने के बाद ही होगा.
जब घर में हों सब मेहमान
कौन करे किसका सम्मान
बढ़ता जाता है सामान
छोटा होता घर दालान
घर है रिश्तों से अनजान
अपने घर में हूँ मेहमान
प्रतिभाशाली व्यक्ति को सम्मानित करने से सम्मान की गरिमा बढती है. विज्ञान जी पर सम्मान और पुरुस्कारों की बारिश सी हुई है : वातायन (लन्दन), समन्वय(सहारनपुर),सुरुचि(गुडगाँव),परम्परा(बिजनौर),कंवल सरहदी (मेरठ) आदि संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है और उत्तर प्रदेश की राज्य ललित कला अकादमी ने उन्हें पुरुस्कृत किया है. विज्ञान जी की ग़ज़लों को प्रसिद्द ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह, धनञ्जय कौल और निशांत अक्षर अपना स्वर दे चुके हैं. उनकी ग़ज़लों का एक अल्बम "चुप की आवाज़" बाज़ार में उपलब्ध है.
रोशन सारा घर अन्दर से
लेकिन ताला है बाहर से
सो जाने तक बच्चे तरसे
तब लौटे पापा दफ्तर से
कैसे सुस्ता सकता है वो
रिश्ते झूल रहे कांवर से
आज़ादी की परिभाषा भी
जनम जनम का बंधन भी वो
बिंदी की ख़ामोशी भी है
खन-खन करता कंगन भी वो
प्रश्नों का भी हल लगता है
और जटिल सी उलझन भी वो
आखरी में उनके ये तीन शेर आप तक पहुंचा कर विदा लेते हैं.
ऊंचे लोग सयाने निकले
महलों में तहखाने निकले
आहों का अंदाज़ नया था
लेकिन ज़ख्म पुराने निकले
जिनको पकड़ा हाथ समझ कर
वो केवल दस्ताने निकले
विज्ञान व्रत जी की बात हो और मैं टिप्पणी नहीं करू़ ऐसा हो ही नहीं सकता । अपने सर्वकालिक पसंदीदा शायर पर कैसे टिप्पणी नहीं करूं । विज्ञान व्रत जी हिंदी की उस पीढ़ी के शायर हैं जिन्होंने ये बताया कि हिंदी में सलीकेदार ग़ज़ल कैसे लिखी जा सकती है । उनकी ग़ज़लों में जो बिम्ब आते हैं वो जबरदस्त होते हैं । विज्ञान जी की ग़ज़लें अपने आप में ग़ज़ल की पूरी पाठशाला होती हैं । तुमसे जितनी बार मिला हूँ
ReplyDeleteपहली पहली बार मिला हूँ जैसा शेर लिख देना कितना जटिल काम है ये कोई शायर ही जान सकता है । विज्ञान जी ने ग़ज़लों को एक नई दिशा दी है । उनकी ग़ज़लें जिस सफाई से अपनी बात कहती हैं उससे कभी कभी रश्क हो जाता है । और इन सबके पीछे जो कारण है वो ये है कि वे स्वयं एक बहुत ही अच्छे इंसान हैं । नीरज जी आपका बहुत शुक्रिया कि आपने मेरे आलटाइम फेवरिट शायर को आज यहां रूबरू करवाया ।
किताबों और शायरों से परिचय करने का आपका अंदाज़ बेहद अनूठा और दिलचस्प होता है.. दिल्ली में ही हूँ सो उनसे मिलने का प्रबंध करता हूँ और उनके हस्ताक्षर वाली पुस्तक ही प्राप्त करूँगा... नीरज जी आपका बहुत बहुत आभार....
ReplyDeleteनीरज जी आपकी पुस्तक समीक्षा इतनी दिलचस्प होती है कि पुस्तक के प्राप्त करने के लिए एक जबरदस्त उत्सुकता स्वमेव ही बन जाती है. इस बार भी विज्ञान वृत जी के विषय में आपने बहुत सुंदर लिखा है. उनके शेर तो लाजवाब है. जितने सीधे उतने ही गंभीर गूढ़ विचार समाहित किये हुए.पुन्ह शुक्रिया.
ReplyDeleteनीरज जी ,आपकी पुस्तक के अंश बहुत अच्छे लगे --मेरी तरफ से बधाई स्वीकार करे ..कोशिश करुँगी की पढने को भी मिले ...
ReplyDeleteरहने दे ये परिभाषाएं
ReplyDeleteघर का मतलब घर होता है
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तुम हो तो ये घर लगता है
वर्ना इसमें डर लगता है
aapke likhne ka dhang itna khaas hota hai ki sabkuch khaas ho jata hai
बहुत अच्छी समीक्षा! पुस्तक पढ़ने और ग़ज़ल कार से मिलने की रुचि बढ़ गई है।
ReplyDeleteहर बार की तरह कलम के धनी शायर से मिलवाने के लिये आपकी हार्दिक आभारी हूँ।
ReplyDeleteआपकी यह समीक्षा भी हमेशा की तरह भा गई बहुत ही अच्छा लगा ...आभार ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी समीक्षा!
ReplyDeleteएक बार दुबारा से आप बहुत ही कमाल के शायर और लाजवाब ग़ज़लों का गुलदस्ता ले कर आए हैं ... विज्ञान जी की ग़ज़लों की ताज़गी ... छोटी बाहर में उनका ग़ज़लें कहने का अंदाज़ ... बिल्कुल ही नये अंदाज़ की ग़ज़लें पढ़ने को मिलीं हैं ... और ये सब संभव हुवा ...... नीरज जी आपके द्वारा ...
ReplyDeleteनीरज जी आपका आभार इतने उम्दा शायर से परिचय करवाने का |
ReplyDeleteमज़ा आ गया आप के द्वारा कोट किए गये शेर पढ़ कर, बाकी काम पंकज जी की टिप्पणी से पूरा हो गया|
ReplyDeleteघर के ऊपर कहे गए विज्ञान जी के अश-आर अद्भुत हैं. इतनी बड़ी-बड़ी बातें इतने कम शब्दों में कह देना, यह बिना प्रतिभा के कहाँ मुमकिन है. मैं विज्ञान जी की रचनाएं अपने घर में ज़रूर रखना चाहूँगा.
ReplyDeleteविज्ञान व्रत जी के बारे में गुरु जी से बराबर सुनता रहा हूँ , उनकी शायरी के बारे में हमेशा उनसे ज़िक्र होता रहा है ! हालाँकि उनको पढने का मौक़ा नहीं मिला आज आपके इस किताबों की दुनिया के क्रम में उनको और नज़दीक से जानने का मौका मिला ! इसके लिए बहुत- बहुत शुक्रिया नीरज जी !
ReplyDeleteअर्श
कुछ भी कहना, इन् सरल-जटिल शब्दों और उनमे छिपे अर्थ के लिए, कम होगा.
ReplyDeleteइनमे सरल शब्दों का एक नया संसार दिखा है. इन् अंशो से बहुत कुछ सीखने को मिला है.
इसी संकलन से हिंदी किताबो के संग्रह की शुरुवात करेंगे.
इस पोस्ट के माध्यम से हमें नयी चेतना देने लिए के लिए धन्यवाद.
-मुग्धा
व्याकरण की मर्यादा का ससम्मान पालन करते हुए छोटी बह्र में बात कह देना और वो भी यूँ कि सीधी उतर जाये, सरल नहीं होता। मेरा निजि अनुभव तो यही रहा है कि बहुत खलबली सी मची रहती है अंदर ही अंदर तब कहीं एक शेर ऐसा होता है कि कहने वाले को कुछ ठंडक पहुँचती है, यह खलबली छोटी बह्र में एक तूफ़ान का रूप ले लेती है और फिर दिखता है एक शेर। ऐसे मुकम्मल अश'आर लिये मुकम्मल ग़ज़ले कहने वाले शायर से परिचय कराने का आभार।
ReplyDeleteबहुत हकीकी पंक्ितयां पढ़वाने के लिये आभार।
ReplyDeleteसिरफिरा जी के सारगर्भित कमेण्ट के बाद क्या कहें!
ReplyDeleteयही कह सकता हूं कि विज्ञान व्रत जी कि किताब दिख जाने पर आव देखा न ताव, खरीद लूंगा!
विज्ञानं व्रत जी की शायरी बिलकुल एक अलग अंदाज़ में बहुत भली लगी । सचमुच तारीफ़ के लिए शब्द नहीं मिल रहे ।
ReplyDeleteआभार इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए ।
अब तो पुस्तक पढ़ने का मन है।
ReplyDeleteNeeraj jee Vigyan Vrat jee kuch ghazalen yahan-vahan padhi thin.Lekin aapne jis andaz me unse parichay karaya usse unko pura padhne ki iksha behad balwati ho gai hai.Aap jis nisprih saadhna se ye amulya jankariyan ham tak pahuncha rahe hain uske liye koi bhi aabhar chhota hai.
ReplyDeleteपुस्तक समीक्षा बहुत सुंदर लगी जी धन्यवाद
ReplyDeleteपहले जैसा गाँव नहीं है
ReplyDeleteपेड़ बहुत हैं छाँव नहीं है
छोटी बहर के शानदार शेर पढने को मिले ..जब शुरुवाद इतनी सुन्दर हुई तो समझ में आ गया ...कलाकार का हुनर ...विज्ञानं व्रत ...नाम ही एक संगम लिए हुए है ...व्रत यानि साधना ..बधाई
शुक्रिया नीरज जी.इस प्रतिभा का परिचय करवाने के लिये.
ReplyDeleteनीरज जी
ReplyDeleteएक मुद्दत से विज्ञान व्रत जी की रचनाएँ अलग अलग पत्रिकाओं में पढ़ते रहे हैं...!! उनके बारे में आपने ये पोस्ट लिख कर हम जैसे ग़ज़ल प्रेमियों पर उपकार ही किया है. विज्ञान जी पढना हमेशा सुखकर होता है...... साथ ही आपको पढना भी आनंद की अनुभूति है.
विज्ञान व्रत जी के ग़ज़लें वाकई कमाल की होती है..छोटी बहर में बेहतरीन से बेहतरीन भाव रख देना आसान नही है..हिन्दी साहित्य जगत के एक महान ग़ज़लक़ार के बारे में विस्तार से जानकर और उनके ग़ज़लों को पढ़ कर बहुत अच्छा लग रहा है..किताब तो ज़रूर लूँगा पर आपने जिस प्रकार से प्रस्तुति की वो भी कमाल की है...नीरज जी बहुत बहुत आभार..
ReplyDeleteनमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteकिताबों की दुनिया के नायाब खजाने में, आपने एक बेशकीमती मोती जोड़ दिया है.
विज्ञान व्रत जी, के कहें शेर अपने में एक मिसाल हैं, जो बहुत कुछ सिखा जाते हैं. छोटी बहर में लिखना आसान तो लगता है मगर लिखो तो हकीकत मालूम चल जाती है. एक ज़रा सी फिसलन शेर की शेरियत से समझौता कर देती है लेकिन विज्ञान जी इतनी सहजता से शेर कहते हैं कि कुछ कहने के लिए ही नहीं बचता.
किस को कोट करूं किसको छोडू, हर शेर मतला खूबसूरत नगीना है,
"पहले जैसा गाँव नहीं है,पेड़ बहुत हैं छाँव नहीं है",
"गाँवों में जो घर होता है, शहरों में नंबर होता है"
"तुमसे जितनी बार मिला हूँ.पहली पहली बार मिला हूँ"
"तुम हो तो ये घर लगता है.वर्ना इसमें डर लगता है"
"एक जरा सी दुनिया घर की.लेकिन चीजें दुनिया भर की"
बस कमाल ही कमाल है.
विज्ञान व्रत जी के ग़ज़ल संग्रह की समीक्षा पढ़कर अच्छा लगा. छोटी बहरों में ग़ज़ब के शेर निकालते हैं विज्ञान व्रत जी.
ReplyDeleteवाह...इतने शानदार शेर घर के ऊपर शायद ही पहले किसी ने कहे होंगे! विज्ञान व्रत जी के बारे में बताने के लिए आपका शुक्रिया...
ReplyDeleteविज्ञान व्रत जी की ग़ज़लें बहुत सरल भाषा में बहुत बड़ी बात कह जाती हैं. शेर मन में गूंजते रहते है.. ये शेर शायद मैंने कई साल पहले पढ़ा था.. कहाँ पढ़ा था, याद नहीं. लेकिन अभी भी ज़ेह्न में जिंदा है.:
ReplyDeleteपापा घर मत लेकर आना
रात गए बातें दफ्तर की
किताबों की खूबसूरत दुनिया में हर बार की सैर आनन्द देती है...शुक्रिया
ReplyDeleteगाँवों में जो घर होता है
ReplyDeleteशहरों में नंबर होता है
wah....kya baat hai.
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।
ReplyDeleteजगजीत सिंह की आवाज़ में कई गजल सुना है..विज्ञान व्रत जी का कोई सानी नहीं है..
ReplyDeleteAwesome collection!
ReplyDeleteविज्ञान व्रत जी का तो मैं पुराना प्रशंसक हूँ। उन्हें यहाँ पढ़वाने और इस शानदार समीक्षा के लिए नीरज जी को कोटिशः धन्यवाद।
ReplyDeleteमैं कितना खुश नसीब हूं कि उनसे मिलने का सौभाग्य अनायास ही प्राप्त हो जाता है
ReplyDeleteमैं कितना खुश नसीब हूं कि उनसे मिलने का सौभाग्य अनायास ही प्राप्त हो जाता है
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