Monday, April 25, 2011

फिर परिंदा चला उड़ान पे है


फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है

फ़स्ल की अब खुदा ही खैर करे
पासबाँ आजकल मचान पे है

तब बदलना नहीं ग़लत उसको
जब लगे रहनुमां थकान पे है

हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है

धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है

63 comments:

राजेश उत्‍साही said...

हम तो हमेशा आपकी बात सुनते रहेंगे।

Anupama Tripathi said...

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है

परिंदा...अमन सुकून शांति की तलाश में ....
बहुत खूबसूरत लिखा है ...!!
हर शेर लाजवाब ...!

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
आप की निरंतरता को सलाम.
क्या खूब शेर कहा है;
"धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है"
वाह-वा

Narendra Vyas said...

सम्मानीय नीरज जी, प्रणाम ! काफी दिनों बाद आपकी कलम से निकले मोतियों से सत्य समान शेरों से रूबरू होने का सुअवसर मिला. बेहद सुखद अहसास हुआ. हर शेर लाज़वाब. हालाँकि आपकी लेखनी पर कुछ कह पाने की क्षमता मुझमे नहीं है फिर भी इतनी अच्छी लगी कि अपने विचारों को रोक नहीं सका-
किस-किस शेर की तारीफ करें
हर शेर अब तक ज़बान पे है
****
वर्तमान हालात और आम इंसान की सोच को इन शेरों में आपने बखूबी पिरोया है-
फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है

फ़स्ल की अब खुदा ही खैर करे
पासबाँ आजकल मचान पे है


फिर भी इतना आत्मविश्वास कि-
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है

आपकी शायरी नैतिकता, चिंतन और मानवता के क्रांतिकारी विचारों से भी ओत-प्रोत होती है.
धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है


वर्तमान इंसानी फितरत और कड़वे सत्य को आपने यहाँ कितनी सच्चाई के साथ कहा है-
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है


इतनी मुक़म्मल ग़ज़ल के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया नमन !!

Khushdeep Sehgal said...

परिंदे भी नहीं रहते पराए आशियानों में,
अपनी तो उम्र गुज़री है किराए के मकानों में...

जय हिंद...

vandana gupta said...

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है

यूँ तो हर शेर लाजवाब है मगर इस शेर मे तो सारी सच्चाई उतार दी ज़िन्दगी की……………हमेशा की तरह आपके अन्दाज़ की शानदार गज़ल्।

सौरभ शेखर said...

Neeraj jee maza aa gya. Aaj subah-subah aapne din bana diya.Bas ek line kahunga-"Aapka sher har jubaan pe hai...."

रश्मि प्रभा... said...

हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
gar hai aankhen bulandiyon pe
her shaakh apni hai
aaj tharrate hain panw
per kal hamara hai

Dr (Miss) Sharad Singh said...

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है...

बहुत सुन्दर शेर...
पूरी ग़ज़ल लाजवाब है...
हार्दिक बधाई.

पंकज सुबीर said...

शमशीर वाला शेर उस प्रतिबिम्‍ब को लिये है जो मेरे मन में है इन दिनों । एक क्रांति के लिये अब शमशीर है चाहिये, मोमबत्तियों से कुछ नहीं होने वाला । एक बहुत सुंदर ग़ज़ल के लिये बधाई ।

Unknown said...

ham to aap ki kadvi guban bhee sun lege .....

jai baba banaras.....

सदा said...

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है...

वाह ... बहुत खूब कहा है ... ।

पारुल "पुखराज" said...

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है

सच!

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय नीरज जी
नमस्कार !
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है

धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है
बहुत खूबसूरत
.......हर शेर लाजवाब......!

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत खूब !सुंदर ग़ज़ल !!

संध्या शर्मा said...

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ......हर शेर लाजवाब......

समय चक्र said...

फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है

बहुत सुन्दर रचना अभिव्यक्ति .... वाह बधाई नीरज जी

स्वाति said...

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है...

वाह ..हर शेर लाज़वाब...

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन, हर ओर आज आपकी ही गजल गुनगुनाती है।

vijay kumar sappatti said...

aapki gazal ka main hamesha se hi deewana raha hoon ..

bahut badhayi .. gaon waal sher kuch man me aa gaya .

badhayi aapko

मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html

mridula pradhan said...

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है....
wah.bahot achchi lagi.

pran sharma said...

NEERAJ BHAI , KYA KHOOB KAHAA HAI
AAPNE -

BAAT ` NEERAJ ` TEREE SUNENGE SABEE
JAB TALAK CHAASNEE ZABAAN PE HAI

AAPNE APNEE POOREE SHAKHSIYAT MAQTE
MEIN DHAAL DEE HAI .

SAAREE KEE SAAREE GAZAL MAN KO SPARSH KARTEE HAI

सुज्ञ said...

क्या बंदिश है……

हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है।

ला-----जवा~~~ब!!

सुज्ञ: भगवान रिश्वत लेते है?

Vijuy Ronjan said...

गजल कहने का लहजा आपका अच्छा लगा,
मैं रह गया पढ़ कर इन शेरों को जैसे ठगा।
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति...एक एक शब्द जीवंत हो उठे...

दीपक बाबा said...

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है


khoob,

par yahi to apan ki dukkat hai

तिलक राज कपूर said...

Ctrl+A Ctrl+C Ctrl+V All Comments and
आपने क्‍या ये कह दिया नीरज
ये थका दिल भी अब उफ़ान पे है।

Udan Tashtari said...

हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है


-गज़ब भाई गज़ब....बेमिसाल!!!

दिलीप said...

bahut khoob sir..lajawaab...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
वाह...हासिले-ग़ज़ल शेर है
और मतला क्या कहने... बहुत खूब
फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है
नीरज जी, अपना एक शेर याद आ गया, मुलाहिज़ा फ़रमाएं
हरेक हाथ में पत्थर हैं तीर से पहले
हमारे शहर से नीची उड़ान रहने दे.

Abhishek Ojha said...

पर सुकूँ तो कहीं और ही है. बहुत सही !

Rachana said...

तब बदलना नहीं ग़लत उसको
जब लगे रहनुमां थकान पे है

हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है

धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है
kya likhun kamal ke sher
badhai
saader
rachana

देवेन्द्र पाण्डेय said...

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
...बेहतरीन! वाह, क्या खूब गज़ल लिखी है आपने!

!!अक्षय-मन!! said...

क्या कमाल का लिखा है आपने मजा आ गया पढकर
अक्षय-मन "!!कुछ मुक्तक कुछ क्षणिकाएं!!" से

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

नीरज भाई, कमाल की ग़ज़ल पेश की है आपने| शुरू से आख़िर तक पढ़ने के बाद मालूम पड़ता है कि आम आदमी के सरोकार और उसी की भाषा कितनी ज़्यादा प्रासंगिक हो चुकी है अब| बहुत बहुत बधाई नीरज जी| इसे पढ़ कर मुझे हिंद युग्म द्वारा पुरस्कृत अपनी एक ग़ज़ल के चंद अशआर याद आ गये:-

गगनचरों को दे बुलावा चार दानों पर|
बहेलिए फिर ताक में बैठे मचानों पर||

पहाड़ की चोटी तलक वो ही पहुँचते हैं|
फिसल चुके हों जो कभी उन की ढलानों पर||

हुनर हो कोई भी बड़ी ही कोशिशें माँगे|
न खूँ में होता है, न मिलता ये दुकानों पर||

ऐसे ही लिखते रहिए भाई साब| हम लोगों को सीखने का इस से बेहतर तरीका और कोई हो भी नहीं सकता|

मेरे भाव said...

फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है.....

सभी शेर लाजवाब हैं .

शारदा अरोरा said...

लाजवाब है , मूक हैं हम ..

Anonymous said...

वाह......वाह......हर शेर उम्दा......और आखिरी वाले ने तो दिल जीत लिया......सुभानाल्लाह.......

दर्शन कौर धनोय said...

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है "

बहुत बढ़िया बात कह दी नीरजजी आपने --

"अब नीड़ पे जाने को जी चाहता है !
कुछ पल सुस्ताने को जी चाहता है ! " वाह !

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई नीरज जी,
* इस बेमिसाल ग़ज़ल के हर शेर किसी से भी कम नहीं.
* कहीं चाशनी, कही ढलान तो कहीं बुलंदियां --- लगता है भ्रष्टाचार अब मिट कर रहेगा.....
* कहीं थकान के बावजूद मचान पे कमान के साथ----- सही निशाना अब चूक न सकेगा शायद....
* रही सही इज्ज़त तो शहर के मकान ने उतार दी सारा सकून छीन कर... अब तो न गाँव बचा, न गाँव में अपने पहचान वाले, जाऊं तो जाऊं कहाँ?

बधाई, बधाई, बधाई.......

चन्द्र मोहन गुप्त
www.cmgupta.blogspot.com

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

ऐसी शीरीं गज़ल कि बस सुनते रहने को जी चाहता है..

Akshitaa (Pakhi) said...

बहुत सुन्दर रचना...बधाई.

____________________________
'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.

निर्मला कपिला said...

तब बदलना नहीं ग़लत उसको
जब लगे रहनुमां थकान पे है

धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है
वाह नीरज जी आपका जवाब नही । बहुत खूब। बधाई।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है

वाह क्या बात है ... बहुत खूब ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल !

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत खूब। वाकई आपकी लेखनी का जवाब नहीं।

---------
देखिए ब्‍लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्‍वासी आज भी रत्‍नों की अंगूठी पहनते हैं।

Kailash Sharma said...

हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है

....लाज़वाब ! हरेक शेर बहुत उम्दा. आभार

Shiv said...

बहुत खूब!
ये शेर बहुत बढ़िया लगे;

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है

जुबान पर अलग से चाशनी लगाने की ज़रुरत नहीं है. इतने प्रशंसक किसके पास हैं?

KK Yadav said...

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
...खूबसूरत शब्दाभिव्यक्ति..बधाई.

Pawan Kumar said...

नीरज भाई
बहुत प्यारी ग़ज़ल..... छोटी बहार में एक बार फिर आपने कमाल किया है.....
ये दो शेर बहुत जबरदस्त हैं
फ़स्ल की अब खुदा ही खैर करे
पासबाँ आजकल मचान पे है
और
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
मतले ने तो कहर ढा दिया...... बार बार दोहरा रहा हूँ.....
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है

दिगम्बर नासवा said...

हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है ...

Aapki is bulandi ko salaam hai Neeraj ji ... jeene ki prerna to yahi hai ... har umr mein har samay taiyaar rahna chaahiye ... baut hi lajawaab hai har sher is gazal ka .... aur ant waala sher jo kitna kuch kah gaya ... vaah bhai vaah ...

Amrita Tanmay said...

Chashanee se bhi meethee hai ham sabhi sunenge hi nahi varan gunenge bhi. har-ek sher lajabab hai.ekdam teer ki tarah lagi.

आकर्षण गिरि said...

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है

जवाब नहीं है.....

Sunil Kumar said...

बदलते मिज़ाज की यह ग़जल बहुत खुबसूरत लगी मुबारक हो

Asha Joglekar said...

हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
नीरज जी आपको पढ कर हमेशा की तरह आनंद आया ।

हरकीरत ' हीर' said...

वाह ..वाह ...क्या बात है ....
नीरज जी यूँ तो सभी शे'र बहुत ही उम्दा हैं ...
पर ये दो तो बस कमाल ही है ....

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है

आपकी जुबान को तो चाशनी की भी जरुरत नहीं ...
खुदा ने ही चाशनी में दाल कर भेजा है ...
सभी टिप्पणियाँ गवाह हैं इसकी ....:))

दिली दाद कबूल करें ....!!

Dr Varsha Singh said...

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है

हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन शे'र...

pallavi trivedi said...

तब बदलना नहीं ग़लत उसको
जब लगे रहनुमां थकान पे है

हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
बहुत बढ़िया ग़ज़ल है नीरज जी! बहुत दिन बाद यहाँ आई और आते ही एक उम्दा ग़ज़ल पढने को मिल गयी!

मदन शर्मा said...

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है...
नीरज जी आपको पढ कर
बहुत आनंद आया!
वाह ...!! बहुत खूब कहा है ...

Kunwar Kusumesh said...

वाह नीरज जी,बेहतरीन ग़ज़ल.
ये शेर:-
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
लाजवाब

निवेदिता श्रीवास्तव said...

प्रभावी अंदाज़.......आभार !

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

बहुत खूबसूरत ...
हर शेर लाजवाब ...

Anonymous said...

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है

- बहुत सुंदर!
आपके ब्लॉग पर अभी अभी आये हैं.
और पढ़ के सीखना है. पिछली पोस्ट भी पढ़ते रहेंगे.
धन्यवाद!

kumar zahid said...

धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है


इन दो धारदार और पायादार अशआर के लिए मुबारकबाद कुबूल फर्माएं

नीलांश said...

हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है

धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है

शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है

बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है

v nice ghazal