ज़िन्दगी का रास्ता क्या पूछते हैं आप भी
बस उधर मत जाईये भागे जिधर जाते हैं लोग
बस उधर मत जाईये भागे जिधर जाते हैं लोग
ये बात कोई चालीस साल पुरानी है जब एक पतले दुबले साँवले से उन्नीस बीस साल के लड़के ने मुझे ये शेर सुनाया था. तब शायरी की कोई खास समझ नहीं थी, लेकिन इतनी समझ जरूर थी की जो शख्श इस उम्र में ऐसे शेर कह सकता है वो बड़ा हो कर जरूर गुल खिलाने वाला है. हम दोनों उन दिनों जयपुर के रविन्द्र मंच पर नाटक खेलने के शौकीन हुआ करते थे. जयपुर में वो नाटकों के स्वर्णिम युग की शुरुआत थी. उस लड़के ने भी एक नाटक लिखा "भूमिका" और जिसे निर्देशित भी किया. मैंने और मेरे एक अभिन्न मित्र ने उस नाटक की प्रकाश व्यवस्था संभाली. उस दौरान हम अच्छे मित्र बन गए. जी हाँ मैं आज हिन्दुस्तान के उस अजीम शायर की बात कर रहा हूँ जिसे लोग "राजेश रेड्डी" के नाम से जानते और पसंद करते हैं. उनकी बहुत सी ग़ज़लों को जगजीत सिंह जी ने अपनी रेशमी आवाज़ से नवाजा है.
ज़िन्दगी, जो आप करना चाहते वो करने नहीं देती. आपको अपने हिसाब से हांकती है. "राजेश" रेडियो से जुड़ गया और मैं स्टील कम्पनियों से. रोज़ी रोटी ने शहर भी छुड़वाया और नाटकों का शौक भी. राजेश ने अपनी आग को जिंदा रख्खा और लगातार लिखता रहा. एक दिन अचानक मुंबई आने पर जब मैंने उसे फोन किया तो वो मुझे पहचान तो गया लेकिन चालीस सालों के अन्तराल ने रिश्तों की गर्मी को ठंडा जरूर कर दिया था .ऐसा ही होता है इसमें कुछ भी हैरान करने वाली बात नहीं है. प्रगाड़ रिश्ते भी सम्वाद हीनता की स्तिथि में दम तोड़ देते हैं. उसने मुझे पहचाना ये ही बहुत था मेरे लिए.
जयपुर में आयोजित पुस्तक मेले में मुझे उसकी किताब "उडान" दिखाई दी. खरीदने के बारे में सोचना ही नहीं पड़ा. पुराने संबंधों की भीनी याद ही उसे खरीदने के लिए काफी थी.
"राजेश रेड्डी" के बारे में अधिक कुछ न कह कर आयीये उसकी इस पुस्तक की चर्चा की जाये. "उडान" उसके प्रशंककों को निराश नहीं करती वरन उनकी कसौटी पर सौ फी सदी खरी उतरती है. वो जिस पाये के शायर हैं उनसे बेहतर शायरी की उम्मीद रखना गलत नहीं है और उन्होंने कहीं भी ना उम्मीद नहीं किया है.
कहा जाता है की छोटी बहर में शेर कहना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन "उड़ान" को पढ़ते वक्त ऐसा लगता ही नहीं. राजेश इस सहजता से छोटी बहर में शेर कहते हैं की बेसाख्ता मुंह से वाह वा निकल जाता है:
गीता हूँ कुरआन हूँ मैं
मुझको पढ़ इंसान हूँ मैं
जिंदा हूँ सच बोलके भी
देख के खुद हैरान हूँ मैं
इतनी मुश्किल दुनिया में
क्यूँ इतना आसान हूँ मैं
मैं क्या और क्या मेरा वजूद
मुफलिस का अरमान हूँ मैं
मुझको पढ़ इंसान हूँ मैं
जिंदा हूँ सच बोलके भी
देख के खुद हैरान हूँ मैं
इतनी मुश्किल दुनिया में
क्यूँ इतना आसान हूँ मैं
मैं क्या और क्या मेरा वजूद
मुफलिस का अरमान हूँ मैं
"उड़ान" में राजेश की लगभग वो सभी ग़ज़लें हैं जो जगजीत सिंह साहेब,पंकज उधास,राज कुमार रिज़वी जैसे नामवर ग़ज़ल गायकों ने गायीं हैं और जो खूब मकबूल हुई हैं, लेकिन हम उन ग़ज़लों की चर्चा यहाँ नहीं करेंगे...बल्कि उन ग़ज़लों के शेर पढ़वायेंगे जो शायद अभी तक गायी नहीं गयीं...हो सकता है की इस चयन में मुझसे गलती हो जाए क्यूँ की उनकी उन ग़ज़लों की फेहरिस्त मेरे पास नहीं है जो गायी गयीं हैं:
जुबां खामोश है डर बोलते हैं
अब इस बस्ती में खंज़र बोलते हैं
सराये है जिसे नादां मुसाफिर
कभी दुनिया कभी घर बोलते हैं
मेरे ये दोस्त मुझसे झूठ भी अब
मेरे ही सर को छूकर बोलते हैं
अब इस बस्ती में खंज़र बोलते हैं
सराये है जिसे नादां मुसाफिर
कभी दुनिया कभी घर बोलते हैं
मेरे ये दोस्त मुझसे झूठ भी अब
मेरे ही सर को छूकर बोलते हैं
राजेश एक संजीदा इंसान हैं और उनकी संजीदगी उनकी ग़ज़लों में साफ़ दिखाई देती है.लफ्फाजी उनकी फितरत में नहीं इसीलिए आप उनके शेर में ना एक लफ्ज़ जोड़ सकते हैं या घटा सकते हैं.ये हुनर बहुत कोशिशों से आता है.एक ग़ज़ल के चंद शेर देखें.
ये सारे शहर में दहशत सी क्यूँ है
यकीनन कल कोई त्योंहार होगा
बदल जायेगी इस बच्चे की दुनिया
जब इसके सामने अखबार होगा
यकीनन कल कोई त्योंहार होगा
बदल जायेगी इस बच्चे की दुनिया
जब इसके सामने अखबार होगा
एक ग़ज़ल के चंद शेर और देखें जिसमें "राजेश" आसान जबान में सब कुछ कितनी सहजता से कह जाते हैं. ये सादगी ही उनकी ग़ज़लों का सबसे अहम् पहलू है.
अपनी आखों से ज़िन्दगी को पढ़
अपने अनुभव से ज्ञान पैदा कर
सब्र के पेड़ पर लगेंगे फल
सोच में इतमिनान पैदा कर
छोड़ दुनिया से छाँव की उम्मीद
खुद में इक सायबान पैदा कर
दिल से निकले दिलों में बस जाए
ऐसी आसाँ जुबान पैदा कर
अपने अनुभव से ज्ञान पैदा कर
सब्र के पेड़ पर लगेंगे फल
सोच में इतमिनान पैदा कर
छोड़ दुनिया से छाँव की उम्मीद
खुद में इक सायबान पैदा कर
दिल से निकले दिलों में बस जाए
ऐसी आसाँ जुबान पैदा कर
वाणी प्रकाशन, 21-ऐ ,दरियागंज, नई दिल्ली से अब तक इस किताब के दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, जो इसकी लोकप्रियता को दर्शाते हैं. इस किताब में राजेश की 74 ग़ज़लें दर्ज हैं जो पढने वालों को एक नए एहसास से रूबरू करवाती हैं.
मेरे खुदा मैं अपने ख्यालों को क्या करूँ
अंधों के इस नगर में उजालों को क्या करूँ
दिल ही बहुत है मेरा इबादत के वास्ते
मस्जिद को क्या करूँ मैं शिवालों को क्या करूँ
मैं जानता हूँ सोचना अब एक जुर्म है
लेकिन मैं दिल में उठते सवालों को क्या करूँ
अंधों के इस नगर में उजालों को क्या करूँ
दिल ही बहुत है मेरा इबादत के वास्ते
मस्जिद को क्या करूँ मैं शिवालों को क्या करूँ
मैं जानता हूँ सोचना अब एक जुर्म है
लेकिन मैं दिल में उठते सवालों को क्या करूँ
"राजेश" खुद बहुत अच्छा गाते हैं . संगीत का उन्हें ज्ञान है. उन्ही की जबानी उनकी ग़ज़लों को सुनना एक ऐसा अनुभव है जिसे आप कभी भूल नहीं सकते. उन्होंने एक केसेट "ग़ालिब" में संगीत दिया है जिसे वीनस कंपनी वालों ने निकला था. जो उन्हें सुनना चाहते हैं उनसे गुजारिश है की वो http://www.radiosabrang.com/ पर उन्हें सुनें.
आखिर में पेश है उनका एक शेर जो मुझे बहुत ही अधिक पसंद है....शायद आपको भी पसंद आये, पसंद आये तो उनकी तारीफ में ताली जरूर बजईयेगा चाहे आसपास कोई सुनने वाला हो ना हो.:
अजब कमाल है अक्सर सही ठहरते हैं
वो फैसले जो कभी सोच कर नहीं करते.
वो फैसले जो कभी सोच कर नहीं करते.
आप इस किताब को तलाशिये तब तक हम निकलते हैं आपके लिए एक और किताब तलाशने. इसमें हमारा भी तो भला हो जाता है...आप की बदौलत हम भी अच्छी शायरी पढ़ लेते हैं. शुक्रिया.
55 comments:
wahhhhhhhhhhh saab wahhhhhhhhhh
kya khoobsurat shero se ru-b-ru karaya hai aapne
dil mein utar gaye.
aapne ye sab humse banta ye khushkismatii hai padhne valo kii
इनके शेरोन को यहाँ प्रस्तुत करने के लिए शुक्रिया ...मज़ा आ गया ...आपने सच ही कहा ...बेहतरीन लिखा है इन्होने
अद्भुत लेखन है राजेश रेड्डी जी का. 'उड़ान' मेरी बहुत ही प्रिय किताब है. आपका लिखा हुआ पढ़कर याद है मैंने क्या कहा था?
शानदार प्रस्तुति. 'उड़ान' गजलों की सबसे बेहतरीन किताबों में से एक है. ज़िन्दगी जीने के न जाने कितने तरीके सिखाती है यह किताब.
आदरणीय राजेश रेड्डी जी का.ग़ज़ल संग्रह 'उड़ान' से रूबरू करने का आभार....@ आदरणीय शिव कुमार जी ने जिस तरह इस पुस्तक की तारीफ की है उत्सुकता बढ़ गयी है पढ़ने की.."
regards
रचनाकार जितना अधिक जीवन -संदर्भों से जुड़ा होता है कविता या शायरी भीउतनी ही प्राणवान होती है ,राजेश जी के शेर संघर्षों से भरे जीवन में टॉनिक का काम करते है.
इतने बेहतरीन शेरोंसे रूबरू करने की लिए नीरज जी आपका धन्यवाद
बेहतरीन। नीरज जी आपका बहुत शुक्रिया। इस चर्चा के लिए।
neeraj ji
shukriya itni mahan hasti se ru-b-ru karwane ke liye.unka likha har sher lajawab hai seedha dil mein utar gaya.
मैं जानता हूँ कि अक्सर सही ठहरते हैं,
वो फैसले जो कभी सोच कर नही करते...!
इन से परिचय कराने का शुक्रिया
राजेश रेड्डी छोटी बहर में लिखने वालो में जाना पहचाना नाम है...अक्सर पत्रिकायो में उनकी झलक मिल जाती है
इतने खूबसूरत शेर वो भी आपके अपने ब्लॉग पर..........हमने तो ताली बजाई भी और दूसरों को सुना कर बजवाई भी..........राजेश जी की इस किताब से परिचय करवाने का शुक्रिया...............आप इतने अच्छे इंसान हैं तो आपके दोस्त तो अच्छे होने ही हैं नीरज जी...........सब के सब शेर लाजवाब...........
बहुत बढिया प्रस्तुति।आभार।
बहुत बढिया जानकारी दी आपने. आप बहुत ही नायाब किताबों से रुबरु करवाते हैं. हमारे जैसे नासमझ भी आपकी पोस्ट पढ कर इनकी तरफ़ आकर्षित हो कर इनका लुत्फ़ लेने लगते हैं. बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं.
रामराम.
zindagi ka raasta kya poochte hain
bas udhar mat jaaiye,jidhar sab jaate hain.......
waah !
राजेश रेडडी जी से परिचय करवाने का शुक्रिया। बहुत ही सुंदर शेरों का चयन किया है आपने। उड़ान पढ़ने का लोभ संवरण करना अब मुश्किल हो रहा है।
Rajesh reddi ji ki kitaab se rubroo karwaya..dhnywaad.
jitne bhi sher aap ne padhwaye hain sabhi achchey lagey.
unki awaaz mein bhi suntey hain, abhi aap ki diye hue link par..
Abhaar
mushaayaro me kaee bar maine suna hai Rajesh Reddy ji ko ..........unaki rachnaye hameshaa se hi unada rahi hai......bahut bahut shukriya
RAJESH JEE SE RUBARU KARAAYAA APNE NEERAJ JEE BAHOT BADHIYA LAGAA AUR TAB AUR KE YE AAPKE PURAANE PARICHIT HAI..AAPKI YAADASHT KI BHI DAAD DENI HOGI CHAALIS SAAL PAHALE KAHI GAYEE SHE'R KO YAAD RAKHAA AUR HAME USASE MILWAAYAA .... IS KITAAB KO PADHNE KI DILI IKSHAA BADHTI JAA RAHI HAI AGAR ISKE UPLABDHAATA KE BAARE ME THODA SA AUR BATAA DETE TO MEHARBAANI HOTI... KOI PUBLISHERS YA WAHAAN KA KOI CONTACT NO.
KHAIR DHUNDHATE HAI....
BAHOT BAHOT AABHAAR AAPKA
ARSH
राजेश रेड्डी की कई ग़ज़लें पसंद हैं हमें भी।
यादों भरी अच्छी पोस्ट
नीरज जी आप तो वास्तव में सहित्य सेवी हैं । साहित्य की सेवा करने का मतलब केवल सृजन करना ही नहीं होता है । साहित्य की सेवा करने का मतलब होता है अच्छे साहित्य का प्रचार करना । आप जो कर रहे हैं वो इबादत से कम नहीं है । राजेश रेड्डी जी के बारे में क्या कहूं उनके बारे में कहने के लिये शब्दों को ढूंढना होगा शब्द कोश से । वे मेरे पसंदीदा शायरों में से हैं ।
एक पुस्तक की सिफारिश ज़रूर करना चाहूंगा । श्री आलोक सेठी जी की पुस्तक है 'तुरपाई उधड़ते रिश्तों की' । ये अपने आप में अनोखी पुस्तक हैं । इस पुस्तक में माता और पिता पर लिखी गई कुछ अद्भुत रचनाएं हैं । ये रचनाएं अलग अलग कवियों, लेखको और शायरों की हैं जिनका संकलन श्री सेठी ने किया है । ये पुस्तक इतनी लोकप्रिय है कि इसके कई कई संस्करण बिक चुके हैं । मैं इस पुस्तक का एक अनोखा प्रयोग कर चुका हूं । मेरे साथ काम करने वाला एक बालक अपने पिता से नाराज चल रहा था और परिवार टूटने की कगार पर था । एक दिन मैंने उसे वो पुस्तक दी और उसके दो लेखों को अकेले में पढ़ने को कहा । सुखद आश्चर्य ये रहा कि वो बालक तुरंत पिता से माफी मांगने चला गया ।
इस पुस्तक में
मां के कदमों तले ढूंढ ले जन्नत अपनी
वरना तुझको कहीं जन्नत नहीं मिलने वाली
जिनके मां बाप ने फुटपाथ पे दम तोड़ दिया
उनके बच्चों को कहीं छत नहीं मिलने वाली
जैसे शेर हैं तो कई सारे लेख हैं कविताएं हैं ।
ये पुस्तक वैसे तो हर जगह उपलब्ध है किन्तु न मिले तो श्री आलोक सेठी, हिन्दुस्तान अभिकरण, पन्धाना रोड, खण्डवा, मध्यप्रदेश मोबाइल 9424850000 से बुलवा सकते हैं । मेरे विचार से ये पुस्तक हर घर में रामायण गीता की तरह रखने योग्य है । कोई दरख्त कोई सायबां रहे न रहे, बुजुर्ग जिंदा रहें आसमा रहे न रहे । कुंवर बैचेन, निदा फाजली, मुनव्वर राना, आलोक श्रीवास्तव जैसे संवेदनशील रचनाकारों से लेकर जाने कितने लेखकों का समावेश है उसमें । मेरी इच्छा है कि आप इस पर ज़रूर कुछ लिखें ।
शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं
aise ashaar kahne wale is shayar ko shat-shat naman.
राजेश जी के इतने बेहतरीन शेर पढकर आनंद आ गया। जब किताब पढी जाऐगी तब वाकई और भी आनंद आऐगा।
बदल जाऐगी इस बच्चे की दुनिया
जब इसके सामने अखबार होगा।
वाह।
यह पुस्तक अर्से से मेरे पास है और कई बार पारायण कर चुका हूं।
दुष्यंत और राजेश रेड्डी मेरे पसन्दीदा हैं।
वाह यह तो एक रोचक किताब लग रही है, शुक्रिया नीरज जी
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तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
" अपनी आँखोँ से ज़िँदगी को पढ,पने अनुभव से ज्ञान पैदा कर "
कोई सच्चा साधक ही ये कहेगा - श्री राजेश रेड्दी जी से परिचित करवाने का शुक्रिया नीरज भाई -
क्या कमाल लिखते हैँ वे ...
सादर, स ~ स्नेह,
- लावण्या
unkee शायरी की प्रशंसक हूँ ...किताब के प्रति उत्सुकता बड़ गयी है
एक सकारात्मक सोच के तहत लिखी गयी अभिव्यक्ति कभी निरर्थक नहीं होती.
हम लाभान्वित हुए.
-विजय
राजेश रेड्डी जी से परिचय कराने का शुक्रिया..
जिंदा हूँ सच बोल के भी
देख के खुद हैरान हूँ मैं
वाह ........!!!
मेरे ये दोस्त मुझ से झूठ भी अब
मेरे ही सर को छुकर बोलते हैं...
बहुत खूऊऊब ....!!!
नीरज जी ....आपने तो पता नहीं कितना खजाना लुटा दिया ...बहुत बहुत आभार.....!!
दुष्यंत के साये में धूप के बाद जिस गज़ल-संग्रह को बार-बार-बार-बार मैंने पढ़ा है, वो ये ’उड़ान’ ही है।
आपकी प्रस्तुती का लेकिन जवाब नहीं नीरज जी और राजेश जी के आप बचपन के मित्र हैं, ये जानकर अच्छा लगा
आंधी को ये गुमान की बस इक शजर गया
लेकिन न जाने कितने परिंदों का घर गया
राजेश जी का ये शेर मेरा फेवरेट है
किताबों की दुनिया का जादू सर कैद कर बोल रहा है
वीनस केसरी
आनन्द आया पढ़कर-एक से बढ़कर एक शेर कहे हैं. समीक्षात्मक पोस्ट अच्छी लगी.
NEERAJ JEE,
HAMESHA KEE TARAH LAJABAB . RAJESH REDDY KEE GAYEE GAYEE AUR KUCH YATR TATR PRAKASHIT RACHNAON SE BHEE KUCH PARICHAY THA. ARSE SE MAIN UNKA FAN RAHA PAR KISEE KITAB KO PADHNE KA MAUKA NAHEEN MILA .KUCH MITRON SE IS KITAB KEE SHAN PAR SUNA THA AUR UTSUKTA THEE .AAPNE KUCH KAMEE TO POOREE KAR DEE CHUNINDA SHER SUNA KAR .KITAB TO JAROOR PADHUNGA .
PANKAJ JEE SE POORNTAH SAHMAT HOON .AAPKA SUNANA LIKHNE SE KAM MAYNE NAHEEN RAKHTA .
AISEE BAHARON SE ROOBROO KARATE RAHEN .AISE HEE MOTEE DHOONDH KAR BATATE RAHEN .
DHANYAVAD .
'बिना खिलौनों के बचपन गुज़ा्र आये हैं,
हम अपने मन को बहुत पहले मार आये हैं'
मेरा प्रिय शेर है। राजेश रेड्डी जी के रचना संसार पर प्रकाश डालने के लिये हार्दिक आभार।
अच्छी जानकारी -अच्छी पोस्ट .
राजेश जी की गजले पढ़कर तो मुंह से बस वाह ही निकला.. जिन्दा हूँ सच बोलके तो कमाल का शेर है.. वैसे आप अकेले अकेले पुस्तक मेला घूम रहे है..
Mail received from Om prakash Sapra Ji:
neeraj ji
namastey
i read with interest your post regarding rajesh reddy.
the couplets are very impressive and touching- really a good piece of excellent poetry.
following lines are very emotions based and therefore impressive one:
ये सारे शहर में दहशत सी क्यूँ है
यकीनन कल कोई त्योंहार होगा
बदल जायेगी इस बच्चे की दुनिया
जब इसके सामने अखबार होगा
Also following lines are also very good. In fact the whole poetry quoted by you in thispost is very good and very selective one.
मेरे खुदा मैं अपने ख्यालों को क्या करूँ
अंधों के इस नगर में उजालों को क्या करूँ
दिल ही बहुत है मेरा इबादत के वास्ते
मस्जिद को क्या करूँ मैं शिवालों को क्या करूँ
मैं जानता हूँ सोचना अब एक जुर्म है
लेकिन मैं दिल में उठते सवालों को क्या करूँ
You really deserve congratulations for your efforts for bringing good poetry before the readers.
Again congrats.
-om sapra, delhi-9
Sunder !
रेड्डी जी के साथ काम करने का भी मौक़ा मिला है हमें । एक अच्छे इंसान । एक संवेदनशील शायर ।
अच्छा लगा उनके बारे में यहां पढ़कर ।
... एक से बढकर एक शेर ... उम्दा शेर ... शुक्रिया!!!!!!!
neeraj ji shayar aur unki shayri se parichay ke liye shukriya.
nishchit hi khubsurat gazlon ka sangrah hai padhne ko dil machal gaya hai.
aadarniya neeraj ji
namaskar ;
aap pane har post ko itne acche dhang se prastuth karte hai ki ,padhne ka aanand badh jaata hai ..
aapke mitr shri rajesh ji ke baare me jaankar bahut khushi hui ,unki rachnayen padhkar man ko badhi trupti hui ..
aapke is lekh ke liye badhai ..
aapka
vijay
रेड्डी साहब और उनकी किताब के बारे में जानकार बहुत अच्छा लगा.
बेहद अच्छा लगा राजेश रेड्डी साहब की इस किताब से आपका ये संकलन। मुझे उनकी ये जो जिंदगी की किताब है ...भी बेहद पसंद है।
नमस्ते!
इस पोस्ट के लिये बहुत आभार....
एक श्वेत श्याम सपना । जिंदगी के भाग दौड़ से बहुत दूर । जीवन के अन्तिम छोर पर । रंगीन का निशान तक नही । उस श्वेत श्याम ने मेरी जिंदगी बदल दी । रंगीन सपने ....अब अच्छे नही लगते । सादगी ही ठीक है ।
उम्दा लिखतें हैं राजेश रेड्डी जी
Thanx for sharing Neeraj ji
आभार !!!
नीरज जी,
सादर प्रणाम,
राजेश रेड्डी जी के बारे में इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए मैं आप को धन्यवाद देकर औपचारिकता नहीं पूरी करना चाहता,यह धन्यवाद से ऊपर की चीज है।अद्भुत.......
ापके ब्लोग पर देर से आने का करण है कि आप्की पोस्त को बहुत धियान से पढती हूँ इस लियेजि दिन फ्री होती हूं आपकी पिछली सभी पोस्ट देखती हूँ अशा है इस के लिये क्षमा करेंगे्राजेश जी की उडान पढ कर आनन्द आ गया धन्य्वाद्
Pakadni padegi ye udan to. kya sher hain mano heere moti piro rakhkhen hon.
Aapke andeze ye bayya khobsurat va saccha hai.
bahteren rachana ke liye Dhanyvad
sada vyom ka dwar khula hai
pankh khoj le udne waale.
rajesh reddy sahab ki rachnaon ka ek mureed.
prakash chandalia
kolkata
सब्र के पेड़ पर लगेंगे फल
सोच में इतमिनान पैदा कर
wah ustaad wah!
bahut sundar
आदरणीय नीरज सर,
पूरा खजाना एकत्र है यहाँ....
मु. राजेश रेड्डी जी की ग़ज़लें मुझे बेहद पसंद हैं और जगजीत सिंग जी की आवाज में सुनकर तो आनंद ही आ जाता है....
"ये जो जिन्दगी की किताब है..."
"जिन्दगी तुने लहू लेके दिया..."
मुझे बहुत प्रिय हैं....
उनके बारे में विस्तार से जानना पढ़ना... वाह!
आपका सादर आभार.
आज ही पहली बार रूबरू हुआ आपके ब्लौग से. रजेस
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