फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है
फ़स्ल की अब खुदा ही खैर करे
पासबाँ आजकल मचान पे है
तब बदलना नहीं ग़लत उसको
जब लगे रहनुमां थकान पे है
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
63 comments:
हम तो हमेशा आपकी बात सुनते रहेंगे।
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
परिंदा...अमन सुकून शांति की तलाश में ....
बहुत खूबसूरत लिखा है ...!!
हर शेर लाजवाब ...!
नमस्कार नीरज जी,
आप की निरंतरता को सलाम.
क्या खूब शेर कहा है;
"धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है"
वाह-वा
सम्मानीय नीरज जी, प्रणाम ! काफी दिनों बाद आपकी कलम से निकले मोतियों से सत्य समान शेरों से रूबरू होने का सुअवसर मिला. बेहद सुखद अहसास हुआ. हर शेर लाज़वाब. हालाँकि आपकी लेखनी पर कुछ कह पाने की क्षमता मुझमे नहीं है फिर भी इतनी अच्छी लगी कि अपने विचारों को रोक नहीं सका-
किस-किस शेर की तारीफ करें
हर शेर अब तक ज़बान पे है
****
वर्तमान हालात और आम इंसान की सोच को इन शेरों में आपने बखूबी पिरोया है-
फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है
फ़स्ल की अब खुदा ही खैर करे
पासबाँ आजकल मचान पे है
फिर भी इतना आत्मविश्वास कि-
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
आपकी शायरी नैतिकता, चिंतन और मानवता के क्रांतिकारी विचारों से भी ओत-प्रोत होती है.
धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है
वर्तमान इंसानी फितरत और कड़वे सत्य को आपने यहाँ कितनी सच्चाई के साथ कहा है-
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
इतनी मुक़म्मल ग़ज़ल के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया नमन !!
परिंदे भी नहीं रहते पराए आशियानों में,
अपनी तो उम्र गुज़री है किराए के मकानों में...
जय हिंद...
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
यूँ तो हर शेर लाजवाब है मगर इस शेर मे तो सारी सच्चाई उतार दी ज़िन्दगी की……………हमेशा की तरह आपके अन्दाज़ की शानदार गज़ल्।
Neeraj jee maza aa gya. Aaj subah-subah aapne din bana diya.Bas ek line kahunga-"Aapka sher har jubaan pe hai...."
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
gar hai aankhen bulandiyon pe
her shaakh apni hai
aaj tharrate hain panw
per kal hamara hai
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है...
बहुत सुन्दर शेर...
पूरी ग़ज़ल लाजवाब है...
हार्दिक बधाई.
शमशीर वाला शेर उस प्रतिबिम्ब को लिये है जो मेरे मन में है इन दिनों । एक क्रांति के लिये अब शमशीर है चाहिये, मोमबत्तियों से कुछ नहीं होने वाला । एक बहुत सुंदर ग़ज़ल के लिये बधाई ।
ham to aap ki kadvi guban bhee sun lege .....
jai baba banaras.....
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है...
वाह ... बहुत खूब कहा है ... ।
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
सच!
आदरणीय नीरज जी
नमस्कार !
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है
बहुत खूबसूरत
.......हर शेर लाजवाब......!
बहुत खूब !सुंदर ग़ज़ल !!
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ......हर शेर लाजवाब......
फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है
बहुत सुन्दर रचना अभिव्यक्ति .... वाह बधाई नीरज जी
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है...
वाह ..हर शेर लाज़वाब...
बेहतरीन, हर ओर आज आपकी ही गजल गुनगुनाती है।
aapki gazal ka main hamesha se hi deewana raha hoon ..
bahut badhayi .. gaon waal sher kuch man me aa gaya .
badhayi aapko
मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है....
wah.bahot achchi lagi.
NEERAJ BHAI , KYA KHOOB KAHAA HAI
AAPNE -
BAAT ` NEERAJ ` TEREE SUNENGE SABEE
JAB TALAK CHAASNEE ZABAAN PE HAI
AAPNE APNEE POOREE SHAKHSIYAT MAQTE
MEIN DHAAL DEE HAI .
SAAREE KEE SAAREE GAZAL MAN KO SPARSH KARTEE HAI
क्या बंदिश है……
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है।
ला-----जवा~~~ब!!
सुज्ञ: भगवान रिश्वत लेते है?
गजल कहने का लहजा आपका अच्छा लगा,
मैं रह गया पढ़ कर इन शेरों को जैसे ठगा।
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति...एक एक शब्द जीवंत हो उठे...
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
khoob,
par yahi to apan ki dukkat hai
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आपने क्या ये कह दिया नीरज
ये थका दिल भी अब उफ़ान पे है।
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
-गज़ब भाई गज़ब....बेमिसाल!!!
bahut khoob sir..lajawaab...
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
वाह...हासिले-ग़ज़ल शेर है
और मतला क्या कहने... बहुत खूब
फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है
नीरज जी, अपना एक शेर याद आ गया, मुलाहिज़ा फ़रमाएं
हरेक हाथ में पत्थर हैं तीर से पहले
हमारे शहर से नीची उड़ान रहने दे.
पर सुकूँ तो कहीं और ही है. बहुत सही !
तब बदलना नहीं ग़लत उसको
जब लगे रहनुमां थकान पे है
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है
kya likhun kamal ke sher
badhai
saader
rachana
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
...बेहतरीन! वाह, क्या खूब गज़ल लिखी है आपने!
क्या कमाल का लिखा है आपने मजा आ गया पढकर
अक्षय-मन "!!कुछ मुक्तक कुछ क्षणिकाएं!!" से
नीरज भाई, कमाल की ग़ज़ल पेश की है आपने| शुरू से आख़िर तक पढ़ने के बाद मालूम पड़ता है कि आम आदमी के सरोकार और उसी की भाषा कितनी ज़्यादा प्रासंगिक हो चुकी है अब| बहुत बहुत बधाई नीरज जी| इसे पढ़ कर मुझे हिंद युग्म द्वारा पुरस्कृत अपनी एक ग़ज़ल के चंद अशआर याद आ गये:-
गगनचरों को दे बुलावा चार दानों पर|
बहेलिए फिर ताक में बैठे मचानों पर||
पहाड़ की चोटी तलक वो ही पहुँचते हैं|
फिसल चुके हों जो कभी उन की ढलानों पर||
हुनर हो कोई भी बड़ी ही कोशिशें माँगे|
न खूँ में होता है, न मिलता ये दुकानों पर||
ऐसे ही लिखते रहिए भाई साब| हम लोगों को सीखने का इस से बेहतर तरीका और कोई हो भी नहीं सकता|
फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है.....
सभी शेर लाजवाब हैं .
लाजवाब है , मूक हैं हम ..
वाह......वाह......हर शेर उम्दा......और आखिरी वाले ने तो दिल जीत लिया......सुभानाल्लाह.......
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है "
बहुत बढ़िया बात कह दी नीरजजी आपने --
"अब नीड़ पे जाने को जी चाहता है !
कुछ पल सुस्ताने को जी चाहता है ! " वाह !
भाई नीरज जी,
* इस बेमिसाल ग़ज़ल के हर शेर किसी से भी कम नहीं.
* कहीं चाशनी, कही ढलान तो कहीं बुलंदियां --- लगता है भ्रष्टाचार अब मिट कर रहेगा.....
* कहीं थकान के बावजूद मचान पे कमान के साथ----- सही निशाना अब चूक न सकेगा शायद....
* रही सही इज्ज़त तो शहर के मकान ने उतार दी सारा सकून छीन कर... अब तो न गाँव बचा, न गाँव में अपने पहचान वाले, जाऊं तो जाऊं कहाँ?
बधाई, बधाई, बधाई.......
चन्द्र मोहन गुप्त
www.cmgupta.blogspot.com
ऐसी शीरीं गज़ल कि बस सुनते रहने को जी चाहता है..
बहुत सुन्दर रचना...बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
तब बदलना नहीं ग़लत उसको
जब लगे रहनुमां थकान पे है
धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है
वाह नीरज जी आपका जवाब नही । बहुत खूब। बधाई।
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
वाह क्या बात है ... बहुत खूब ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल !
बहुत खूब। वाकई आपकी लेखनी का जवाब नहीं।
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देखिए ब्लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्वासी आज भी रत्नों की अंगूठी पहनते हैं।
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
....लाज़वाब ! हरेक शेर बहुत उम्दा. आभार
बहुत खूब!
ये शेर बहुत बढ़िया लगे;
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
जुबान पर अलग से चाशनी लगाने की ज़रुरत नहीं है. इतने प्रशंसक किसके पास हैं?
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
...खूबसूरत शब्दाभिव्यक्ति..बधाई.
नीरज भाई
बहुत प्यारी ग़ज़ल..... छोटी बहार में एक बार फिर आपने कमाल किया है.....
ये दो शेर बहुत जबरदस्त हैं
फ़स्ल की अब खुदा ही खैर करे
पासबाँ आजकल मचान पे है
और
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
मतले ने तो कहर ढा दिया...... बार बार दोहरा रहा हूँ.....
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है ...
Aapki is bulandi ko salaam hai Neeraj ji ... jeene ki prerna to yahi hai ... har umr mein har samay taiyaar rahna chaahiye ... baut hi lajawaab hai har sher is gazal ka .... aur ant waala sher jo kitna kuch kah gaya ... vaah bhai vaah ...
Chashanee se bhi meethee hai ham sabhi sunenge hi nahi varan gunenge bhi. har-ek sher lajabab hai.ekdam teer ki tarah lagi.
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
जवाब नहीं है.....
बदलते मिज़ाज की यह ग़जल बहुत खुबसूरत लगी मुबारक हो
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
नीरज जी आपको पढ कर हमेशा की तरह आनंद आया ।
वाह ..वाह ...क्या बात है ....
नीरज जी यूँ तो सभी शे'र बहुत ही उम्दा हैं ...
पर ये दो तो बस कमाल ही है ....
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
आपकी जुबान को तो चाशनी की भी जरुरत नहीं ...
खुदा ने ही चाशनी में दाल कर भेजा है ...
सभी टिप्पणियाँ गवाह हैं इसकी ....:))
दिली दाद कबूल करें ....!!
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन शे'र...
तब बदलना नहीं ग़लत उसको
जब लगे रहनुमां थकान पे है
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
बहुत बढ़िया ग़ज़ल है नीरज जी! बहुत दिन बाद यहाँ आई और आते ही एक उम्दा ग़ज़ल पढने को मिल गयी!
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है...
नीरज जी आपको पढ कर
बहुत आनंद आया!
वाह ...!! बहुत खूब कहा है ...
वाह नीरज जी,बेहतरीन ग़ज़ल.
ये शेर:-
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
लाजवाब
प्रभावी अंदाज़.......आभार !
बहुत खूबसूरत ...
हर शेर लाजवाब ...
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
- बहुत सुंदर!
आपके ब्लॉग पर अभी अभी आये हैं.
और पढ़ के सीखना है. पिछली पोस्ट भी पढ़ते रहेंगे.
धन्यवाद!
धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
इन दो धारदार और पायादार अशआर के लिए मुबारकबाद कुबूल फर्माएं
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
v nice ghazal
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