Monday, December 19, 2011

किताबों की दुनिया - 64

हमारी किताबों की दुनिया श्रृंखला के आज के शायर आप सब के जाने पहचाने हैं. आप सब के याने उन लोगों के जो अंतर जाल पर या ब्लोगिंग में सक्रीय हैं. आप समय पर उनकी बेहतरीन ग़ज़लों और उत्साहवर्धक टिप्पणियों से रूबरू होते रहते हैं. जी हाँ खूब पहचाना हमारे आज के शायर हैं जनाब कुँवर 'कुसुमेश और हम उनकी लाजवाब ग़ज़लों की किताब "कुछ न हासिल हुआ" लेकिन जिसे पढ़ कर हमें बहुत कुछ हासिल हुआ, का जिक्र करेंगे.



जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे
आदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ

आज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर
अब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ

ये कहावत है पुरानी सी मगर सच्ची है
तू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ

चमकती हुई हर चीज़ भले ही सोना न हो लेकिन चमकती हुई शायरी लिए हुए उनकी ये किताब किसी खजाने से कम नहीं. किताब हाथ में लेते ही उसे पढने का मन हो जाता है. बेहतरीन कागज़ पर निहायत खूबसूरत ढंग से प्रकाशित ये किताब शायरी की अधिकांश किताबों से कुछ अलग ही है. भारतीय जीवन बीमा निगम से सेवा निवृत हुए कुँवर जी का जन्म तीन फरवरी सन उन्नीस सौ पचास में हुआ. गणित जैसे शुष्क विषय में पोस्ट ग्रेजुएशन करने में बाद उनका पिछले तीस वर्षों से शायरी जैसी सरस विधा से जुड़ना किसी चमत्कार से कम नहीं.

आज के अखबार की सुर्खी हमेशा की तरह
फिर वही दंगा, वही गोली हमेशा की तरह

धर्म के मसले पे संसद में छिड़ी लम्बी बहस
मज़हबों की आग फिर भड़की हमेशा की तरह

आप थाने में रपट किसकी करेंगे दोस्तों
चोर जब पहने मिले वर्दी हमेशा की तरह

कुँवर जी अपनी लेखनी सामाजिक मूल्यों के गिरते स्तर पर खूब चलाई है दोहों और ग़ज़लों के माध्यम से उन्होंने समाज के अनेक अच्छे बुरे पहलुओं को करीब से देख अपने पाठकों तक पहुँचाया है. पारंपरिक अंदाज़ से हटकर इनकी अधिकतर ग़ज़लें रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से जुडी हैं.

सांप सड़कों पे नज़र आयेंगे
और बांबी में सपेरा होगा

वक्त दोहरा रहा है अपने को
फिर सलीबों पे मसीहा होगा

आदमियत से जिसको मतलब है
देख लेना वो अकेला होगा

'कुँवर' जी की शायरी की सबसे बड़ी खासियत है उसकी भाषा.हिंदी उर्दू ज़बान का अद्भुत संगम उनकी शायरी में झलकता है. सरल शब्दों के प्रयोग से वो अपने अशआर में आम इंसान की परेशानियों और खुशियों को बहुत खूबी से दर्शाते हैं. उनकी शायरी आम जन की शायरी है. पढ़ते वक्त लगता है जैसे वो हमारी ही बात कर रहे हों, येही कारण है के पढ़ते वक्त उनके अशआर अनायास ही ज़बान पर चढ़ जाते हैं और हम उन्हें गुनगुनाने लगते हैं. ये ही एक शायर के कलाम की कामयाबी है.

बरी होने लगे गुंडे, लफंगे
अदालत क्या, यहाँ की मुंसिफी क्या

इसे इंसान कह दूं भी तो कैसे
न जाने हो गया है आदमी क्या

कभी लाएगी तब्दीली जहाँ में .
'कुंवर' मुफ़लिस की आँखों की नमी क्या

कुंवर जी की रचनाएँ आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारित होती रहती हैं. उनकी रचनाओं पर पुरुस्कारों की झड़ी सी लगी है ,वर्ष १९९६ में उन्हें कादम्बनी द्वारा पुरुस्कृत भी किया जा चुका है इसके अलावा खानकाह सूफी दीदार चिश्ती कल्याण, जिला ठाने, महाराष्ट्र द्वारा 'शहंशाहे कलम' की मानद उपाधि से उनका अलंकरण, प्रतिष्ठित सरस्वती साहित्य वाटिका द्वारा उन्हें 'सरस्वती साहित्य सम्मान, .रोटरी क्लब लखनऊ द्वारा सम्मान , नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति तथा शबनम साहित्य परिषद् सोजत सिटी द्वारा 'महाराणा सम्मान, नगर सुरक्षा क्लब देहरादून और महाराष्ट्र दलित साहित्य समिति भुसावल द्वारा 'काव्य साधना, पुरूस्कार भी मिल चुका है.इन सब पुरुस्कारों के अलावा उन्हें सबसे बड़ा सम्मान उनके दिन दूनी रात चौगनी गति से बढ़ते पाठकों द्वारा मिला प्यार है.

बुरा न देखते, सुनते, न बोलते जो कभी
कहाँ हैं तीन वो बन्दर तलाश करना है

कयाम दिल में किसी के करूँगा मैं लेकिन
अभी तो अपना मुझे घर तलाश करना है

सही है बात 'कुंवर' अटपटी भी है लेकिन
कि अपने मुल्क में रहबर तलाश करना है

शायरी की इस बेजोड़ किताब को 'उत्तरायण प्रकाशन, लखनऊ' ने प्रकाशित किया है. किताब प्राप्ति के लिए आप प्रकाशक को उनके पते : उत्तरायण प्रकाशन, एम्-१६८, आशियाना, लखनऊ -२२६०२, पर लिख सकते हैं या फिर उनसे मोबाईल न पर बात कर मंगवाने का तरीका पूछ सकते हैं. सबसे अच्छा और कारगर तरीका है 'कुँवर,जी को उनके मोबाईल न 09415518546 पर उनकी लाजवाब शायरी के लिए दाद देते हुए उनसे किताब प्राप्ति का आसान रास्ता पूछना. आपको जो रास्ता पसंद हो चुनें लेकिन इस छोटी और खूबसूरत किताब को अपनी लाइब्रेरी में जरूर जगह दें. आईये चलते चलते उनकी एक और ग़ज़ल के तीन शेर पढलें-

सांस चलती भी नहीं है, टूटती भी है नहीं
अब पता चलने लगा, ये मुफलिसी भी खूब है

हो मुबारक आपको यारों दिखावे का चलन
आँख में आंसू लिए लब पर हंसी भी खूब है

हाथ में लाखों लकीरों का ज़खीरा है 'कुँवर'
आसमां वाले तेरी कारीगरी भी खूब है

58 comments:

Atul Shrivastava said...

बढिया पुस्‍तक चर्चा
आभार.....

रश्मि प्रभा... said...

वक्त दोहरा रहा है अपने को
फिर सलीबों पे मसीहा होगा... aapki charchaa kitaab ko amratw deti hai

सदा said...

हो मुबारक आपको यारों दिखावे का चलन
आँख में आंसू लिए लैब पर हंसी भी खूब है
बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... आभार आपका ।

डॉ टी एस दराल said...

वाह ! कुंवर जी के शे'र जिंदगी के बेहद करीब हैं ।
सच्ची शायरी ।

Mayank Awasthi said...

क़ुँवर कुसुमेश जी अर्से से यानी जब से उनसे परिचय हुआ तब से 1998 से मेरे आदरणीय हैं उनकी ज़ुबान हे नहीं उनका गला भी बहुत प्रभावशाली है --ग़ज़लों का प्रस्तुतीकरण बहुत जानदार है !! इस संग्रह के लिये उन्हें बधाई !! प्रशंसा ही प्रशंसा के हकदार हैं !! आरम्भ से ही !! नीरज जी आप इतनी संतुलित और प्रभावी समीक्षा कैसे लिखते हैं ??!! शायर का चित्र ही बना देते हैं शब्दों से !! बहुत सुन्दर !! बधाई !!

कुमार संतोष said...

वाह ! कुंवर जी के शे'र तो हमेशा दिल को छु जाते हैं !
बढियां पुस्तक चर्चा !
आभार !

मेरी नई रचना "तुम्हे भी याद सताती होगी"

दिगम्बर नासवा said...

ब्लॉग जगत में कुंवर जी किसी परिचय के मुहताज नहीं ... उनकी ग़ज़लें और तमाम रचनाएं नया अंदाज़ लिए ... आज की चिंता लिए ...
नीरज जी ... आपने हमेशा की तरह चार चांद लगा दिए हैं अपनी समीक्षा में ... बहुत ही लाजवाब अंदाज़ ...

Anonymous said...

ठीक लगी आज की पुस्तक..........आखिर में आप शायद दो बार एक ही पैरा लिख गएँ हैं |

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

कुंवर कुशुमेश जी को पढ़ कर काफी अच्छा लगा आदरणीय नीरज सर.....
उनके ग़ज़ल तो कमाल होते हैं....
वक्त दोहरा रहा है अपने को
फिर सलीबों पे मसीहा होगा.... वाह!

..... दोहराव इस पोस्ट में भी दृष्टिगोचर हो रहा है... :)
सादर.

vandana gupta said...

कुंवर जी की गज़लें तो खुद ही बोलती हैं हर गज़ल और हर शेर जैसे एक कहानी बयाँ कर जाता है । अच्छा लगा आज हमारे एक ब्लोगर मित्र की पुस्तक का भी जिक्र यहाँ हुआ………कुंवर जी को पुस्तक के लिये हार्दिक बधाई और आपका आभार्।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कुँवर कुसुमेश जी को पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है ... आपकी नज़र से पुस्तक का परिचय अच्छा लगा .. आभार ..

kshama said...

Kitabon kee duniyaa me aane ke pashchyat nikalne ka man nahee karta!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

कुंअर कुसुमेश जी की शायरी मेरे दिल के करीब है ! आज उनकी किताब की समीक्षा पढ़कर मेरी दीवानगी और बढ़ गयी !
नीरज की समीक्षा कुसुमेश जी के व्यक्तित्व और कृतित्व का आईना है !
आभार !

daanish said...

कुँवर कुसुमेश जी मेरे भी पसंदीदा शायरों में से ही हैं
उनकी ग़ज़लों में सामाजिक सरोकार और आम इंसान की जिंदगी के
विभिन्न पहलुओं को भली भाँति देखा/पढ़ा/महसूस किया जा सकता है
उनकी ग़ज़लों का विषय-वस्तु में हमेशा नवीनता और विविधता का
अनुपम और अनूठा मिश्रण रहता है ,, जो प्रशंसनीय है
नीरज जी ,,,
एक ईमानदार और सफल शायर से साक्षात्कार करवाने हेतु
आभार और अभिवादन स्वीकारें .

रेखा said...

कुसुमेशजी के शेर तो वाकई लाजबाब होते हैं ......बहुत सुन्दर प्रस्तुति

प्रवीण पाण्डेय said...

सरल शब्दों में गहरी बात, परिचय का आभार।

Udan Tashtari said...

Kunwar ji ko niyamit padhte aaye hain aur padhwate bhi rahe hain. :)

Ek se ek gazab shayari karte hain..Aaz yahan unki kitab ka zikr bahut achcha laga...badhai.

सांप सड़कों पे नज़र आयेंगे
और बांबी में सपेरा होगा

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

इस शानदार संग्रह के लिए कुसुमेश जी को हार्दिक बधाई और जानकारी के लिए आपका आभार।

हरीश प्रकाश गुप्त said...

कुसुमेश जी को बहुत-बहुत बधाई और नीरज जी, उत्सुकता जगाने वाली प्रस्तुति के लिए आपका आभार।

Satish Saxena said...

आदमियत से जिसको मतलब है
देख लेना वो अकेला होगा...

कुसुमेश भाई लाजवाब हैं ...
शुभकामनायें आपको !

DR. ANWER JAMAL said...

कयाम दिल में किसी के करूँगा मैं लेकिन
अभी तो अपना मुझे घर तलाश करना है

सही है बात 'कुंवर' अटपटी भी है लेकिन
कि अपने मुल्क में रहबर तलाश करना है

सरल शब्दों में गहरी बात,

बढिया पुस्‍तक चर्चा
आभार.....

Urmi said...

कुसुमेश जी के शेर लाजवाब लगा! दिल को छू गई हर एक शेर! बहुत खूब! बहुत ही बढ़िया चर्चा रहा ! सुन्दर प्रस्तुती!

अरुण चन्द्र रॉय said...

कुम्रेश जी के गजलों और दोहों से परिचित हूं.... आपकी प्रतुतिकरण उसे अलग रंग देता है... सुन्दर समीक्षा ...

Kunwar Kusumesh said...

मेरे ताज़ा-तरीन ग़ज़ल संग्रह का ज़िक्र यहाँ किया आपने.आभारी हूँ,नीरज जी.

amrendra "amar" said...

bahutbadhiya pustak aur utni hi acchi hi uski sameeksha .kuwer sahab aapko bahut bahut badhai

नीरज गोस्वामी said...

आदरणीय नीरज जी,
बहुत खूब...क्या अंदाज़ है वाह..वाह..
कुँवर 'कुसुमेश जी से परिचय कराने और उनकी
किताब "कुछ न हासिल हुआ" के चुनिन्दा अशआर
पढ़वाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया...और
कुँवर 'कुसुमेश जी को दिली मुबारकबाद...



जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे
आदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ
वाह..वाह...
आप थाने में रपट किसकी करेंगे दोस्तों
चोर जब पहने मिले वर्दी हमेशा की तरह
हक़ीक़त बयाँ की है....
बुरा न देखते, सुनते, न बोलते जो कभी
कहाँ हैं तीन वो बन्दर तलाश करना है
अच्छा ख़याल...
हाथ में लाखों लकीरों का ज़खीरा है 'कुँवर'
आसमां वाले तेरी कारीगरी भी खूब है
बहुत सुन्दर...
दुआ गो हूँ कि ज़ोर-ए-क़लम बरक़रार रहे..
सादर,
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

अशोक सलूजा said...

जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे
आदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ||
vah: Aaj ke dourpar steek sher..
kunver ji ko bahut-bahut badhai!

सुज्ञ said...

पुस्तक समीक्षा पूरी निर्पेक्षता से हुई है।

कुसुमेश जी की इस रचना के लिए अभिनन्दन।

alka mishra said...

कुसुमेश जी तो हमारे पड़ोसी हैं ,इनके घर में तो संगीत की नदियाँ बहती हैं.
बधाई कुसुमेश जी को
और धन्यवाद आपको.

Vandana Ramasingh said...

जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे
आदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ

बड़ी सच्चाई से लिखते हैं कुसुमेश जी ....आभार आपका उनकी पुस्तक से परिचय करवाने का

Shah Nawaz said...

कुँवर 'कुसुमेश' जी की बात ही कुछ और है...

Bharat Bhushan said...

पुस्तक पर चर्चा बहुत सुंदर बन पड़ी है. कुँवर कुसुमेश जी को बधाई और आपका आभार.

Sonroopa Vishal said...

आदरणीय कुंवर जी की गजलों एवं दोहों को पढ़ती रही हूँ ...गागर में सागर जैसा लिखते हैं कुंवर जी !

आपने उनके गजल - संग्रह की बेहतरीन समीक्षा की है!
बधाइयाँ ........

कविता रावत said...

Pushtak sameeksha ko lajawab dhang se prastut karne ka aapka ek alag hi rochak andang hai....puri pustak ek laghu saar ke roop mein hamare samne jiwant ho uthti hai..
Kuwar kushmesh ji ko badhai aur aapka aabhar!

दीपक गर्ग said...

नीरजजी,
खूबसूरत और दिलकश शायरी पढ़ने के लिए काफी सारी वेबसाइट खंगालनी पड़ती थी,आपके ब्लॉग देखने के बाद सब से छुट्टी.
आपकी मेहनत और शौक का सबको फ़ायदा ही फ़ायदा.शब्द ढूँढने पड़ रहे हैं आपको धन्यवाद देने के लिए.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

एक बढ़िया पुस्तक पर सुन्दर चर्चा...

Smart Indian said...

'शहंशाहे कलम' कुँवर कुसुमेश जी की पुस्तक की जानकारी और इस साक्षात्कार के लिये आभार, उन्हें शुभकामनायें!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

बढिया समीक्षा... प्रेरित करती है कुछ हासिल करने को :)

महेन्‍द्र वर्मा said...

कुंवर जी की शायरी लाजवाब है।
आपके माध्यम से उनके व्यक्तित्व के अनजाने पहलुओं से भी अवगत हुआ।
मैंने पाया है कि गणित के अध्येता बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं।
कुसुमेश जी के प्रति अशेष शुभकामनाएं।

इस्मत ज़ैदी said...

सांप सड़कों पे नज़र आयेंगे
और बांबी में सपेरा होगा


धर्म के मसले पे संसद में छिड़ी लम्बी बहस
मज़हबों की आग फिर भड़की हमेशा की तरह


कुंवर कुसुमेश जी का ब्लॉग हमारे लिये एक दर्सगाह है
बहुत ख़ूबसूरत लिखते हैं और सार्थक भी
’कुछ न हासिल हुआ’ के लिये उन को बहुत बहुत बधाई
और
आप का बहुत बहुत शुक्रिया

ऋता शेखर 'मधु' said...

कुँवर कुसुमेश सर की रचनाएँ पढ़ती रही हूँ,यहाँ पर समीक्षा के रूप में पढ़कर बहुत अच्छा लगा|
मेरे ब्लाग पर आने के लिए हार्दिक आभार|

Suman said...

कुँवर 'कुसुमेश जी की रचनाएँ हमेशा मुझे बहुत बढ़िया लगती है !
नीरज जी, आपने समीक्षा बहुत अच्छी की है आभार !

Amrita Tanmay said...

कुँवर जी को पढ़ना अपने आप में सुखद अनुभूति सा है . हमें नाज़ है उनपर और खुद पर भी .

Rohitas Ghorela said...

हो मुबारक आपको यारों दिखावे का चलन

आँख में आंसू लिए लब पर हंसी भी खूब है


हाथ में लाखों लकीरों का ज़खीरा है 'कुँवर'

आसमां वाले तेरी कारीगरी भी खूब है


बेमिशाल है कुँवर जी के शे'र इनका कोई जवाब नहीं अब तो कायल हो गया हूँ मैं इनका,

उम्दा......... और इससे अवगत करवाने के लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद |


आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक अभिनन्दन, मैंने मेरा ब्लॉग upload कर लिया है|

प्लीज़ visit my ब्लॉग...

Onkar said...

bahut sundar sher. dhanyawad.

Gyan Dutt Pandey said...

मुझे तो लगता है जितनी अच्छी किताबें होती हैं, उनसे ज्यादा अच्छी आपकी समीक्षा होती है!

जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे
आदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ


फेसबुकी/ट्विटरी दुनियाँ के बारें में बिल्कुल सही पंक्तियाँ! :)

Ankit said...

आज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर
अब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ

वक्त दोहरा रहा है अपने को
फिर सलीबों पे मसीहा होगा

क्या कहने, वाह वाह. इस किताब से हासिल करने के लिए बहुत कुछ होगा. कुँवर जी को बहुत बहुत बधाइयाँ

Kailash Sharma said...

सांप सड़कों पे नज़र आयेंगे
और बांबी में सपेरा होगा

वक्त दोहरा रहा है अपने को
फिर सलीबों पे मसीहा होगा

...कुँवर जी को तो ब्लॉग पर पढते ही रहते हैं, आज उनकी पुस्तक की समीक्षा पढ़ कर बहूत अच्छा लगा और पुस्तक पढने की जिज्ञासा बढ़ गयी. बहुत बहुत बधाई.

सदा said...

कल 28/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, कौन कब आता है और कब जाता है ...

धन्यवाद!

Sunil Kumar said...

कुंबर कुशुमेश जी के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा मेरी भी उनसे बात हुई हैं उनकी ग़ज़ल के बारे में कहने की हिम्मत नहीं :)

Prakash Jain said...

Behtareen Gazalein...

Pushtak charcha ke liye dhanyavaad...

www.poeticprakash.com

देवांशु निगम said...

नीरज जी,
नमस्ते,
बहुत ही बढ़िया लगी समीक्षा...पूरी पुस्तक पढ़ने का मन है, जल्दी ही पढ़ी जायेगी...जो भी पंक्तियाँ आपने उद्धृत की सभी अच्छी लगी..मेरी पसंदीदा..
सांप सड़कों पे नज़र आयेंगे
और बांबी में सपेरा होगा

इतनी बढ़िया समीक्षा के लिए धन्यवाद...

vikram7 said...

जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे
आदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ

बेमिशाल

vikram7: आ,मृग-जल से प्यास बुझा लें.....

Ankur Jain said...

आज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर
अब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ

बहुत बहुत शुक्रिया इतनी सुन्दर गजल पढ़ाने के लिए और शायर का परिचय देने के लिए... नव वर्ष की शुभकामनायें...

Bharat Bhushan said...

आपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

Shiv said...

एक और बढ़िया पुस्तक चर्चा.

'कुंवर' जी की भाषा के बारे में आपने जो लिखा, उससे बिलकुल सहमत.हिंदी और उर्दू शब्दों के संयोजन वाली ग़ज़ल समझ में भी आती है और
ग़ज़ल के प्रति आम आदमी के नज़रिए को भी बदलती है.

किताब से कोट किये गए सारे शेर लाजवाब हैं. एक से बढ़कर एक.

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल said...

बहुत बढ़िया शायर से रु-ब-रु कराया... आभार !

Pyar Ki Kahani said...

Interesting Love Shayari Shared.by You. Thanks A Lot For Sharing.
प्यार की कहानियाँ