Monday, October 12, 2009

दिया जला देना मेरे मन

दिवाली से पूर्व इस पोस्ट पर सबको अग्रिम शुभकामनाएं देते हुए मैं अपनी एक मनपसंद कविता जिसे श्री राज जैन जी ने लिखा है को आप सब तक पहुँचाना चाहता हूँ. उम्मीद है सुधि पाठक इसे पसंद करेंगे.





दिया जला देना मेरे मन

एक तमन्ना की तुलसी पर
इक रस्मों की रंगोली पर
इक अपनेपन के आँगन में
एक कायदों की डोली पर

ख्वाब देखती खिड़की पर इक
खुले ख़यालों की छत पर भी
एक सब्र की सीढ़ी ऊपर
इक चाहत की चौखट पर भी

एक तर्जुबे के तहखाने
एक लाज की बारी में भी
एक दोस्ती की ड्योढ़ी पर
इक किस्मत की क्यारी में भी

एक मुहब्बत के कुएँ पर
नोंक झोंक की नुक्कड़ पर भी
एक भरोसे के दरखत पर
चतुराई की चौपड़ पर भी

हर कोना हो जाए रोशन

दिया जला देना मेरे मन

राज जैन


50 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

बेहतरीन गीत..दिए जलाने की भाव के साथ एक संदेश देती कविता..हमारी भी प्रिय बन गयी यह कविता..दिए जला देना मेरे मन..
बहुत बहुत बधाई..नीरज जी

mehek said...

khubsurat geet har kona roushan karta hua sa,deeputsav ki badhai

सागर said...

गोया कहीं पैर रखने का जगेहे नहीं छोड़ा! अब उ कोना में दिया ले के कैसे जाएँ... ? एक ठो दिया हमारे असमंजस पर भी जलाया जाये...

कुश said...

आपको भी सपरिवार दिवाली की बहुत बहुत शुभकामनाये..

मंटो को पढना सुकूनदायक है.. ये कहानिया कही ना कही पिंच करती है.. दूरदर्शन पर पोटली वाला बाबा आता था पहले आपको किताबो की पोटली वाला बाबा कहना ठीक रहेगा.,. अगली किश्त का इन्तेज़ार है कोई बढ़िया सी किताब मिल जाये बस..

कंचन सिंह चौहान said...

एक मुहब्बत के कुएँ पर
नोंक झोंक की नुक्कड़ पर भी
एक भरोसे के दरखत पर
चतुराई की चौपड़ पर भी


हर कोना हो जाए रोशन

aha har pankti khubsurat...! kitni sundar layatmakta..vibhor hun...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर कविता है।
अन्तरतम का तम दूर हो गया।
बधाई!

Kulwant Happy said...

राज जैन की इस शानदार रचना को हम तक लाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार..दीवाली की शुभकामनाएं।...


इस कविता में एक और पंक्ति जोड़ता हूं।

हर ब्लॉग पर टिप्पणी रूपी..एक दिया मुझे जलाने दे मेरे मन

डॉ टी एस दराल said...

मन को रौशन करती एक भावपूर्ण रचना.
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं.

पंकज सुबीर said...

बहुत अच्‍छा गीत श्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता आओ फिर से दिया जलाएं की याद आ गई श्री राज जैन जी ने बहुत मेहनत करके वो सारे स्‍थान ढूंढे हैं जहां पर आज धीरे धीरे तमस फैलता जा रहा है । अटल जी की कविता भी कुछ ऐसे ही प्रारंभ होती है - भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछांई से हारा, अंतर्तम का नेह निचोड़ें, बुझी हुई बाती सुलगाएं, आओ फिर से दिया जलाएं । श्री राज जैन जी को बधाई इस बात के लिये कि उन्‍होंने बहुत ही सूक्ष्‍म दृष्टि से उन सारे स्‍थानों की पड़ताल की है । नीरज जी को आभार कि एक उम्‍दा गीत पढ़वाया ।

M VERMA said...

तम के खिलाफ अत्यंत खूबसूरत रचना

vandana gupta said...

adbhut..............kya kahein.....itne khoobsoorat bhav ukere hain............har kona roshan kar diya...........badhayi raj ji aur neeraj ji aapko bhi ...........aapki wajah se hi hum itni khoobsoorat kavitayein padh pate hain...........sach diwali ho to aisi.

रश्मि प्रभा... said...

bahut sundar.......diwali ki hardik shubhkamnayen

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
दीपावली कोई ढेरो शुभकामनायें आपको और आपके परिवार को
राज जैन जी का गीत बहुत अच्छा है, ये मन में बहुत ही सहजता से उतर रहा है.
राज जी को भी दीपावली की शुभकामनायें.

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर कविता.
आप का ओर राज जी का धन्यवाद
आप ओर आप के परिवार को दिवाली की बहुत बहुत शुभकामनाये

अमित said...

बहुत अच्छी शुरुआत दिवाली की !
शुभकामनाएं एवं बधाई !

सुशील छौक्कर said...

दीपक सी सुन्दर चमकती हुई कविता। सच हर कौने में उजाला हो जाए।
आप और आपके परिवार को भी दीपावली की बहुत शुभकामनाएं।

निर्मला कपिला said...

काश कि हम इन सभी जगह पर दिये जला सकें बहुत सुन्दर रचना है एक एक शब्द बहुत कुछ कहता है। राज जी को बहुत बहुत बधाई और आपका धन्यवाद सब को दिवाली की शुभकामनायें

Asha Joglekar said...

हर इनसान के मन में भी इक दिया जलाना है ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति के लिये आभार ।

संजीव गौतम said...

आपको भी दीपपर्व की अग्रिम शुभकामनाएं. अच्छा गीत है.
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये.

"अर्श" said...

नीरज जी नमस्कार,
जैन साहिब की कही यह कविता वाकई उत्सव के इस माहौल में मजा दुगना कर रहा है , क्या आला दर्जे की कविता पढ़वाई आपने बहुत बहुत बधाई साहिब...


अर्श

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

हार्दिक बधाई
आगामी शुभ अवसर पर ...
राज जैन जी की कविता पसंद आयी
आपके अगले लेखन की प्रतीक्षा रहेगी
समस्त परिजनों के लिए
बहुत स्नेह के साथ
- - लावण्या

Manish Kumar said...

bas yoon hi dhanatmak urja se ye diya jalta rahe inhin shubhkamnaon ke sath aapko bhi happy deepawli

प्रकाश पाखी said...

दिवाली के अवसर पर राज जैन साहब की इस कविता का परिचय कराने के लिया आभार.आप के ब्लॉग पर आने से लाभ ही मिलता है.
dipaavli ki haardik shubhkaanaaen!

मनोज कुमार said...

इस कविता में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं। ताजा हवा के एक झोंके समान इस रचना के द्वारा आत्मीयता के चिराग ख़ूबसूरती से जलाए गए हैं।

अनिल कान्त said...

कविता बहुत अच्छी लगी
इसे पढ़वाने के लिए शुक्रिया

Abhishek Ojha said...

बस इन लाइनों मे कल्पित हर जगहों पर उजाला बढ़ता रहे... आपको भी दीपावली की सपरिवार शुभकामनायें.

Udan Tashtari said...

आपको भी दीपावली की सपरिवार शुभकामनायें.


सुन्दर रचना राज जी की!

vijay kumar sappatti said...

Neeraj ji ,

namasakar;

aapko aur aapke pariwaar ko diwali ki shubkaamnaye ..Mishti ko kahiyenga ki smbhaal kar fatake jalaye...

ye kavita mujhe bahut acchi lagia ek dum jaise dher saare diyo ka ujaala ho har wo jagaah jahan par dheere dheere andhera cha gaya ho..

Shri raaj ji ko badhai aur diwali ki shubkaamnaye..

dhanywad.

vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

बवाल said...

एक सब्र की सीढ़ी ऊपर
इक चाहत की चौखट पर भी
आदरणीय नीरज जी,
सच कहें राज जी की इन पंक्तियों ने कहीं दिल के भीतर जाकर आवाज़ दी है। आप जो भी कुछ प्रस्तुत करते हैं, हमेशा अनोखा ही होता है और संग्रहणीय के साथ साथ विचारणीय एवं अनुकरणीय भी होता है। आपका बहुत बहुत आभार और हमारी तरफ़ राज साहब को इस अतिउत्तम रचना के लिए बधाई ज़रूर दीजिएगा। स्लाइड शो में मिष्टी बिटिया बड़ी प्यारी और मनमोहक लग रही है। उसे हमारा दुलार दीजिएगा।

डॉ .अनुराग said...

खुदा कसम .आज तक आपने जितने मोती चुन के निकाले है उनमे से सबसे बेहतरीन मोतियों में से एक है .......क्या कहूं ....एक बात तय है २०१० में अपना मिलना तय है ....

Prem Farukhabadi said...

अति सुन्दर भाई . बधाई!!

अर्कजेश Arkjesh said...

वाह !
दिया जला देना मेरे मन !

रंजू भाटिया said...

इतनी सुन्दर कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद नीरज जी

दिगम्बर नासवा said...

ACHHA GEET HAI NERAJ JI ... DEEPAWALI KE PRAKAASH SE SABKUCH JAGMAGAATA HAI .... AAPKO BHI BAHOOT BAHOOT SHUBHKAAMNAAYEN ......

रविकांत पाण्डेय said...

आदरणीय नीरज जी,
इतनी सुंदर कविता है कि क्या कहें! तभी तो कहते हैं आपका जवाब नहीं। जैन साहब का आभार।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

"एक मुहब्बत के कुएँ पर
नोंक झोंक की नुक्कड़ पर भी
एक भरोसे के दरखत पर
चतुराई की चौपड़ पर भी

हर कोना हो जाए रोशन
दिये जला देना मेरे मन"

बहुत सुन्दर... राज जैन जी को बधाई.
नीरज जी प्रस्तुति के लिए आभार आपका!

Sudhir (सुधीर) said...

सुन्दर कविता नीरज जी और उस पर पंकज सुबीर जी ने अटल जी की कविता का जिक्र कर के मन को आनंदित कर दिया....बहुत प्यारी कामना....साधू!!

Science Bloggers Association said...

आज जिस तरह का माहौल है, उसमें मन के दिये जलाने की ही आवश्यकता है। इस सामयिक रचना के लिए साधुवाद।
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डिस्कस लगाएं, सुरक्षित कमेंट पाएँ

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन प्रस्तुति भाई जी........ जैन साहब को भी साधुवाद....


आपकी मेल मिल गयी थी. कल-परसों तक आपके आदेश की पूर्ति होगी.

गौतम राजऋषि said...

राज जैन साब की इस बेहतरीन रचना से परिचय करवाने का शुक्रिया नीरज जी...

दीपावली की आपको और दुलारी मिष्टी और पूरे परिवार को अभी से ढ़ेर-ढ़ेर सारी शुभकामनायें...!

Devi Nangrani said...

एक मुहब्बत के कुएँ पर
नोंक झोंक की नुक्कड़ पर भी
एक भरोसे के दरखत पर
चतुराई की चौपड़ पर भी
Badhayi Badhayi Badhayi!!!
दीवाली मुबारक!
बड़ी खुशनुमा याद की ताज़गी है
वो मुरझाए फूलों को फिर से खिलाए
दिवाली का त्यौहार सब को मुबारक
ये त्यौहार ख़ुशियों का हर साल आए
देवी नागरानी

Smart Indian said...

साल की सबसे अंधेरी रात में
दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी

कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
झटकें सभी तकरार ज्यों आयी-गयी

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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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RAJ SINH said...

नीरज भाई ,
आपने सोच भी कैसे लिया की ये नाचीज़ आपको भुला भी सकता है . हाँ इस आपा धापी में भी बीच बीच में आपके और कई स्नेही जनों और तमाम नए पुराने ब्लोगों पे पहुँचता भी रहा .हाँ बेआवाज़ ही सही .

आपके 'बेचैन ' जी की किताब पर लिखा तो सोच सकते हैं कितना मन किया की कितना कुछ कहूं और आपको धन्यवाद दूं.
हम जैसे अभागे जो दुनिया के भरम में इतने रमे हों की इतने बिखरे हुए आनंद को पाने टटोलने का भी मौका न पा सकें , आपकी दर पर दस्तक देने से ही हासिल हो जाते हैं ,खोज खबर के आगे जाकर आपके हाथों हीरे मोती से सज जाते हैं .
आपकी शान में अभी अभी कुछ मन में आया है , अर्ज़ करून ?

ये मत समझ की भूल गया दर को तेरी मैं .
आया गया बहुत मगर सलाम रह गया .

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deep parv ke sab ujalen aap pate bhee rahen aur aise bantate bhee rahen .

RAJ SINH said...

.........................और राज जैन ने अपनी इस कविता में किसी कोने के किसी भी अँधेरे को छोडा भी है ?
मैं तो नहीं ढूंढ पाया .दीप पर्व पर अद्भुत ज्योति !

कडुवासच said...

"आओ मिल कर फूल खिलाएं, रंग सजाएं आँगन में

दीवाली के पावन में , एक दीप जलाएं आंगन में "

......दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ |

Gyan Dutt Pandey said...

यह भेजता हूं दिवाली के दिये नीरज जी!

manu said...

बहुत खूबसूरत कवता है..
शिल्प और भाव बेजोड़ हैं...

राज जी , नीजर जी और सब पढने वालों को दिवाली की शुभकामनायें..

नीरज गोस्वामी said...

E-mail received from Om Sapra Ji:-

shri neeraj ji
namastey,

Although dewali is over, but you are still being remembered by us.
";;;;;;;;;diye jalaa dena mere man" is really a good poem.
congratulations,

regards,
-om sapra, delhi-9

चाहत said...

बहुत सुंदर कविता है

Shiv said...

एक मुहब्बत के कुएँ पर
नोंक झोंक की नुक्कड़ पर भी
एक भरोसे के दरखत पर
चतुराई की चौपड़ पर भी

ढेर सारे नए-नए बिम्ब..बहुत खूब. राज जैन साहब ने बहुत ही खूबसूरत गीत लिखा है. प्रस्तुति के लिए शुक्रिया.