बहुत पहले की बात है 'दीपक भारतदीप' की लिखी सिंधु -केसरी पत्रिका में एक कविता पढ़ी थी , आज किताबों की दुनिया की इस श्रृंखला में उसी कविता की शुरुआत की इन पंक्तियों से अपनी बात शुरू करते हैं , पूरी कविता तो वैसे भी अब याद नहीं :-
सादगी से कही बात
किसी को समझ नहीं आती है
इसलिए कुछ लोग
श्रृंगार रस की
चाशनी में डुबो कर सुनाते हैं
अलंकारों में सजाते हैं
तो कुछ वीभत्स के विष से डराते हैं
आज हम उसी सादी सरल और सीधी जबान के उस्ताद शायर और उनकी लाजवाब किताब की चर्चा करेंगे, जो अपने अशआरों को न अलंकारों से सजाता है और ना ही वीभत्स रस से डराता है,जिनके लिए मयंक अवस्थी जी के शेर का मिसरा-ए-ऊला " सादगी पहचान जिसकी ख़ामुशी आवाज़ है " एक दम सटीक बैठता है। धीरज धरिये उनका नाम भी बतातें हैं लेकिन पहले जरा उनके ये शेर देखें :
नहीं चल पाउँगा मैं साथ उसके
ये दुनिया बेसबब ज़िद पर अड़ी है
हवा ने फाड़ दी तस्वीर लेकिन
अभी इक कील सीने में गड़ी है
मियां इस शहर में किस को है फुर्सत
हमारी लाश खुद जाकर गड़ी है
निकल आया अँधेरे में कहाँ मैं
मिरी परछाईं बिस्तर पर पड़ी है
शायर का नाम बताने से पहले शुक्रिया करना चाहूंगा एक बेहतरीन शायर छोटे भाई समान "अखिलेश तिवारी " जी का जिनके सौजन्य से इस बाकमाल शायर की शायरी से रूबरू का मौका मिला। हमारे आज के शायर हैं 1954 शाहजहाँपुर उ.प्र. में जन्में जनाब "सरदार आसिफ खां "जिनकी किताब "पत्थर में कोई है" की चर्चा हम करेंगे।
अगर चेहरा बदलने का हुनर तुमको नहीं आता
तो फिर पहचान की परची यहाँ जारी नहीं होती
समंदर से तो मज़बूरी है उसकी, रोज़ मिलना है
बहुत चालाक है लेकिन नदी, खारी नहीं होती
हवा की शर्त हम क्यों मानते क्यों इस तरह दबते
हमें गर सांस लेने की ये बीमारी नहीं होती
सरदार आसिफ उस शायर का नाम है जिसे चाहे अब तक वो शोहरत न मिली हो जिसके वो हकदार हैं लेकिन उनकी शायरी आम शायरी से बिलकुल अलग है। बकौल जनाब इफ़्तेख़ार अमाम साहब "आसिफ न पुरानी शायरी करता है न जदीद बल्कि इसका तो अपना एक अलग रास्ता है जिसे सोच-शायरी का नाम दिया जा सकता है।" अपनी शायरी के प्रति उदासीन इस शख्श ने न जाने क्यों अपनी कुछ ग़ज़लें फाड़ दीं जला दीं या खो दीं अगर उन्हें आज जांच परख कर छापा जाता तो हिंदी /उर्दू अदब में बड़ा इज़ाफ़ा हो सकता था।
घर पे हमारे नाम की तख्ती नहीं लगी
शोहरत की शक्ल ही हमें अच्छी नहीं लगी
ऊँगली को एक खार ने ऐसा दिया है ज़ख्म
आँगन में फिर गुलाब की टहनी नहीं लगी
बच्चे सभी उदास हैं क्या खोलें मुठ्ठियाँ
शायद किसी के हाथ वो तितली नहीं लगी
क्या कह रहे हैं आप उसे छू के आये हैं ?
ज़िन्दा हैं कैसे आपको बिजली नहीं लगी
बी. एस.सी , एम. ऐ. ,बी.एड करने के बाद आसिफ साहब शाहजहाँपुर में कई वर्षों तक शिक्षक रहे और फिर पी. सी.एस. के इम्तिहान पास कर जिला अधिकारी पद पर टिहरी गढ़वाल में नियुक्त हुए। बाद में इसी पद पर देहरादून ,ग़ाज़ियाबाद , इटावा ,बदायूं , बिजनौर और मुरादाबाद जनपद में कार्यरत रहे। 1983 में प्रोन्नत होकर सहारनपुर मंडल के उपनिदेशक (पंचायती राज) पद पर नियुक्त हुए और वर्तमान में उपनिदेशक (पंचायती राज) मुरादाबाद के पद के साथ साथ उपनिदेशक (समाज कल्याण) मुरादाबाद मण्डल का कार्य भार भी संभाल रहे हैं।
हो हल्ला कर रहा था बहुत अपनी प्यास का
देखा जो मेरा हाल तो सहरा हुआ ख़मोश
क्या फिर खंडर में रात किसी ने किया क़याम
है इक चिराग ताक में रखा हुआ ख़मोश
पहचानने लगेगी उसे जल्द ही वह भीड़
इक शख्श है जो कोने में बैठा हुआ ख़मोश
इस कोने में बैठे ख़मोश शख्श को भीड़ ने पहचाना और खूब पहचाना क्योंकि ये शख्श बामक़सद शायरी करता है , किसी को सामने रख कर, मुशायरे या कवि सम्मेलन की तालियां और वाह वाह को ध्यान में रखते हुए शायरी नहीं करता। वो बहुत इमानदारी से फरमाते हैं कि " मैं बहुत पढ़ा लिखा आदमी भी नहीं हूँ कि जो चाहे जब चाहूँ लिख लूँ। मैं खालिस इल्हाम हूँ , मैंने भाषाई कुंठाओं को तोड़ कर ग़ज़ल रुपी एक अहम विद्या को नि :तांत व्यक्तिगत तौर पर समझने परखने का प्रयास किया है "
हैं मयकदे में आप, मुझे क्यों हो ऐतराज़
दुःख यह हुआ कि आप का बेटा भी साथ है
बेवा हुई तो आना पड़ा उसको माँ के घर
ग़ुरबत है , वो है ,छोटा सा बच्चा भी साथ है
हालां कि उसके कब्र में लटके हुए हैं पाँव
लेकिन नए मकान का नक्शा भी साथ है
"पत्थर में कोई है" से पहले आसिफ साहब का देवनागरी में पहला ग़ज़ल संग्रह 'दरिया-दरिया रेत " के बाद उर्दू में "चाँद काकुल और मैं " एवं 'डूबते जज़ीरे" ग़ज़ल संग्रह मंज़र-ऐ-आम पर आ कर मकबूल हो चुके हैं। जितना उन्होंने लिखा है उसका छोटा सा अंश ही उनकी इन चार किताबों पाया है। इसके अलावा उनकी दो संग्रह देवनागरी और उर्दू में अभी शाया होने को हैं। किडनी की बीमारी से लड़ते हुए उन्होंने अपनी शायरी पर उस परेशानी की आंच नहीं आने दी और लगातार लिखते रहे हैं।
किसी का पाँव जल सकता है भाई
दिया क्यों रख दिया है रौशनी में
यही तो जब्र मुझ पर हो रहा है
किसी को देखना होगा किसी में
परी वरना तिरी ऊँगली पे नाचे
कमी कुछ है तिरी जादूगरी में
अज़ानें शोर कितना कर रही हैं
ख़लल पड़ने लगा है बंदगी में
हिंदी उर्दू के बीच पुल का काम करती उनकी ग़ज़लें आम इंसान की उसी की ज़बान में कही गयी ग़ज़लें हैं। आसिफ साहब कम छपते हैं मगर हिंदी उर्दू के लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में उनकी ग़ज़लें आती रहती हैं। हिंदी के 'संवेद' और उर्दू के 'शबखून जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में उनकी कई कई ग़ज़लें एक साथ छपी हैं। इसके अलावा इंतेसाब , अलअंसार, तहरीके अदब, बज़्में सुखन, सुख़नवर आदि पत्रिकाओं में लगातार इनकी ग़ज़लें छपती हैं। पाठकों का एक बड़ा वर्ग उनकी नयी ग़ज़लों के के इंतज़ार में पलक पांवड़े बिछाए रहता है। 'शायर' में इनकी शायरी के ऊपर मुकम्मल गोशा छपा है।
जो माथे पर तुम्हारे बल पड़ा है
तो क्या क़द में कोई तुमसे बड़ा है
मैं अब सूरज को सर पर रख चुका हूँ
मिरा साया कहीं मुर्दा पड़ा है
अगर आँखों में रहना सीख जाये
तो क़तरा भी समंदर से बड़ा है
'पत्थर में कोई है' ग़ज़ल संग्रह सन 2013 में "राही प्रकाशन" शाहजहाँपुर से प्रकाशित हुआ है जिसे आप 'काकुल हाउस बिजलीपुरा शाहजहाँपुर , सेठी बुक स्टाल , बिजनौर या इमरान बुक डिपो ,419 मटिया महल , जामा मस्जिद ,दिल्ली कर मंगवा सकते हैं। इसके अतिरिक्त और कोई जानकारी देने में मैं सक्षम नहीं हूँ। आईये अगली किताब की तलाश में निकलने से पहले पढ़ते आसिफ साहब की एक ग़ज़ल के ये बेजोड़ शेर :
तेरा तिलिस्म अब भी है दीवारो-दर में कैद
लगता है जैसे अब भी मिरे घर में कोई है
यादों के फूल हैं कि दरीचे की चांदनी
कहती है गहरी नींद कि बिस्तर में कोई है
हालाँकि उसने गौर से देखा नहीं मुझे
शक उसको हो गया है कि पत्थर में कोई है
25 comments:
हर बार की तरह लाजवाब प्रस्तुति ..
सरदार आसिफ खां की किताब "पत्थर में कोई है" की सार्थक चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
लाजवाब
अगर चेहरा बदलने का हुनर तुमको नहीं आता
तो फिर पहचान की परची यहाँ जारी नहीं होती
वाह वाह ,सरदार साब की ग़ज़ले सच्ची व सीधी बीत कहने वाली ग़ज़ले हैं। इतनी साफ़गोई ग़ज़ल मे हिम्मत की बात है। बहुत अच्छा व सच्चा लेखन।
आपकी समीक्षा व भूमिका की क्या कहें सर हमेशा की तरह लाजवाब है।
Ashhaar Aur Un par Tabsaraa Bahut Achchhaa Lagaa Hai .Neeraj Bhai ,Aap Ghazalkar Ke Saath - Saath Aalaa Gadyakaar Bhee Hain .
Shubh Kaamnaayen .
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वाह। बहुत खूब
अनूप शुक्ल
Jabalpur
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बेहतरीन...
Bakul Dev
Jaipur
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हवा ने फाड़ दी तस्वीर लेकिन
अभी इक कील सीने में गड़ी है
वाह !
Rajkumar Kumawat
Jaipur
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Shaandar. Ashaar
Gyan Parkash Vivek
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Behtreen !
Pran Sharma
U.K.
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Bohut bohut sukriya sir aapka behad achchi jankari hame di aapne
Ismail Patel
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वाह । हमेशा की तरह ही शानदार।
नादान परिंदा
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ज़रूर पढूँगा
Dwijendra Dwij
Kangra
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Bahut umda Neeraj Ji , aap sach mein adab ki khidmat kar rahe hain ...
Bharat Bhushan Pant
Lucknow
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Shukriya Sir...Bhaut Khoob
Ravi Dutt Sharma
Delhi
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waah waah Neeraj Bhai...lajawab... Dharam yug mubariq ho
Chaand Shukla Hadiabadi
Denmark
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umda
Udan Tashtari
Canada
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बधाई
Prakash Badal
H.P.
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आसिफ साहब का एक खूबसूरत शेर ..................उसने मुस्कराके हाल पूछा है ........तंज़ करने मे भी सलीका है ....
Pramod Kumar
Delhi
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वो देखता भी कैसे तुम पत्थर में जा छुपे,
वर्ना वो धड़कनों से तुम्हें छु के देखता
Bhagwan Srivastava
Jaipur
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waaqaii bakamaal shaayer hain Sardaar Asif Saheb
Nasir Yusufzai
Nahaan
H.P.
एक अच्छे शायर से परिचय करवाने के लिए शुक्रिया
bahut badhiya..
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ख़ूबसूरत शायरी के लिए सरदार आसिफ साहब को और सुन्दर चयन के लिए आपको हार्दिक बधाई
Dwijendra Dwij
Kangra
कमाल के शेर
हवा की शर्त हम क्यों मानते क्यों इस तरह दबते
हमें गर सांस लेने की ये बीमारी नहीं होती
इस सादगी पे कौन कुर्बान न होगा । हर बार की तरह एक उम्दा शायर से मिलवाने का शुक्रिया। सरदार आसिफ खाँ साहब की कलम को सलाम।
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