क्यों ,कैसे ये मत सोचो
होता है जो होने दो
चैन चलो पाया कुछ तो
जब भी पूजा पत्थर को
प्यार मिलेगा बदले में
पहले प्यार किसी को दो
किसको देता है सब कुछ
नीली छतरी वाला वो
जो देखा, सच बोल दिया
तुम क्या नन्हे मुन्ने हो
काँटों वाली राहों में
फूलों वाले पौधे बो
याद में उसकी ऐ 'नीरज'
रोना है तो खुलकर रो
(पत्थर सी ग़ज़ल को बुत की शक्ल में ढाला है गुरुदेव प्राण शर्मा जी ने)
54 comments:
क्यों ,कैसे ये मत सोचो
होता है जो होने दो
जो देखा, सच बोल दिया
तुम क्या नन्हे मुन्ने हो
बहुत खूब भाई, सच बयानी में इस उम्र में भी आपका कोई सानी नहीं.......
हार्दिक बधाई.
दीपावली और भैया-दूज के इस पावन पर्व पर आपको और आपके परिवार को हम सब की अनन्त हार्दिक शुभकामनाएं...............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
क्या बात है, बहुत खूब !
काँटों वाली राहों में
फूलों वाले पौधे बो
बेहद कोमल सुन्दर पंक्तियाँ.
regards
छोटे-छोटे सुन्दर मिसरे,
अमलतास से झुमके जैसे...
pransanchar pran sharma ji ke haathon......shabd jivant ho uthe
बहुत सुन्दर कविता है यह तो।
भइया-दूज की शुभकामनाएँ!
बहुत अच्छी ग़ज़ल से रूबरू कराया है, नीरज भाई.
बधाई.
kin lafzon mein tarif karun.........har shabd kitni sundarta se sach kah raha hai...........bahut ,bahut hi sundar.
ye but to jivant ho utha hai.
काँटों वाली राहों में
फूलों वाले पौधे बो
बेहतरीन -- बहुत सुन्दर भाव्
रहने दो अब रहने दो
कहर ग़ज़ल से ढाते हो ...
वाह नीरज जी क्या खूब मोगरे की डाल सी ग़ज़ल कही है आपने ऊपर का शे'र गुस्ताखी माफ़ वाली बात है अन्यथा ना लें आप तो उस्ताद शाईर हैं ... कुछ भी कहना मुनासिब नहीं होता है ... बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल कही है आपने ... हर शे'र बोलते हुए ढेरो बधाई साहिब...
वाह मजा आगया ...
अर्श
किस को देता है नीली छतरी वाला वो। भाई नीरज जी मैं तो यह मानती हूँ कि जितना हम एकत्र करते हैं उसी में से आपके मांगने पर वो दे देता है। बस हम ही एकत्र करने में कोताही बरत जाते हैं। रचना अच्छी है, बधाई। दीपावली की शुभकामनाएं।
प्यार मिलेगा बदले में
पहले प्यार किसी को दो
काँटों वाली राहों में
फूलों वाले पौधे बो
याद में उसकी ऐ 'नीरज'
रोना है तो खुलकर रो
वाह क्या लाजवाब गज़ल कही है ऐर प्राण भाई साहिब का हाथ हो तो कैसे अच्छी नहीं होगी बहुत बहुत बधाई
बहुत ही सुंदर कविता, एक सच्ची उपासना लगती है, धन्यवाद
वाह वाह क्या बात है ? नीरज जी बेहद सुन्दर रचना
सादर
ओम
याद में उसकी ऐ 'नीरज'
रोना है तो खुलकर रो
-वाह वाह!! क्या कहने..बहुत खूब!!
प्यार मिलेगा बदले में
पहले प्यार किसी को दो
चैन चलो पाया कुछ तो
जब भी पूजा पत्थर को
बहुत कमाल लिखा है नीरज जी ........ छोटी छोटी बातें ............ जीवन के सुनहरे पल सिमटे हैं इस रचना में ........ बधाई
पूरी गज़ल बहुत उम्दा लेकिन आख़िरी शेर ने एक्दम उछाल दिया. बहुत बडा शेर हुआ है. वाह! वाह! इतनी सादगी! अनिर्वचनीय है
बहुत उम्दा गज़ल...बधाई.
वाह वाह ! बहुत खूब नीरज भाई !
छोटीबहर की गज़ल लिखने में सिद्धहस्त हैं आप। कहीं भी आपकी गज़ल पढ़ कर बता सकती हूँ, कि आपकी है।
आपकी रचना में भाषा का ऐसा रूप मिलता है कि वह हृदयगम्य हो गई है।
प्यार मिलेगा बदले में
पहले प्यार किसी को दो
चैन चलो पाया कुछ तो
जब भी पूजा पत्थर को
जो देखा, सच बोल दिया
तुम क्या नन्हे मुन्ने हो
याद में उसकी ऐ 'नीरज'
रोना है तो खुलकर रो
You're simply too good.
आदरणीय नीरज जी,
क्या खूब गज़ल कही है! वैसे तो हर शेर ही एक अनमोल रतन है पर आखिरी शेर ने तो जान ही निकाल दी-
याद में उसकी ऐ 'नीरज'
रोना है तो खुलकर रो
इस कालजयी रचना के लिये बधाई।
dipavali ki mangalkamnayen ,sunderabhivyakti ke liye badhai
बहुत सुन्दर।
क्यों ,कैसे ये मत सोचो
होता है जो होने दो
सच्ची बात। वाह।
काँटों वाली राहों में
फूलों वाले पौधे बो
याद में उसकी ऐ 'नीरज'
रोना है तो खुलकर रो
वाह ! लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
Beautiful....
काँटों वाली राहों में
फूलों वाले पौधे बो
Bahut Sundar!!
नमस्कार नीरज जी,
इतना खूबसूरत कैसे लिख लेते हैं आप.........वो भी इतने आसान लफ्जों में.
एक बेहतरीन ग़ज़ल, मतला लाजवाब है
"क्यों ,कैसे ये मत सोचो
होता है जो होने दो"
हर शेर क़यामत ढा रहा है, कुछ शेर तो .............कुछ कहूं तो कम कुछ ना कहूं तो ख़ुद को सुकून नहीं मिलेगा. जैसे
"प्यार मिलेगा बदले में
पहले प्यार किसी को दो"
ये शेर.............उफ्फ्फ, इतनी बड़ी बात को इतने कम लफ्जों में इतनी साफ्गोशी से, ये हुनर तो आपके पास ही है.
जो देखा, सच बोल दिया
तुम क्या नन्हे मुन्ने हो
अब इतने खूबसूरत शेरों के बाद अगर बब्बरशेर ना आये तो .............मज़ा नहीं आता, और मकते ने वो कमी भी पूरी कर दी.
याद में उसकी ऐ 'नीरज'
रोना है तो खुलकर रो
जो देखा, सच बोल दिया
तुम क्या नन्हे मुन्ने हो
kya baat hai
चैन चलो पाया कुछ तो
जब भी पूजा पत्थर को
छोटे छोटे शेर कैसे दिल में सीधे उतर जाते हैं और गहरा असर करते हैं. मुझे ये शेर सबसे अच्छा लगा.
सर्वोत्तम..... वाह...
इत्ती छुटकी-सी बहर पे ऐसी कयामत मचाती ग़ज़ल...!!!! ये कमाल बस आप ही कर सकते हैं, नीरज जी।
"जो देखा, सच बोल दिया / तुम क्या नन्हे मुन्ने हो" क्या ग़ज़ब का शेर है उस्ताद...वाह! वाह!!
और मक्ता तो बस...उफ़्फ़्फ़्फ़ है उफ़्फ़्फ़्फ़ !!!
याद में उसकी ऐ 'नीरज'
रोना है तो खुलकर रो
क्या बात है .....बहुत अच्छे ...
ओर हां मेरी नन्ही परी के कान के पीछे काला टीका लगा दीजियेगा .....गुजारिश है
रोना है तो खुलकर रो। बहुत कुछ कह गई। आपकी ये वाली पंक्ति।
वाह वाह ! बहुत खूब
जो देखा, सच बोल दिया
तुम क्या नन्हे मुन्ने हो
मुझे ये शेर अच्छा लगा.
शुभकामनाएं
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छोटी छोटी घंटियों जैसे छोटे छोटे खूबसूरत शेर । आखरी वाला तो कमाल का । बधाई शब्द है तो घिसा पिटा पर बधाई ।
मुझे तो यह पत्थर सी ग़ज़ल शब्द ही बढ़िया लगा ।
antim 4 panktiyan.. vakai shandar hai.. :)
जो देखा सच बोल दिया
………
बहुत ख़ूब! मन को छू जाने वाला करारा व्यंग।
जो देखा, सच बोल दिया
तुम क्या नन्हे मुन्ने हो
वाह!
इस टिप्पणी के माध्यम से, आपको सहर्ष यह सूचना दी जा रही है कि आपके ब्लॉग को प्रिंट मीडिया में स्थान दिया गया है।
अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।
बधाई।
बी एस पाबला
आपकी वे सारी ग़ज़लें जो बेसाख्तगी से कही जाती है उनका आनंद ही कुछ और होता है । आपकी ग़ज़लों में जब टटकापन होता है तो उसका मजा वही होता है जो प्रथम वर्षा के बाद उठती सौधीं सौधीं गंध का होता है । मकता जबरदस्त है । जबरदस्त क्या भीषण जबरदस्त है । हौसले का शेर है कि रोना है तो खुलकर रो । इस मकते पर सब कुछ निसार । अहा अहा । रोना है तो खुलकर रो । प्राण भाईसाहब के जादुई परस से इस प्रकार का सोना तो निकलना ही हुआ ।
जो देखा सच बोल दिया
तुम क्या नन्हें मुन्ने हो
..वाह! इन दो पंक्तियों में गज़ब का व्यंग्य है
और गज़ब की मिठास।
क्यों ,कैसे ये मत सोचो
होता है जो होने दो
हुज़ूर ! ऐसा जानदार और शानदार मतला ...
अपने आप में मुकम्मिल बात ....
साफ़ , स्पष्ट ...
चैन चलो पाया कुछ तो
जब भी पूजा पत्थर को
इंसानी ज़ेहन की सटीक तर्जुमानी
एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण ....वाह
'किसको' देता है सब कुछ
नीली छतरी वाला वो
एक अलग सा नज़रिया . . . .
काँटों वाली राहों में
फूलों वाले पौधे बो
दुनिया भर के बाशिंदों के लिए पाकीज़ा पैगाम
ऐसी नायाब ग़ज़ल कहाँ छिपा के रखी थी जनाब !
मैं तो कहीं छिपने चला हूँ ...
"यूं होती है , देख , ग़ज़ल ,
जा मुफलिस, मुहं ढक कर सो"
जब भी आती हूँ आपके ब्लॉग पे ये मधुबाला की तस्वीर देख रूह खुश हो जाती है .....और उस पर आपकी ग़ज़ल .....उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ ......!! (गौतम जी का चोरी कर ली हूँ )
प्यार मिलेगा बदले में
पहले प्यार किसी को दो
गज़ब .....!! (इंसान यही तो नहीं कर पता ......)
काँटों वाली राहों में
फूलों वाले पौधे बो
बहुत खूब ....!!
याद में उसकी ऐ 'नीरज'
रोना है तो खुलकर रो
उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़.......!!
छोटी बहर में क्या खूब कहा
आज तो हकीर ग़ज़ल सीख ही लो .....!!
WAH WAH;chhoti baher mein behad umda gazal kahi hai.
meri gazal par behatreen rai vyakt karne ke liye shukria.
Rona hai to khul ke ro waah
phoolon wale podhe bo kamaal
tum kya nanhe-munne ho .......... is sher ne jaan le li
चैन चलो पाया कुछ तो
जब भी पूजा पत्थर को
प्यार मिलेगा बदले में
पहले प्यार किसी को दो
.....Dil ko chhuti rachna...mubarakvad.
किसको देता है सब कुछ
नीली छतरी वाला वो
जो देखा, सच बोल दिया
तुम क्या नन्हे मुन्ने हो....Sundar panktiyan, gazab ke bol.
जो देखा, सच बोल दिया
तुम क्या नन्हे मुन्ने हो -:)
जो देखा ,सच बोल दिया
तुम क्या नन्हें मुन्ने हो
क्या बात है ! क्या कहूं ?
सब ने देखा ,बोल सका क्या ?
जो बोला तो 'नीरज ' हो !
जो देखा, सच बोल दिया
तुम क्या नन्हे मुन्ने हो
बहर छोटी हो..बड़ी हो..गजलों का असर हमेशा वही रहता है. प्राण जी ने आपकी गजल को संवारा. उन्हें भी धन्यवाद.
गाँधीजी का प्रभाव है . काँटे बिछाने वालों के रास्तों में भी फूल बिछाने की कहते हैं .अच्छा है .
छोटी बह्र में बड़ा कमाल...
जो देखा, सच बोल दिया
तुम क्या नन्हे मुन्ने हो
सबसे जानलेवा शे'र..
चैन चलो पाया कुछ तो
जब भी पूजा पत्थर को
बहुत प्यारा ख़याल...इतना प्यारा के कह नहीं सकता
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