अब बिना तनाव के ज़िन्दगी जीना असंभव है, हर एक व्यक्ति अपने तनाव से मुक्त होने या उसके स्तर को कम करने का तरीका खुद ढूंढ लेता है. मैं अपने खुद के इजाद किये तरीके से तनाव मुक्त तो होता ही हूँ बल्कि मेरे आस पड़ौस बैठने उठने वालों के तनाव को भी दूर करने में सहायता करता हूँ. वो तरीका है शायरी की किताबें पढना. मेरे पास शायरी की इतनी किताबों से ये अंदाज़ा मत लगा लीजियेगा के मेरी ज़िन्दगी में बहुत तनाव हैं बल्कि ये सोचिये के मेरे पास तनाव करीब न फटकने देने के इतने कारण हैं.
'वाशी' के एक बड़े से हाल में पिछले सात सालों से चल रही किताबों की प्रदर्शनी पर पचास प्रतिशत छूट का बोर्ड लगा हुआ है. मैं जब जब उसमें गया मुझे निराशा ही हाथ लगी, क्यूँ की वहां सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी की किताबें ही मुझे नज़र आयीं. मैं जब भी मिष्टी के लिए कोई रंग भरो या वर्क बुक टाइप किताब देखने के लिए जाता तो हमेशा काउंटर पर कान खुजलाते बुजुर्ग से पूछता के क्या कभी हिंदी की किताबें भी यहाँ आएँगी और वो गर्दन हिला कर बताता "नहीं". इस बार आदतन जब मैं इस हाल में गया तो काउंटर वाले बुजुर्ग ने मुस्कुराते हुए मुझे एक कोने की और इशारा किया जिसमें तीस चालीस किताबों का ढेर बेतरतीब पड़ा था. ढेर में पाक शास्त्र, हर रोग का आसान घरेलू इलाज़, कैसे करें बागबानी, स्वास्थ्य और योग, सफलता के सूत्र आदि किताबों के बीच दबी झांकती शायरी की एक किताब नज़र आ गयी. ये मेरे लिए गहरे समंदर में मोती मिलने से कम करिश्मा नहीं था.
आज हम शायरी की उसी किताब का जिक्र करेंगे जिसे पेंगुइन बुक्स वालों ने आकर्षक कलेवर के साथ " अंगारों पर नंगे पाँव " के शीर्षक से छापा है. शायर हैं जनाब "माधव कौशिक".
उससे क्या उम्मीद रखे अब कोई बंदानवाज़
आदमी जितना है उतना खोखला कोई नहीं
हँसते-हँसते ही हटा दे सबके चेहरों से नक़ाब
ऐसा लगता है शहर में सिरफिरा कोई नहीं
मेरी बस्ती के सभी लोगों को जाने क्या हुआ
देखते रहते हैं सारे बोलता कोई नहीं
निहथ्थे आदमी के हाथ में हिम्मत ही काफी है
हवा का रुख़ बदलने के लिए चाहत ही काफी है
ज़रुरत ही नहीं अहसास को अलफ़ाज़ की कोई
समन्दर की तरह अहसास में शिद्दत ही काफी है
बड़े हथियार लेकर जंग में शामिल हुए लोगों
बुराई से निपटने के लिए क़ुदरत ही काफी है
माधव जी की शायरी में हमें आम इंसान की सोच,उसके अहसास और उसके दर्द रूबरू होते हैं . उनकी शायरी शहरों की तरफ भागती ज़िन्दगी पर एक कटाक्ष हैं, वहीँ समाज की हक़ीक़त को बेपर्दा भी करती हैं.
छप नहीं सकता किसी भी पत्रिका के पृष्ठ पर
आपका किस्सा बहुत सच्चा है, सम्मोहक नहीं
राजपथ से दूर गन्दी बस्तियों के बीच में
एक जनपथ है जहाँ पर कोई अवरोधक नहीं
चाहे वो धर्मों के हों, दुनिया के या तहज़ीब के
आदमी बंधन में भी कहता है मैं बंधक नहीं
तुमने तो घर के आँगन में नागफनी उगवा ली है
तुम्हीं बताओ कहाँ उगायें पौधे अपनी तुलसी के
नज़र वक़्त की छू कर उनको जाने कब मशहूर करे
सदियों से गुमनाम पड़े हैं लाल हज़ारों गुदड़ी के
सिवा राम के यह सच्चाई किसे समझ में आएगी
जूठे होकर भी सच्चे हैं बेर समय की शबरी के
इस पुस्तक की भूमिका में माधव जी ने लिखा है " इन ग़ज़लों में समय की काली पृष्ठ भूमि में उजास की गहरी लकीरें अधिक दिखाई देंगीं. जीवन को खूबसूरत बनाने के लिए सपनो के इन्द्रधनुषी रंग आपको ' अंगारों पर नंगे पाँव ' चलने के लिए प्रेरित करते रहेंगे.
भीड़ पथराव करके लौट गयी
चौक पर दम गरीब का निकला
सारी बदसूरती उभर आई
मेरी बस्ती में चाँद क्या निकला
ओस मेहँदी रचा गयी होती
धूप का हाथ खुरदुरा निकला
कल तलक जिनकी इबादत वक़्त करता था बहुत
अब उन्हीं लोगों के बुत शहरों से हटवाने पड़े
मेरे अन्दर के पयम्बर फूट कर तब रो दिये
जब ख़ुदा के सामने भी हाथ फैलाने पड़े
हादसों के दौर में इक हादसा यह भी हुआ
क़ातिलों को अपने दिल के ज़ख्म दिखलाने पड़े
51 comments:
माधव कौशिक जी से रु-बरु करवाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.
कातिलो को अपने दिल के जख्म दिख्लाने पडे .
क्या बात है . एक और कवि से मिलवाने का शुक्रिया
नीरज जी,
कमाल करते है आप्………………कहाँ कहाँ से ऐसे नायाब मोती निकाल कर लाते हैं अब इसमे से कौन सा शेर ऐसा है कि जिसकी तारीफ़ की जाये और कौन सा ऐसा है जिसे छोडा जाये………………मुरीद हो गयी हूँ। हर शेर सच ऐसा ही है जो साथ साथ चल दे ………………।बहुत बहुत शुक्रिया।
ओस मेहँदी रचा गयी होती
धूप का हाथ खुरदुरा निकला
"माधव कौशिक". जी की अंगारों पर नंगे पाँव " किताब से रूबरू कराने का आभार
regards
सही कर रहे हैं आप, पढ़ने से बेहतर कुछ नहीं।
हमेशा की तरह .
क्या क्या नायाब मोती , गहरे जा , ढूंढ लाते हैं नीरज भाई !
बस यूं ही संवारते रहिये ' मोगरे की डाली ' .
जिंदगी के बारें में कम ही शायार लिखते है, ज्यादातर को तो रूमानी तबियत से फुर्सत नहीं मिलती .. कभी reality show की तर्ज़ पर शायरों का भी पता लगाया जाए तो न जाने कितने हुनर मिल जाएंगे ..परिचय करवाने के लिए आपका शुक्रिया ...
नीरज जी, आपके हाथ में वो हुनर है - जो नदी किनार बैठ कर इन्तेज़ार नहीं करने देता - वो हुनर आपको बहुत गहेरे गोता लगाने को मजबूर कर देता है - अमूल्य मोती के लिए.
आपकी तनाव दूर करने कि फिलोसोफी अच्छी लगी..... हम भी कोशिश करेंगे. ........
उससे क्या उम्मीद रखे अब कोई बंदानवाज़
आदमी जितना है उतना खोखला कोई नहीं
आपने तो पहला शेर ही इतना कमाल का लिया है ..... बिना रुके पढ़ता गया सारे शेर माधव जी के ....
बहुत जबरदस्त नगीना निकाला है आपने आज .... बहुत बहुत शुक्रिया ...
मैं पोस्ट पढ़ते हुए यही सोच रही थी...यहाँ भी पुस्तक- मेला अक्सर लगती है ५०% छूट वाली....पर हिंदी की किताबों के तो दर्शन दुर्लभ ही रहते हैं....अब हम भी बार बार पूछेंगे तो शायद प्रदर्शनी में शामिल करनी शुरू कर दें...और आपकी तरह हमें भी एकाध पुस्तक मिल जाए...
पर इतने अच्छे ढंग से किसी शायर और उसकी शायरी से रु-ब-रु करवाने का हुनर आपके ही पास हैं.
शुक्रिया 'माधव कौशिक' जी से मिलवाने का
बहुत सुंदर लेख, माधव कौशिक जी से परिचय करवाने के लिये आप का धन्यवाद, मै जब भी भारत से हबाई जहाज मै चढता हुं तो,ठीक चढने से पहले हमे किताबे ओर समाचार पत्र मिलते है, सब के सब अग्रेजी मै, मै हर बार हिन्दी का समाचार पत्र मांगता हुं तो वो सब से नीचे कोने मै पडा होता है, लेकिन जब यहां से भारत जाता हुं, तो जर्मन के सारे समाचार पत्र ओर पत्रिका सब से ऊपर पडी होती है, ओर अग्रेजी के समाचर पत्र नीचे कोने मै पडे होते है.... जिस दिन यह फ़र्क हमारी समझ मै आ जाये गा आप को वहां सब से ज्यादा हिन्दी की पुस्तके ही मिलेगी
मेरे अन्दर के पयम्बर फूट कर तब रो दिये
जब ख़ुदा के सामने भी हाथ फैलाने पड़े
bahut hi sundar.
bahut shukriya is gyaanvardhak post ka..
कल तलक जिनकी इबादत वक़्त करता था बहुत
अब उन्हीं लोगों के बुत शहरों से हटवाने पड़े
मेरे अन्दर के पयम्बर फूट कर तब रो दिये
जब ख़ुदा के सामने भी हाथ फैलाने पड़े
हादसों के दौर में इक हादसा यह भी हुआ
क़ातिलों को अपने दिल के ज़ख्म दिखलाने पड़े
सुन्दर प्रस्तुती नीरज जी, बहुत खूब !!
उससे क्या उम्मीद रखे अब कोई बंदानवाज़
आदमी जितना है उतना खोखला कोई नहीं
कमाल की शायरी है...
’अंगारों पर नंगे पांव’ और माधव कौशिक जी से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया नीरज जी.
ज़ेहन पे छाप छोड़तीं गज़लें. एक शेर पढ़ा, फ़िर रुका नहीं गया अंत तक. माधव जी को बधाई और आपका आभार इस प्रस्तुति के लिए.
नीचे देखा आपकी दो-सौवीं पोस्ट और तीन साल के बारे में...आपको बधाई और शुभकामनाएं...सादर शार्दुला
माधव कौशिक की किताब की जानकारी तो अच्छी लगी(हमेशा की तरह)..चुने हुए शे,र भी बढ़िया थे...ये ब्लॉग किताबो के बारे में लिखता है सो प्रिय ब्लॉग है...एक बात सबसे सही लगी--पढने से बेहतर कुछ भी नहीं...सच्ची.
इ-मेल द्वारा प्राप्त गिरीश पंकज जी की टिप्पणी:-
aapka blog khula hinahee, isliye apne email box se hi zavab de raha hoo. madhav kaushik ji keegazale main parhee hai. ham dono sahity akademy , dilli ke hindi bord ke sadasy bhi hai. unkee ghazale adbhut hai. unka charcha bahut adhik nahee hua magar ab lagata hai mahaul banegaa. aapne sarthak charcha jo kar dee hai. log parhenge madhav ji ko...is nisvarth seva ke liye aap badhai k patr hai.
हर बार आपका किताबों की दुनिया में ले जाना एक नया अनुभव होता है। इस बार फिर आपने नायाब शाइर के कलाम से मुलाकात कराई।
आभार ही आभार।
छप नहीं सकता किसी भी पत्रिका के पृष्ठ पर
आपका किस्सा बहुत सच्चा है, सम्मोहक नहीं।
माधव जी की शाइरी सच्ची भी है और सम्मोहक भी।
नीरज जी , आपकी पारखी नज़रों का भी ज़वाब नहीं । कहाँ कहाँ ढूंढ लेते हैं शायरी के खजाने को । बेशक , माधव कौशिक जैसे जाने कितने शायर गुमनामी की जिंदगी जी रहे होंगे ।
आभार इस नायाब शायर से परिचय कराने का ।
ज्ञानबर्धक आलेख ....
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति .
आभार ....
आप सच कह रहे हैं तनाव को साहित्य ही दूर करता है। माधवजी से परिचय कराने का आभार।
चाहे वो धर्मों के हों, दुनिया के या तहज़ीब के
आदमी बंधन में भी कहता है मैं बंधक नहीं
kya sher hai. is par bahut kuchh kurbaan.
madhav kaushik ji ke umda ashaaron ko padhavaane ka shukriya.
नीरज जी.. आपही के तरह हम भी जब कभी परेसान होते हैं त लफ्ज़ का पुराना अंक सब निकालकर पढने लगते हैं अऊर अगर नेट पर हुए त कबिता कोश खोलकर बईठ जाते हैं... ऐसहीं अनजाने में एक दिन माधव कौशिक जी से भी भेंट हो गया...परेसानी कहाँ गायब हो गया मत पूछिए अऊर उनका कुछ किताब का बारे में भी पता चला...
करीब नौ संकलन देखाई दिया हमको..आपका कहा हुआ गजल संग्रह त बेजोड़ होता ही है... माधव जी का एक और पुस्तक “सूरज के उगने तक” का ई लाइन हमको बहुत पसंद हैः
चलो अब हाथ की सारी लकीरों को मिटा डालें,
मुकद्दर में लिखी यह बेबसी देखी नहीं जाती।
इस नारे के साथ कि...... चलो हिन्दी अपनाएँ
आप सभी को हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएँ
ओस मेहँदी रचा गयी होती
धूप का हाथ खुरदुरा निकला
....बहुत सुंदर। आपका भी ज़वाब नहीं।
बहुत सुन्दर ...परिचय के लिए बहुत बहुत धन्यवाद| माधव जी को कविता कोष पर पढ़ना प्रारंभ कर दिया है|
पढने से बेहतर कुछ भी नहीं, ये तो बिलकुल सही बात कर दी आपने. भगवान करे आपको ऐसे नए नए मोती मिलते रहे और हम उनके बार में पढ़ते रहे. हिंदी किताबों के बारे में पुणे में भी अपना यही अनुभव रहा है. बड़ी मुश्किल होती थी.
नीरज जी ,
आज कि पेशकश बहुत अच्छी लगी ....पुस्तक के ऐसे अंश चुन कर पढवाते हैं कि मन होता है कि यह पुस्तक अभी क्यों नहीं है पढने के लिए ,,,बहुत अच्छी समीक्षा ..
बहुत ही बढ़िया पढ़ने से बेहतर कुछ नहीं।माधव कौशिक की किताब की जानकारी शेर भी बढ़िया ज्ञानबर्धक आलेख
बहुत आभार इस पुस्तक के विहय में बताने का. वैसे तो टेंशन आपकी पर्सनाल्टि देखकर भी पास न आये..हँसमुख लोगों से वो जरा दूर ही रहता है. :)
हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
bahut sunder maadhav ji se rubaru karwane ke liye dhanyawad
नीरज जी,
तनाव पास न फटकने देने पर अपने स्टाइल की एक बात याद आई...
मक्खन खाली बैठा तालियां बजा रहा था...
ढक्कन ने पूछा...तालियां क्यों बजा रहा है...
मक्खन...तालियां बजाने से भूत पास नहीं फटकते...
ढक्कन...लेकिन यहां तो कोई भूत नहीं है...
मक्खन...अबे, यही तो है मेरी तालियों का असर...
जय हिंद...
श्री सुलभ जायसवाल जी का इ-मेल पर मिला कमेन्ट:-
आज की पोस्ट पर मैं क्या कहूँ.... आज बड़े दिनों बाद रात्री के ११-१२ बजे शायर और शायरी से परिचय हुआ.
आज की तन्हाई में ये पोस्ट मुझ जैसे सरफिरे के लिए चांदनी रात का ताज महल है.
माधव कौशिक जी को प्रणाम शायरी की किताब और उनके शांत व्यक्तित्व के लिए.
नीरज सर ऐसा लग रहा है आप मेरे सामने बैठ कर पुस्तक समीक्षा के साथ साथ कुछ और अनुभव के मोती भी लुटा रहे हैं.
जल्द ही मिलते हैं फिर...
आपका
सुलभ
श्री ओम सपरा जी का इ-मेल से मिला कमेन्ट:-
good shri neeraj jinamastey
wah maja aa gaya.
tanav ko door karne ke aapke tarikee abhhe hain
madhav kaushik ke itni achhi jankaari dene ke liye dhanya vaad
aapka
om sapra, delhi=9
वाह ....!!
सचमुच बहुत ही नायब खजाना हाथ लगा है नीरज जी .....बहुत ही गहरे शे'र हैं .....कमाल ही है ये ....
देखिये न कितने अच्छा लिखने वाले हैं जिन्हें हम जानते ही नहीं ....
आप तो फिर भी ढूंढ ही लेते हैं कहीं न कहीं से ....मैं तो तरसती रह जाती हूँ कोई ढंग की पुस्तक हाथ लगे ....
यहाँ तो आस पास फटकती तक नहीं .....
उससे क्या उम्मीद रखे अब कोई बंदानवाज़
आदमी जितना है उतना खोखला कोई नहीं
वाह , कितने कम शब्दों में आदमी की सही तस्वीर पेश की है । शुक्रिया माधव कौशिक जी की पुस्तक से मिलवाने का ।
क्या खूब लिखा है ....ये यात्रा आप कभी भूल नहीं पाएंगे और उनके कुछ एक शेर तो हो सकता है किताब ख़तम करने के बाद हमेशा के लिए आपके साथ ही चल दें । नीरज जी , तनाव ख़त्म करने के लिये अपने शौक वाले काम से बढ़कर दूसरा कोई इलाज नहीं है ...अपने आप तनाव को विकल्प मिल जाता है ।
चाहे वो धर्मों के हों, दुनिया के या तहज़ीब के
आदमी बंधन में भी कहता है मैं बंधक नहीं
तो क्या करे आदमी , खुशफहमियां रखने में आदमी का जवाब नहीं ...
कभी लिखा था मैंने ...
उगा लेता है सब्जबाग भी
कब्र-गाहों पर ,
ये आदमी का हौसला है कि चुन लेता है फूल
सीने में सब दफ़न कर के ...
माधव कौशिक जी का परिचय कराने का आभार।
अद्भुत लिखते हैं माधव जी.
भीड़ पथराव करके लौट गयी
चौक पर दम गरीब का निकला
सारी बदसूरती उभर आई
मेरी बस्ती में चाँद क्या निकला
ओस मेहँदी रचा गयी होती
धूप का हाथ खुरदुरा निकला
क्या खूब किताब के बारे में जानने को मिला.
दोबारा आती हूँ एक काम आगया पूरानहीं पढा। आभार।
नीरज जी, मुझे तो माधव जी की ग़ज़लें पढ़ते हुए दुष्यंत याद आए। वह तल्खी है उनकी शायरी में।
आप ऐसे शायरों और उनकी शायरी से मिलवा रहे हैं कि आप पर सौ पचास ब्लाग न्यौछावर करने का मन होता है। सचमुच आपके ब्लाग पर आकर लगता है चलो दिन भर भटकने के बाद कुछ तो ऐसा मिला जिसे हम पढ़ना चाहतें हैं। शुभकामनाएं।
वंडरफुल!!
शानदार नीरज जी...माधव कौशिक जी के शायराना अंदाज़ को भी सलाम. हीरे की तलाश खदानों में ही करनी पड़ती है और बड़ी मेहनत से इन्हें खोजकर लाने वालों को भी सलाम!
बहुत ही उम्दा शेर हैं कौशिक साहब के .............और आप के इस प्रयास के लिए मैं आपको सलाम करता हूँ|
माधव कौशिक जी से परिचय करवाने का आभार । आप ऐसे ही नायाब हीरे लाते रहें और हमे से परिचय कराते रहें ।
बहुत कमाल की शायरी है ।
माधव जी का परिचय कराने का आभार,
यहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम...
आपके ब्लॉग पर तो ढेर सारी पुस्तकों से परिचय होता है...
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'पाखी की दुनिया' - बच्चों के ब्लॉगस की चर्चा 'हिंदुस्तान' अख़बार में भी.
उससे क्या उम्मीद रखे अब कोई बंदानवाज़
आदमी जितना है उतना खोखला कोई नहीं
हँसते-हँसते ही हटा दे सबके चेहरों से नक़ाब
ऐसा लगता है शहर में सिरफिरा कोई नहीं
और
छप नहीं सकता किसी भी पत्रिका के पृष्ठ पर
आपका किस्सा बहुत सच्चा है, सम्मोहक नहीं
राजपथ से दूर गन्दी बस्तियों के बीच में
एक जनपथ है जहाँ पर कोई अवरोधक नहीं
...माधव कौशिक जी से परिचय और साथ में उम्दा शायरी बेहद अच्छी और सच्ची लगी ...
........सुन्दर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
माधवजी से परिचय कराने का आभार....बहुत कमाल की शायरी है.... धन्यवाद
नीरज जी!
एक और बेहतरीन तोहफा देने के लिए शुक्रिया!
नियमित तो नही रह पता पर जब आता हूँ तो सारे पोस्ट पढ़ जाता हूँ आपके और सच मानिये बहुत बहुत आननद मिलता है !
आपके ब्लॉग से ही कई शायरों से रूबरू होने का मौका मिला ! बहुत कुछ नया जाना और बहुत कुछ पढ़ा :):)
ऐसे ही नए नए नायब मोती खोज के हमें भी बताते रहिये ! बहुत बहुत शुक्रिया ! :)
बड़े हथियार लेकर जंग में शामिल हुए लोगों
बुराई से निपटने के लिए क़ुदरत ही काफी है
बहुत सुन्दर!!
इस दुकां में मैंने भी पहले खोज बीन की थी मगर कुछ हासिल ना हुआ, अब एक बार फिर से जाता हूँ.
ये कार वाली बात, आप विजय जी की कर रहे हैं या भगवान् जी की, क्योंकि शायद विजय जी की तो शादी नहीं हुई और जब भगवान् साथ में हों तो डर किस बात का.
कितने बेहतरीन शेर, अशआर इस दुनिया में बिखरे हुए हैं, और आप उन सभी को एक जगह पे ला रहे हैं, इससे अच्छा काम और क्या होगा....
मेरी बस्ती के सभी लोगों को जाने क्या हुआ
देखते रहते हैं सारे बोलता कोई नहीं
माधव कौशिक जी का नाम पहली बार मैंने सुना है मगर ऐसा लग रहा है उनके शेर तो पहले से जुड़े हुए हैं
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