उस पार से मुहब्बत आवाज़ दे रही है
दरिया उफ़ान पर है दिल इम्तहान पर है
ऊंचाइयों की हद पर जा कर ये ध्यान रखना
अगला कदम तुम्हारा गहरी ढलान पर है
'राजेंद्र' से भले ही वाक़िफ़ न हो ज़माना
ग़ज़लो का उसकी चर्चा सबकी जुबान पर है
उठाती है जो ख़तरा हर क़दम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खज़ाना ढूंढ लेती है
हक़ीक़त ज़िद किये बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आँख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
न कारोबार है कोई , न चिड़िया की कमाई है
वो केवल हौसले से आबो-दाना ढूंढ लेती है
गृहस्थी में कभी रूठें -मनायें ठीक है, लेकिन
हो झगड़ा रोज़ तो घर की ख़ुशी को चाट जाता है
सिमट कर जैसे आ जाये समंदर एक क़तरे में
कोई ऐसा भी लम्हा है, सदी को चाट जाता है
ग़ज़ल की परवरिश करने पे खुश होना होना तो लाज़िम है
ग़ुरूर आ जाये तो फिर शायरी को चाट जाता है
पर्वत के शिखरों से उतरी सजधज कर अलबेली धूप
फूलों फूलों मोती टाँके, कलियों के संग खेली धूप
सतरंगी चादर में लिपटी जैसे एक पहेली धूप
जाने क्यों जलती रहती है, छत पर बैठ अकेली धूप
मुखिया के लड़के सी दिन भर मनमानी करती घूमे
आँगन -आँगन ताके - झाँके फिर चढ़ जाय हवेली धूप
न जाने कौनसी तहज़ीब के तहत हमको
सिखा रहें हैं वो ख़ंजर संभाल कर रखना
ख़ुशी हो ग़म हो न छलकेंगे आँख से आंसू
मैं जानता हूँ समंदर संभाल कर रखना
तुम्हारे सजने संवरने के काम आएंगे
मेरे ख्याल के ज़ेवर संभाल कर रखना
पत्थरोँ से सवाल करते हैं
आप भी क्या कमाल करते हैं
खुशबुएँ क़ैद हो नहीं सकतीं
क्यों गुलों को हलाल करते हैं
वे जो दावे कभी नहीं करते
सिर्फ वे ही कमाल करते हैं
चलते चलते आईये पढ़ते हैं उनकी एक ग़ज़ल के चंद शेर और निकलते हैं एक और किताब की तलाश में :
दर्द के हरसिंगार ज़िंदा रख
यूँ ख़िज़ाँ में बहार ज़िंदा रख
ज़िन्दगी बेबसी की कैद सही
फिर भी कुछ इख़्तियार ज़िंदा रख
ख्वाइशें मर रही हैं, मरने दे
यार खुद को न मार , ज़िंदा रख
गर उसूलों की जंग लड़नी है
अपनी ग़ज़लों की धार ज़िंदा रख
19 comments:
lajabab ....aanand aaya padh kar...
wah behad sunder. ek se badhkar ek sher h. shukriya sir shaja karne ka
राजेंद्र तिवारी जी की किताब 'संभाल कर रखना 'गजल संग्रह की बहुत बढ़िया समीक्षा प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
राजेंद्र जी की किताब ` संभाल कर रखना ` पर आपका लेख अच्छा लगा है। कई ताज़गी भरे अशआर अच्छे लगे हैं मुझे।
उनकी एक ग़ज़ल ` पत्थरों से सवाल करते हैं ` की ज़मीन पर मेरी एक बहुत पुरानी ग़ज़ल है। पढियेगा -
बात पूछो सवाल करते हैं
लोग भी क्या कमाल करते हैं
हर किसी को निहाल करते हैं
नेक बन्दे कमाल करते हैं
वो जो अपनों की भी नहीं सुनते
अपना जीना मुहाल करते हैं
नाम यूँ ही कभी नहीं होता
पैदा कोई मिसाल करते हैं
किसको अपना कहूँ यहां सब ही
अपना-अपना खयाल करते हैं
Pran Sharma
Received on mail :-
bhai neeraj ji-
naasmtey
janab aap ke yeh aalekh dekh-- kafi achha laga--
saare she''r prabhavshali hain-- khastore par yeh lines-
shri rajender tiwari - shaiir'r saab ko badhai dene ki jahmat uthayen--
हक़ीक़त ज़िद किये बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आँख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
न कारोबार है कोई , न चिड़िया की कमाई है
वो केवल हौसले से आबो-दाना ढूंढ लेती है
saadar-- om sapra
delhi-9
m- 9818180932
It is always a great pleasure to your critique.Thanks
वाह क्या कहने ...
तुम्हारे सजने संवरने के काम आएंगे
मेरे ख्याल के ज़ेवर संभाल कर रखना
बहुत सुन्दर.
सुन्दर प्रस्तुति.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें
उम्दा शायरी है, ख़यालों में ताज़गी एक अलग ही लुत्फ़ दे रही है। ये शेर अपने साथ ले कर जा रहा हूँ,
"ऊंचाइयों की हद पर जा कर ये ध्यान रखना
अगला कदम तुम्हारा गहरी ढलान पर है "
" उठाती है जो ख़तरा हर क़दम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खज़ाना ढूंढ लेती है"
राजेंद्र जी की शायरी को दिली दाद।
बहुत सुन्दर
ख्वाहिशों की मौत से निराश न होने वाले ही जीवन जी पाते हैं।ऐसे ही जुझारू व्यक्ति उसूलों की जंग लड़ने के लिए गजलों की धार बनाए रखते हैं।
नीरज जी, अल्लाह ने आपको अलग ही हुनर बख्शा है...आपकी प्रस्तुति खास अन्दाज़ में होती है...
फ़ेसबुक की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में ब्लॉगिंग का सुकुन भरा माहौल अलग ही आनन्द देता है. इसे बढ़ावा देने की ज़रूरत है.
Respected Neeraj Ji,Saadar Abhivaadan !
Aap aur aap ka blog bahut achchha lagta hai...ye alag baat hai ki waqt kam de pata hoon...Is baar ki post men Bhai Rajendra Tiwari ji ki "Sambhal Kar Rakhna"par aapki sameeksha aur chuninda ashaar fir se padhne ko mile waise poori kitaab mujhse pahle mere Pita Shri(Father) ne usi din padh lee thee jis din mujhe haasil huee thee...mujhe bhi bahut prabhavit hua....
Khoobsoorat sameeksha ke liye haardik aabhaar aur Rajendra Bhai ko punah badhai....
Satish Shukla 'Raqeeb'Juhu, Mumbai - 400049.Mob: 09892165892
आपके फनकारों के खजाने से निकला एक और हीरा, राजेन्द्र जी । आपके इस समीक्षा को फिर फिर पढने को मन करता है।
मुखिया के लड़के सी दिन भर मनमानी करती घूमे
आँगन -आँगन ताके - झाँके फिर चढ़ जाय हवेली धूप
वाह
pad kar behad acha lga
Thanks to share
एक खलिश सी हुई ,एक आह सी निकली , इतना सुन्दर वेब पेज आज तलक कहाँ छुपा था। प्रशंसनीय भी , वन्दनीय भी !
बढिया
तुम्हारे सजने संवरने के काम आएंगे
मेरे ख्याल के ज़ेवर संभाल कर रखना
बहुत सुन्दर.
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