फौलादी इच्छा लेकर तू होजा खडा भूमि पर सीधा
पत्थर वाले समझ रहे हैं तुझको कच्चा काँच रामधन
खालिस नहीं चला करता है थोडा झूठ सीख ले पगले
झेल नहीं पायेगी दुनिया तेरा इतना साँच रामधन
आज जिक्र है श्री "राम सनेही लाल शर्मा 'यायावर' " जी की हिंदी ग़ज़लों की किताब "सीप में समंदर" का जिसे कलरव प्रकाशन १२४७/८६ शांति नगर, त्रि नगर, दिल्ली ने प्रकाशित किया है और जिसके " 'सुमन बुक सप्लायर्स" ८६, तिलक नगर बाई पास रोड फिरोजाबाद ने, वितरण की जिम्मेदारी संभाली है.
किताब अपने कलेवर से इतना आकर्षित नहीं करती जितना की अपने कथ्य की विविधता से. स्नेही जी ने इस किताब में हिंदी की लगभग साठ ग़ज़लों में अनूठे रदीफ़ प्रयोग किये हैं.
भूख बिठाकर घर में उसका यार हुआ है घूरे लाल
जैसे कोई पढ़ा हुआ अखबार हुआ है घूरे लाल
बिना काम के गुज़र रही ज़िन्दगी बिना उद्देश्य यहाँ
जैसे कोई दफ्तर का इतवार हुआ है घूरे लाल
इसे उठा कर लड़ना है तो धार धरो, तैयार करो
बिना धार की जंग लगी तलवार हुआ है घूरे लाल
श्री राम निवास शर्मा 'अधीर' जी पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं की "डा.यायावर जी की ग़ज़लों में प्रेम है,किन्तु वह अकर्मण्य वासना के घेरे से मुक्त है,वेदना भी है, किन्तु वह यंत्रणा कक्ष में घुटने वाली नहीं है. इसमें कोई संदेह नहीं कि उनकी ग़ज़लों में जहाँ सुरमई सांझ की उदासी है, वहीँ रेशमी भोर का उजास भी है. "
जो संबोधन आस पास हैं
आम नहीं हैं, बहुत खास हैं
तुम तो पूरा महाकाव्य हो
हमीं अधूरा उपन्यास हैं
अधर आपके गंगा जल, हम
युग युग की अनबुझी प्यास हैं
हम तो कोरा भोजपत्र हैं
कुछ भी लिखिए आप व्यास हैं
जीवन में हम सब की समस्याएं लगभग एक सी हैं, इन्हीं समस्याओं पर सभी शायरों और कवियों ने अपनी कलम चलाई है, एक से ही विषय होते हुए भी किसी बात को कहने का और उसे महसूस करने का अंदाज़ ही उन्हें एक दूसरे से अलग करता है. इस किताब में एक ग़ज़ल है जिसमें रामसनेही जी ने अपने नाम को ही रदीफ़ की तरह इस्तेमाल किया है और क्या खूब किया है:
कबीरा की चादर को बैठे क्यूँ सीते हो रामसनेही
बाहर भरे-भरे हो पर भीतर रीते हो रामसनेही
भोर उदासी, दुपहर कुंठा, सांझ ढले सूनापन मन का
रोज-रोज इतने विष पी कर भी जीते हो रामसनेही
बौने पाँव, अँधेरे पथ हैं, इच्छाएं आकाश चूमती
तन से मृग हो किन्तु कर्म से तुम चीते हो रामसनेही
डा.यायावर की ग़ज़लों का केनवास काफी विस्तृत है. व्यक्ति से लेकर साहित्य, संस्कृति, समाज, परिवार, देश, अर्थ तंत्र, धर्म, शिक्षा, राजनीती, आतंक आदि विषयों पर उनके शेर कमाल का प्रभाव पैदा करते हैं. उन्होंने अपनी दार्शनिक सोच को भारतीय संस्कारों के तहत अपने शेरों में रूपायित किया है.
आंसू, पीडा, कलम, प्रतिष्ठा ओ' ईमान दुकानों पर
मत पूछो, क्या क्या देखा हमने सामान दुकानों पर
शो केसों में धरे धरे क्यूँ तलवारों में बदल गए
आदि ग्रन्थ, रामायण, गीता और कुरान दुकानों पर
धूप, चांदनी कैद करेंगे अपनी अपनी मुठ्ठी में
लेकर बैठे हैं कुछ पागल ये अभियान दुकानों पर
सन 1949 में जन्में डा.राम सनेही लाल शर्मा 'यायावर' जी एम् ऐ, पी एच डी., डी.लिट हैं और एस. आर. के. स्नातकोत्तर महाविद्यालय फिरोजाबाद के हिंदी विभाग में रीडर के पद पर काम कर रहे हैं. आपकी गीत ग़ज़ल मुक्तक,व्यंग रचनाओं ,हायकू, लघु कथाओं एवम दोहों की बहुत सी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. पाठक उनसे मोबाईल न. 094123 16779 या उनके ई-मेल dr_yayavar@yahoo.co.in पर संपर्क कर इस पुस्तक की प्रति मंगवाने का आसान तरीका पूछ सकते हैं.
संत्रास, वेदना, कुंठाएं, सपने, भ्रम और निराशाएं
जर्जर पुतले की साँसों में है कितनी ठेलमठेल यहाँ
हर ऋषि के लिए सलीब नई हर पाखंडी को शिव मंदिर
हर नयी व्यवस्था गढ़ जाती है 'यायावर' को जेल यहाँ
इस से पहले की हम आपके लिए कोई नयी किताब ढूढने निकलें चलिए 'यायावर' जी की इस किताब की एक ग़ज़ल के शेर और सुनाते चलते हैं.
पीर तुम्हारी पतिव्रता है
इसे न झटको यायावर जी
साँसों की कड़वी कुनैन है
चुपके गटको यायावर जी
50 comments:
पुस्तक के कई पक्षों सुन्दर चर्चा नीरज भाई।
नीरज जी,
आपकी यह सीरिज़ बड़ी ही अच्छी होती है... इस बार जो आपने "सीप में समंदर" पुस्तक की जानकारी दी है, वाकई बड़ी ही अच्छी और उत्कृष्ट पुस्तक लगती है...
आपने जितने रदीफ़ दिखाये वाकई अनूठे हैं...वैसे आपने भी साहब का बड़ा ही अच्छा उपयोग किया था...
धन्यवाद...
इस पुस्तक चर्चा को जारी रखियेगा. आज के समय मे पुस्तकों के बारे में जानकारी कम ही मिल पाती है. आपको बहुत धन्यवाद इस चर्चा के लिये.
रामराम.
धूप, चांदनी कैद करेंगे अपनी अपनी मुठ्ठी में
लेकर बैठे हैं कुछ पागल ये अभियान दुकानों पर
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार्
आपकी ये मलिका बेहद अच्छी लगी ! लग रही है ...!अल्फाज़ नही हैं ,बयाँ करने के लिए ..और जब आप जैसा दिग्गज लेखक , इन किताबों के बारेमे लिखता है ,तो बात कुछ औरही होती है ..
बहुत ही खुब्सूरत लडियाँ लाते है मोतियो वाले .........और रचनाये मन की प्यास बुझाती है और एक सकून सा दे जाती है ..............आपको बहुत बहुत बधाई ...
जो संबोधन आस पास हैं
आम नहीं हैं, बहुत खास हैं
तुम तो पूरा महाकाव्य हो
हमीं अधूरा उपन्यास हैं
एक एक शब्द की कोई मिशाल नही,
बेहतरीन भाव...सुंदर पंक्तियाँ.
बधाई!!!
चुनाचे खपोली आने पे एक अदद लाइब्रेरी भी मिलेगी हमें ....
seep me samunder naam hi kitna khoobsurat hain.or sach me samunder smete hai..आंसू, पीडा, कलम, प्रतिष्ठा ओ' ईमान दुकानों पर
मत पूछो, क्या क्या देखा हमने सामान दुकानों पर..kitne gahre bhav hai....
यायावर जी के दोहे आप पहले पढ़वा चुके हैं शायद. बहुत गजब लिखते हैं. किताब के बारे में जानकार अच्छा लगा. एक से बढ़कर रचनाएँ हैं इस किताब में.
संत्रास, वेदना, कुंठाएं, सपने, भ्रम और निराशाएं
जर्जर पुतले की साँसों में है कितनी ठेलमठेल यहाँ
हर ऋषि के लिए सलीब नई हर पाखंडी को शिव मंदिर
हर नयी व्यवस्था गढ़ जाती है 'यायावर' को जेल यहाँ
वाह!
सुन्दर एवं अच्छी जानकारी।
गणेश उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ।
Yayaavar sahab se milkar khushi huyi.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
जब से बलाग्गिँग शुरू की है पुस्तकों से सम्पर्क बहुत कम हो गया है इसकी कुछ कमी तो आपके बलाग पर आ कर पूरी हो जाती है बहुत सुन्दर नायाब पुस्तक से परिचय करवाया है आपने परिचय करवाने मे बहुत मेहनत कर के चुना है नायाब मोतिओं को बहुत बहुत बधाई यायावर जी को भी बधाई और शुभकामनायें
शो केसों में धरे धरे क्यूँ तलवारों में बदल गए
आदि ग्रन्थ, रामायण, गीता और कुरान दुकानों पर
एक से बढ़कर रचनाएँ, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
आपसे मिलना है - इसलिये कि आपकी पुस्तकें चुराई जा सकें! :)
यायावर की शायरी का लहज़ा , अशआरों में चुने उनके लफ़्ज़ और रदीफ़ में नामों का प्रयोग सहज ही ध्यान आकर्षित करता है। इस अनोखे शायर से हमारा परिचय कराने के लिए आभार...
धूप, चांदनी कैद करेंगे अपनी अपनी मुठ्ठी में
लेकर बैठे हैं कुछ पागल ये अभियान दुकानों पर
यायावर की शायरी का लहज़ा प्रभावशील हॆ,प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें
E-Mail received from Om Sapra Ji:
Neeraj ji
Very good.SEEP MEIN SAMUNDER IS A NICE WRITE UP ABOUT A NICE BOOK.
you are spreading nobloe thoughts from selected pieces of literature to the whole world.
congratulations
-om sapra, delhi-9
Aap pustak charcha behad umda tarah se karten hain ke ik baar jaroor man ke kisi kone main lagne lagta hai padha jaaye ..
बौने पाँव, अँधेरे पथ हैं, इच्छाएं आकाश चूमती
तन से मृग हो किन्तु कर्म से तुम चीते हो रामसनेही
Wah !!
मेरी लाइब्रेरी आपकी ऋणि हो गयी है नीरज जी....इसका श्नैः-श्नैः बढ़ता आकार आपकी इस अनूठी "किताबों की दुनिया" से भी जुड़ा हुआ है।
रामसनेही जी से मुलाकात करवाने का शुक्रिया...!
Bahut khub, ap to baithe-baithe kitabon ki duniya ki sair kara rahe hain..umda prastuti !!
thanks for introducing to a good poet .
लगता है ,पूरी किताब ही पी ली आपने अब हमें किताब पढने की क्या जरूरत ,आपने तो क्रीम हमें पढा ही दिया
सचमुच सीप में समन्दर है !
बस शुक्रिया ही कह सकते हैं !
कबीरा की चादर को बैठे क्यूँ सीते हो रामसनेही
बाहर भरे-भरे हो पर भीतर रीते हो रामसनेही
सच में बहुत पढ़ते हैं आप नीरज जी :) चलिए फायदा हमें भी हो जाता है बेहतरीन लिखा हुआ पढने को मिल जाता है शुक्रिया
सनेही जी को बधाई !!
Hamesha kee tarah hee khoobsurat smeeksha. sunder rachnaen hum tak pahunchane ka shukriya.
धूप, चांदनी कैद करेंगे अपनी अपनी मुठ्ठी में
लेकर बैठे हैं कुछ पागल ये अभियान दुकानों पर
एक से बढ़कर रचनाएँ, बहुत ही सुन्दर
बधाई .... शुक्रिया
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C.M. को प्रतीक्षा है - चैम्पियन की
प्रत्येक बुधवार
सुबह 9.00 बजे C.M. Quiz
********************************
क्रियेटिव मंच
रामसनेही जी किताब बहुत रोचक लग रही है. आपकि कलम से हर किताब रोचक ही लगती है.
आदरणीय नीरज जी सादर प्रणाम,
ये पुण्य कहाँ जायेगा ..आपके इस अंदाज के बारे में क्या कहने... सनेही जी से मिलवाकर बहुत बड़ा काम किया है आपने... कल मेरी उनसे सिप में समुन्दर के लिए बात हुई है ... और बहुत जल्द वो मेरे तख्ते पे भी सजने वाली है ... बहुत ही बड़ा परोपकार मैं तो इसे मानता हूँ...
आपका
अर्श
राम स्नेही जी को यत्र तत्र पढ़ती रही हूँ शायद ये कोइ पत्रिका भी निकलते हैं ....इनकी गज़लें कुछ अलग सी हट के हैं जिनको पढने का अलग ही मज़ा है ....और फिर जो आपकी कलम का माध्यम बन जाये वो यूँ ही तारीफ के काबिल हो जाती है ....!!
आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी है "सिप में समंदर" पुस्तक के बारे में! मुझे तो ये किताब अभी पढने का मन कर रहा है! ऑस्ट्रेलिया में बैठे बैठे आपके पोस्ट के दौरान एक अच्छे लेखक और पुस्तक से परिचित हुई ! बहुत बहुत धन्यवाद!
हम तो कोरा भोजपत्र हैं
कुछ भी लिखिए आप व्यास हैं
ओह!! इतना सुंदर भाव!! और भी जो शेर आपने लगाये हैं उन्हे पढ़ने के बाद किस गज़ल-प्रेमी की इतनी हिम्मत है कि इस किताब को खरीदने से रोक पाये अपने-आप को। राम सनेही लाल शर्मा 'यायावर जी बहुत पसंद आये, इनसे मिलवाने का शुक्रिया।
Waakai Shaayri ka samandar paros diya aapne.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
aue ak achhi smeeksha .
abhar
झूठ को सच बनाइये साहब
ये हुनर सीख जाइये साहब
खाक भी डालिये शराफत पर
आप दौलत कमाइये साहब
भूख से बिलबिलाते लोगों को
कायदे मत सिखाइये साहब
----- लाजवाब बातें सरल शब्दों में... वाह-वाह नीरज जी.
सोचा पीछे के कमेन्ट आप नहीं पढेंगे और वो वहां पर देना बासी जैसा होगा... किताबों के प्रति आपका शौख़ काबिल-ए- तारीफ है जनाब... शुक्रिया नयी आमद का इतनी अच्छी जानकारी के लिए नीरज जी...
Aapne pustak parichay Srinkhlaa ko nayaa aayaam diya hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Waah ek kitaab aur ............
bus ab jaldi se mangaati hoon
waqayi bahut anuthe reddef hai aur
bahut naye shabdon ka prayog hai
achha lagega inhe pura padhna
ग़ज़ल कहना ..... मरहब्बा
ग़ज़ल का सलीका....मरहब्बा
ग़ज़ल के तेवर ..... मरहब्बा
ग़ज़ल का फलसफा ... मरहब्बा
और .....
अदब की मुक्तलिफ़ तखलीक पर
आपकी नज़ारे-सानी ....मरहब्बा
मुबारकबाद . . . .
---मुफलिस---
नीरज जी आज मैं धन्य हो गई कि आपने मुझे कुछ राय दी..इतने दिन से मुझे इसी तरह कि टिप्पणी की तलाश थी कि कोई मेरी रचनाओं में सुधार करे..एक सर्वत जी दूसरे आप..मैंने अभी हाल ही में लिखना आरम्भ किया सोचा लिखूंगी तभी गलतियाँ पता चलेंगी..यदि आपके पास समय हो तो यूँ ही आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर...मेरा मार्गदर्शन के लिए...आभारी रहूंगी...बहुत-बहुत धन्यवाद
आदरणीय नीरज दा,
सच आप जो पुस्तक समीक्षा करते हैं ना शायद वो ब्लाग पर अनूठी ही है हमने तो और नहीं देखी। आपका आभार कैसे व्यक्त किया जावे ? मालिक कभी आपसे मिलवा दे यही दुआ है। बस।
नीरज जी
आपको अपने ब्लॉग पर पा कर मैं ऐसा अनुभूत कर रहा हूँ जैसे मोगरे की एक शाख यहाँ भी महकने लगी है .आपके कार्यों की वाह वाही तो सारे साहित्य ब्लॉग जगत में हो रही है .ऐसे में मेरा एक स्वर क्या उपस्तिथि दर्ज़ कराएगा .फिर भी आपके समीक्छा कार्य का अभिनन्दन करता हूँ . क्षमा जी जैसी सवेदन शील और सर्वत जैसा गुनी जिसके प्रशन्श्कों में शामिल हो वः अद्भुत ही होगा
बधाई
नमस्कार नीरज जी,
यायावर जी की रचनाओं से परिचय करवाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
शानदार है..आपकी किताब चर्चा। इस पोस्ट को बहुत पहले पढ़ लिया था, लेकिन इंटरनेट की तकनीकी गड़गड़ी के चलते टिप्पणी से चूक गया था।
अनूठी अभिव्यक्ति के धनी यायावर जी के काव्य से परिचित कराने के लिये हार्दिक आभार।
पीर जैसी पवित्र और
सुन्दर-सघन अपितु विरल प्रस्तुति.
=============================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
यह तो सीप मे छुपे हुए मोती हैं समन्दर की गोद में
आदरणीय नीरज भाई,
पहले तो आपकी पिछली गजल पर बधाई स्वीकार करे जो बहुत दिनों तक नेट से दूर रहने पर आज पढ़ पा रहा हूँ..साहबों पर लिखी गजल को मैंने अपने लिए सम्हाल के रख लिया है..यायावर जी के बारे में जानकारी प्राप्त कर अभिभूत हुआ...इसीतरह से पुस्तको और रचनाओं के बारे में जानकारी देते रहे हम आपको आभार देते रहेंगे..
पाखी
यायावर जी
नीरज जी के ब्लॉग पर आपके चुनिन्दा शेर पढ़ करअभिभूत हुआ . आपकी शब्द साधना का आभिनंदन करता हूँ . नीरज जी सचमुच एक स्तुत्य कार्य कर रहे हैं . शब्द साधकों को उनके तपःस्थ जीवन को जन सामान्य के लिए सुलभ करा रहे हैं . आपके तेवरों में स्तब्ध कर देने वाला शब्द संयोजन उपस्तिथ है . मैं नहीं जानता किआप अपनी शब्द सामर्थ्य का क्या उपयोग करते हैं .किन्तु वर्तमान शब्द ऋषियों से मेरी प्रार्थना है कि वे राष्ट्र को दुखों से उबारने कि प्रेरणा देने वाले सृजन के लिए सार्थक भूमिका में सक्रिय हों .क्रियाशीलता का यह वृत्त छोटा हो सकता है किन्तु समाज के लिए जाग्रत आदर्श होगा .भारत के पूर्व राष्ट्रपति महामहिम अब्दुल कलाम साहब से एक छात्र ने पूछा था "हम आज किस आदर्श पुरुष का अनुकरण करें ?" आपको भी ज्ञात होगा कलाम साहब निरुत्तर थे .किन्तु मैं आप जैसे अनुभवसिद्धों के दैनिक कार्य कलापों को इस प्रश्न का उत्तर मानता हूँ .
तुलसी बाबा ने केवल प्रश्न ही खडे नहीं किये उनके समाधान भी प्रस्तुत किये यही कारन है कि वे जनजन में प्रतिष्ठित हैं
मैं जानता हूँ हममे तुलसी बाबा होने की लालसा नहीं होगी किन्तु आपका शब्द कर्म आपको उसी दिशा में ले जाने को आतुर है
आप उस की अवहेलना नहीं कर सकते
अंत में यही कहूँगा
एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर सकती है तो एक कछुआ एक कुएं को तो साफ रख ही सकता है
आपकी शब्द साधना का पुनः पुनः अभिनन्दन
Respected Neeraj bhayyia
Aaj main aapka blog dekh rahi hoon aur yaqeen janiye ke bahut fakhr ho raha hai ke aap kitana behatreen kam kar rahe hain.I feel proud that u r my brother but....but.....but ...... whenever u post a comment on behalf of me plz keep my words as it is as ur laheja is different and my ANDAAZ IS DIFFERENT.........................ANDAAZ JUDA RAKHANA,PAHECHAAN TABHI HOGI SAHERA HO TERE ANDER GULSHAN HO BAYANON MEIN. THANX.
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