मेरे बचपन का वो साथी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में
फूल कर कुप्पा हुआ करती थीं जिस पर रोटियां
माँ की प्यारी वो अंगीठी, है अभी तक गाँव में
ज़हर सी कडवी बहुत हैं इस नगर में बोलिया
हर जबां पर गुड़ की भेली, है अभी तक गाँव में
शहर में देखो जवानी में बुढ़ापा आ गया
पर बुढ़ापे में जवानी, है अभी तक गांव में
कोशिशें उसको उठाने की सभी ज़ाया हुईं
इक अजब सी नातवानी, है अभी तक गाँव में
नातवानी= अक्षमता, निर्बलता, असामर्थ्य
सारे त्योंहारों पे मिल कर मौज मस्ती नाचना
रोज पनघट पे ठिठोली, है अभी तक गांव में
पेट भरता था जिसे खा कर मगर ये मन नहीं
ढूध वाली वो जलेबी, है अभी तक गांव में
दोस्ती, अख़लाक़, नेकी, अदबियत, इंसानियत
जानिसारी, खाकसारी है अभी तक गाँव में
जिस्म की पुरपेच गलियों में कभी खोया नहीं
प्यार तो "नीरज" रूहानी है अभी तक गाँव में
59 comments:
हर शेर खूबसूरत है, लेकिन मेरा पसंदीदा -
शहर में देखो जवानी में बुढ़ापा आ गया
पर बुढ़ापे में जवानी, है अभी तक गांव में..
waah sir ...bahut khub..sachmuch gaon mein abhi bhi aisa hi mahaul hai..
मेरे बचपन का वो साथी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में
फूल कर कुप्पा हुआ करती थीं जिस पर रोटियां
माँ की प्यारी वो अंगीठी, है अभी तक गाँव में
Meree to aankh nam ho aayee!
गांव की सौंधी खुश्बू मे सराबोर गज़ल का हर शेर लाजवाब है हकीकत बयाँ कर रहा है सच आज भी है ये सब गाँव मे।
ज़हर सी कडवी बहुत हैं इस नगर में बोलिया
हर जबां पर गुड़ की भेली, है अभी तक गाँव में
गाँव कि पगडंडियों पर चलती सी ... बहुत खूबसूरत गजल
बहुत खूबसूरत गज़ल है सर..
ज़हर सी कडवी बहुत हैं इस नगर में बोलिया
हर जबां पर गुड़ की भेली, है अभी तक गाँव में
हर शेर दिल को छूता हुआ...
सादर.
फूल कर कुप्पा हुआ करती थीं जिस पर रोटियां
माँ की प्यारी वो अंगीठी, है अभी तक गाँव में... बेहद अच्छी पंक्तियाँ , एक विशेष स्वाद से भरी
एक एक शे'र बेहतरीन ... और आज आपका मुशायरा वाला वीडियो देखा... आपको यही से मैं दाद देती हूँ.. और कहती हूँ ..वाह मज़ा आ गया... बहुत सुन्दर
जिस्म की पुरपेच गलियों में कभी खोया नहीं
प्यार तो "नीरज" रूहानी है अभी तक गाँव में
...
वाह अभी तक मेरे भीतर का गांव भी वैसे का वैसा ही है ... आज आपने फिर वहीं पहुंचा दिया !
आजकल यहाँ शहर में बड़ी मोटी रोटियाँ बनने लगी हैं..
बहुत ही सुन्दर रचना...
पेट भरता था जिसे खा कर मगर ये मन नहीं
ढूध वाली वो जलेबी, है अभी तक गांव में
अरे क्या जुलम करते हैं नीरज जी ... दूध वाली जलेबी ... आप तो ऐसे बाते याद करा रहे हैं जो दुबई में तो नसीब ही नहीं होती ...
मज़ा आ गया एक बार फिर से इस गज़ल को पढ़ के ... सुभान अल्ला ...
बहुत शानदार ग़ज़ल है नीरज जी .
बस शायर की नज़र में गाँव का स्वरुप कभी नहीं बदलता .
आ हा हा ... आदरणीय नीरज सर. आनंद आ गया...
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है....
सादर.
वाह ...बेहद खूबसूरत..बहुत ही नस्तौल्जिक गज़ल.
गाँव-राँव की बात यह, आकर्षक दमदार ।
हावी कृत्रिमता हुई, लोग होंय अनुदार ।।
लोग होंय अनुदार, गाँव की बात निराली ।
भागदौड़ के शहर, अजूबे खाली-खाली ।।
झेलें कस्बे ग्राम, मुसीबत किन्तु दांव की ।
लगे बदलने लोग, हवा अब गाँव-राँव की ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
http://dineshkidillagi.blogspot.in
♥
आदरणीय नीरज जी भाईसाहब
सादर अभिवादन !
वाह ! वाह ! वाह !
हर शे'र भा गया …
लेकिन इस शे'र का जवाब नहीं … लाजवाब !
शहर में देखो जवानी में बुढ़ापा आ गया
पर बुढ़ापे में जवानी, है अभी तक गांव में
पूरी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद !
हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ज़हर सी कडवी बहुत हैं इस नगर में बोलिया
हर जबां पर गुड़ की भेली, है अभी तक गाँव में
.नीरज जी ग़ज़ल की खूबसूरती अर्थ में भाव छटा में शब्द चयन में देखते सराहते ही बनती है हर शैर ख़ास भरती का कोई भी नहीं .
Msg received on e-mail:-
Uncle sadar namskar
Sabhee sher 1 se badhkar ek. Aisa laga Apane gaanv laut gaye hain aur aisee shandar dunia men rah rahe hain. Bahut sukun deti hain aapaki likhi gazalen aur sameeksha ki huvee gajalen bhee. Monday ke alawa puranee gajals bhee padhata hoon blog par.
Aapake khaksar shabd se sher yaad aaya
Khaksar ban ke jo gujar de zindagi
use aadami ke pairon tale aasman hai.
Aapaka
Vishal
Bahut badhiya Ghazal neeraj ji.
chaand raato ho ab bhi saaf dikhta hai wahan
kona kona faili chandni hai abhi tak gaon main
शहर में देखो जवानी में बुढ़ापा आ गया
पर बुढ़ापे में जवानी, है अभी तक गांव में----
वाह गुरु वाह --क्या बात है उदाहरण में हू -२६ अगस्त को half century पूरी होने जा रही है पर ३० से ज्यादा कोंई नही कहता
Neeraj ji aapki ye post Subeer ji ke yahan padhi thi aur tabhi is roti ke sath main bhi aapke is lekhni par phool kar kuppa ho gaya tha . bahut badhiya..
फूल कर कुप्पा हुआ करती थीं जिस पर रोटियां
माँ की प्यारी वो अंगीठी, है अभी तक गाँव में...
इन रोटियों के स्वाद जैसा स्वाद गैस पर बनी रोटियों में नहीं आ सकते|
एक से बढ़कर एक शेर, गॉंव के ये रूप देखकर दिल कहता है 'आ, अब लौट चलें....'.
दोस्ती, अख़लाक़, नेकी, अदबियत, इंसानियत
जानिसारी, खाकसारी है अभी तक गाँव में
हर शेर लाजवाब...गाँव की तस्वीर जीवंत कर दी...
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
हर जबां पर गुड़ की भेली, है अभी तक गाँव में
वाह!!!
ले लो भाई जी भर कर के वाह वाह!!! बनती है सच में..
वाह जी वाह! अंगीठी पर फूल कर कुप्पा हुई रोटीओं के बाद दूध और जलेबी का तो ऐसा मज़ा आया आपकी ग़ज़ल में कि बस शब्दों में बयान नहीं कर सकते!
हर एक शेर मुझे तो नानी के गाँव ले गया! मेरा तो तीरथ हो गया! शुक्रिया नीरज जी!
फूल कर कुप्पा हुआ करती थीं जिस पर रोटियां
माँ की प्यारी वो अंगीठी, है अभी तक गाँव में..
बहुत खूबसूरत रचना !
हालांकि अब साल में एक दो बार ही गांव पर आना जाना हो पाता है, परन्तु आपकी इन पंक्तियों ने उन लम्हों की यादें ताज़ा करा दी.
ज़हर सी कडवी बहुत हैं इस नगर में बोलिया
हर जबां पर गुड़ की भेली, है अभी तक गाँव में
जब भी वहाँ जाना होता है ये पंक्तिया तो बहुत ही साकार होती है.
आभार
नीरज भाई जी ! वाह,वाह,वाह और वाह ....
खुश रहें और खुशी बांटते रहे !
मुबारक कबूल हो !
ज़हर सी कडवी बहुत हैं इस नगर में बोलिया
हर जबां पर गुड़ की भेली, है अभी तक गाँव में
यही सत्य है सर जी ...
बहुत ही प्यारी गज़ल. गाँव की महक के साथ.
विजय
sab ne ji khol kar tarif ki ,to ab mere paas kahne ko ek hi shbd bcha hai,LAZWAAB!
ज़हर सी कडवी बहुत हैं इस नगर में बोलिया
हर जबां पर गुड़ की भेली, है अभी तक गाँव में
....लाज़वाब! एक एक शब्द पुरानी यादें ताज़ा कर गया..
नीरज जी ,
सभी शे'र एक से बढ़ कर एक.... आपकी गज़ल कहने कि कला कि मैं हमेशा कायल रही हूँ..बधाई इस खूबसूरत गज़ल के लिए
कोई लौटा दे वो गाँव या फिर मैं खुद लौट जाऊं?
जिस ज़िन्दगी की तलाश में शहर आया था मैं,
वो तो छोड़ आया हूँ उसी गाँव में, वो तो छोड़ आया हूँ उसी गाँव में..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति थी यह तो..
जो भी था,वह वक्त का बियबान जंगल हो गया।
अब तो कुछ आहें और कुछ यादें बसी हैं गांव में!
कोशिशें उसको उठाने की सभी ज़ाया हुईं
इक अजब सी नातवानी, है अभी तक गाँव में
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.
खूबसूरत गज़ल. आपकी शायरी शबाब पर है, और आपकी जवानी शहर में भी बरकारार है.
dosti akhlak,neki,adabiat,Insaniyat,
janisari,khaksari,hae abhi tak gaon me
BAHUT HI SUNDAR GAZAL,HAR EK SHER ALAG ANDAZ ME KUCH AHASOSIYAT RAKHTA HAE.
DAD DETA HOO APKI KALAM KO
Msg received on mail:-
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है नीरज जी !
कई अशआर पसंद आये .
बहुत खूब !
आलम खुर्शीद
ज़हर सी कडवी बहुत हैं इस नगर में बोलिया
हर जबां पर गुड़ की भेली, है अभी तक गाँव में
क्या बात है !!
गाँव के माहौल की बड़ी हसीन मंज़रकशी है !!
बहुत ख़ूब !!
हर शेर खूबसूरत..एक से बढ़कर एक,,,
सादर.
वाह....वाह....वाह
बहुत खुबसूरत है ग़ज़ल । दाद कबूल करें।
जिस्म की पुरपेच गलियों में कभी खोया नहीं
प्यार तो "नीरज" रूहानी है अभी तक गाँव में
वाह ही वाह! एक से बढ़कर एक अशआर. खूबसूरत ग़ज़ल!
बहुत अच्छी ग़ज़ल... एक - एक शब्द प्रभावित कर रहा है...
डॉ टी एस दराल said...
बहुत शानदार ग़ज़ल है नीरज जी .
बस शायर की नज़र में गाँव का स्वरुप कभी नहीं बदलता .
मैं भी दलाल सर की बात से सहमत हूँ ...छोटे शहर से होने के नाते ..गावों के करीब हूँ ...आज के गाँव पहले जैसे नहीं हैं ....फिर भी कुछ यादे ऐसी हैं जो हमेशा के लिए मन में बस जाती हैं ...
जिंदगी गुज़र जाती हैं आधी ..अपनी ही आपाधापी में
ये अपना ही ज़ेहन हैं जो यादो में खुद का वजूद तलाशता हैं ....(अनु)
डॉ टी एस दराल said...
बहुत शानदार ग़ज़ल है नीरज जी .
बस शायर की नज़र में गाँव का स्वरुप कभी नहीं बदलता .
मैं भी दलाल सर की बात से सहमत हूँ ...छोटे शहर से होने के नाते ..गावों के करीब हूँ ...आज के गाँव पहले जैसे नहीं हैं ....फिर भी कुछ यादे ऐसी हैं जो हमेशा के लिए मन में बस जाती हैं ...
जिंदगी गुज़र जाती हैं आधी ..अपनी ही आपाधापी में
ये अपना ही ज़ेहन हैं जो यादो में खुद का वजूद तलाशता हैं ....(अनु)
"फूल कर कुप्पा हुआ करती थीं जिस पर रोटियां.................." जिंदाबाद नीरज जी.
"ज़हर सी कडवी बहुत हैं इस नगर में बोलिया...........", वाह वाह
"शहर में देखो जवानी में बुढ़ापा आ गया/पर बुढ़ापे में जवानी, है अभी तक गांव में". वाह वा
तरही में पढ़ के भी लाजवाब हो गया था और आज भी बस पढ़े जा रहा हूँ.
MSG RECEIVED ON MAIL:-
आदरणीय नीरज जी,
पूरी ग़ज़ल में कोई शे'र तो है ही नहीं, सब सवा शेर हैं
किसको ज्यादा अच्छा कहें और किसको कम.....
ज़हर सी कडवी बहुत हैं इस नगर में बोलिया
हर जबां पर गुड़ की भेली, है अभी तक गाँव में
वाह वाह...
पेट भरता था जिसे खा कर मगर ये मन नहीं
ढूध वाली वो जलेबी, है अभी तक गांव में
बहुत ख़ूब...
दोस्ती, अख़लाक़, नेकी, अदबियत, इंसानियत
जानिसारी, खाकसारी है अभी तक गाँव में
क्या कहने..
कभी कभार बचपन में गुज़ारे वो गाँव के दिन याद
आ गए आपकी यह ग़ज़ल पढ़कर....
कुछ अशआर तो मानो कह रहे हों...
मेरा एक शे'र आपकी नज्र है...
"घुट न जाए कहीं यहाँ दम उठाओ डेरा पयाम कर लो
चलो, चलें उस चमन की जानिब वहाँ हमें ताज़गी मिलेगी"
---- 'रक़ीब'
खूबसूरत ग़ज़ल पर ढेरों बधाइयां और पढ़वाने के
लिए अनेकानेक साधुवाद.
सादर,
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
जुहू, मुंबई-49.
वाह नीरज जी! कमाल का कहा है आपने! अफ़सोस है कि व्यस्तताओं के कारण मैं देर से आपकी गज़ल पढ़ पाई!
वाह नीरज जी! एक-एक शेर कमाल का कहा है आपने! अफ़सोस कि मसरूफ़ियत के कारण देर से इसे पढ़ पाई!
वाह-वाह!
एक-एक शब्द लाजवाब!
bahut sahi aur bahut sundar
हर शेर बेहतरीन...ला-जवाब!!
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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होली पर बहुत बहुत शुभकामनाएं
khubsurat kavita...holi ki shubhkamnayen:)
मेरे बचपन का वो साथी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में
आपकी तो पूरी कविता ही इतनी सुन्दर है .....इतने से अन्तराल में ...गाँव में जी लिए!
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