Monday, January 10, 2011

किताबों की दुनिया - 43

मुश्किलों की धूप भी जिनको रास आ गयी
रंग रूप उनके कुछ और भी निखर गए

प्यार कि न डोर थी कैसे बांधती भला
रिश्ते मोतियों से थे टूट कर बिखर गए

बात बहुत पुरानी है...ये ही कोई पांच छै साल पहले की, लेकिन लगता है जैसे अभी कल की हो. मेरा शायरी करने का शौक अभी “घुटरुन चलत रेणु तनु मंडित...” वाली स्तिथि में ही था. नेट पर शायरी के बारे में जहां से जो जानकारी मिलती सहेजता रहता. इसी दौरान हैदराबाद की शायरा मोना हैदराबादी से परिचय हुआ. मोना जी जब अपनी बेटी से मिलने पुणे आयीं तब मैंने उन्हें खोपोली आने का आग्रह किया जिसे उन्होंने मान भी लिया. उन्होंने बताया के ठाने में उनकी एक मित्र रहतीं हैं जो अच्छी शायरा हैं उन्हें भी क्यूँ न बुला लिया जाए. मोना जी ने उन्हें फोन किया और उन्होंने तुरंत हमारा न्योता स्वीकार कर लिया.

खोपोली स्टेशन पर रात आठ बजे ट्रेन से एक उम्र दराज़, सफ़ेद लेकिन करीने से कटे हुए बालों वाली और बेहद सलीके से उतरती महिला को देखते ही मैं समझ गया था के ये ही मोना जी की मित्रमरयम ग़ज़ाला ” हैं.

“मरयम आपा”जी हाँ मैं उन्हें इसी नाम से पुकारता हूँ , विलक्षण प्रतिभा की धनी महिला हैं. शायरी की उनकी अब तक आठ दस किताबें शाया हो चुकी हैं. आज हम उनकी किताब “वजूद का सहरा ” की चर्चा करेंगे.


सफर में खुशनुमा यादों का कोई कारवां रखना
बुजुर्गों की दुआ का धूप में इक सायबां रखना

भले सर पर सफेदी है, इरादों को जवां रखना
कलम में जो सियाही है “ग़ज़ाला” वो रवां रखना

भुलाने का तरीक़ा ये नहीं है अपने साथी को
जला देना खतों को और फिर दिल में धुआं रखना

मरयम आपा बहुत मजबूत इरादों वाली हैं इसलिए कैंसर जैसे घातक रोग से लड़ते हुए आप उन्हें मुंबई में हो रही लगभग सभी नशिस्तों में जोश के साथ शिरकत करते हुए देख सकते हैं. ठाने से बस या लोकल ट्रेन की यात्रा में तकलीफ पा कर भी मुस्कुराते हुए वो बुलाये जाने पर कहीं भी हो रही शायरी की महफ़िल में पहुँच जाती हैं और अपनी मौजूदगी से चार चाँद लगा देती हैं.

( मुंबई की एक नशिस्त में अपना कलाम पढ़ती हुई मरयम आपा )

चले चलो कि बस्तियों में नफरतों का है चलन
गली गली में मुफलिसी मकां मकां घुटन घुटन

उदास उदास शाम में धुआं धुआं चराग़ है
हमें तेरे ख्याल में मिली फक़त चुभन चुभन

दिलों में देश प्रेम की वो भावना नहीं रही
भले ही चीखते हों सब मेरा वतन वतन

कटे न जब तलक कपट न मैल मन का ही धुले
अज़ान भी फरेब है, फरेब है भजन भजन

आपा गुजराती हैं ,लेकिन हिंदी उर्दू मराठी और फ़ारसी भाषा का भी उन्हें ज्ञान है. मैंने नए साल पर जब उन्हें फोन किया तो बोलीं “अरे नीरज मैं बरोडा में आल इण्डिया लेखिका सम्मेलन में आई हुई हूँ, यहाँ लोगों ने मेरा गुजराती में कहा कलाम भी बहुत पसंद किया है “. उनकी बातों में छोटे बच्चे सा उल्ल्हास था. उम्र के सत्तर वें पड़ाव में भी उनमें अपने नाम के अनुरूप हिरनी सी कुलांचे मारने कि क्षमता दिखाई देती है.

कालेज कि पढाई से डिग्री तो मिली लेकिन
डिग्री के जो लायक हो वो काम नहीं मिलता

झूठे हैं सबक सारे मकतब में जो सीखे थे
हक राह पे चलने का ईनाम नहीं मिलता

हीरों से भी बढ़कर है मिटटी से भी सस्ता है
दिल बेचने जाओ तो फिर दाम नहीं मिलता

जब तक न “गज़ाला” तुम खुद को ही बदल डालो
अल्लाह नहीं मिलता और राम नहीं मिलता

मरयम आपा ने अग्रेज़ी और मनोविज्ञान विषयों में एम्.ऐ. किया है इसके अलावा एम्.एड, शिक्षण, डी.पी.एड साहित्य रत्न कि डिग्रियां भी उनके पास हैं. बरसों वो मुंबई के ख्याति प्राप्त कालेज में अंग्रेजी और मनोविज्ञान पढाती रहीं हैं. गज़ल गोई उनका पसंदीदा शगल है वो अक्सर मुझे हँसते हुए कहती हैं “जब तक मैं गज़ल कहती रहूंगी तब तक मुझे कुछ नहीं होने वाला.” ये बात सही भी है गज़ल के प्रति उनका जूनून ही उन्हें जिंदा और खुश मिजाज़ रखे हुए है.

मखमली डिबिया में टुकड़ा कांच का बिक जाएगा
चीथड़ों में एक हीरा है मगर देखेगा कौन

आओ मछली कि तरह मुझको तडपता देख लो
तीर तुमने ही चलाया है असर देखेगा कौन

साथ हँसने के लिए आ जायेंगे साथी सभी
भीगती तन्हाइयों में चश्मे तर देखेगा कौन

“वजूद का सेहरा “ किताब में मरयम आपा कि कुछ बेहतरीन ग़ज़लें संग्रहीत हैं, जिसका प्रत्येक शेर उनके निरंतर रियाज़ का प्रतिफल प्रतीत होता है. उनके अशआर में मानवीय संवेदनाएं और यथार्थ नज़र आता है . वो इंसानी हताशाओं और आशाओं की शायरा हैं. उनकी इस किताब को मासूम प्रकाशन १०३-बी, गोपाल अपार्टमेंट आनंद कोलीवाड़ा मुम्ब्रा जिला ठाने ने प्रकाशित किया है.

कामयाबी जब मिली तो खुद पे इतराए बहुत
अपनी नाकामी में देखा दोष क्यूँ तकदीर का

दूध डिब्बे का है और तालीम है कान्वेंट की
कैसे पाओगे असर बेटी में माँ के शीर का

अपने सुधि पाठकों से मेरा आग्रह है के अगर उन्हें इस किताब को हासिल करने में कोई परेशानी आ रही हो तो वो बे झिझक मरयम आपा से उनके मोबाइल न. 9819927369 पर बात कर पहले उन्हें इस लाजवाब शायरी की दाद दें और फिर इस किताब की प्राप्ति के लिए गुजारिश करें, मुझे उम्मीद ही नहीं बल्कि विश्वाश है के आप निराश नहीं होंगे. जैसी उनकी सोच है वैसी ही वो खुद भी हैं, उनकी कथनी करनी में मुझे कभी फर्क नज़र नहीं आया, उनकी ये खासियत ही उनकी मकबूलियत का कारण है.

जो अच्छा है कभी तारीफ़ वो खुद की नहीं करता
बुरे ही लोग खुद को हर घडी अच्छा दिखाते हैं

बड़े जो हैं वो छोटों का भी कद कर देते हैं ऊंचा
जो छोटे हैं सदा दूजों को वो बौना दिखाते हैं


(खोपोली में हुई काव्य संध्या में अपना कलाम सुनाती हुईं मरयम आपा)

45 comments:

Creative Manch said...

प्यार कि न डोर थी कैसे बांधती भला
रिश्ते मोतियों से थे टूट कर बिखर गए

भुलाने का तरीक़ा ये नहीं है अपने साथी को
जला देना खतों को और फिर दिल में धुआं रखना

दिलों में देश प्रेम की वो भावना नहीं रही
भले ही चीखते हों सब मेरा वतन वतन

हीरों से भी बढ़कर है मिटटी से भी सस्ता है
दिल बेचने जाओ तो फिर दाम नहीं मिलता

वाह वाह वाह
बहुत खूब
क्या लाजवाब सहेजने लायक शेर हैं
आपका आभार

रचना दीक्षित said...

नीरज जी, आज फिर एक बेहतरीन शायरा से मुलाकात का मौका मिला. उन्हें और उनकी शायरी को हम तक पहुँचाने के लिए आभार.

फ़िरदौस ख़ान said...

मरयम आपा से मुलाक़ात कराने के लिए शुक्रिया...


मखमली डिबिया में टुकड़ा कांच का बिक जाएगा
चीथड़ों में एक हीरा है मगर देखेगा कौन

आओ मछली कि तरह मुझको तडपता देख लो
तीर तुमने ही चलाया है असर देखेगा कौन

साथ हँसने के लिए आ जायेंगे साथी सभी
भीगती तन्हाइयों में चश्मे तर देखेगा कौन


बेहद उम्दा...

इस्मत ज़ैदी said...

नीरज जी ,बहुत बहुत शुक्रिया इतनी उम्दा शायरा का त’आरुफ़ करवाने के लिये
बहुत ख़ूबसूरत अश’आर हैं और बेहद सच्चे भी

मखमली डिबिया में टुकड़ा कांच का बिक जाएगा
चीथड़ों में एक हीरा है मगर देखेगा कौन

साथ हँसने के लिए आ जायेंगे साथी सभी
भीगती तन्हाइयों में चश्मे तर देखेगा कौन

बेहद उम्दा !क्या बात है !

Neeraj said...

किताब के मुख्य पृष्ठ का चित्र तो 'वजूद का सहरा' दिखा रहा है , आपने 'वजूद का सफ़र' नाम बताया है | नीरज जी, कृपया स्पष्ट करें |

शारदा अरोरा said...

बहुत हकीकत है शेरों में , शुक्रिया मरयम आपा से परिचय करवाने का ..

नीरज गोस्वामी said...

नीरज बसलियाल जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका जो आपने गलती की तरफ इशारा किया...मैंने गलती सुधार ली है.
नीरज

मुदिता said...

नीरज जी ,
बहुत उम्दा शेर हैं ..बहुत बहुत शुक्रिया मरयम आप जैसी शख्सियत से रूबरू करवाने के लिए ...

मुकेश कुमार तिवारी said...

नीरज जी,

गजलों के बहाने अपनी जिन्दगी में झांकने का मौका मिला या यूँ कह लीजिये एक नज़रिया बना है जिन्दगी की दुश्वारियों को करीब से देखने का।

बहुत शुक्रिया सुश्री मरियम आपा से परिचय कराने का।

नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ,

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

प्रवीण पाण्डेय said...

मरयम आपा के सुन्दर शेर, पढ़कर बहुत अच्छा लगा।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मरयम जी से मिलवाने का शुक्रिया।

---------
पति को वश में करने का उपाय।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।

स्वाति said...

बहुत खूब ...मरियम जी से परिचय कराने के लिए आभार....

पंकज सुबीर said...

बहुत उम्‍दा अशआर और उतना ही सुंदर प्रस्‍तुतिकरण । आपा को बधाई देने के लिये नंबर लगाया तो पता चला कि ये नंबर यूज में नहीं है । शायद एकाध डिजिट ग़लत टाइप हो गई है ।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

दिलों में देश प्रेम की वो भावना नहीं रही
भले ही चीखते हों सब मेरा वतन वतन
कितनी सादगी से ये हक़ीक़त बयान की गई है..वाह
झूठे हैं सबक सारे मकतब में जो सीखे थे
हक राह पे चलने का ईनाम नहीं मिलता
आईना बन गया शेर...
जो अच्छा है कभी तारीफ़ वो खुद की नहीं करता
बुरे ही लोग खुद को हर घडी अच्छा दिखाते हैं
गहरा असर करने वाला कलाम...
बधाई और शुक्रिया आद. नीरज जी, ऐसी बाकमाल शायरा से रूबरू कराने के लिए.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

बड़े भाई साहब!
मरयम आपा की तस्वीर देखकर ही मन में श्रद्धा पैदा हुई... उनका परिचय पढकर श्रद्धा दुगुनी हो गई... और शायरी का नमूना देख तो बस सिर झुका लिया मैंने.. ख़ास तौरपर उनका ये कहना कि जब तक ग़ज़ल कहती हूँ ये बीमारी मेरा कुछ नहीं बिगाड‌ सकती.
ये जज़्बा एक मिसाल है. परमात्मा उनको लम्बी उम्र दे! आमीन!!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

आद.नीरज जी,

मरयम आपा से मुलाकात कराने के लिए शुक्रिया ! उनकी कलम की ताक़त का अंदाज़ा बानगी के शेर पढ़ कर सहज ही लगाया जा सकता है !

"भुलाने का तरीक़ा ये नहीं है अपने साथी को
जला देना खतों को और फिर दिल में धुआं रखना"

-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

Manish Kumar said...

बेहतरीन अशआरों से सजी किताब ! शुक्रिया मरियम आपा के बारे में जानकाती देने के लिए

डॉ टी एस दराल said...

एक एक शेर जिंदगी की हकीकतों से रूबरू करा रहा है ।
बहुत उम्दा प्रस्तुति और शायरा से मुलाकात ।
आभार ।

डॉ. मनोज मिश्र said...

अब क्या कहें----
बहुत उम्दा-अति उत्तम.

shikha varshney said...

बहुत ही खूबसूरत शेर हैं मरियम आप से परिचय कराने का बहुत आभार.

Kunwar Kusumesh said...

मरियम गजाला जी के ग़ज़ल संग्रह पर तथा गजाला जी पर बेहतरीन चर्चा पढ़ने को मिली.उनके अशआर लाजवाब हैं.

Anonymous said...

नीरज जी आपका शुक्रिया जो आपने मरयम जी से परिचय करवाया....कैंसर जैसी बीमारी के बावजूद आपकी जिन्दादिली के लिए मेरा उनको सलाम.......उनकी शायरी बेहतरीन है...

सदा said...

मखमली डिबिया में टुकड़ा कांच का बिक जाएगा
चीथड़ों में एक हीरा है मगर देखेगा कौन

आओ मछली कि तरह मुझको तडपता देख लो
तीर तुमने ही चलाया है असर देखेगा कौन

साथ हँसने के लिए आ जायेंगे साथी सभी
भीगती तन्हाइयों में चश्मे तर देखेगा कौन

आपका बहुत-बहुत शुक्रिया इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये और मरयम आपा जी से मिलाने के लिये ।

Shiv said...

भुलाने का तरीक़ा ये नहीं है अपने साथी को
जला देना खतों को और फिर दिल में धुआं रखना

बहुत अद्भुत. पहले आपके ब्लॉग पर उनका लिखा हुआ बांच चुका हूँ. शायद किसी मुशायरे में उन्होंने गजलें कहीं थीं. किताब के बारे में जानकार अच्छा लगा. हम तो ये और बहुत सी और किताबें लेने खोपोली जा रहे हैं. मुझे सब कुछ वहीँ मिल जाएगा.

अरुण चन्द्र रॉय said...

... मरियम आपा के जीवन, उनकी जीवन्तता और उनकी शायरी से परिचित हुआ आपके नीराज्मय अंदाज़ में.. समाज और जीवन के विभिन्न आयामों पर उनकी गज़लें बेहतरीन हैं...

"साथ हँसने के लिए आ जायेंगे साथी सभी
भीगती तन्हाइयों में चश्मे तर देखेगा कौन"

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

सुनने की तरह पढ़ा मरयम जी को.....सच बताऊँ.....बहुत अच्छा लगा......और इसका माध्यम थे आप.....आपको बहुत-बहुत-बहुत धन्यवाद......!!

Anonymous said...

मरियम आपा की गजलें बहुत सुंदर है ! बड़े जो हैं वो छोटों का भी कद कर देते हैं ऊंचा !!! नव वर्ष की शुभ कामनाएं उनके लिए और आप के लिए भी

डॉ .अनुराग said...

मेरा मानना हमेशा यही रहा है.के अच्छा लिखने से कही बेहतर है अच्छा इंसान होना......उम्र ओर तजुर्बे हमें बेहतर लिखने वाला तो बनाते है .....पर हमारी इन्सनियात आहिस्ता .-आहिस्ता कम होती चली जाती है .......

मरियम आपा को मेरा आदर दीजियेगा .उन्होंने दोनों बनाये रखे है .

Neeraj said...

मुझे लगता है संघर्ष ही आदमी बनाये रखता है | मरयम आपा हमारे लिए मिसाल हैं | निदा फाजली का एक शेर उनके लिए -

यूँ उजालों से वास्ता रखना
शम्मा के पास ही हवा रखना

कविता रावत said...

मरियम आपा जी की गजलें वास्तविकता के बहुत करीब हमारे आस पास का आईना हैं ... “वजूद का सहरा ” किताब से मुखातिब कराने और मरियम जी से परिचय कराने के लिए आपका आभार....
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं सहित ...सादर

तिलक राज कपूर said...

भुलाने का तरीक़ा ये नहीं है अपने साथी को
जला देना खतों को और फिर दिल में धुआं रखना
तो हुआ एक शेर जिसका किसीके खजाने में होना उसे निज़ाम बनाने के लिये काफ़ी है।
मैं पढ़ रहा हूँ प्रस्‍तुत अश'आर को जिनमें जिंदगी के रंग खूबसूरती से बिखरे हुए हैं। शायरी व्‍यक्तिगत दायरे से बढ़ कर जब जन-जन को देखे तो लगता है कि यह शायर नुमाईंदा है हर आदमी।
मरियम आपा का चेहरा कह रहा है कि वो डूबकर शायरी करती हैं।
बधाई।

लता 'हया' said...

wah neeraj bhayya,
gazala sahiba ki khubsurat shayri bhi sunwa di, chaandni raat ki sair bhi karwadi aur pahunch gaye cheen ...samajh gaye na ?

मेरे भाव said...

मरयम आपा से मुलाक़ात कराने के लिए शुक्रिया... उम्दा शायरी पढवाने के लिए आभार

सुनील गज्जाणी said...

नीरज जी, आज फिर एक बेहतरीन शायरा से मुलाकात का मौका मिला. उन्हें और उनकी शायरी को हम तक पहुँचाने के लिए आभार.मरियम जी से परिचय कराने के लिए आभार..

ManPreet Kaur said...

Happy Lohri To You And Your Family..

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mridula pradhan said...

मखमली डिबिया में टुकड़ा कांच का बिक जाएगा
चीथड़ों में एक हीरा है मगर देखेगा कौन
wah.behad achcha laga.

जयकृष्ण राय तुषार said...

bhai nirajji itni sundar ghazal mariamji aur aapko badhai aabhar

गौतम राजऋषि said...

इनकी कुछेक ग़ज़लें पढ़ चुका था इधर-उधर चंद रिसालों में। इस विस्तृत जानकारी के लिये शुक्रिया नीरज जी।

"आओ मछली कि तरह मुझको तडपता देख लो
तीर तुमने ही चलाया है असर देखेगा कौन"

जबरदस्त शेर लगा ये तो। आपा को नमन !

डॉ० डंडा लखनवी said...

नीरज साहब!
कालेज कि पढाई से डिग्री तो मिली लेकिन
डिग्री के जो लायक हो वो काम नहीं मिलता

झूठे हैं सबक सारे मकतब में जो सीखे थे
हक राह पे चलने का ईनाम नहीं मिलता

---------+--------------+------------+--------------
मखमली डिबिया में टुकड़ा कांच का बिक जाएगा
चीथड़ों में एक हीरा है मगर देखेगा कौन

आओ मछली कि तरह मुझको तडपता देख लो
तीर तुमने ही चलाया है असर देखेगा कौन

ऊपर लिखी पंकितयों की रचयिता मरयम आपा
से इस आलेख के द्वारा परिचय करा कर आपने साहित्य जगत पर वास्तव में बड़ा उपकार किया है।
उनकी शायरी मूल्यवान एवं प्रसंशनीय है। मरयम आपा को प्रणाम और आप को साधुवाद!
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी

विनोद कुमार पांडेय said...

किताबों की दुनिया की एक और नायाब प्रस्तुति आज की पोस्ट..मरयम आपा जी के बारे में जानकार बहुत अच्छा लगा...बेहद भावपूर्ण और प्रभावी है उनकी रचनाएँ...आपके माध्यम से पढ़ पाया बहुत बहुत धन्यवाद नीरज जी

महेन्‍द्र वर्मा said...

मरियम आपा और उनकी शायरी से परिचय कराने के लिए आपका आभार, नीरज जी।
बेशक, मरियम जी के कलाम बेहतरीन हैं।
उन्हें मेरा नमन।
शुभकामनाएं।

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
आदरणीय मरयम आपा जी के शेरों से बहुत कुछ सीखने को मिला, हर शेर लाजवाब है, बेमिसाल है.

सफर में खुशनुमा यादों का कोई कारवां रखना
बुजुर्गों की दुआ का धूप में इक सायबां रखना

भले सर पर सफेदी है, इरादों को जवां रखना
कलम में जो सियाही है “ग़ज़ाला” वो रवां रखना

सीधे-साधे लफ़्ज़ों में सधी हुई बात,

"कालेज कि पढाई से डिग्री तो मिली लेकिन
डिग्री के जो लायक हो वो काम नहीं मिलता"

इस शेर ने गज़ब कर दिया है.....अहा
"आओ मछली कि तरह मुझको तडपता देख लो
तीर तुमने ही चलाया है असर देखेगा कौन"

Maryam Gazala said...

dear creative manch, I was very happy to read ur cmments. I am also grateful to Nirajji for giving me such a good exposure.

Thank u all the readers for ur warm comments.

Pankaj Subir my mob.no. is 9819927369 & email is maryam.gazala@gmail.com

Though I am not computer savvy but like to be in touch. By ur comments I feel fulfilled.Thank u all very much.

नीरज गोस्वामी said...

दोस्तों 27 सितम्बर 2011 को मरयम गजाला आपा इस जहाँ को सदा के लिए छोड़ कर चली गयीं, लेकिन हमारे दिलों में वो सदा रहेंगी. खुदा उन्हें जन्नत नशीं करे.

नीरज

Chetan Framewala said...

मरयम गझाला कि प्रार्थना सभा आज दि. १४ १०.२०११ को बहाई हॉल, मरीन लाईन्स, साम ७ बजे रखी गई है.

मरयमजी का एक शेर जो उन्होंने 'झाफर रझा कि याद में हुई गोष्ठिमें पढा था कि........
मत कहो युं कि मर गया कोई.
युं कहो अपने घर गया कोई!

गझाला आपा के कलाम हर वक्त हमारे साथ हैं............