यूं हसरतों का दायरा हद से बढ़ा लिया
खुशियों को जिन्दगी से ही अपनी घटा लिया
खुद पर भरोसा था तभी, उसने ये देखिये
दीपक हवा के ठीक मुकाबिल जला लिया
हम से फकीरों को कहीं जब नींद आ गयी
(महनत कशों को जब कहीं पे नींद आ गयी )
बिस्तर ज़मीं को,बांह को तकिया बना लिया
शिद्दत से है तलाश मुझे ऐसे शख्स की
इस दौर में है जिसने भी ईमां बचा लिया
वो ज़िन्दगी भी ज़िन्दगी क्या बोलिये मियां
औरों से जिंदगी में जो तुमने सदा लिया
मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया
"नीरज" उसी के नाम से काटें ये ज़िन्दगी
इक बार जिसको आपने दिल में बसा लिया
( गुरुदेव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद बिना, ये ग़ज़ल इस स्वरुप में नहीं आ पाती )
68 comments:
शिद्दत से है तलाश मुझे ऐसे शख्स की
इस दौर में है जिसने भी ईमां बचा लिया
इन पंक्तियों ने मन मोह लिया....... बहुत सुंदर ग़ज़ल.....
वो ज़िन्दगी भी ज़िन्दगी क्या बोलिये मियां
औरों से जिंदगी में जो तुमने सदा लिया
'नीरज' उसी के नाम से काटो ये जिंदगी
इक बार जिसको आपने दिल में बसा लिया
नीरज जी काफी दिनों बाद आपसे एक बेहद सुन्दर गजल पढने को मिली, बधाई !
बेहतरीन,जीतनी तारीफ़ की जाये कम ही होगी।एक एक शेर बेमिसाल है,और ज़िंदगी की यूं इतने कम शब्दों मे तस्वीर खींच देना,कमाल है।
नीरज जी
हर एक शेर दिल को छूता हुआ लगता है.
हम से फकीरों को कहीं जब नींद आ गयी
बिस्तर ज़मीं को,बांह को तकिया बना लिया
'नीरज' उसी के नाम से काटो ये जिंदगी
इक बार जिसको आपने दिल में बसा लिया
इस बेहतरीन गजल के लिये बधाई
'नीरज' उसी के नाम से काटो ये जिंदगी
इक बार जिसको आपने दिल में बसा लिया
नीरज जी, बहुत सुंदर गजल, ये शेर नही बब्बर शेर है। बधाई
वाह !!
क्या शेर कहें हैं आपने
ज़िन्दगी जीने का एक और पाठ लिए जा रहा हूँ. आपकी गजलें कोई पढ़ ले और जान जाएगा कि जीवन कैसे जीना है.
खुद पर भरोसा था तभी, उसने ये देखिये
दीपक हवा के ठीक मुकाबिल जला लिया
मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया
बहुत ही उम्दा शेर.. फोटो देखकर तो ग़ज़ल की गर्माहट भी महसूस हुई..
neeraj ji
kis kis sher ki tarif karun......har sher dil ko choo gaya.........har sher aisa ki har sher par jaan nikle.
यूं हसरतों का दायरा हद से बढ़ा लिया
खुशियों को जिन्दगी से ही अपनी घटा लिया
kya kahun is sher ki taif mein........jam ghata ka ye hisab to dil mein utar gaya.
'नीरज' उसी के नाम से काटो ये जिंदगी
इक बार जिसको आपने दिल में बसा लिया
kya baat kahi hai..........lajawaab.
हम से फकीरों को कहीं जब नींद आ गयी
बिस्तर ज़मीं को,बांह को तकिया बना लिया
....
खुदा की सारी नेमत को आशियाँ बना लिया........
वाह
आपका पाक्षिक आलेख पुस्तकों की दुनिया मुझे केवल एक ही मायने में खलता है कि उसके कारण आपकी ग़ज़ल एक सप्ताह छोड़ कर पढ़ने को मिलती है । मैं बहुत जल्द ही आपको वकील का नोटिस भेजने वाला हूं कि आप पुस्तकों की दुनिया के लिये अलग एक ब्लाग बनाएं ताकि हर सप्ताह इस ब्लाग पर आपकी ग़ज़ल पढ़ने को मिल सके । ये ग़ज़ल भी आपकी अन्य ग़ज़लों की ही तरह बोलती हुई है । अब मुम्बइया ग़ज़ल की श्रंखला में किस रदीफ और काफिये पर काम चल रहा है । आपकी उन ग़ज़लों का भी इंतजार रहता है ।
सबकी सब तल्ख़ सचाइयां है जिंदगी की......अब किस पे वाह कहे ?
शिद्दत से है तलाश मुझे ऐसे शख्स की
इस दौर में है जिसने भी ईमां बचा लिया
मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया.....
बहुत दिनो बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ने को मिली है नीरज जी ........ जैसे प्यासे को तृप्ति मिलती है ....... कमाल के शेर हैं ..... सामाजिक नियम और मान्यताओं को आप बहुत गहरे छूते हैं ...... लाजवाब
आदरणीय नीरज जी,
इतनी लाजवाब गज़ल तो आप जैसा फ़नकार ही लिख सकता है। हर शेर पे तालियां।
खुद पर भरोसा था तभी, उसने ये देखिये
दीपक हवा के ठीक मुकाबिल जला लिया
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हम से फकीरों को कहीं जब नींद आ गयी
बिस्तर ज़मीं को,बांह को तकिया बना लिया
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'नीरज' उसी के नाम से काटो ये जिंदगी
इक बार जिसको आपने दिल में बसा लिया
इन खूबसूरत शेरों का जादू सर चढ़कर बोल रहा है।
मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया
सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं।
बधाई!
सभी शेर एक से बढ़ कर एक हैं ...बहुत खूब आपका लिखा जिंदगी के बहुत करीब होता है .शुक्रिया
हम से फकीरों को कहीं जब नींद आ गयी
बिस्तर ज़मीं को,बांह को तकिया बना लिया
ਵਾਹ....ਵਾਹ.....ਵਾਹ......!!
शिद्दत से है तलाश मुझे ऐसे शख्स की
इस दौर में है जिसने भी ईमां बचा लिया
बहुत खूब.......!!
मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया
نمن ہے گردو.......
'नीरज' उसी के नाम से काटो ये जिंदगी
इक बार जिसको आपने दिल में बसा लिया
नतमस्तक hun ......!!
वाह !! बेहतरीन शेर के लिए , बधाई .
मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया
यह व्यंग्य नहीं, व्यंग्य की पीड़ा है। पीड़ा मन में ज़ल्दी धंसती है। सच्चाई की रोशनी दिखाती आपकी बात हक़ीक़त बयान करती है। इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।
यही कारण है अब रियलिटी शो हिट हो रहे हैं... सच अब सबको पसंद आता है भले दुनिया झूठ में तब्दील हो गयी हो...
हम से फकीरों को कहीं जब नींद आ गयी
बिस्तर ज़मीं को,बांह को तकिया बना लिया
वाह वाह..लाजवाब रचना.
रामराम.
बढ़िया गजल.
नीरज जी, यह गजल ही तो है ना? असल में मुझे इतनी जानकारी नहीं है. मैं तो इसमें लिखे भावों को पढ़ रहा था.
'नीरज' उसी के नाम से काटो ये जिंदगी
इक बार जिसको आपने दिल में बसा लिया
सुभानअल्लाह
खुद पर भरोसा था तभी, उसने ये देखिये
दीपक हवा के ठीक मुकाबिल जला लिया
aaj ki shaam humne chirago se saja rakhi hai...
sharat logo ne hwao se lga rakhi hai....
NEERAJ JEE,JAESE-JAESE MAIN AAPKEE
GAZAL KAA EK-EK SHER PADHTA GAYAA
HOON ,DIL SE DAAD NIKALTEE GAYEE.
AAPNE YAH GAZAL KYAA LIKHEE HAI,
MAIN TO AAPKAA FAN HO GAYAA HOON.
PANKAJ SUBEER JEE NE BHEE GAZAL KO
KHOOB TARAASHAA HAI.AAP DONO KO
HARDIK BADHAAEEYAN.
अहा नीरज जी क्या खूब ग़ज़ल कही आपने सच में कहा है गुरु देव ने के आप हर सप्ताह ही एक ग़ज़ल लगाया करें , इस ख़ुश्बू से हमें महरूम ना रखें ... कितनी ही नफीस खयालात और कहने में क्या खूब पुख्तगी का आलम है इस ग़ज़ल में रोज मर्रे की आम बात को आपने कितनी बारीकी से कही है और उसे ख़ास बना दिया आपने ... किस शे'र की तारीफ़ करूँ इसिस पशोपेश में हूँ के कोई और ना मेरे से खफा हो जाये , ये बात और खयालात आप जैसे उस्ताद शाईर के बस की ही बात है , इसमें आपका कोई दोष नहीं है , :) इस ग़ज़ल के बारे में और क्या कहूँ शब्द धुधाने पद रहे हैं सच कहूँ तो कहने में परेशानी हो रही है शायद मेरे पास शब्द ही नहीं है .....
बस सलाम करता चलूँ और आप इसे कुबूल करें ....
आपका
अर्श
मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया
काफी कुछ कह दिया आपने
हम से फकीरों को कहीं जब नींद आ गयी
बिस्तर ज़मीं को,बांह को तकिया बना लिया
कहने का यह अन्दाज़ वाह!
बहुत सुन्दर
शिद्दत से है तलाश मुझे ऐसे शख्स की
इस दौर में है जिसने भी ईमां बचा लिया
sach kaha..sabko aise hi kisi shakhs ki talaash hai...saare sher ek se badhkar ek hain...bahut khoob
मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया
bahut khub.. शायद यही सच्चाई है..
नीरज भाई,
ईक जाम फालतू सा पड़ा था करीब में,
तेरी ग़ज़ल पढ़ी तो गले से लगा लिया।
नहीं भाई, जाम को गले नहीं लगाया, ग़ज़ल को लगाया। चलो कन्फ्यूज़न देर कर देता हूँ:
ये शाम कुछ उदास कटी जा रही थी पर,
तेरी ग़ज़ल पढ़ी तो तरन्नुम में गा लिया।
अब ठीक है, नीरज भाई, ग़ज़ल पढ़ कर मज़ा आ गया। बहुत अच्छी बात कही है लोग हस्रतें इस कदर बढ़ा लेते हैं कि जो है उसका भी आनन्द नहीं ले पाते। और जॉंबाजी तो हवा के मुकाबिल दीपक जलाने में ही है।
मुझे पुराने खजाने में मिल सका तो एक श्वेत-श्याम युग का फोटो आपको भेजूँगा जिसमें श्रमिक ज़मीन पर सो रहा है, पोज़ लगभग यही है लेकिन गोद धरती मॉं की है । और काम करने वालों को नींद की क्या समस्या नहीं होती:
नींद तो रेत के बिस्तर प आ जाती है,
जागते हैं तो कोई काम तो करते रहिये।
ईमाँ तो ईमॉं भाई अब तो वो वक्त सामने दिखने लगा है कि ऐसा शख्स खुद को बचाले यह मुश्किल होगा।
भाई औरों से आशिर्वाद, मोहब्बत तो सारी उम्र ले सकते हैं, ऐसी भी कया नाराजगी लेने वालों से।
भाई दीवार पे फोटो भी तब तक टॉंगे जाते हैं जब तक सारे क्लेम नहीं मिल जाते। उसके बाद तो फोटो किसी ऐसे कोने का हो जाता है जहॉं कोई न झॉंके।
आपकी यह बात तो सटीक है जिसे दिल में जिसे बसाया उसी के नाम से जिंदगी काटो, पर ये जो पल्ले पड़ गयी है इसका क्या हो। ये तो किसी और का नाम ही नहीं लेने देती।
अब तक जो भी टिप्पणी है उसके प्रति संवेदनशील न हों। हर स्थिति में हास्य देखने की आपकी प्रवृत्ति मुझमें भी है इसीलिये एक गुदगुदाती टिप्पणी देने का प्रयास किया है।
तिलक राज कपूर
Aapki shayari padhne ke alawa Mishti ke chitr dekhna bada achha lagta hai...shayari pe tippanee deneke layaq mai nahi lekin, chashme-bad-door ...Mishti bitiyaki nazar utaar len!
aapakee gazal aur ek ek sher sadaiv kee bhanti ati sunder . badhai .
सभी दिग्गज़ों के बीच मेरा निशब्द रहना ही सही है। हर एक शेर को कितनी बार पढा है अगर कोट करूँ तो पूरी गज़ल ही कहनी पडेगी आपको व सुबीर जी को बहुत बहुत बधाई सच मे कमाल के जौहरी हैं सुबीर जी जो अपने हीरे को इतने करीने से तराशते हैं उन्हें भी बहुत बहुत बधाई
हम से फकीरों को कहीं जब नींद आ गयी
बिस्तर ज़मीं को,बांह को तकिया बना लिया
waah kya sher kaha hai aapne , bahut khoob
नीरज जी, शाम तक तारीफ़ के सभी शब्द इस्तेमाल किए जा चुके हैं।
अब मैं किन शब्दों में तारीफ करूँ।
बस यही कह सकता हूँ की मन मोह लिया, भाई।
महनत कशों को जब कहीं पे नींद आ गयी
बिस्तर ज़मीं को,बांह को तकिया बना लिया
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इस नींद की हसरत पाले रात में करवटें बदला करते हैं हम!
मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया
क्या बात है , बहुत अच्छी रचना.
धन्यवाद
बहुत बेहतरीन गजल पढ्वायी.
नीरज जी अगर सम्भव हो तो आप्की आवाज मे इस गजल को सुन्ना चाहता हू
क्या आपके पास रिकार्डिन्ग की व्यवस्था है?
कौन सा शेर उठाऊँ...सभी एक से बढ़ कर एक...पूरी गज़ल!! बेहतरीन...
बेहतरीन………………
वाह भाई जी.... बेहतरीन शेर निकाले हैं आपने.. साधुवाद.. साधुवाद..
शानदार। पंकज सुबीरजी की धमकी को सीरियसली लीजिये भाई!
वो ज़िन्दगी भी ज़िन्दगी क्या बोलिये मियां
औरों से जिंदगी में जो तुमने सदा लिया
वाह!
वाह!!
वाह!!!
बी एस पाबला
e-mail received from "Mansoor Hashmi" Sahab:-
शिद्दत है, दर्द, यास,कनाअत का रंग है,
कैसा अजीब आपने नग़मा सुना दिया!
बहुत खूब नीरज जी.
e-mail received from "Anita Kumar" Sahiba :-
Neeraj ji
Salaam hai aap ki lekhani ko.....excellent gazal, isse padh kar yakaayak ek gana bhi yaad aa rahaa hai ..."yun hasraton ke daag .......khud dil se dil ki baat kahi aur ro liye"...:)
Anita
e-mail received from sh."Om Prakash Sapra " Ji:-
dear neeraj ji
thanks for this gazal.
the force in this gazal is emotional touch and also social message.
congrats,
with good wishes,
-om sapra
नमस्कार नीरज जी,
जो शेर मुझे बेहद अच्छा लगा वो है
"मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया"
हम से फकीरों को कहीं जब नींद आ गयी
(महनत कशों को जब कहीं पे नींद आ गयी )
बिस्तर ज़मीं को,बांह को तकिया बना लिया
आपकी गजल का हर शेर उम्दा है । बहुत बधाई आपको । पिछली गजल और अब ये गजल । वाह वाह वाह ।
वो ज़िन्दगी भी ज़िन्दगी क्या बोलिये मियां
औरों से जिंदगी में जो तुमने सदा लिया..
बहुत सुंदर लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गई!
नीरज जी,
बेहद सुन्दर ग़ज़ल, बेहतरीन शेर ! खास करके यह दो शेर तो गज़ब हैं
यूं हसरतों का दायरा हद से बढ़ा लिया
खुशियों को जिन्दगी से ही अपनी घटा लिया
खुद पर भरोसा था तभी, उसने ये देखिये
दीपक हवा के ठीक मुकाबिल जला लिया
मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया
बहुत सही....!
हमारे यहाँ कहावत है
जिये ना दे कौरा...मरे उठाये चौरा...!
आपकी ग़ज़ल बस अभी पढ़ी है। यथार्थ के क़रीब, हमेशा की तरह ही...आख़िरी शेर ख़ास पसंद आया।
सादर
मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया
हमने भी कहीं ऐसा ही कुछ लिखा था
-
जिन्दा जी तो हम किसी को याद नहीं आएंगे
मरने के बाद लोग हमें दीवारों पे सजाएंगे
मां बाप को न पूछा कभी जीते जी मगर
दीवार पे उन्हीं का है फोटो सजा लिया
हमने भी कहीं ऐसा ही कुछ लिखा था
-
जिन्दा जी तो हम किसी को याद नहीं आएंगे
मरने के बाद लोग हमें दीवारों पे सजाएंगे
... umda sher, umda gajal !!!!
खुद पर भरोसा था तभी, उसने ये देखिये
दीपक हवा के ठीक मुकाबिल जला लिया
शिद्दत से है तलाश मुझे ऐसे शख्स की
इस दौर में है जिसने भी ईमां बचा लिया
हुज़ूर !!
एक एक शेर अपनी दास्ताँ ख़ुद बयाँ कर रहा है
और ख़ालिक़ की पुख्ता सोच और
शाईस्ता लबो-लहजे की ओर इशारा कर रहा है ....
aap ज़िन्दगी को बिलकुल क़रीब हो कर
ज़िन्दगी के फलसफे को अलफ़ाज़ में ढालने के
हुनर से बहुत अच्छी तरह से वाक़िफ हैं....
यूं हसरतों का दायरा हद से बढ़ा लिया
खुशियों को जिन्दगी से ही अपनी घटा लिया
इस maतले को पढ़ कर सभी पाठकों को इस बात
का अंदाज़ा बखूबी हो जाता है ....
आपको और आपके क़लम को सलाम कहता हूँ..
'muflis'
बेमिसाल मतला और लाजवाब मक्ता...
और इन दोनों के बीच कहर ढ़ाते ये अशआर सब के सब...चाहे वो "दीपक हवा के ठीक मुकाबिल" वाला हो या फिर शिर्षक वाला शेर और इसमें दो-दो मिस्रा ऊला का विकल्प...आहहा...इस अदा पे तो क्या कहने नीरज जी!
यूं हसरतों का दायरा हद से बढ़ा लिया
खुशियों को जिन्दगी से ही अपनी घटा लिया
खुद पर भरोसा था तभी, उसने ये देखिये
दीपक हवा के ठीक मुकाबिल जला लिया
'नीरज' उसी के नाम से काटो ये जिंदगी
इक बार जिसको आपने दिल में बसा लिया
bahut khoob!
सच्चाई के फर्श से चुने गए आपके सभी शे'र बेहतरीन है.
-Sulabh Jaiswal
खुद पर भरोसा था तभी, उसने ये देखिये
दीपक हवा के ठीक मुकाबिल जला लिया
हर शेर लाजवाब.
ज़िन्दगी...जितना लिखो उतना कम है...
वाह...वाह..वाह...
नीरज जी,
एक एक शब्द बोल रहा है. मैं तो कितनी भी तारीफ़ करूँ, छोटे मुंह बड़ी बात ही रह जायेगी. इसलिए बस यही कहूंगा - लाजवाब!
Hi Neeraj
You neither turned up at Mumbai, nor tried to contact me. I was angry till about 5 minutes ago. But this one ghazal has once again made me your fan. You have touched the greatness of Dushyant Kumar in this ghazal.
Keep it up
Tejendra Sharma
(Back in London)
lajabaab . isse jyada kahne ki meri aukaat nahi
bahut achcha likhte hain aap.aap ke guruji ko bhi badhai .
बहुत बेहतरीन गजल पढ्वायी.
नीरज जी अगर सम्भव हो तो आप्की आवाज मे इस गजल को सुन्ना चाहता हू
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
सभी शेर खूबसूरत ।
हम से फकीरों को कहीं जब नींद आ गयी
(महनत कशों को जब कहीं पे नींद आ गयी )
बिस्तर ज़मीं को,बांह को तकिया बना लिया
मेहनत कशों को ज्यादा सही लगा हमें तो..
और..
"नीरज" उसी के नाम से काटें ये ज़िन्दगी
इक बार जिसको आपने दिल में बसा लिया
बहुत जानदार मक्ता...
लाजवाब.....
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