“किताबों की दुनिया” श्रृंखला के लिए शायरी की किताबें ढूंढते वक्त मुझे अहसास हुआ है के आजकल लोगों में किताबें छपवाने का शौक चर्राया हुआ है। दो मिसरों से रचित एक शेर में पूरी बात कह देने वाली ग़ज़ल जैसी विधा से लोग आकर्षित तो होते हैं लेकिन इसके व्याकरण को समझने की ईमानदार कोशिश नहीं करते, नतीजतन हमें जो ग़ज़लें पढने को मिलती हैं उनमें कहीं काफिये रदीफ़ का निर्वाह सही ढंग से नहीं होता और कहीं बहर का। हैरानी तब होती है जब कई जाने माने शायरों ,जिनकी आधा दर्ज़न से अधिक शायरी की किताबें बाज़ार में उपलब्द्ध हैं, की किताबों में इस तरह की कमियां नज़र आती हैं. आज के दौर में जो बिकता है वो पुजता है, गुणवत्ता तो हाशिये पर नज़र आती है .
स्तिथि पूरी तरह नकारात्मक नहीं है, इसीलिए तो हमें 'दरवेश' भारती जी की किताब " रौशनी का सफ़र " जिसका जिक्र आज हम करेंगे ,अपनी और आकर्षित करती है।
दरवेश भारती, जिनका असली नाम हरिवंश अनेजा है, का जन्म 23 अक्तूबर 1937 में जिला झंग में हुआ। आपने संस्कृत भाषा में ऍम ए., पी.एच. डी की लेकिन आपका हिंदी और उर्दू भाषा पर भी समान अधिकार रहा। मज़े की बात ये है की दरवेश भारती जी ने पहले 'जमाल काइमी' के नाम से उर्दू में शायरी की और बाद में वो दरवेश के नाम से ग़ज़लें कहने लगे।
सुरेश पंडित जी ने उनके बारे इसी किताब के फ्लैप पर लिखा है " दरवेश भारती जी के लिए ग़ज़ल कहना या इसके बारे में विमर्श करना उनकी अभिरुचि नहीं, जीने की एक शर्त है। हिंदी को इसलिए उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है ताकि उनकी बात अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे। दरवेश जी मानते हैं की ग़ज़ल पर किसी भाषा का एकाधिकार नहीं हो सकता, ग़ज़ल तो सिर्फ ग़ज़ल होती है और चंद शब्दों में बड़ी बात कह देने की कला इसे सार्थक बनाती है।"
दरवेश भारती जी ने हालाँकि अल्प आयु में ही लेखन कार्य शुरू कर दिया था लेकिन निजी व्यस्तताओं के चलते वो इससे तीस वर्षों के दीर्घ समय के लिए लेखन से दूर रहे हालाँकि इस बीच 1964 में उनका "ज़ज्बात " शीर्षक से देवनागरी में कविता संग्रह और 1979 में 'गुलरंग' शीर्षक से फ़ारसी लिपि में काव्य संग्रह आया लेकिन उनकी काव्य यात्रा जो 2001 में शुरू हुई वो आजतक अबाध गति से चल रही है , 2013 में प्रकाशित 'रौशनी का सफ़र" उनकी इसी लगन प्रमाण है।
जून 2008 से भारती जी 'ग़ज़ल के बहाने' त्रै-मासिक पत्रिका का संपादन कर रहे हैं जिसमें किसी भी प्रकार का भाषाई संकीर्णवाद नहीं दिखाई देता। इस पत्रिका के माध्यम से वो ग़ज़ल के व्याकरण को भी बहुत आसान शब्दों में समझाते हैं जिसका लाभ बहुत से उभरते शायरों ने उठाया है।
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा उनकी 'शांतिपर्व में नैतिक मूल्य' पुस्तक सन 1987 में पुरस्कृत की जा चुकी है। अनेक साहित्यिक एवम सामाजिक संस्थाओं द्वारा समय समय पर उन्हें सम्मानित किया गया है। आपकी काव्य यात्रा पर कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय से शोध कार्य भी संपन्न किया गया है। आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी इनकी रचनाओं का प्रसारण होता रहता है। इस पुस्तक में दरवेश साहब की ग़ज़ल यात्रा के दौरान कही गयी विभिन्न ग़ज़लों से 75 ग़ज़लों का संग्रह किया गया है।
इस किताब का प्रकाशन दिल्ली के 'कादंबरी प्रकाशन ' ने किया है जिसे आप उनके इ-मेल kadambariprakashan@gmail.com या उनके मोबाइल नंबर 9968405576 / 9268798930 पर संपर्क करके मंगवा सकते हैं, मैं खुद इस प्रकाशन तक नहीं गया मुझे ये किताब अयन प्रकाशन के भूपल सूद साहब के यहाँ से मिली। भूपल सूद साहब का मोबाइल नंबर यूँ तो मैंने अपनी इस श्रृंखला में कई बार दिया है लेकिन उसे कौन ढूंढें वाली आपकी सोच को जानते हुए फिर से दे रहा हूँ। क्या करूँ? देना ही पड़ेगा क्यूंकि मेरा मकसद आपको अच्छी किताब तक पहुँचाना जो है।आप सूद साहब से उनके नंबर 9818988613 पर बात करें और इस किताब को मंगवाने की जानकारी हासिल करें .
अब हम चलते हैं आपके लिए अगली किताब की तलाश में तब तक आप दरवेश साहब की एक ग़ज़ल के ये शेर पढ़ें और आनंद लें
स्तिथि पूरी तरह नकारात्मक नहीं है, इसीलिए तो हमें 'दरवेश' भारती जी की किताब " रौशनी का सफ़र " जिसका जिक्र आज हम करेंगे ,अपनी और आकर्षित करती है।
कहते थे पहले कि खिदमतगार होना चाहिए
अब सियासत में फ़क़त ज़रदार होना चाहिए
ज़िन्दगी जीना कहाँ आसान है इस दौर में
इसको जीने के लिए फ़नकार होना चाहिए
बिन परों के क्या उड़ोगे आसमां-दर-आसमां
कामयाबी के लिए आधार होना चाहिए
ये भी हो और वो भी हो गोया हर इक शय इसमें हो
अब तो घर को घर नहीं बाज़ार होना चाहिए
आदमी जिंदा रहे किस आस पर
छा रहा हो जब तमस विशवास पर
वेदनाएं दस्तकें देने लगें
इतना मत इतराइये उल्लास पर
ना-समझ था, देखा सागर की तरफ
जब न संयम रख सका वो प्यास पर
जो छाँव औरों को दे, खुद कड़कती धूप सहे
किसी,किसी को खुदा ये कमाल देता है
न पास जा तेरी पहचान खो न जाय कहीं
दरख़्त धूप को साए में ढाल देता है
तमीज़ अच्छे-बुरे में न कर सका जो कभी
वही अब अच्छे -बुरे की मिसाल देता है
इधर हमने गुपचुप बात की
उधर कान बनने लगीं खिड़कियाँ
सुनाई खरी-खोटी बेटे ने जब
भिंची रह गयीं बाप की मुठ्ठियाँ
फ़लक पर कबूतर दिखे जब कभी
बहुत याद आयीं तेरी चिठ्ठियाँ
गीत ग़ज़ल अफसाना लिख
पर हो कर दीवाना लिख
नाच उठे मन में बचपन
लुकछुप, ईचक दाना लिख
मत कर जिक्र खिज़ाओं का
मौसम एक सुहाना लिख
दुःख तो दुःख ही है 'दरवेश'
अपना क्या, बेगाना लिख
किसलिए तुम हताश हो बैठे
हिम्मत उठने की अपनी खो बैठे
चढ़ते सूरज से दोस्ती क्या की
अपने साए से हाथ धो बैठे
इन विवादों से क्या हुआ हासिल
क्यूँ फटे दूध को बिलों बैठे
अब हम चलते हैं आपके लिए अगली किताब की तलाश में तब तक आप दरवेश साहब की एक ग़ज़ल के ये शेर पढ़ें और आनंद लें
मौसम बदल गया है तो तू भी बदल के देख
कुदरत का है उसूल ये साथ इसके चल के देख
रुस्वाइयाँ मिली हैं, ज़लालत ही पायी है
अब लडखडाना छोड़,जरा-सा संभल के देख
चौपाई दोहा कुंडली छाये रहे बहुत
'दरवेश' अब कलाम में तेवर ग़ज़ल के देख
22 comments:
चौपाई दोहा कुंडली छाये रहे बहुत
'दरवेश' अब कलाम में तेवर ग़ज़ल के देख
और उनकी ग़ज़ल का तेवर बहुत खूब है. सरल शब्दों में शानदार गज़लें. दरवेश जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा.
जो छाँव औरों को दे, खुद कड़कती धूप सहे
किसी,किसी को खुदा ये कमाल देता है
वाह! कितना सच!!!
सुन्दर पुस्तक परिचय!
बिन परों के क्या उड़ोगे आसमां-दर-आसमां
कामयाबी के लिए आधार होना चाहिए
bahut sundar ....!!
चढ़ते सूरज से दोस्ती क्या की
अपने साए से हाथ धो बैठे
वाह....बेहतरीन ग़ज़ल ..बेहतरीन शायर...
आभार इस पुस्तक परिचय के लिए.
सादर
अनु
कहते थे पहले कि खिदमतगार होना चाहिए
अब सियासत में फ़क़त ज़रदार होना चाहिए
ज़िन्दगी जीना कहाँ आसान है इस दौर में
इसको जीने के लिए फ़नकार होना चाहिए
बिन परों के क्या उड़ोगे आसमां-दर-आसमां
कामयाबी के लिए आधार होना चाहिए
ये भी हो और वो भी हो गोया हर इक शय इसमें हो
अब तो घर को घर नहीं बाज़ार होना चाहिए
लग रहा है कि सारे के सारे अश’आर कोट कर दूँ ,,,बहुत ख़ूबसूरत शायरी ,,धन्यवाद ,,आभार !!
बेहद लाजवाब शायरी, आभार.
रामराम.
GAZAL KEE EK AUR ACHCHHEE KITAAB KAA SWAAGAT HAI .
मौसम बदल गया है तो तू भी बदल के देख
कुदरत का है उसूल ये साथ इसके चल के देख,,,
बहुत उम्दा पोस्ट ,,,आभार
RECENT POST : जिन्दगी.
Ekse badhke ek ashar hain!
वाह वाह ...बहुत अच्छी किताब आप मेरे सामने लाये है..........किसि भी तरीके से खरिदुंगा
ज़िन्दगी जीना कहाँ आसान है इस दौर में
इसको जीने के लिए फ़नकार होना चाहिए
एक ऐसा शेर है जो यदा कदा ही जन्म लेता है। सीधे-सादे शब्दों में दिल की बात कहना ही शायरी है और न जाने क्यूँ लोग जटिलताओं में शायरी के मकाम तलाशते हैं।
वाह, पढ़कर आनन्द आ गया, आभार।
चढ़ते सूरज से दोस्ती क्या की
अपने साए से हाथ धो बैठे
वाह....बेहतरीन ग़ज़ल ..बेहतरीन शायर...उम्दा किताब
रुस्वाइयाँ मिली हैं, ज़लालत ही पायी है
अब लडखडाना छोड़,जरा-सा संभल के देख
रौशनी का सफर कराने का बहुत आभार बहुत आनंद मिला ।
बेहतरीन
Received on e-mail:-
neeraj ji
namsty
very gud write up by u- especialyy these lines:-
आदमी जिंदा रहे किस आस पर
छा रहा हो जब तमस विशवास पर
वेदनाएं दस्तकें देने लगें
इतना मत इतराइये उल्लास पर
ना-समझ था, देखा सागर की तरफ
जब न संयम रख सका वो प्यास पर
bahut badhai
-om sapra, delhi-9
Received on e-mail:-
अच्छी पेशकश नीरज जी !
आप ने सिर्फ़ अच्छे शायर का ही इंतिखाब नहीं किया है बल्कि दरवेश भारती के रूप में एक ऐसे शख्स का चुनाव किया है जो "ग़ज़ल बहाने" बेहद ख़ूबसूरती के साथ ग़ज़ल की विधा और उसकी तकनीक को ग़ज़ल प्रेमियों तक पहुँचाने का काम कर रहे हैं . उनकी ग़ज़लगोई और ग़ज़ल प्रेम को मेरा सलाम !
Aalam Khurshid
फ़लक पर कबूतर दिखे जब कभी
बहुत याद आयीं तेरी चिठ्ठियाँ
गीत ग़ज़ल अफसाना लिख
पर हो कर दीवाना लिख
दुःख तो दुःख ही है 'दरवेश'
अपना क्या, बेगाना लिख
Wah Neeraj Uncle wah... Aanand aa gaya. Seedhi..saral bhasha men likhe ashaar.. Mujh jaise tang haath wale ko bhee samjh aa gaye.. Dharapravah aapakee shailee men tabsira bahut achchha laga.. Tahedil se dhanyaad..
Vishal
बहुत सुन्दर….प्रभावी हमेशा की तरह।
आपकी समर्पित शब्द साधना का
मुरीद हूँ आज भी ... कल की तरह।
शुभेच्छु -
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
"ग़ज़ल के पुरोधा से परिचय का माध्यम श्री नीरज गोस्वामी जी "
आदरणीय दरवेश भारती जी से बात करके ख़ुशी होती है तस्सली हो जाती है ख़ुशक़ीस्मती ये की उनसे पहचान हुई दुःख ये की काश ३० साल पहले मुलाक़ात हो जाती !
अब क्या कहें पहले फेसबुक वग़ैरा नहीं थे भला हो 'नीरज गोस्वामी जी' का जिन्होंने आपका ज़िक्र किया मैं उनका आभारी हूँ की ग़ज़ल की एक आला मक़ाम हस्ती से बात करने का मौक़ा मिला
नमन
मोनी गोपाल तपिश
न पास जा तेरी पहचान खो न जाय कहीं
दरख़्त धूप को साए में ढाल देता है
क्या कहने दरवेश जी के उनके शेर तो तिजुर्बे की आंच में तपे कुंदन के समान हैं !दिल छू लेनी की ख़ासियत विरले शायरों में ही होती है ! उपरोक्त और ऐसा कोई भी शेर दाद से कहीँ आगे निकल जाता है सिर्फ़ वाह या बहुत खूब से कहीं आगे दुआ स्थान ले लेती है ! आप हमेशा ही हमें एक ऐसी दुनिया में ले जाते हैं कि दिल झूम उठता है इस सुन्दर चिन्तन मनन , खोजपरक लेख के लिए आपको ढेरों दाद ,बधाई आदरणीय दरवेश जी को सदर नमन
तपिश
Received on e-mail
इन उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रियाओं के लिए मैं सब मित्रों के प्रति तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
विनीत,
'दरवेश' भारती।
मो. 09268798930.
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