किताबों की दुनिया श्रृंखला की हाफ सेचुरी पूरी करने के बाद चलिए अब इसके अगले पड़ाव की और कदम बढाते हैं. रास्ता मुश्किल है लेकिन आपके स्नेह और संबल से इसे पार करने में शायद मैं समर्थ हो जाऊं. आपने साथ छोड़ दिया तो इस श्रृंखला का दम तोडना निश्चित है. किताबें मेरी कमजोरी हैं लेकिन मैं अपने आपको इतना सक्षम नहीं समझता के किसी किताब की समीक्षा कर सकूँ इसलिए आपने देखा होगा के मैंने किताब पर कभी आलोचक की नज़र से कुछ नहीं कहा क्यूँ कि आलोचना का अधिकार सिर्फ उसे होता है जिसका ज्ञान पुस्तक के लेखक से अधिक हो. शायरी का प्रेमी जरूर हूँ लेकिन इस विधा पर लिखने में अभी बच्चा हूँ. मेरी कोशिश रहती है के किताब की खूबियों की और आपका ध्यान दिलाऊं ताकि आप उसे खरीद कर पढ़ें क्यूँ की आज के युग में किताब खरीद कर पढने वाले पाठकों की संख्या में अप्रत्याशित कमी आई है. हम पान बीडी सिगरेट सिनेमा में आराम से पैसे उड़ा देते हैं लेकिन पचास सौ रुपये की किताब खरीदने में हिचकते हैं. किताब पढने के लिए वक्त की कमी का बहाना बनाते हैं जबकि यार दोस्तों के साथ फ़िज़ूल की बातों में या टी.वी के ऊलजुलूल कार्यकर्मों के सामने बैठ कर घंटों बिता देते हैं. चलिए छोडिये ये बहस का विषय है आईये शायरी की और लौटते हैं.
मोहब्बत का ज़ज्बा जगा कर के देखो
कभी दिल को तुम दिल बना कर के देखो
हो तुम भी तभी तक, कि जब तक कि हम हैं
न मानो तो हमको मिटाकर के देखो
भुलाना हमें इतना आसाँ नहीं है
है आसाँ तो हमको भुला कर के देखो
सच है ऐसे बाकमाल शेर कहने वाले शायर को कौन भुला सकता है? शीरीं ज़बान में ऐसे रोमांटिक शेर कहने वाले शायर अब गिनती के ही बचे हैं जिन्हें उँगलियों पर गिना जा सकता है. आज हम ऐसे ही अनूठे शायर डाक्टर ऐ.के.श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब शाहाबादी साहब की किताब " थोडा सा रूमानी हो लें हम " का जिक्र करेंगे जिसे पढ़ कर थोडा सा नहीं बहुत ज्यादा रूमानी होने की प्रबल संभावनाएं हैं. इस किताब में नवाब साहब की लगभग एक सौ अस्सी लाजवाब ग़ज़लें संकलित हैं.
तल्खी है बहुत ही जीवन में, थोडा सा रूमानी होलें हम
कुछ रंग तुम अपने छलकाओ, कुछ प्यार की मस्ती घोलें हम
हम कैस नहीं, फ़रहाद नहीं, जो होश गँवा बैठें अपना
क्या राज़ है अपनी उल्फ़त का, क्यूँ तुझपे जमाना खोलें हम
है मुंह में जबाँ तो अपने भी, होंठों को सिये बैठे हैं मगर
'नव्वाब' किसी की महफ़िल में, ये सोचते हैं क्या बोले हम
अब आप ही बताइए ऐसी शायरी आजकल कहाँ पढने सुनने को मिलती है. ज़िन्दगी की तल्खियों ने शायरी की जबान को भी तल्ख़ कर दिया है, ये किताब कुछ हद तक उस तल्खी को दूर कर आपकी रूह को सुकून पहुंचाने का काम करती है. कभी कभी मैंने देखा है अचानक पढ़ा एक शेर आपके मूड को बदल देता है आप अवसाद से मुक्ति पा लेते हैं और वाह कह उठते हैं. तभी तो आज भी लोग उस एक शेर की तलाश में सारी सारी रात जाग कर मुशायरा सुनते हैं.
देने चला है जान का नजराना देखिये
लिपटा है जा के शमअ से परवाना देखिये
मज़हब की इन किताबों ने आखिर दिया है क्या
एक बार पढ़ के प्यार का अफ़साना देखिये
मरने लगे हैं वो भी उसी पर के जिस पे हम
यारों का ये सलूके - हरीफ़ाना देखिये
नवाब शाहाबादी साहब पेशे से डाक्टर हैं , आपको शायद मालूम हो लेकिन मुझे इस किताब से ही मालूम पड़ा के उस्ताद शायर जनाब मोमिन खां 'मोमिन' भी अपने ज़माने के मशहूर हकीम थे. जनाब इब्राहिम'अश्क' साहब फरमाते हैं " नवाब साहब ऐसे शायर हैं जो वक्त पड़ने पर सबके काम आते हैं. जो शख्स सबके काम आता है उसका मज़हब इंसानियत होता है" ये इंसानियत उनकी पूरी शायरी में नज़र आती है.
आये तो गुलिस्तां में कुछ ऐसी बहार आये
फूलों को सुकूं आये काँटों को करार आये
लोगों ने गुज़ारी है, जैसी भी वहां गुज़री
कुछ हँस के गुज़ार आये कुछ रो के गुज़ार आये
'नव्वाब' कहीं सदमा पहुंचे न कोई उनको
हम जीती हुई बाज़ी ये सोच के हार आये
काटों के करार और जानबूझ के बाज़ी हारने की बातें करने वाले शायर किस कदर इंसानियत से भरे होंगे इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है. बकौल नवाब साहब " कल-कल करते झरनों का संगीत, नीले आकाश में उड़ते हुए बादल, सुरमई साँझ, लहरों का गीत, कलरव करते पक्षी, मुस्कुराती हुई कलियाँ, अमराई की गंध, ओस में नहाई चांदनी आदि कितने बिम्ब मूड को बदल देते हैं. तल्खियाँ कम हो जाती हैं और मन ऐसे वातावरण में चला जाता है जहाँ आनंद की अनूभूति होती है."
किसे देखने को हैं बेताब आँखें
जो खुलने लगी खिड़कियाँ धीरे धीरे
जो मौजों के तेवर से वाकिफ़ नहीं हैं
डुबों देंगे वो कश्तियाँ धीरे धीरे
बड़ा प्यार आया जो बालों पे मेरे
फिराने लगे उँगलियाँ धीरे धीरे
"डायमंड पाकेट बुक्स" ने इस किताब को, जिसे राजेश राज जी ने संकलित किया है, बहुत आकर्षक कलेवर के साथ छापा है. इस किताब को आसानी से किसी भी हिंदी पुस्तकों के विक्रेता से प्राप्त किया जा सकता है फिर भी न मिलने की स्तिथि में आप ओखला इंडस्ट्रियल एरिया दिल्ली स्तिथ डायमंड बुक्स वालों को 011- 41611861 नंबर पर फोन करके इसे मंगवा सकते हैं.
उस सितम को सितम नहीं कहते
जो सितम बार बार होता है
कोई हँसता है सुन के हाले ग़म
और कोई अश्क बार होता है
हाथ डालें जरा संभल के आप
फूल के पास खार होता है
मोहब्बत का ज़ज्बा जगा कर के देखो
कभी दिल को तुम दिल बना कर के देखो
हो तुम भी तभी तक, कि जब तक कि हम हैं
न मानो तो हमको मिटाकर के देखो
भुलाना हमें इतना आसाँ नहीं है
है आसाँ तो हमको भुला कर के देखो
सच है ऐसे बाकमाल शेर कहने वाले शायर को कौन भुला सकता है? शीरीं ज़बान में ऐसे रोमांटिक शेर कहने वाले शायर अब गिनती के ही बचे हैं जिन्हें उँगलियों पर गिना जा सकता है. आज हम ऐसे ही अनूठे शायर डाक्टर ऐ.के.श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब शाहाबादी साहब की किताब " थोडा सा रूमानी हो लें हम " का जिक्र करेंगे जिसे पढ़ कर थोडा सा नहीं बहुत ज्यादा रूमानी होने की प्रबल संभावनाएं हैं. इस किताब में नवाब साहब की लगभग एक सौ अस्सी लाजवाब ग़ज़लें संकलित हैं.
तल्खी है बहुत ही जीवन में, थोडा सा रूमानी होलें हम
कुछ रंग तुम अपने छलकाओ, कुछ प्यार की मस्ती घोलें हम
हम कैस नहीं, फ़रहाद नहीं, जो होश गँवा बैठें अपना
क्या राज़ है अपनी उल्फ़त का, क्यूँ तुझपे जमाना खोलें हम
है मुंह में जबाँ तो अपने भी, होंठों को सिये बैठे हैं मगर
'नव्वाब' किसी की महफ़िल में, ये सोचते हैं क्या बोले हम
अब आप ही बताइए ऐसी शायरी आजकल कहाँ पढने सुनने को मिलती है. ज़िन्दगी की तल्खियों ने शायरी की जबान को भी तल्ख़ कर दिया है, ये किताब कुछ हद तक उस तल्खी को दूर कर आपकी रूह को सुकून पहुंचाने का काम करती है. कभी कभी मैंने देखा है अचानक पढ़ा एक शेर आपके मूड को बदल देता है आप अवसाद से मुक्ति पा लेते हैं और वाह कह उठते हैं. तभी तो आज भी लोग उस एक शेर की तलाश में सारी सारी रात जाग कर मुशायरा सुनते हैं.
देने चला है जान का नजराना देखिये
लिपटा है जा के शमअ से परवाना देखिये
मज़हब की इन किताबों ने आखिर दिया है क्या
एक बार पढ़ के प्यार का अफ़साना देखिये
मरने लगे हैं वो भी उसी पर के जिस पे हम
यारों का ये सलूके - हरीफ़ाना देखिये
नवाब शाहाबादी साहब पेशे से डाक्टर हैं , आपको शायद मालूम हो लेकिन मुझे इस किताब से ही मालूम पड़ा के उस्ताद शायर जनाब मोमिन खां 'मोमिन' भी अपने ज़माने के मशहूर हकीम थे. जनाब इब्राहिम'अश्क' साहब फरमाते हैं " नवाब साहब ऐसे शायर हैं जो वक्त पड़ने पर सबके काम आते हैं. जो शख्स सबके काम आता है उसका मज़हब इंसानियत होता है" ये इंसानियत उनकी पूरी शायरी में नज़र आती है.
आये तो गुलिस्तां में कुछ ऐसी बहार आये
फूलों को सुकूं आये काँटों को करार आये
लोगों ने गुज़ारी है, जैसी भी वहां गुज़री
कुछ हँस के गुज़ार आये कुछ रो के गुज़ार आये
'नव्वाब' कहीं सदमा पहुंचे न कोई उनको
हम जीती हुई बाज़ी ये सोच के हार आये
काटों के करार और जानबूझ के बाज़ी हारने की बातें करने वाले शायर किस कदर इंसानियत से भरे होंगे इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है. बकौल नवाब साहब " कल-कल करते झरनों का संगीत, नीले आकाश में उड़ते हुए बादल, सुरमई साँझ, लहरों का गीत, कलरव करते पक्षी, मुस्कुराती हुई कलियाँ, अमराई की गंध, ओस में नहाई चांदनी आदि कितने बिम्ब मूड को बदल देते हैं. तल्खियाँ कम हो जाती हैं और मन ऐसे वातावरण में चला जाता है जहाँ आनंद की अनूभूति होती है."
किसे देखने को हैं बेताब आँखें
जो खुलने लगी खिड़कियाँ धीरे धीरे
जो मौजों के तेवर से वाकिफ़ नहीं हैं
डुबों देंगे वो कश्तियाँ धीरे धीरे
बड़ा प्यार आया जो बालों पे मेरे
फिराने लगे उँगलियाँ धीरे धीरे
"डायमंड पाकेट बुक्स" ने इस किताब को, जिसे राजेश राज जी ने संकलित किया है, बहुत आकर्षक कलेवर के साथ छापा है. इस किताब को आसानी से किसी भी हिंदी पुस्तकों के विक्रेता से प्राप्त किया जा सकता है फिर भी न मिलने की स्तिथि में आप ओखला इंडस्ट्रियल एरिया दिल्ली स्तिथ डायमंड बुक्स वालों को 011- 41611861 नंबर पर फोन करके इसे मंगवा सकते हैं.
उस सितम को सितम नहीं कहते
जो सितम बार बार होता है
कोई हँसता है सुन के हाले ग़म
और कोई अश्क बार होता है
हाथ डालें जरा संभल के आप
फूल के पास खार होता है
फूल के पास भले ही खार होता हो लेकिन नवाब साहब की शायरी तो उस फूल की तरह है जिसमें रंग है खुशबू है और खार अगर कहीं है भी तो बहुत दूर है. आपको यदि उनकी शायरी की बानगी पसंद आई है तो आप बराए मेहरबानी नवाब साहब को, जो रायबरेली रोड ,लखनऊ के निवासी हैं,उनके मोबाईल न. 09839221614 या उनके लैन लाइन न. 0522-2442121 पर बात करके मुबारकबाद तो दे ही सकते हैं.
कुछ तो शरीके इश्क़ की नाकामियाँ भी थीं
कुछ हाले - नामुराद ने शायर बना दिया
तुम कोशिशों के बाद भी शायर न बन सके
हमको तुम्हारी याद ने शायर बना दिया
करता अदा हूँ शुक्र तुम्हारा मैं दोस्तों
मुझको तुम्हारी दाद ने शायर बना दिया
तो आप दोस्ती का फ़र्ज़ निभाइए नवाब साहब को उनके कलाम के लिए दाद दीजिये तब तक हम निकलते हैं एक और किताब की तलाश में.
कुछ तो शरीके इश्क़ की नाकामियाँ भी थीं
कुछ हाले - नामुराद ने शायर बना दिया
तुम कोशिशों के बाद भी शायर न बन सके
हमको तुम्हारी याद ने शायर बना दिया
करता अदा हूँ शुक्र तुम्हारा मैं दोस्तों
मुझको तुम्हारी दाद ने शायर बना दिया
तो आप दोस्ती का फ़र्ज़ निभाइए नवाब साहब को उनके कलाम के लिए दाद दीजिये तब तक हम निकलते हैं एक और किताब की तलाश में.
आये तो गुलिस्तां में कुछ ऐसी बहार आये
ReplyDeleteफूलों को सुकूं आये काँटों को करार आये
बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
जो मौजों के तेवर से वाकिफ़ नहीं हैं
ReplyDeleteडुबों देंगे वो कश्तियाँ धीरे धीरे
बहुत अच्छे कलाम से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया नीरज जी.
नवाब साहब के विषय में और उनके कृतित्व के बारे में बड़ा ही शानदार लिखा आपने......
ReplyDeleteवाकई बड़े शायर हैं.... यह उनके कलाम से ज़ाहिर भी होता है......
तल्खी है बहुत ही जीवन में, थोडा सा रूमानी होलें हम
कुछ रंग तुम अपने छलकाओ, कुछ प्यार की मस्ती घोलें हम
और
हम कैस नहीं, फ़रहाद नहीं, जो होश गँवा बैठें अपना
क्या राज़ है अपनी उल्फ़त का, क्यूँ तुझपे जमाना खोलें हम
जैसे शेरों को बार बार पढ़ने का दिल किया..... यह दीवान तो हमें लेना ही पड़ेगा.
परिचय की श्रंखला की इक्यावन कड़ियों की सफलता की हार्दिक बधाई...
कभी-कभी मैंने देखा है अचानक पढ़ा एक शेर आपके मूड को बदल देता है आप अवसाद से मुक्ति पा लेते हैं और वाह कह उठते हैं. तभी तो आज भी लोग उस एक शेर की तलाश में सारी सारी रात जाग कर मुशायरा सुनते हैं.
ReplyDeleteइत्तेफ़ाक रखते हैं आपकी बात से। आपकी समीक्षा का भी एक-एक शब्द स्वर्णाक्षरों सा चमकता है।
है मुंह में जबाँ तो अपने भी, होंठों को सिये बैठे हैं मगर
'नव्वाब' किसी की महफ़िल में, ये सोचते हैं क्या बोले हम
'नव्वाब' कहीं सदमा पहुंचे न कोई उनको
हम जीती हुई बाज़ी ये सोच के हार आये
भुलाना हमें इतना आसाँ नहीं है
ReplyDeleteहै आसाँ तो हमको भुला कर के देखो
moti mil hi jata hai aapki khoj me
मज़हब की इन किताबों ने आखिर दिया है क्या
ReplyDeleteएक बार पढ़ के प्यार का अफ़साना देखिये
जिस शायर का कलाम इतना लाजवाब हो .. सोच इतनी कमाल की हो वो खुद कैसा इंसान होगा .... बहुत ही लाजवाब किताब से परिचय करवाया है आज तो आपने नीरज जी ... नवाब साहब की शायरी को सलाम है ... हाँ आपकी बात से इतेफ़ाक रखता हूँ की किताबों खरीद कर ही पढ़ना चाहिए ...
उस सितम को सितम नहीं कहते
ReplyDeleteजो सितम बार बार होता है
कोई हँसता है सुन के हाले ग़म
और कोई अश्क बार होता है
हाथ डालें जरा संभल के आप
फूल के पास खार होता है
bahut barhiya ghazal hai.... neeraj sir jee ko ek behtareen post ke liye badhaai....
Aakarshan
नीरज जी
ReplyDeleteकिताबों के इस सफ़र की हाफ सेंचुरी के बाद आपकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है.. आपके इस सफ़र में आधे से तो मैं साथ हूँ ही पाठक के तौर पर और ग़ज़ल के प्रति जो थोड़ी रूचि जगी है उसमे आपके इस श्रंखला का योगदान है.. . इस अंक में जिस पुस्तक को आपने शामिल किया है वह बेहतरीन है.. हर शेर सार्थक है ...
लाजवाब किताब से परिचय करवाया है आपने नीरज जी ... नवाब साहब की शायरी बेमिसाल है...
ReplyDeleteKHOOB ! BAHUT KHOOB !! AAPKEE
ReplyDeletePASAND PAR NAAZ HAI .
aadarniy sir
ReplyDeletesarv pratham to jo kuchh apne lekh ke jariye aapne likha hai uski har panktiyan sachchai ka aaina hi dikhati hainbahut hi achhe v mahatav vichar bahut bahut achhe lage
shayarnawab shahabaadi ki kitaab to bahut bahut hi achhi lagin jabki abhi aapko ise sampurn karna hai.par har gazl har sher ----shbhan allah
kis kis ki tarrif karun
आये तो गुलिस्तां में कुछ ऐसी बहार आये
फूलों को सुकूं आये काँटों को करार आये
लोगों ने गुज़ारी है, जैसी भी वहां गुज़री
कुछ हँस के गुज़ार आये कुछ रो के गुज़ार आये
'नव्वाब' कहीं सदमा पहुंचे न कोई उनको
हम जीती हुई बाज़ी ये सोच के हार आये
bahut bahut pasand aai
hardik badhai
poonam
आये तो गुलिस्तां में कुछ ऐसी बहार आये
ReplyDeleteफूलों को सुकूं आये काँटों को करार आये
लोगों ने गुज़ारी है, जैसी भी वहां गुज़री
कुछ हँस के गुज़ार आये कुछ रो के गुज़ार आये
'नव्वाब' कहीं सदमा पहुंचे न कोई उनको
हम जीती हुई बाज़ी ये सोच के हार आये
भारत भर के अज़ीम शायरों के बारे में जानना हो तो आपके ब्लॉग पर आना चाहिए ...एक से एक बढ़कर शायरों से रूबरू करवाते हैं आप ... इस बार भी जनाब नवाब शाहाबादी साहब की शायरी से परिचय करवाकर हम पाठकों पर एहसान किये हैं आप ... हर शेर पढते गए और बस वाह वाह कहते गए ...
भाई नीरज जी वाकई आप कमाल का काम कर रहे है जो तथाकथित साहित्य की पत्रिकाएँ भी इतनी ईमानदारी से नहीं कर पति हैं |आपकी हर पोस्ट बेहतरीन शायरों से रूबरू कराती है बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteकिताबों की दुनिया श्रृंखला की हाफ सेचुरी पूरी करने के लिए बधाई. आपकी हर समीक्षा लाजवाब होती है.
ReplyDeleteभुलाना हमें इतना आसाँ नहीं है
ReplyDeleteहै आसाँ तो हमको भुला कर के देखो
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'नव्वाब' कहीं सदमा पहुंचे न कोई उनको
हम जीती हुई बाज़ी ये सोच के हार आये
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कोई हँसता है सुन के हाले ग़म
और कोई अश्क बार होता है
********
नीरज जी बहुत बहुत शुक्रिया ,,,आप सही मायनों में साहित्यकार और साहित्य प्रेमी हैं
डाक्टर ऐ.के.श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब शाहाबादी साहब की किताब " थोडा सा रूमानी हो लें हम " से परिचय कराने का आभार. आनन्द आया.
ReplyDeleteतुम कोशिशों के बाद भी शायर न बन सके
ReplyDeleteहमको तुम्हारी याद ने शायर बना दिया
आनंदम ....
जो मौजों के तेवर से वाकिफ़ नहीं हैं
ReplyDeleteडुबों देंगे वो कश्तियाँ धीरे धीरे
वक्त की जुबां को ना समझने वाला कश्ितयां डुबो ही लेता है...
Neeraj jee ghazalon ke prati aapki yah lagan viral hai aur ham jaise sahityasevi aapke karzdar.
ReplyDeleteशुक्रिया नीरज भाई|
ReplyDeleteहमारी यही कामना है कि आप शतकों के बेताज बादशाह सचिन तेंदुलकर की तरह यहाँ पुस्तकों को प्रस्तुत करते हुए रिकार्ड पर रिकार्ड बनाते रहें| हम जैसे घर बैठे वर्चुअल लोगों को बाहर की दुनिया दिखाते रहें|
श्रीवास्तव जी उर्फ नवाब साहब को बहुत बहुत शुभ कामनाएँ..............
आपकी टिपण्णी और हौसला अफजाही के लिए शुक्रिया!
ReplyDeleteकाफी दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आकर सुन्दर पोस्ट पढ़ने को मिला उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद! आपका हर एक पोस्ट एक से बढ़कर एक होता है जिसके बारे में जितना भी कहा जाए कम है! आपकी लेखनी को सलाम!
हाथ डालें जरा संभल के आप
ReplyDeleteफूल के पास खार होता है
.......
ऐसी नायाब पुस्तक की जानकारी देने के लिए आपका आभार.
भाई नीरज जी!
ReplyDeleteनवाब शाहाबादी साहब की गजलों को सुनने का अवसर मुझे कई बार मिला है। उनकी रचनाओं में श्रंगार का माधुर्य है और स्वर लुभावना है। आपके ब्लाग पर उनकी कृति-चर्चा पढ़कर प्रसन्नता हुई। आप दवारा नियोजित साहित्यिक-चर्चा की यह श्रृंखला सराहनीय है। आपकी जानकारी के लिए डॉ० तश्ना आलमी का एक शेर प्रस्तुत है। शायद पसंद आए।
==============
जिंदगी जब समझ में आने लगी।
मौत दरवाजा खटखटाने लगी॥
==============
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
एक से एक लाजवाब शेर |
ReplyDeleteआभार !एक और उम्दा शायर और उनकी बेहतरीन शायरी से इतनी खूबसूरती के साथ परिचय करवाने का |
कुछ तो शरीके इश्क़ की नाकामियाँ भी थीं
ReplyDeleteकुछ हाले - नामुराद ने शायर बना दिया
तुम कोशिशों के बाद भी शायर न बन सके
हमको तुम्हारी याद ने शायर बना दिया
करता अदा हूँ शुक्र तुम्हारा मैं दोस्तों
मुझको तुम्हारी दाद ने शायर बना दिया
बढ़िया सरल शब्दों में क्या तो खूब लगती है नवाब साहब की शायरी. बहुत बढ़िया लिखते हैं.
किताबों की दुनियाँ को बढ़ाते रहिये. किताबों की जानकारी का बहुत बड़ा खजाना हो जाएगा.
कुछ तो शरीके इश्क़ की नाकामियाँ भी थीं
ReplyDeleteकुछ हाले - नामुराद ने शायर बना दिया
गोया शायर के वास्ते कुछ प्री टेस्ट पास करने कितने जरूरी है !
कहाँ से ढूंढ ढूंढ कर लाते हैं आप इतने अच्छे अच्छे शायरों को... किताब भले ही नाखारीद पायें लेकिन इतने लाजवाब शेर पढ़कर ही आनंद आ जाता है!
ReplyDeleteवाह वा, क्या शेर कहें हैं,
ReplyDelete"भुलाना हमें इतना आसाँ नहीं है
है आसाँ तो हमको भुला कर के देखो"
"बड़ा प्यार आया जो बालों पे मेरे
फिराने लगे उँगलियाँ धीरे धीरे"
बहुत खूब नीरज जी, जनाब षाहाबादी के षेर पढ़वाकर आपने आनन्द की बारिष कर दी । उनके षेर और आपका संकलन दोनों ही नायाब हैं और दोनों ही मुबारकवाद के हकदार हैं, सो आप स्वीकार करें!
ReplyDeleteNeeraj jee bahut shukriya nabab sahab se wakif karane ka . Bahut sunder sher chune hain aapne,
ReplyDeleteआये तो गुलिस्तां में कुछ ऐसी बहार आये
फूलों को सुकूं आये काँटों को करार आये
लोगों ने गुज़ारी है, जैसी भी वहां गुज़री
कुछ हँस के गुज़ार आये कुछ रो के गुज़ार आये
Behatareen.
आपकी गज़लें तो लाजवाब होती ही हैं किताबों की समीक्षा भी गज़ब की हैं.. अर्धशतक होने पर बधाई स्वीकार करें...
ReplyDeleteनवाब शाहाबादी जी से परिचित हूँ .उन्हें सुना भी और पढ़ा भी है.यहाँ उनकी पुस्तक समीक्षा देख कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteपरिचय के लिये आभार, कृपया शृंखला जारी रखिये।
ReplyDeleteक्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
ReplyDeleteआदरणीय नीरज साहब,
ReplyDeleteनवाब साहब से परिचय कराने और उनकी
ग़ज़लें पढ़वाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...
यह शे'र दिल छू गया.....
कुछ तो शरीके इश्क़ की नाकामियाँ भी थीं
कुछ हाले - नामुराद ने शायर बना दिया
रक़ीब लखनवी
कुछ तो शरीके इश्क़ की नाकामियाँ भी थीं
ReplyDeleteकुछ हाले - नामुराद ने शायर बना दिया
तुम कोशिशों के बाद भी शायर न बन सके
हमको तुम्हारी याद ने शायर बना दिया
भाई नीरज कमाल की मेहनत कर रहे हैं आप बधाई तबीयत खुश हो गई |बधाई और शुभकामनाएं |
जनाब नीरज जी
ReplyDeleteइस कंप्यूटर/मोबाईल के दौर में आप साहित्य प्रेमियों को न केवल उम्दा किताबों से रूबरू करा रहे हैं बल्कि उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं - आप कि इस बेमिसाल कोशिश और जज्बे को सलाम I आपकी " थोड़ा सा रूमानी हो लें हम" की समीक्षा के बाद मेरे बड़े भाई सरीखे दोस्त "नवाब शाहाबादी " जी के पास इतने फोन आये कि वे हैरान हो गए . चूँकि वे इन्टरनेट चैटिंग / मैसेजिग के सिलसिले से कम वाकिफ हैं लिहाज़ा उन्होंने मुझे ये फख्र हासिल करने का मौका दिया कि मैं उन तमाम साहबान का शुक्रिया अदा करूँ जिन्होंने अपनी टिप्पणी / बेशकीमती राय ज़ाहिर कर नवाब साहब का, और मेरा भी हौसला बढाया, एक बार फिर तहेदिल से आप सभी का "नवाब शाहाबादी " जी + मेरी ओर से शुक्रिया, राजेश राज / 09889029396
आज बड़े दिनों बाद बड़ी देर से आपके ब्लौग पर अटका हुआ हूँ| फेसबुक पर आपकी धमकी भरी प्रेरणा के लिए लाख लाख शुक्रिया| ये किताबो की दुनिया वाली शृंखला अंतरजाल पर आने वाले भविष्य में मील का पत्थर साबित होने वाली है, यकीनन!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर परिचय...उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले