Monday, June 15, 2009

किताबों की दुनिया - 12

"किताबों की दुनिया" वाली श्रृंखला जब शुरू की थी तब अनुमान नहीं था की पाठक इसे पसंद करेंगे...लेकिन मेरा अनुमान गलत निकला पाठकों ने इसे पसंद भी किया और मुझे प्रोत्साहित भी. इसीलिए आज मैं इसकी बारहवीं याने की एक दर्जन वीं पोस्ट के प्रकाशन के मौके पर बहुत ख़ुशी महसूस करते हुए अपने सभी पाठकों का उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद करना चाहता हूँ...

"ओम सपरा" जी से मैं व्यक्तिगत तौर पर तो कभी नहीं मिला लेकिन एक आध बार फोन और ई-मेल के माध्यम से परिचय है. वो मेरी रचनाओं को पढ़ कर हमेशा मेरा उत्साह वर्धन करते रहे हैं. "सपरा जी" के ,जो दिल्ली में रहते हैं और बहुत बड़े साहित्य प्रेमी हैं, अनुभव का लाभ तो मुझे मिलना ही था सो मिल गया. उन्हीं की मेहरबानी से मुझे "आवाज़ का रिश्ता" किताब की जानकारी मिली जिसे जनाब "कुलदीप सलिल" साहेब ने लिखा है. पुस्तक के अशआर पसंद आने पर पाठक "ओम जी" का शुक्रिया करना ना भूलें.



खाक़ हो जाये न तन, मिटटी न हो मन जब तक 
चीज़ ऐसी है ये हसरत कि निकलती ही नहीं 

ज़िन्दगी धूप भी है, छाँव भी है तो फिर क्यूँ 
बदनसीबी ये सरों से कभी टलती ही नहीं 

मकां कोई यहाँ तामीर करे तो कैसे 
ऐसी मिटटी है कि बुनियाद ठहरती ही नहीं 

इस किताब कि ग़ज़लें इतनी सरल हैं कि पढने वाला कब इन्हें गुनगुनाने लगता है पता ही नहीं चलता. बेहद सादा जबान इसकी सबसे बड़ी खासियत है. ये कमाल  कोई अनुभवी ही कर सकता है और सलिल साहेब के पास लगता है अनुभव का खजाना है. इसीलिए उनकी कही बात पढने वालों को अपनी ही लगती है.

हो मुहैया हमें सबकुछ ,हो ये कैसे ? और फिर
ऐसी चीजें भी तो हैं जिनकी कमी अच्छी है 

काम लो मेरे तजरबे से, न मचलो इतना 
यहाँ कुछ कहने से खामोशी कहीं अच्छी है 

सलिल साहेब ने एम् ऐ अंग्रेजी और अर्थ शास्त्र दिल्ली विश्व विद्यालय से किया था उसके बाद "हंस राज कालेज" दिल्ली के अंग्रेजी विभाग में वरिष्ठ रीडर के पद पर बरसों काम किया. सत्तर वर्षीय सलिल साहेब अब अपना सारा समय साहित्य साधना में लगाते हैं. उन कि शायरी सागरो मीना,गुलो बुलबुल, आशिक माशूक से आगे कि शायरी है... उनके तेवरों कि जरा बानगी तो देखिये...आप कह उठेंगे...वल्लाह क्या शायरी है:

रौशनी छीन के घर-घर से चरागों कि अगर,
चाँद बस्ती में उगा हो, मुझे मंजूर नहीं 

हूँ मैं कुछ आज अगर तो हूँ बदौलत उसकी 
मेरे दुश्मन का बुरा हो, मुझे मंजूर नहीं 

हो चरागां तेरे घर में, मुझे मंजूर 'सलिल' 
गुल कहीं और दिया हो, मुझे मंजूर नहीं 

वाणी प्रकाशन, २१-ऐ , दरियागंज, नई दिल्ली, द्वारा प्रकाशित इस किताब में ११५ ग़ज़लें हैं...इन्द्र धनुष के सारे रंग समेटे हर ग़ज़ल हीरे कि कणी जैसी है...अगर आप दिल्ली में रहते हो तो फिर काम आसान है लेकिन दिल्ली से बाहर रहते हैं तो दिल्ली में रहने वाले किसी इष्ट मित्र कि सेवाएं इसे खरीदने में प्राप्त कि जा सकती हैं, जैसे कि मैंने की हैं.

आज के जीवन कि त्रासदी को सलिल साहेब ने किस खूबसूरती से आसान लफ्जों में बयां किया है देखिये:

यहाँ इक-दूसरे के घर अभी तक लोग जाते हैं
तुम्हारे शहर कि ये सादगी अच्छी लगी हमको 

छुअन तक हम भुला बैठे थे जब ठंडी फुहारों की 
किसी बच्चे की किश्ती कागजी अच्छी लगी हमको 

सफ़र से दुनिया के लौटे, खला में घूम आये जब
तो अपने गाँव कि इक-इक गली अच्छी लगी हमको 

प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर साहेब ने लिखा है " सलिल साहब ग़ज़ल लिखना जानते हैं और लिखते रहेंगे. हमें आशा है कि एक दिन ग़ज़ल कि दुनिया में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा क्यूँ कि उनके कहने में सादगी और सलीके के साथ ग़ज़ल कि गहराई भी है."प्रभाकर" साहेब कि बात को सिद्ध करने के लिए नहीं सिर्फ आपको उनकी शायरी का विस्तार दिखाने के लिए उनके ये शेर पढने कि दावत देता हूँ:

सर के बल आऊँ तेरे घर मैं तो लेकिन इस से क्या 
तू मिला न राह में तो फ़ासला रह जायेगा

चुप्पियाँ रह जाएँगी, रह जाएँगी तन्हाईयाँ 
तेरे जाने पर भी यों तो घर बसा रह जायेगा 

वो चले जायेंगे तूफाँ, में भी अपने काम पर
और कोई घर के अन्दर काँपता रह जायेगा 

उम्मीद है आपको भी मेरे तरह "सलिल" साहेब कि शायरी के सागर से उठाये ये मोती जरूर पसंद आये होंगे...जैसा मैंने कहा कि आप "ओम" जी का शुक्रिया जरूर अदा कीजिये वर्ना इस किताब तक पहुंचना मेरे लिए शायद संभव न होता. आयीये चलते चलते एक आध शेर का आनंद और उठा लिया जाये ...

ग़ज़ल में मीर हैं जैसे भजन मीरा का भजनों में
किसी का है मकाम ऐसा हमारे ख़ास अपनों में 

और

ज़िन्दगी लेके कहाँ आयी सलिल साहब आज
देखने को नहीं कुछ और नज़र बाकी है 

किताबों कि दुनिया का ये सिलसिला तब तक चलता रहेगा जब तक आप सब का दुलार इसे मिलता रहेगा...आपके दुलार में कमी ही इसके समापन का कारण होगी...तो चलते हैं एक और किताब कि तलाश में...

45 comments:

रश्मि प्रभा... said...

zindagi ki bhagdaud me aapke dwaara hum tak ek kitaab ki susanskrit vyaakhyaa ek nayi zindagi deti hai aut ek khoobsurat chayan

ताऊ रामपुरिया said...

आपको इस पोस्ट के लिये बहुत बधाई. एक तो आप बहुत ही उम्दा किताबों से रुबरु करवाते हैं और यह भी निरंतरता के साथ. यह बहुत बडी बात है. आपको इस शुभ कार्य के लिये बहुत बधाई और शुभकामनाएं.

रामराम.

Science Bloggers Association said...

सलिल साहब का तो वाकई जवाब नहीं। ऐसे गजब गजब के अशआर कहे हैं कि मन करता है बस तारीफ करते जाओ, करते जाओ।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

रंजू भाटिया said...

इस बार भी आपने एक बहुत अच्छी किताब से परिचय करवाया ..आपका यह प्रयास पुस्तक पढने वालों के लिए बहुत ही बेहतरीन कोशिश है .शुक्रिया

RAJ SINH said...

नीरज जी ,
किताबों की दुनिया ......और उस पर आपका सेलेक्सन और अंदाजेबयां ..... चुन चुन कर पेश किये गए मोती .
सभी कुछ बेहतरीन भी लाजबाब भी ......जारी रहे .

रंजन (Ranjan) said...

बहुत अच्छा चुनाव.. बहुत सरल शेर..

राज भाटिय़ा said...

आप के यहां हमेशाही अच्छी बातो का खजाना मिलता है ओर अब अच्छी किताबो की भी जानकारी मिल रही है, बहुत सुंदर लगा,
धन्यवाद

Yogesh Verma Swapn said...

neeraj ji, sach kahun aap to heeron ki khaan se heere talash kar laa rahe hain. aabhaar.

ओम आर्य said...

bahut badhiya....sundar prastuti

निर्मला कपिला said...

om jee kaa dhanyvaad unhen pahuncha den salil jee ki kalam ko mera salam aur apkee ye kitabon ki dunia bahut sundar hai ek saarthak prayas badhaai

दिगम्बर नासवा said...

नीरज जी ,
आप की "किताबों की दुनिया" से nikla एक और khazaana, naayaab tohfa आपका सेलेक्सन और शेरों का chun chun कर likhne का andaaz .............. बस दिल से vaah vaah ही nikalti है......... आपका और oum जी का shukriyaa इस pustak से parichay karvaane का ............... किसी एक शेर को लिख कर बाकियों का मजा कम नहीं करना चाहता

प्रिया said...

wah! hamara to man kar gaya is book ko padne ka

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत सुंदर ,इसी तरह निरन्तरता बनाये रखिये .

"अर्श" said...

नीरज जी सपरा जी के सहारे आपने सलिल साहिब के इस किताब से रूबरू कराकर हमें मुग्ध कर दिया सच ही कहा है आपने के कितनी कोमल हिंदी का प्रयोग किया गया है के लोग पढ़ते ही गुनगुनाने लगे ... सच ही कहा है आपने... आपने जितने शे'र लिखे है उसमे सबसे पहेले वाले शे'र ने तो दिल चुरा लिया ... बाकी शे'र तो बस लूटते रहे मुझे... और दिल से बस वाह वाह ही निकलता रहा ...वाणी प्रकाशन से जल्दी ही ये ग़ज़ल की मोती मेरे किताबों के गुलदस्ते में सजने वाली है ... बहोत बहोत बधाई आपको और आभार...


अर्श

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

नीरज भाई ,
सभी चुनिन्दा शेर बढ़िया हैं
मगर , इस को पढ़कर ,
ना जाने मन कहीं खो - सा गया ...
नायाब प्रस्तुति जारी रखें ..
" वो चले जायेंगे
तूफ़ान में भी,
अपने काम पर,
और कोइ घर के अन्दर,
कांपता रह जाएगा "


- लावण्या

वीनस केसरी said...

ज़िन्दगी लेके कहाँ आयी सलिल साहब आज
देखने को नहीं कुछ और नज़र बाकी है


इस शेर को पढने के बाद कहने सुनने को क्या रह गया मेरे पास
इस एक शेर से ही कुलदीप जी की शख्शियत की उचाई का पता चल जाता है
वीनस केसरी

संजीव गौतम said...

धन्यवाद ओम जी का रौशनी को आप तक पहुंचाने के लिये और आभार आपका रौशनी को घर-घर बांटने के लिये.
ख़ाक़ हो जाये न तन, मिट्टी न हो मन जब तक,
चीज़ ऐसी है ये हसरत कि निकलती ही नहीं.
ये अकेला शेर कुलदीप साहब की 'क्लास' बताने के लिये काफी है.

Vinay said...

सुन्दर रचनाओं का संकलन प्रतीत होती है, मिली तो ख़रीद लेंगे

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर प्रस्तुतिकरण।
बधाई।

कडुवासच said...

... प्रभावशाली शेर ... प्रभावशाली पुस्तक ... प्रभावशाली समीक्षा... बहुत खूब, प्रसंशनीय !!!!!

अभिषेक मिश्र said...

Sadagi hi khasiyat hai is rachna aur rachnakar ki bhi. Isse ru-ba-ru karane ka dhanyavad.

नीरज गोस्वामी said...

e-mail received from "Shelley Khatri" ji.:-

"aap likhten rahen. kitabo ko logon ka pyar milega hi. sabse kam jankari aaj kitabo ke bare me hi rahti hain . isliyen aapki post ka to intjar rahega hi."

vijay kumar sappatti said...

aadarniya neeraj ji ..

ek aur kitaab ..aapke jariye ... kitaab ko hum tak pahunchaana bhi ek bahut shresht kaarya hai aur wo aap kar rahe hai ... ye safar kitaabo ka yun hi jaari rahe ... hum ye daulat hum par yun hi lautaate rahe...

badhai sweekar karen....

vijay
pls read my new sufi poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/06/blog-post.html

रविकांत पाण्डेय said...

नीरज जी, पुस्तकों से परिचय कराने का आपका अंदाज निहायत ही खूबसूरत है। यह साहित्य सेवा आपको भीड़ से अलग करती है। ओम जी, सलिल जी और आपका तीनों का शुक्रिया। अशआर पसंद आये।

Manish Kumar said...

मकाँ कोई... ठहरती ही नहीं
हो मुहैया... अच्छी है
बेहतरीन..
बड़ी ही उपयोगी श्रृंखला है ये हम सब के लिए। नए ग़ज़लकारों से ऍसे ही मिलवाते रहें..

Asha Joglekar said...

एक एक शेर सलिल साहब का मोती समान है और आप नीर-क्षीर विवेक वाले हंस के समान । सारे शेर बहुत ही उम्दा हैं, पर ये मुझे खास पसंद आया ।
सफर से दुनिया के लौटे, खला में घूम आये
तो अपने गाँव की इक इक गली अच्छी लगी हमको ।

नीरज गोस्वामी said...

SHRI NEERAJ JI
NAMASTEY, IT WAS VERY NICE TO GET A CALL FROM YOU ON PHONE YESTERDAY.
I HAVE GONE THROUGH THE CONTENTS OF YOUR LATEST POST ON 'AWAZ KA RISHTA' WRITTEN BY PROFESSOR POET SHRI KULDIP SALIL JI.
IT IS A VERY WELL DRAFTED AND EMOTIONALLY INVOLVED PIECE OF LITERATURE, WHICH CAN BE TERMED AS A GOOD CRITICAL ESSAY.
THIS BOOK REVIEW IS WELL RECIEVED BY ITS READERS AT LARGE.

Again congratulations for this good piece of write-up by you.
Regards
O P Sapra, delhi-9
9818180932

संजय सिंह said...

आपकी "किताबो की दुनिया" की श्रृंखला अपने आप में "हिंदी साहित्य" को लोगो के सामने लाने की अनोखी और बहुते सुन्दर सोच है और मैं आपके इस सोच को तहे दिल से नमन करता हूँ. आपकी इस दर्जनवी पोस्ट के लिए आपको वधाई. सपेरा जी और कुलदीप जी को भी मेरी तरफ से शुक्रिया

डॉ .अनुराग said...

आपने तो आज कई ख़जाने बाँट दिए साहब ......कभी मौका मिले तो मंज़ूर अह्तेशम का सुखा बरगद भी पढियेगा ..पेपर बेक संस्करण में भी है

Shiv said...

किताबों से परिचय कराने का काम बहुत महत्वपूर्ण है. महत्वपूर्ण इसलिए क्योंकि न जाने कितने गजल-प्रेमी आपकी समीक्षा पढ़कर जाने ही कितने शायरों और उनकी कृतियों के बारे में जानेंगे. कुछ वर्ष पहले तक गजल की दुनियाँ ढेर सारे पुराने और नामी शायरों से शुरू होकर वहीँ ख़त्म हो जाती सी प्रतीत होती थी. उनमें ये सारे नए नाम जुड़ते जा रहे हैं. ऐसे में पाठकों को अगर नए शायरों और उनकी कृतियों के बारे में जानकारी मिलती रहे तो इससे बढ़िया क्या हो सकता है.

रोशनी छीनकर घर-घर से चरागों की अगर
चाँद बस्ती में उगा हो, मुझे मंज़ूर नहीं

हूँ मैं कुछ आज अगर तो हूँ बदौलत उसकी
मेरे दुश्मन का बुरा हो, मुझे मंज़ूर नहीं

हो चरागाँ तेरे घर में मुझे मंज़ूर 'सलिल'
गुल कहीं और दिया हो, मुझे मंज़ूर नहीं

अब आप ही बताईये. ऐसा कुछ लिखने वाले के बारे में अगर हम नहीं जानें, तो किसका नुक्सान है? हमारा ही न. ऐसे में यही कामना है कि किताबों से परिचय करवाने का यह सिलसिला चलता रहे.

karuna said...

नीरज जी ,
आपने हमें एक बहुत ही उम्दा पुस्तक से रूबरू करवाया ,शुक्रिया ,सारे शेर अपने में सार समेटे हैं पर इस शेर की तो बात ही कुछ और है ,
सफर से दुनिया के लौटे खला में घूम आये ,
तो अपने गाँव की इक -इक गली अच्छी लगी हमको |
सच है अपना घर सबको अच्छा लगता है ,साभार |

अखिलेश सिंह said...

निरंतर अपनी रचनाओ से हमारा मार्गदर्शन करते रहें ..
आभार

विनय (Viney) said...

बेहतरीन शाईर से मिलवाया आपने! शुक्रिया
मौका मिला तो पढ़ कर इनकी रचनाओं के बारे में ज़रूर लिखूंगा.

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah.. Behtreen Prastuti..

गौतम राजऋषि said...

अभी कुछ महीने पहले आवाज के इस रिश्ते से मैं भी जुड़ा हूँ, नीरज जी। अक दोस्त ने भेंट में दी थी ये किताब...

Neeraj Kumar said...

नीरज सर,
आपका कमेंट्स मिला, धन्यवाद!
आपके ब्लॉग को पढता रहता हूँ, किताबों की जानकारी देकर बहुत ही नेक और प्रशंसनीय कार्य कर रहें हैं आप.

मैं लिखना चाहता हूँ और लिखता भी रहता हूँ लेकिन कभी कभी लगता है की हिंदी ब्लॉग के रूप में मैं ब्लॉग-जगत को कचरों से भर रहा हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ की मेरी रचनाएं संरचना की दृष्टि से खरी नहीं हैं...
आप एक वरिष्ट लेखक और साहित्य के जानकार की हैसियत से मार्गदर्शन करेंगे इसकी आशा है...
क्या मेरी कवितायेँ सचमुच रद्दी की टोकरी में डालने योग्य है...
आप चाहें तो मुझे knkayastha@gmail.com पर मेल करें...

आभारी रहूँगा...

सादर...
नीरज

shama said...

Neeraj ij,
Ittefaaqan maine "The light by a lonely path" pe kavita post kar dee, warna mai wahan nahee likhti hun...khair! Us bahane aapkee tippnee to milee!

Aapke lkhanpe mai kuchh tippnee karun,itnee meree qabiliyat nahee..lekin apne blog IDs de rahee hun...
"The light.."pe ab bilkulbhi nahi likhtee..

http://lalitlekh.blogspot.com

http://kavitasbyshama.blogspot.com

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

In blogs pe aapko any blogs kee IDs mil jayengi...in dino aapke maargdarshan kaa bada abhaw mehsoos hua...laga, aap naraz to nahee !
Intezar rahega!

Kul 13 blogs,hain, vishayanusar vibhajit kiye hain...
sneh sahit
shama

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
आपका और ओंम जी का बहुत बहुत शुक्रिया.
कुलदीप सलिल जी का कहा हर शेर अपने पीछे एक अनुभव समेटे हुए है. इतने आसान लफ्जों में मोतियों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है उन्होंने. बेहतरीन, लाजवाब, सुबहान-अल्लाह

shama said...

कुलदीप सलिल की , तथा अन्य किताबों को अब अपने घर लाये बिना चैन नही मिलेगा ! कितनी बार एक ही दिनमे आपके ब्लॉग पे आना पड़ेगा वरना ?

8 टिप्पणियाँ "fiber art" इस ब्लॉग पे देखीँ.......चंद पल मुझे लगा कहीँ , फिरसे hacking और spam तो नही शुरू हो गया ...!ग़नीमत ,कि , आपका नाम भी दिखा !
मेरे creative embroidery & linen इस स्वतंत्र ब्लॉग पे तो दिनमे 20/25 comments की आदत थी.....लेकिन यहाँ पे मै कुछ पल डर-सी गयी ..और फिर निहायत ख़ुशी का एहसास हुआ ...!
य़क़ीन मानिये , जब आप जैसा दिग्गज कुछ लिखता है , तो मन अभिमानसे भर आता है ..अपने आप पे गुरुर महसूस होता है !

Sajal Ehsaas said...

achhi koshish hai ye bahut..sahi disha me uthaaya gaya kadam hai...ise jaari rakhe

KK Yadav said...

Apke is sundar prayas ki sarahna...isi bahane achhi kitabon se ap rubaru to karate hain.
_____________________________
अपने प्रिय "समोसा" के 1000 साल पूरे होने पर मेरी पोस्ट का भी आनंद "शब्द सृजन की ओर " पर उठायें.

Arvind Gaurav said...

bahut achha prayan, aur aap esme safal bhi huye hai

www.dakbabu.blogspot.com said...

बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति....सुन्दर किताब ...बधाई !!
कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारें !!

!!अक्षय-मन!! said...

aapka kis tarahan se shukriya ada kiya jaye.....
jo itne mahaan shayer se pariichit karaya..........
bahut hi accha laga.......unke baare main jaankar aur shandaar sher padkar..........

Om Sapra said...

Dear neeraj ji
It is very interesting to note that ghazals of shri kuldip salil ji in his book "AWAZ KA RISHTA" have been liked and welcomed by the readers of your blog.

Again congratulations,

-om sapra, delhi-9
9818180932