बस्ती बस्ती में सुनिए जिंदाबाद के नारे
पहले मुल्क होता था अब महान हैं चेहरे
*
लालमन की हर कोशिश मिल गई न मिट्टी में
चार बीघा खेतों में बढ़ गई हवेली फिर
*
हर शख्स किसी तौर मिटाने पे तुला है
चेहरे पे हुईं जब से नमूदार लकीरें
*
इन दिनों ख़ामोश रहता हूं
आ गया है गुफ़्तगू करना
*
रोशनी, ताज़ा हवा, खुशियां, सुकून
ये हमारे हक़ नहीं है भीख हैं
*
तब उल्टी बात का मतलब समझने वाले होते थे
समय बदला, कबीर अब अपनी ही बानी से डरते हैं
पुराने वक़्त में सुल्तान ख़ुद हैरान करते थे
नए सुल्तान हम लोगों की हैरानी से डरते हैं
न जाने कब से जन्नत के मज़े बतला रहा हूं मैं
मगर कम-अक़्ल बकरे हैं कि कुर्बानी से डरते हैं
*
सब कहते हैं बस कुछ ही दिन
सचमुच क्या ऐसा लगता है
ये शायद 2009 की बात होगी। मैं तब खोपोली में नौकरी कर रहा था कि किसी एक रविवार को मोबाइल की घंटी बजी ,अनजान नंबर था मैंने देख के अनदेखा ये सोच के कर दिया कि किसी बैंक वाले का होगा जो मुझे उसके बैंक से लोन लेने के हज़ार फायदे गिनवायेगा मेरे मना करने पर भी नहीं मानेगा। कुछ समय बाद मोबाइल की घंटी फिर से बजी वो ही नंबर था। मैंने सोचा कि बैंक वाले यूँ लगातार फोन नहीं करते कोई और ही होगा लिहाज़ा उसे उठा लिया। उधर से खनकदार आवाज़ आयी 'नीरज जी बोल रहे हैं ?' मैंने कहा 'जी हाँ -आप कौन ?' जवाब आया 'अरे हमें छोडो मियाँ ये बताओ हमने आपका क्या बिगाड़ा है ?' मैंने हैरान हो कर कहा कि 'भाई जब मैं आपको जानता ही नहीं तो आपका क्यों और क्या बिगाड़ूँगा ?' उधर से एक बड़े जोरदार कहकहे के साथ जवाब आया कि 'लगता है नीरज भाई आप हमारी दुकान बंद करवा के ही मानेंगे' अब मैं कुछ झल्लाया और बोला ' आप क्या बात कर रहे हैं ? कौनसी दुकान? फिर उसके बाद जो जवाब आया उसे सुन कर मेरी बांछें खिल गयीं क्यूंकि मुझे कहा गया कि नीरज जी आप बहुत अच्छी ग़ज़लें कह रहे हैं और अगर आप इसी तरह कहते रहे तो बहुत से उभरते शायरों की दुकानें बंद हो जाएँगी। मैंने हंस कर बात टाल दी और कहा कि आप मुझे चने के झाड़ पर न चढ़ाएं क्यूंकि मैं तो अभी ग़ज़ल का ककहरा सीख रहा हूँ। तब सोशल मिडिया पर झूठी वाह वाही करने का शुरूआती दौर था जो आज अपने पीक पर है। तब मुझे मालूम नहीं था कि जो शख़्स मेरी तारीफ़ कर रहा है वो खुद एक कद्दावर शायर है।
मेरी बात सुन कर मोबाईल पर कुछ देर सन्नाटा रहा फिर आवाज़ आयी कि नीरज जी आप अगर सीखने के दौर में ऐसा कह रहे हैं तो यकीन मानिये आने वाले वक़्त में आप बेहतरीन कहेंगे। वो बेहतरीन वक्त तो खैर नहीं आया क्यूंकि थोड़े ही वक्त में मुझे ये बात समझ में आ गयी थी कि अच्छी शायरी क्या होती है और जब ये बात समझ में आयी तब मैंने ग़ज़लें कहना छोड़ दिया।
उस दिन के बाद से फोन का सिलसिला अभी तक जारी है जिसमें शायरी की बात कम और कहकहों के अनार ज्यादा फूटते हैं।
क़दम ठहरे तो उग आते हैं घास और फूस धरती पर
क़दम बढ़ते रहें तो इससे पैदा लीक होती है
बहुत से नाम है इमदाद राहत कर्ज़ हमदर्दी
समझ पाना कठिन है कौन सी शै भीख होती है
*
क्या कहा लेता नहीं कोई सलाम
मशवरा मानो मेरा, सजदा करो
*
थोड़ा और उबर के देखो
जीवन कारावास नहीं है
बाहर तो सारे मौसम हैं
आंगन में मधुमास नहीं है
इक जीवन इतने समझौते
हमको बस अभ्यास नहीं है
*
मैंने सिर्फ एक सच कहा लेकिन
यूं लगा जैसे इक तमाशा हूं
मैं न पंडित न राजपूत न शेख़
सिर्फ़ इंसान हूं मैं, सहमा हूं
*
आइना हूं मैं दीवार पर
आइए देखिए जाइए
लीजिए मुल्क जलने लगा
अब तो सिगरेट सुलगाइए
बात बात पर एक से बढ़ कर एक लाजवाब जुमले उछालने वाला कहकहे लगाने वाला और ग़ज़ब की सेन्स ऑफ हूयूमर वाला ये बंदा किसी दूसरे पर नहीं अपने ऊपर ही हँसता है। ये बंदा शायरी बहुत संजीदगी से करता है जिसमें न जुमले बाज़ी होती है न लफ़्फ़ाज़ी जिसमें होती है ज़िन्दगी की हक़ीक़त और इंसान की फ़ितरत की दास्तान। बतौर राम प्रकाश 'बेखुद' जिसकी शायरी में एक आम आदमी की समस्याएं , ग़रीब की बेबसी, मज़दूर के माथे का पसीना , अबला की चीखें ,समाज की विसंगतियाँ , सियासत की साज़िशें साफ़ साफ़ दिखाई दें तो समझिये वो शायर 'सरवत जमाल' है। 'सरवत जमाल' एक ऐसा शायर भी है जिसने उर्दू और हिंदी वालों की खेमा बंदी को तोड़ा है। उनकी शायरी की ज़बान खालिस हिंदुस्तानी है जिसमें हिंदी और उर्दू दोनों ज़बानों का अक्स नज़र आता है।
अभी हमारे सामने 'सरवत जमाल' साहब की पहली ग़ज़लों की किताब 'उजाला कहाँ गया' रखी है जिसे नमन प्रकाशन लखनऊ ने प्रकाशित किया है। इस किताब में सर्वत साहब की 83 ग़ज़लें शामिल हैं। इस किताब को आप नमन प्रकाशन से 9415094950 पर मंगवा सकते हैं और सरवत जमाल साहब को इन ग़ज़लों के लिए मुबारक़ बाद देते हुए उनसे 7905626983 पर बात कर सकते हैं।
कहीं भी सर झुका दिया, नया खुदा बना लिया
ग़ुलाम क़ौम को मिलेगी कब निजात, देखिए
*
अगर है सब्र तो नेमत लगेगी दुनिया भी
नहीं है सब्र अगर फिर तो जंग है दुनिया
*
कितने दिन, चार,आठ,दस, फिर बस
रास अगर आ गया क़फ़स, फिर बस
जम के बरसात कैसे होती है
हद से बाहर गई उमस, फिर बस
हादसे, वाक़यात, अफ़वाहें
लोग होते हैं टस से मस, फिर बस
*
इस तरफ आदमी उधर कुत्ता
बोलिए, किसको सावधान करें
*
आंधी से टूट जाने का ख़तरा नज़र में था
सारे दरख्त़ झुकने को तैयार हो गए
*
फिर यूं हुआ कि सब ने उठा ली कसम यहाँ
फिर यूं हुआ कि लोग ज़बानों से कट गए
*
कुछ घरों में धुंआ ही उठता है
हर जगह रोशनी नहीं होती
*
हमारे दौर के बच्चों ने सब कुछ देख डाला है
मदारी को तमाशों पर कोई ताली नहीं मिलती
गोरखपुर निवासी जनाब जव्वाद अली और ज़ीनत बेग़म के यहाँ जब 29 ऑक्टूबर 1956 को सरवत का जन्म हुआ तब घर में कोई बैंड बाजे नहीं बजे। बस चुपके से सात बहन भाइयों में एक बेहद आम शक्ल-ओ-सूरत के बच्चे का शुमार हो गया। सब बच्चों के साथ इनकी भी परवरिश होती रही। कुछ सालों बाद उनकी माँ को अहसास हुआ कि, ये लोगों को अपने जुमलों से हंसा हंसा कर लोट-पोट कर देने वाला ,खूबसूरत आवाज़ में गाना गाने वाला, अपनी एक्टिंग से सबको हैरान कर देने वाला और भाषण देने में आगे रहने वाला बच्चा सबसे अलग है। कभी कभी संजीदा हो कर कुछ लिखता भी है। पिता जव्वाद अली साहब को उनके इस लिखने के हुनर का पता चलता उससे पहले ही वो इस दुनिया-ऐ-फ़ानी से रुख़सत फ़रमा गए। जब तक 'सरवत' ग़ज़ल कार के रूप में शोहरत हासिल करते, माँ भी उन्हें छोड़ कर चली गयीं। 'सरवत' साहब को इस बात का आज भी बेहद मलाल है कि उनके माँ-बाप अपने बेटे के इस हुनर को बिना जाने ही उन्हें छोड़ गए।
संजीदगी से 'सरवत' साहब का यूँ तो छत्तीस का आंकड़ा रहता है सिर्फ ग़ज़ल कहते वक्त ही वो संजीदा रहते हैं इसीलिए वो अपनी ग़ज़लों को भी संजीदगी से नहीं लेते। उनके बेहद क़रीबी दोस्त जनाब 'मलिक ज़ादा जावेद' साहब उनके बारे में लिखते हैं कि 'सरवत जमाल को न सिले की परवाह है न सताइश की तमन्ना है इसलिए वो शोहरत के पीछे नहीं भागते बल्कि शोहरतें इनके इर्द गिर्द तवाफ़ करती हैं। ,
भला तोता और इंसानों की भाषा
मगर पिंजरे के मिट्ठू बोलते हैं
जिधर घोड़ों ने चुप्पी साध ली है
वहीं भाड़े के टट्टू बोलते हैं
*
उसकी चुप क्या है, कोई सोचने वाला ही नहीं
लोग ख़ुश हैं कि सवालात कहां तक पहुंचे
*
तुम तो यही कहोगे निकाला कहाँ गया
फिर ये सवाल है कि उजाला कहाँ गया
यह ठीक है कि आप की ख़ूराक बढ़ गई
लेकिन हमारे मुंह का निवाला कहाँ गया
चोरी हुई तो इसकी कोई फ़िक्र ही नहीं
सबको यही पड़ी है कि ताला कहाँ गया
*
इक हवेली भी गिरी छप्पर के साथ
हौसले देख़ो ज़रा तूफ़ान के
*
तमाम चर्चे, तमाम ख़र्चे, तमाम कर्ज़े
मगर हमारा वतन अभी तक महान है ना
*
महाभारत में अबकी कौरवों ने शर्त यह रख दी
बिना रथ युद्ध होगा सारथी का क्या भरोसा है
*
यह जीवन है कि बचपन की पढ़ाई
ज़रा सी चूक पर सौ बार लिखना
सरवत साहब अपनी शायरी को लेकर किस कदर लापरवाह थे इसका अंदाजा आपको उनके एक पुराने दोस्त रवि राय की इस बात से लग जाएगा रवि लिखते हैं कि "मैं काफी दिनों बाद शायद ईद के मौके पर इनके घर गया था। हम दोनों बेडरूम में ही बैठे थे ।मुझे तकिए के नीचे एक पर्ची दिखी जिस पर एक मुकम्मल ग़ज़ल लिखी हुई थी ।लिखावट सरवत की ही थी । मेरी सवालिया निगाहों के जवाब में बोले 'ये तो कल रात अचानक बन गई'। मैं पर्ची पढ़ रहा था तभी नाश्ता लेकर भाभी कमरे में आईं । उन्होंने तकिए के गिलाफ में हाथ डालकर वैसी ही 10-12 पर्चियां बिस्तर पर रख दीं । 'ये क्या है' मैंने हैरत से पूछा 'बैठे-बैठे यही सब तो करते रहते हैं दिनभर' कह कर भाभी चाय रख कर चली गईं।
मैंने सारी पर्चियां तरतीबवार देखीं ।एक से बढ़कर एक ग़ज़लें । मैं हक्का-बक्का रह गया ।'अबे तू कब से शायर बन गया?' सरवत का मुंह देखने लायक था, जैसे चोरी करते रंगे हाथ पकड़े गए हों ।'अरे ये सब ऐसे ही है ' । 'गजब हो भाई, इसको कम से कम किसी कॉपी या डायरी में लिख डालो । एक किताब छप जाएगी। 'छोड़ो यार, किताब का क्या करेंगे? कहते हुए सरवत ने लापरवाही भरे अंदाज़ में इस बार पलंग के गद्दे के नीचे हाथ घुसेड़ कर रखी वैसी ही ढेर सारी पर्चियां निकाल कर मेरे सामने बिखेर दीं । भाभी ने बताया कि पहले ऐसी न जाने कितनी पर्चियां झाड़ू मार कर कूड़ेदान के हवाले की जा चुकी हैं। ये तो मैं हूँ जो उन्हें बटोर बटोर कर गद्दे के नीचे डालती रहती हूँ वरना इनकी फिलॉस्फी तो ग़ज़लें लिख कूड़े में डाल वाली है। ये बात माननी पड़ेगी कि सरवत साहब बहुत खुशकिस्मत हैं इतनी समझदार और लगातार हौसला बढ़ाने वाली शरीके हयात उन्हें नसीब हुई वरना ज्यादातर शायरों की बीवियां उनकी शायरी पर कुढ़ती ही मिलेंगी। इस बात को सरवत साहब फ़क्र से सबको बताते भी हैं। बीवी ही नहीं उनके बच्चों ने भी हमेशा उन्हें उत्साहित किया है। उनकी ज़िंदादिली का सबसे बड़ा राज़ भी शायद यही है।
रवि लिखते हैं कि 'बहरहाल शायद मेरे बार-बार कहने और कुछ इनकी एक दोस्त की मेहरबानी से सरवत जमाल की ये सारी पर्चियां रेलवे की एक काली डायरी में दर्ज हो गईं । लंबे वक्त तक यह डायरी मेरे पास रही।'
सफर आसान पहले भी नहीं था
मगर तब ज़िंदगी भी ज़िदगी थी
*
वह कह रहा है कि दरवाजे बंद ही रखना
मैं सोचता हूं कि इस घर में खिड़कियां होती
*
दिन बुरे भी हों तो ये हैं दिन ही
रात रोशन भी हो तो काली है
*
जिंदा है सभी लेकिन
किस बदन में जुंबिश है
खाली पेट और ईमान
सख़्त आजमाइश है
फिर वो धीरे से बोला
पास में सिफारिश है
सन 2006 के आसपास सोशल मिडिया लोकप्रियता की और बढ़ रहा था। उसी दौर में सरवत साहब की ग़ज़लें फेसबुक और ब्लॉग में पोस्ट होने लगीं। धीरे लोग उन्हें पहचानने और पसंद करने लगे और उन्हें दिल्ली, भोपाल, पटना, इलाहबाद लखनऊ के अलावा देश के छोटे बड़े शहरों में होने वाले मुशायरों में बुलाया जाने लगा। पत्र-पत्रिकाओं में में भी उनके छपने की रफ़्तार बढ़ने लगी। उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा आप रवि राय जी द्वारा बयां की एक घटना से लगा सकते हैं। शिमला में आल इण्डिया मुशायरा था वसीम बरेलवी सहित देश के तमाम बड़े शायर उसमें शिरकत कर रहे थे। सरवत साहब ने अपने कलाम से मुशायरा लूट लिया। उनके शेरों पर दाद देने के लिए वसीम साहब अपनी कुर्सी से उठ कर माइक तक आये और उन्हें गले लगा लिया। मुशायरा ख़तम होने के बाद सारे शायर और आयोजक डिनर के लिए चले गए लेकिन सरवत जमाल को उनके चाहने वाले घेरे रहे। इतनी लोकप्रियता हासिल करने के बावजूद सरवत को मुशायरों का माहौल ज्यादा रास नहीं आया। अपने उसूलों से समझौता न करने वाले सर्वत का दिल मुशयरों में होने वाली चाटुकारिता को देख दुखी होता। उन्हें किसी ख़ेमे से जुड़ना ग़वारा नहीं है और मुशायरों में किस क़दर खेमे बाज़ी है ये बात आज किसी से छुपी नहीं है इसलिए मुशायरों में उन्होंने जाना बहुत ही कम कर दिया।
सरवत साहब से मेरा हालाँकि दस सालों से ज्यादा का राबता है एक बार उनके दोस्त मालिक जादा जावेद के साथ उनसे दिल्ली के बुक फ़ेयर में मुलाक़ात भी हुई है ।उनसे फोन पर इतनी बार बात हुई है कि रूबरू न मिल पाने का कभी मलाल नहीं रहा ।जब मैंने इस लेख के लिए उनसे उनकी ज़िन्दगी के मुश्किल दौर के बारे में पूछा तो बोले ' यार क्या करेंगे लोग मेरे और मेरी दुश्वारियों के बारे में जानकर, वो मुझे पढ़ लें इतना ही बहुत है।' सरवत साहब से बरसों से हो रही बातचीत के बाद मुझे पता लग चुका है कि ये इंसान बला का खुद्दार इंसान है और जब किसी की मदद का मौका आता है तो उस पर सब कुछ न्यौछावर करने में गुरेज़ नहीं करता। लोगों ने सरवत की इस भलमनसाहत का भरपूर फायदा उठाया है. बदले में बजाय उसका शुक्रगुज़ार होने के उसकी टांग ही खींची है। जिन्हें सरवत ने क़लम पकड़ना सिखाया वही उसे शायर मानने को तैयार नहीं हैं। ऐसे लोगों के मानने न मानने से सरवत साहब को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता उनका मानना है कि वक़्त अच्छे बुरे का फैसला खुद कर देगा। बहुत से लोकप्रिय वाह वाही लूटने वाले बड़े बड़े शायर आज गुमनामी के अँधेरे में खो गए हैं याद सिर्फ वो रह जाते हैं जिनके क़लाम में जान होती है लफ़्फ़ाज़ी नहीं।
सरवत साहब और उनकी की शायरी पर दैनिक जागरण के हिमांचल प्रदेश राज्य के संपादक श्री नवनीत शर्मा ने जो लिखा है उसके बाद और किसी के लिखने को कुछ खास नहीं बचता। वो लिखते हैं है कि 'सरवत जमाल किसी भी तौर आरी से घबराने का नाम है ही नहीं। ग़ज़ल हो या जीवन पेशेवर क्षेत्र हो या निजी इलाक़ा सरवत जमाल पत्थर खाते हुए ही आगे बढे हैं। ' उजाला कहाँ गया' कहने वाले रौशनी के तलबगार तो कई मिलेंगे लेकिन उजाले के मुरझाने के कारणों की तलाश करने वाला विरला ही होता है। सरवत की शायरी में आपको थके या घिसे पिटे शब्द नहीं मिलेंगे। शायद ही कोई ऐसा शब्द उनकी ग़ज़ल में हो जिसके लिए शब्दकोश देखना पड़े। ग़ज़ल की सकारात्मक प्रयोगशाला का बड़ा नाम है सरवत जमाल।'
सरवत जमाल जैसा कि मैंने पहले बताया अपने बारे में ज्यादा कुछ बताने में विश्वास नहीं रखते। आत्मप्रचार और यश लोलुपता से उनका तअल्लुक़ नहीं है इसलिए उनके बारे में जो कुछ भी लिख सका हूँ वो सब इसी किताब 'उजाला कहाँ गया' से ही लिया हुआ है। आखिर में पेश हैं और चुनिंदा शेर :
जो मेरे हाथ में माचिस की तीलियां होतीं
फिर अपने शहर में क्या इतनी झाड़ियां होतीं
पचास साल इसी ख़्वाब में गुज़ार दिए
बहार होती, चमन होता, तितलियां होतीं
*
सफर आसान पहले भी नहीं था
मगर तब जिंदगी भी जिंदगी थी
विभीषण और विभीषण बस विभीषण
भरत से कब किसी की दोस्ती थी
वो पत्थर पत्थरों पर मारता है
कभी ये भूल हमसे भी हुई थी
*
बचा है कोई भी, जो आज खुद को
बिना तोड़े मरोड़े पालता है
*
रोशनी की बहार है फिर भी
रोशनी का अकाल पहले सा
*
जश्न है, ख़मोशी है सब पड़े हैं सजदे में
इस जगह से राजा का क़ाफ़िला निकलता है
उम्र बीत जाती है सिर्फ ये समझने में
चक्रव्यूह से कैसे रास्ता निकलता है
*
सफाया जंगलों का हो गया फिर
अकेली सिर्फ़ आरी रूबरू थी
62 comments:
आप का शायरी व शायर से परिचय कराने का अद्भुत ,मौलिक अंदाज है।नए नए शायरों से परिचय कराते हैं आप।उनके चुनिंदा शेर भी लिखते हैं।नव पाठको में शायरी की उत्सुकता बढ़ाते हैं।आपको सादर प्रणाम करता हूँ।
सारा पढ़ा - सुंदर अभिव्यक्ति- सरवत जमाल मेरे भी पसंदीदा शायर
मेरी ज़िंदगी में एक बड़ा अफ़सोस रहा - नवनीत ने मुझे शिमला मुशायरे ( 7 दिसम्बर 2019 ) को शामिल होने को आग्रह भी किया और ज़ोर भी दिया, पर मुझे कोलकाता जाना ही था क्योंकि मेरी छोटी पोती का जन्मदिन था । इस मुशायरे की सदारत आदरणीय जनाब वसीम बरेलवी जी ने की । वसीम बरेलवी साहेब से मिलने , उनके सामने पढ़ने और उन्हें जानने का मौक़ा गँवाया।
विनोद गुप्ता'शलभ'
बहुत धन्यवाद... काश आप अपना नाम भी देते
बहुत सुन्दर और सार्थक।
वाह!
हमेशा की तरह फिर एक बार एक और शायर से, उसकी रचनाओं से उम्दा परिचय कराया आपने, हार्दिक बधाई।
सरवत भाई से ब्लॉग के समय से उनकी रचनाओं से तो परिचित रहा किंतु उनकी व्यक्तिगत जिंदगी से पहली बार किसी ने रूबरू कराया तो वो भी आपने।
पचास साल इसी ख़्वाब में गुज़ार दिए
बहार होती, चमन होता, तितलियां होतीं
नीरज जब दिखे उजाला कहाँ गया लिए
पता चला उजाले से क्यूँ गलतियाँ होती
चंद मोहन गुप्त "मुमुक्षु "
धन्यवाद जी
बहुत शुक्रिया गुप्ता जी
मुझे आपके ब्लॉग्स ही इतने अच्छे लगते है, किताब की जरूरत नही होती। बहुत खूबसूरत अंदाज़ आपके कहन का🙏
तुम तो यही कहोगे निकाला कहाँ गया
फिर ये सवाल है कि उजाला कहाँ गया
यह ठीक है कि आप की ख़ूराक बढ़ गई
लेकिन हमारे मुंह का निवाला कहाँ गया
चोरी हुई तो इसकी कोई फ़िक्र ही नहीं
सबको यही पड़ी है कि ताला कहाँ गया
बहुत सही कहा आम आदमी के दिल के जज़्बात की शायरी, मुफलिसी और बेबसी के हालात की शायरी।
जिस अंदाज़ में आप शायर का परिचय और उसकी सुंदर शायरी लिखते हैं,बहुत खूब है।
धन्यवाद जयंती जी
हर बार की तरह उम्दा और नई जानकारियां से भरपूर।
वाह नीरज जी, आनंद आ गया. उम्दा अशआर, बेहतरीन शायर और एक ख़ुशमिज़ाज इंसान से मिलवाने के लिए आपका धन्यवाद. सरवत भाई के कुछ शेर तो बस ताज़िन्दगी सहेज कर रखने लायक़ हैं. जैसे:
दिन बुरे भी हों तो हैं दिन ही
रात रौशन भी हो तो काली है
आभार आपका🙏
अनिल कुलश्रेष्ठ , सिंगापुर
बहुत धन्यवाद जी
बहुत शुक्रिया.. काश आप अपना नाम भी लिखते
नमस्कार
मेरे खैरख्वाह , मेरे बड़े सरवत जमाल साहिब का क्या कहना । उन के पास जो शायरी की सरवत (दौलत) है वही उन का जमाल (रूप) भी निखार देती है। ऐसे आला फिक्र शायर की शायरी से गुजरते हुवे हम सब भी मालामाल हो जाते है। । सरवत जमाल साहिब को बहुत मुबारक हो। हर ख़ास ओ आम में इस की लोकप्रियता के लिए दुआ करता हूं।
नीरज जी आप ने हमेशा की तरह पुस्तक और उसके रचयिता का भरपूर परिचय दे कर हक़ अदा कर दिया है। वैसे भी आप ने एक अनुपम शैली ढूंढ निकाली है अपनी बात कहने के लिए। दाद हाज़िर है
डॉक्टर आज़म भोपाल
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति सर👌🏼
पढ़कर आनन्द आया 🌹
मीतू कानोडिया
किताबों की दुनिया238
"उजाला कहां गया"शायर जनाब सरवत जमाल आज मैं अपनी बात बिस्मिल स ईदी साहिब के शेर से करुंगा इस शेर में मेरा फ़ायदा ज़ियादा और नीरज गोस्वामी जी को भी कोई नुक़सान नहीं है:-
"जिस शख्स से बिस्मिल से मुलाक़ात हुई है
वो शख़्स मुहब्बत के पयंबर से मिला है"।
अवामी सता का ब्लॉग तुझको रखे राम तुझ को अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे।
इस ब्लॉग के रुहे रवां जनाब नीरज गोस्वामी जी हीरों को तलाश करने में माहिर हैं और आज जो नयाब हीरा तलाशा गया है मोहतरम जनाब' सरवत जमाल साहब'
बिल्कुल नये अंदाज की शायरी।जमाल साहब ने यक़ीनन ज़ेरो ज़बर और इज़ाफ़तो से परहेज़ किया है शायरी का यही फन है कि अवाम तक आसान लफ़्ज़ों के ज़रिए अपनी बात कही जाए। मैं दिली मुबारकबाद पेश करता हूं जनाब सरवत जमाल साहब को। उनके चंद अशआर मेरी ऊपर कही बात की तस्दीक करते हैं।
१ इन दिनों ख़ामोश रहता हूं
आ गया है गुफ्तगू कराना
२ बहुत से नाम हैं इमदाद, राहत, क़र्ज़ हमदर्दी
समझ पाना कठिन है कौन सी शै भीख होती है
३ मैं न पंडित न राजपूत ने शेख़
सिर्फ इंसान हूं मैं सहमा हूं
४ हमारे दौर के बच्चों ने सब कुछ देख डाला है
मदारी को तमाशे पर कोई ताली नहीं मिलती।
मेरी और से आप दोनों को दिली मुबारकबाद
शुक्रिया।
ख़ाकसार
सागर सियालकोटी लुधियाना
Kya likhuN kya kahuN aaj to mere paas shabd hai hi nahiN Shayri par maiN apni baat rakhuN meri aukat hi nahiN ....ek shabad hai mere paas bus bemisal😍 । Meri khushnasibi hai ki maiN inheiN bhrata shree kahti hooN 2 ya 3 baar mulaqat bhi hui hai aur phone par to kai dafa baat hui aaj bhi yaad hai jab hindvi ki taraf se in par ek programe rakkha tha Jamaal e sarwat tab pahli dafa Mili thi।
Maine do sher likhe Facebook par to bhrata shree ka comment aaya badhi anokhi radeef li hai ghazal poori karo to maine kaha ke ye to maine panga le liya mushkil kaam hai
Bole mujhe apni behan par bhrosa hai aur us bharose ne ghazal poori karwa di aur isse pehle bhi ek ghazal inke comment "ghazal poori ho" ne mujh se likhwa di thi aaj kitna kuchh yaad aa gaya ❤️ abhi phone par baat bhi krungi aur kitab mangwaunfi bhi
Aap ki to kya hi taareef kruN jo nayab kaam kar rahe haiN sir 🙏
यद्यपि सर्वत भाई से मेरा संपर्क आभासी दुनिया तक सीमित रह है लेकिन कुछ अवसरों पर मोबाइल से भी बात हुई और संयोग की बात कि उनके बारे में जितना समझ सका उसकी पुष्टि आज के आलेख से होती है। एक बात और जो मुझे समझ आयी वह है फकीराना तबीयत, यह कितना सही है कभी मिलकर ही तय होगा।
शायरी में हमेशा फ़िक्र के लिए अलग ही स्थान रहा है और कुछ उजागर और कुछ छुपा हुआ कहने की जो परंपरा रही है उसका निर्वाह किये बिना शायरी में कुछ कमी लगती है। सर्वत भाई की शायरी में यह अभाव नहीं दिखना उनकी शायरी को विशिष्ट बनाता है।
आपकी पोस्ट में प्रस्तुत शेर इस फ़िक्र की पुष्टि करते हैं और पूरी ताक़त से प्रहार करते हैं।
ख़ूबसूरत अशआर पढ़ने को मिले साथ ही सरवत साहब के बारे में जानकारी ज़िन्दाबाद वाह वाह क्या कहना नीरज जी वही अनोखा अंदाज़ ख़ूब |
मोनी गोपाल 'तपिश'
वाह वाह सर पढ़ते ही रहो बस
Shukriya Rashmi ji
शुक्रिया तिलक भाई आपकी पारखी नज़र को सलाम
धन्यवाद भाईसाहब
अपने अल्फ़ाज़ से जयपुर में बैठा 'नीरज'
इक भिखारी को भी सुल्तान बना देता है
मैं क्या और मेरी बिसात क्या! कुछ उलटा पुलटा टांक लेता हूं और यार लोग तारीफ़ों के पल बांध देते हैं। हक़ीक़त बयान करूं तो यह होगी कि नीरज गोस्वामी जो काम वर्षों से करते चले आ रहे हैं और जाने कब तक करते रहेंगे, वह बहुत बड़ा काम नहीं, कारनामा है।
हर हफ़्ते एक किताब और शख़्सियत की समीक्षा, पहाड़ खोद कर दूध की नहर निकालने जैसा हुनर है। ऊपर वाला यह हुनर गिने चुने लोगों ही के हवाले करता है।
हम शायर, लेखक, कवि, कहानीकार, जो जी में आया, लिख कर प्रकाशक के हवाले कर देते हैं लेकिन नीरज गोस्वामी उन ऊबड़ खाबड़ पत्थरों को तराश कर, हीरे की शक्ल में पाठकों के समक्ष रखते हैं। आज भी उन्होंने ऐसा ही किया है।
अभिनेता सलमान ख़ान ने किसी फ़िल्म में कहा था:
"दोस्ती में नो थैंक्स, नो सॉरी"
मैं कहूंगा भी नहीं।
नो थैंक्स नो सॉरी... सही बोले ,बाकी हम कारनामा वारनामा नहीं कर रहे अपना शौक पूरा कर रहे हैं बस 🙏
🤓
आपके दिन में कितने घंटे होते हैं?!!! आप ग़ज़ल की कक्षा भी चलाते हैं, इतने शायरों से मुलाक़ात करवाते हैं, मुफ़्त किताबें दोस्तों को भिजवाते हैं! आपकी ऊर्जा बनी रहे यूँ ही!!
वाह नीरज भाई । किसी किताब से परिचय कराने का आपका अंदाज़ ही निराला है । बहुत अच्छा लिखा है आपने । और सरवत की शायरी का तो कहना ही क्या ! तमाम लोगों को शायरी का हुनर सिखाने वाले (ख़ाकसार ख़ुश किस्मत है) सरवत के बारे में यह तय करना मुश्किल है कि वे शायर बेहतर हैं या उस्ताद । ग़ज़ब तो यह है नीरज भाई कि उनका शायर और उनका उस्तादाना क़द, दोनों उन्हें बेहतरीन बना देते हैं, बल्कि बेजोड़, नायाब ! इस आलेख के लिए बधाई !
बड़े भाई नीरज जी को नमस्कार। आपकी ऊर्जा का कायल हूं। अन्य किताबों की तरह 'उजाला कहाँ गया' का परिचय बहुत उम्दा रहा। डालियाँ मोगरे की मेरे नजदीक महकती हैं। आप स्वस्थ और सानन्द रहें।
आपका अनुज
नवनीत शर्मा
जी मेरे पास जो घड़ी है, हैं तो उसमें भी 24 ही घंटे.. बाकी वक्त शौक की वजह से अपने आप निकल आता है 😂
शुक्रिया नवनीत भाई...सब ऊपर वाले की मेहरबानी से है...
सरवत जमाल नाम ही काफी है
लगभग 3 महीने पहले दैनिक जागरण में इसी पुस्तक की समीक्षा निकली थी, खूब नए-नए खयाल, खूब रस भरे शेर पढ़कर मैं खूब प्रफुल्लित था। आपके कहने पर एक दिन मैंने फोन भी किया था इनको लगा नहीं की पहली बार बात कर रहा हूं। उन्होंने पता भी दिया था अपना परीक्षाओं का दौर है उनसे जल्द मुलाकात भी होगी
त्रिपाठी
गोरखपुर
देवेंद्र भाई आपका तहे दिल से शुक्रिया...
बहुत बहुत शुक्रिया आज़म भाई...
Waah waah waah
Dil chahta tha ke
Padhte raho padhte raho aur ye mazmoon khatm na ho
Behtreen tabsara 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
आँधी में टूट जाने का ख़तरा नज़र में था,
सारे दरख़्त झुकने को तैयार हो गए.
इन दिनों ख़ामोश रहता हूं,
आ गया है गुफ़्तगू करना.
वाह क्या कहने.... यह अख़लाक़ और बुज़ुर्गी यक़ीनन लहजे में धूप के रास्तों से उतरी होगी. ज़िंदगी को इश्क़ की तरह जीने वालों को ही ऐसी दौलत अता होती है..... बेहतरीन पेशकश सर... थैंक्स
🌹🌹🙏🌹🌹
अशोक नज़र
Shukriya Bismil bhai
धन्यवाद ओंकार जी
आपका किताबों को डूब कर पढ़ने का शौक़ ओ ज़ौक़ और क़ारिईन के लिए पेश करने का मुन्फ़रिद अन्दाज़ लासानी है और मोहतरम सर्वत जमाल साहिब, जिन के कलाम से रू ब रू गेयटी थिएटर में हुई थी, मुझे भी उस मुशायरे में शिरकत करने का शरफ़ हासिल हुआ था, आज आपके ख़ूबसूरत अन्दाज़ में किए गए तब्सिरे से उनके मुकम्मल कलाम से रू ब रू होने का मौक़ा मिला। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया मोहतरम। आपके किताबों से तआरुफ़ करवाने का अन्दाज़ बेमिसाल है।
बहुत बहुत मुबारकबाद क़ुबूल फ़र्माइए मोहतरम
सलामतोशाद रहें
आमीन
नलिनी विभा
हिमाचल प्रदेश
क्या कहूँ
सर्वत मेरे प्रिय शायर है
लोग कहते हैं बदन से खाल तक
जबकि बिकते हैं यहाँ कंकाल तक
अब शिकारी की ख़ुशी मत पूछिये
कुछ परिंदे आ गए हैं जाल तक
इस तरफ़ तिरंगा है, उस तरफ़ हरा परचम
लाख कीजिये कोशिश, दरम्यान हैं चेहरे
मछलियाँ कितनी भी हुशियारी करें
जाल भी अबके बहुत बारीक हैं
आइना हूँ मैं दीवार पर
आइये, देखिये, जाइए
कितने ही शेर हैं
जी प्रदीप भाई...सच कहा आपने...शुक्रिया आपका..
गोस्वामी तो ब्राह्मण होते हैं पर मुझे लगता हैं नीरज जी का नाम नीरज जौहरी होना चाहिये उनके काम को देखते हुए वैसे भी प्राचीन भारत मे जाती कर्म आधारित ही थी,वैसे इस धृष्टता के लिये आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ
जिस तरह से जौहरी एक से बढ़कर एक नगीने और हीरे ख़ोज लाता हैं उसी तरह से आप हम लोगों के लिये शायरी की दुनियां से इतने बेहतरीन शायर ख़ोज लाते हैं
अब पढ़ने वालों की मुसीबत ये की पहले वो तारीफ़ किसकी करें जौहरी की या फिर उस नगीने की जिसे आप ख़ोज लाये
अब आपका लिखा हुआ पढ़े तो सब कुछ ऐसे लगता हैं की अपनी सगी आँखो के सामने ही घटित हो रहा हो, जैसे जैसे पढ़ते जाओ सभी पात्र और उनके बोले हुए शब्द एक चलचित्र की भांति आँखो के सामने आते चले जाते हैं और मेरे जैसे लोग मंत्रमुंग्ध से बस आपका लिखा हुआ पढ़ते चले जाते हैं
अब रही बात आपके लाये हुए नगीने की तो मेरे जैसा इंसान जिसे शायरी की समझ उतनी नहीं हैं उनकी तारीफ़ में क्या लिखें पर मेरा खुद का मानना हैं की शायरी वो ही सही और अच्छी हैं जो एक आम आदमी को समझ आये और उसके दिल को छू जाये
जैसे दुष्यंत कुमार जी का एक शेर हैं
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
शुरू के सात अश’आर पढ़ कर तो लगा आज किसी धीर गंभीर शायर को पकड़ लाये हैं नीरज जी पर आठवें को पढ़ कर हँसी छूटी अलग से और जब समझ मे आया तो दिल ने कहा बड़ी बात कही गयी हैं, बाकी ये शेर ऐसा ही हैं जैसे एक इन्श्योरेंस वाला आपके सामने बैठ कर आपकों और आपकी बीवी को आपके जन्नतनशीं होने के फ़ायदे गिना रहा हो और मज़े की बात ये की आप अपने मरने की बात सुनकर ख़ुश भी हो रहे हो
जैसे जैसे आगे पढ़ा, लगने लगा की आज नीरज जी कसम खा कर झूठ ही लिख़ने बैठें हैं अरे भई, अब बताओ यहाँ शायर इतने गंभीर अश’आर कह रहा हैं और नीरज जी कह रहे हैं की कहकहे लगाने वाला और हँसी मज़ाक वाला इंसान हैं
तौबा तौबा इतना झूठ
बर्दाश्त नही हो पा रहा
मन में आया अरे इस बार नीरज जी किताब पढ़ कर ही लिख रहे हैं या बस जो मन मे आया वो इधर पेल डाला
पर अब जितना मैं उन्हें जानता हूँ तो इतना तो पता हैं की झूठ वो बोलते नही और लिखते वो बहुत कसा हुआ हैं
मैंने सिर्फ एक सच कहा लेकिन
यूं लगा जैसे इक तमाशा हूं
मैं न पंडित न राजपूत न शेख़
सिर्फ़ इंसान हूं मैं, सहमा हूं
तो मैंने मान लिया भले अश’आर कितने तीखे और गंभीर हैं पर इन्हें लिख़ने वाला उतना ही हँसोड़ और कहकहे लगाने वाला होगा, शायद दिल के दर्द और जिंदगी में मिले गमों को छुपाने के लिये
खैर, अब इस शेर को पढ़ कर अपने वो दिन याद आ गये जब पास में चीज़े भले ही कम थी पर उनकी खुशी बहुत ज्यादा थी, सही में तब जिंदगी वास्तव में जिंदगी थी
सफर आसान पहले भी नहीं था
मगर तब ज़िंदगी भी ज़िदगी थी
जिंदा है सभी लेकिन
किस बदन में जुंबिश है
खाली पेट और ईमान
सख़्त आजमाइश है
फिर वो धीरे से बोला
पास में सिफारिश है
अब इन पे क्या कहा जाये, आज के इंसान की पूरी पोल पट्टी ही खोल डाली
रोशनी की बहार है फिर भी
रोशनी का अकाल पहले सा
आपके कहें अनुसार मैंने मान लिया की मोहतरम सरवत जमाल साहब एक जिंदादिल और हँसी मज़ाक पसंद शख़्सियत हैं, पर एक बात मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की साथ मे वो बेहद विनम्र इंसा भी हैं जिस तरह से उन्होंने आपके लिये बेहद नर्म और वजनदार शब्दों का प्रयोग किया हैं वो ये ही दर्शाता हैं इस मुकाम पे पहुँच कर भी वो स्वभाव से बहुत नरम दिल हैं
शबीना अदीब साहिबा का शेर उन पर बहुत सही बैठता हैं
खानदानी रईस हैं वो मिज़ाज रखते हैं नर्म अपना,
तुम्हारा लहजा बता रहा है, तुम्हारी दौलत नई-नई है।
वो शब्दों और अहसासों के जादूगर हैं और उसी तरीक़े से उन्होंने अपनी तारीफ़ में कहे शब्दों को बहुत आसानी से आपकी तरफ़ मोड़ दिया हैं
ख़ैर, एक बार फिर से आपका तहेदिल से शुक्रिया इस बराए मेहरबानी के लिये की आपने इतने बेहतरीन शायर से हमारा तआ'रुफ़ कराया
और साथ मे बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम सरवत जमाल साहब का जिन्होंने आम आदमी की जुबान में इतनी बेहतरीन और आसानी से समझ आने वाली जिंदगी के मुक्तलिफ़ हिस्सों से जुड़ी ही शायरी कही
अमित थापा
अमित भाई हमेशा की तरह आपकी टिप्पणी मेरी पोस्ट पर भारी है...जबरदस्त.. वाह बरखुरदार जियो...
Take away गज़लें लिख कूड़े में डाल। बहुत अच्छा लेख। बधाई नीरजजी।
बहुत खूबसूरत समीक्षा है। सरबत भाई सच मे बहुत मजाकिया हैं फोन उठाओ तो आदाब् के बाद कि बात मजाक से शुरू होती है। साफदिल इंसान हैं । उइसे ब्लाग पर बहुत कुछ सीखने को मिला। भगवान उन्हें लंबी आयु और सुख समृद्धि दें। पुस्तक के लिए उन्हें हार्दिक बधाई।
बहुत ही सुन्दर ।
आपके अन्दाजे बयाँ के क्या कहने |
कि किसी भी शायर के बारे मे जब आप लिखते है तो जैसे लगता है। आप रूबरू है।
बहुत बधाई ।
- उमेश मौर्य
धन्यवाद आनंद जी
धन्यवाद निर्मला जी
धन्यवाद उमेश जी
जय हो
धन्यवाद रोहित जी
In dinon khamosh rahta hun,
Aa gaya hai guftgoo Karna y
Donon sajjan lajwab...
That's wonderful, Aapki samiksha kitab ko padhne ki jigyasa jaga deti hai.
Alka Sharar
Mumbai
Shukriya Vishal
वाह... अति सुन्दर. "उजाला कहाँ गया" एक उत्कृष्ट गज़ल संग्रह, परिचय मात्र से ख़ूबसूरत अहसास होता है, शायर, लेखक जमाल साहब का और उनकी कृति का ! नीरज जी आपका भागीरथ प्रयास सदा से पाठकों को एक हरीतिमा देता है, आभार आपका. ��������
याब क्या मिसाल दूं मैं तुम्हारे ब्लॉग की
नीरज जी आप सिर्फ लिखते ही नहीं , क़माल करते हैं
एक से एक नायाब हीरों को तराश कर चकाचौंध कर देने वाली चमक पैदा करने का हुनर है आप में । ऐसा खूबसूरत तरीके से लिखते हो कि चुम्बक की तरह चिपक जाता है और लेख पूरा पढ़ कर ही दम लेता है। आपके हुनर को तहे दिल से सलाम ।
धन्यवाद अलका जी
नीरजा जी बहुत धन्यवाद 💐🌹💐
बेहद शुक्रिया आपका...लेकिन नाम पता नहीं लग पाया
शायरी के साथ शायर से रूबरू करा दिया आपने। इस शानदार प्रस्तुति हेतु हार्दिक आभार।
बहुत सरल..सहज और आलातरीन शायर सरवत जमाल साहब के व्यक्तित्व और शायरी के बारे में कुछ भी कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा है।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
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