जब वो मेरी ग़ज़ल गुनगुनाने लगे
तो रकीबों के दिल कसमसाने लगे
आप जिस बात पर तमतमाने लगे
हम उसी बात पर मुस्कुराने लगे
ग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
साथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
जिन चरागों को समझा था मज़बूत हैं
जब हवायें चलीं टिमटिमाने लगे
है मुनासिब यही, मयकशी छोड़ दे
पाँव पी कर अगर, डगमगाने लगे
फिर हमें देख कर मुस्कुराए हैं वो
फिरसे बुझते दिये जगमगाने लगे
जुल्म करके बड़े सूरमा जो बने
वक्त बदला तो वो गिड़गिडाने लगे
आज के दौर में, प्यार के नाम पर
देह का द्वार सब, खटखटाने लगे
ख्वाहिशों के परिंदे थे सहमे हुए
देख 'नीरज' तुम्हें चहचहाने लगे
( ये ग़ज़ल सिर्फ मेरी नहीं है इसे कहने में पचास प्रतिशत की भागीदारी मेरे अनुज तिलक राज कपूर साहब की है )
ख्वाइशों के परिंदे थे सहमे हुए
ReplyDeleteदेख 'नीरज' तुम्हें चहचहाने लगे
ज़िन्दगी का निचोड़ ...अलग अलग अनुभूति ...बहुत सुंदर शब्दों में उकेरी है ...!!
बहुत खूबसूरत शायरी ..!!
हर शेर उम्दा ..!!
ग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
ReplyDeleteसाथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
जिन चरागों को समझा था मज़बूत हैं
जब हवायें चलीं टिमटिमाने लगे
जुल्म करके बड़े सूरमा जो बने
वक्त बदला तो वो गिड़गिडाने लगे
बहुत ख़ूब !
हर शेर अपनी अहमियत मनवाता हुआ !
बड़ी सरल और सहज भाषा में
बहुत ही प्रभावी तरीक़े से आप अपनी बात कह जाते हैं
मुबारकबाद क़ुबूल करें
आज के दौर में, प्यार के नाम पर
ReplyDeleteदेह का द्वार सब, खटखटाने लगे
कटु बात को भी सहजता से कह दिया है ..
ख्वाइशों के परिंदे थे सहमे हुए
देख 'नीरज' तुम्हें चहचहाने लगे
सुन्दर अभिव्यक्ति ...खूबसूरत गज़ल
आज के दौर में, प्यार के नाम पर
ReplyDeleteदेह का द्वार सब, खटखटाने लगे ... aur parampraaon ko raakh ker diya
ग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
ReplyDeleteसाथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
घर से मस्जिद है अगर दूर चलो यूँ करलें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये
खुबसूरत ग़जल मुबारक हो.........
ग़ज़ल प्यारी बन पड़ी है......जीवन के चंद एहसासों को समेट कर छोटी बहर में बड़ी बड़ी बातें कह डाली आपने......! ये शेर बहुत की सटीक हैं....!
ReplyDeleteआप जिस बात पर तमतमाने लगे
हम उसी बात पर मुस्कुराने लगे
बहुत सुन्दर वाह वाह.......
जिन चरागों को समझा था मज़बूत हैं
जब हवायें चलीं टिमटिमाने लगे
अच्छा लिखा है हुज़ूर....!
आज के दौर में, प्यार के नाम पर
देह का द्वार सब, खटखटाने लगे
ख्वाइशों के परिंदे थे सहमे हुए
देख 'नीरज' तुम्हें चहचहाने लगे
जिंदाबाद......!!!!
बहुत सुंदर जान पढ़ती है --बच्चो की तरह मासूम ...
ReplyDeleteग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
ReplyDeleteसाथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
ख्वाइशों के परिंदे थे सहमे हुए
देख 'नीरज' तुम्हें चहचहाने लगे
बहुत खूब साब! अनुज और अग्रज दोनों को बधाई।
जिन चरागों को समझा था मज़बूत हैं
ReplyDeleteजब हवायें चलीं टिमटिमाने लगे ..
बहुत खूब नीरज जी ... हम तो आपकी और तिलक जी की जुगलबंदी देख रहे हैं ... और पढ़ रहे हैं कमाल के मोती ... जीवन के बहुत से रंगो से सजी है ये ग़ज़ल ...
Gam n jaane kahan par hwaa ho gaye
ReplyDeletesaath bachchon ke jab muskrane lage
Khoob badhiya sher hai ! sher
vo padhte hee fauran yaad rah jaaye
Sab ke manon ko sparsh karne waalee
aapkee gazal par aapko badhaaee
deta hoon .
ग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
ReplyDeleteसाथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
आज के दौर में, प्यार के नाम पर
देह का द्वार सब, खटखटाने लगे
ख्वाहिशों के परिंदे थे सहमे हुए
देख 'नीरज' तुम्हें चहचहाने लगे
हमेशा की तरह शानदार गज़ल्…………हर शेर बेहतरीन्।
ग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
ReplyDeleteसाथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
ख्वाहिशों के परिंदे थे सहमे हुए
देख 'नीरज' तुम्हें चहचहाने लगे
सुन्दर अभिव्यक्ति ...खूबसूरत गज़ल...
Neeraj jee namaskar,
ReplyDeleteSahaj shaili me gahri bat kahna apki kalam ka hallmark ban gaya hai.Ghazal bahut pasand aai.Khas kar yeh sher:
आज के दौर में, प्यार के नाम पर
देह का द्वार सब, खटखटाने लगे
शायर बहुत अनूठा जीव होता है! चिराग को मजबूत समझता है! हम हैं की मिट्टी के दिए की भंगुरता को ले परेशान रहते हैं!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल.
ReplyDeleteग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
ReplyDeleteसाथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
वाह बहुत खूब कहा है .... ।
फिर हमें देख कर मुस्कुराए हैं वो
ReplyDeleteफिर बुझे दीप सब जगमगाने लगे
ख्वाहिशों के परिंदे थे सहमे हुए
देख 'नीरज' तुम्हें चहचहाने लगे
बहुत ही शानदार और यादगार ग़ज़ल कही है जनाब
बड़ी उलझन आन पड़ती है क किस शेर का हवाला दिया जाए
हर शेर अपने आप को खुद ही पढवाता हुआ ...
वाह !
सारी ग़ज़ल ही शानदार है । निर्मल , कोमल अहसास लिए हुए ।
ReplyDeleteजुल्म करके बड़े सूरमा जो बने
ReplyDeleteवक्त बदला तो वो गिड़गिडाने लगे
वाह वाह
मस्त
ख्वाहिशों के परिंदे थे सहमे हुए
ReplyDeleteदेख 'नीरज' तुम्हें चहचहाने लगे
बधाई भाई जी !
काश हमें भी देख पंछी चहचहाते।
ReplyDeleteहै मुनासिब यही, मयकशी छोड़ दे
ReplyDeleteपाँव पी कर अगर, डगमगाने लगे ...
इसे पढ़कर याद हो आया कि किसी शायर (शायद मज़ाज) को हाकिम ने कहा कि अगर तुम पीना छोड़ दो मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा. शायर का सवाल था -'तो मियां फिर मैं माल का करूंगा क्या'
हमारी पसंद:
ReplyDelete"आप जिस बात पर तमतमाने लगे
हम उसी बात पर मुस्कुराने लगे"
bahut khoob
ReplyDeletekhoobsurat gazal.....neeraj ji..sadhuwad
ReplyDeleteएक खूबसूरत ग़ज़ल के लिये दिली बधाई।
ReplyDeleteआपसे बहुत कुछ सीखना हे अभी। मेरा नाम एक खूबसूरत ग़ज़ल से जोड़कर आपने जो सम्मान दिया उसके लिये दिल से आभारी हूँ। वो दिन दूर नहीं जब आपकी पुस्तक की समीक्षा आपके ब्लॉग पर होगी।
अब छप भी जाईये।
नीरज जी......शानदार.....बेहतरीन.....समझ नहीं आता किस शेर की तारीफ ज्यादा करूँ .....सब एक से बढकर एक हैं........आपकी खूबी है की आप भारी - भरकम लफ़्ज़ों का इस्तेमाल किये बिना छोटे बहर की इतनी शानदार ग़ज़लें प्रस्तुत करते हैं.........हैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए |
ReplyDeleteAwesome, sir. Both you and Anuj Tilak Raj.
ReplyDeleteRegards,
Purvesh Gada
+91-98195 47048
http://about.me/purveshg
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण पोस्ट! दिल को छू गयी! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
ReplyDeleteसाथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
-वाह नीरज भाई..यही शेर आजकल नित अहसास रहा हूँ. :)
फिर हमें देख कर मुस्कुराए हैं वो
ReplyDeleteफिरसे बुझते दिये जगमगाने लगे
ग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
साथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
वाह क्या बात है । गज़ल मे से एक या दो शेर चुनना मुश्किल तो है पर ये दोनों सहज सरल प्रसन्न करने वाले लगे ।
आप जिस बात पर तमतमाने लगे
ReplyDeleteहम उसी बात पर मुस्कुराने लगे
ग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
साथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
nice post
:)
अच्छी गज़ल।
ReplyDeleteग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
ReplyDeleteसाथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
....सच बच्चों को देख मर मर कर भी हिम्मत आ ही जाती है .....
बहुत बढ़िया गजल प्रस्तुति के लिए आभार
आप जिस बात पर तमतमाने लगे
ReplyDeleteहम उसी बात पर मुस्कुराने लगे
शानदार शेर नीरज जी,
सब आप जैसे हो जाए, तो दुनिया जन्नत बन जाए :)
फिर हमें देख कर मुस्कुराए हैं वो
फिर से बुझते दिये जगमगाने लगे
उम्मीदें जगाता प्यारा शेर.
बस आप कहते रहें हम सुनते रहें।
ReplyDeleteबड़े भाई!
ReplyDeleteआज तो सलीम जावेद वाली गज़ल हो गयी.. तभी कहूँ नशा इतना क्यूं है!!
ग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
ReplyDeleteसाथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
बच्चे बडों के खिलौने हैं ये बात साबित कर दी इस शेर के माध्यम से।
जिन चरागों को समझा था मज़बूत हैं
जब हवायें चलीं टिमटिमाने लगे
बहुत खूबसूरत गज़ल है। बधाई आपको।
है मुनासिब यही, मयकशी छोड़ दे
ReplyDeleteपाँव पी कर अगर, डगमगाने लगे
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल
शुभकामनाएं !
क्या कहूँ...इन दिनों बहुत कुछ पढ़ रहा हूँ.....बस पढ़ रहा हूँ.....जितना आपको पढता हूँ....उतनी तलब बढती जाती है ...उम्मीद है इस बार जयपुर में जुलाई में मुलाकात होगी...
ReplyDeleteनदीम कासमी साहब का एक शेर मुझे बेहद पसंद है .....
तमाम उम्र वफ़ा के गुनाहगार रहे
ये ओर बात है के हम आदमी तो अच्छे थे
Bachchon ki muskan ki tarh sundar..
ReplyDelete............
तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।
ग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
ReplyDeleteसाथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे
ये शेर सौ प्रतिशत सही है.............
पूरी ग़ज़ल खूबसूरत है!
neeraj jee
ReplyDeletepranam !
umdaa gazal ke liye shukariyaa . har sher achcha hai . aur kuch sher to bauht pyaree pyare hai .
sadhuwad .
saadar
नीरज भाई आप तो वाकई मुस्कुराहट के होल्सेल डिस्ट्रिबूटर हैं| आप की ग़ज़ल में भी हँसगुल्लों का बाक़ायदा भरा पूरा इंतेज़ाम होता है|
ReplyDeleteफिर हमें देख कर..................भाई राज़ की बात इस तरह सरेआम!!!!!!!!!!!!!!!
देह का द्वार..............हाए हाए हाए, यार क्या बात कही हैं| काश................मैं भी आप की तरह कह पाता|
आदमी का अक्स ग़ज़ल में उतर ही आता है| हँसमुख बंदे का भी और संजीदा व्यक्ति का भी| तिलक भाई साब का साथ तो भाई वैसे भी चार चाँद लगा देता है, और आप की ईमानदारी की भी दाद देनी पड़ेगी|
bahut achchi lagi.
ReplyDeleteग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
ReplyDeleteसाथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे ---
बच्चों के साथ खिलखिलाने के लिए हम भी आ पहुँचे...
sahaj, saral shabdon mein umda baat keh jate hai aap...
ReplyDeleteएक खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई.....
ReplyDeleteपश्चिमी सभ्यता के कारण समाज में आये एक ज़बरदस्त परिवर्तन को चित्रित करता हुआ आपका निम्न शेर खूबसूरत बन पड़ा है.
ReplyDeleteआज के दौर में, प्यार के नाम पर
देह का द्वार सब, खटखटाने लगे.
पूरी ग़ज़ल बेहतरीन.
ग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
ReplyDeleteसाथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे...
wonderful!!!
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ReplyDeletesahaj, saral shabdon mein umda baat keh jate hai aap...
Manish Kumar
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ReplyDeleteग़म न जाने कहाँ पर हवा हो गए
साथ बच्चों के जब खिलखिलाने लगे ---
बच्चों के साथ खिलखिलाने के लिए हम भी आ पहुँचे...
Meenu
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ReplyDeletebahut achchi lagi.
Mridula Pradhaan
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ReplyDeleteनीरज भाई आप तो वाकई मुस्कुराहट के होल्सेल डिस्ट्रिबूटर हैं| आप की ग़ज़ल में भी हँसगुल्लों का बाक़ायदा भरा पूरा इंतेज़ाम होता है|
फिर हमें देख कर..................भाई राज़ की बात इस तरह सरेआम!!!!!!!!!!!!!!!
देह का द्वार..............हाए हाए हाए, यार क्या बात कही हैं| काश................मैं भी आप की तरह कह पाता|
आदमी का अक्स ग़ज़ल में उतर ही आता है| हँसमुख बंदे का भी और संजीदा व्यक्ति का भी| तिलक भाई साब का साथ तो भाई वैसे भी चार चाँद लगा देता है, और आप की ईमानदारी की भी दाद देनी पड़ेगी|
Navin C Chaturvedi
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ReplyDeleteneeraj jee
pranam !
umdaa gazal ke liye shukariyaa . har sher achcha hai . aur kuch sher to bauht pyaree pyare hai .
sadhuwad .
saadar
Sunil Gajjani
"आज के दौर में, प्यार के नाम पर...................", आज के समाज को आइना दिखाता आप का ये शेर, बहुत उम्दा है.
ReplyDelete"ख्वाहिशों के परिंदे थे सहमे हुए ...................", वाह वा, सर जी. क्या खूब कहा है. एक नया अंदाज़.
'है मुनासिब यही, मयकशी छोड़ दे
ReplyDeleteपाँव पी कर अगर, डगमगाने लगे '
बहुत सुंदर!
इससे ज्यादा कहना भी अभी नहीं सीखा है.
यहाँ आते रहेंगे और सीखते रहेंगे.
इस ग़ज़ल से रु-बा-रु कराने के लिए आभार
-मुग्धा
खूबसूरत गज़ल ..अनंत शुभकामनायें
ReplyDelete