Monday, March 21, 2011

किताबों की दुनिया - 48

उम्मीद करता हूँ कि आप सब होली, अपने अपने अंदाज़ में, खूब धूम धाम से मनाने के बाद आज वापस अपने काम पर लौट आये होंगे. जिनके लिए होली एक त्योंहार है वो इसकी मस्ती से आज नहीं तो कल बाहर निकल आयेंगे लेकिन जिनके लिए होली एक मानसिक अवस्था है वो इसका मजा जब चाहे तब उठाते रहेंगे. इस बात को स्पष्ट करने के लिए अपनी एक ग़ज़ल का मतला और मक्ता आपको याद दिला देता हूँ:

करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना के होली है
हिलोरें ले रहा हो मन ,समझ लेना के होली है

अगर महसूस हो तुमको कभी, जब सांस लो "नीरज "
हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना के होली है

आज की पोस्ट होली पर नहीं है. किताबों की दुनिया पर है. बात शुरू करने से पहले चलिए आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ. अरे मुंह मत बिचकाइये, मानता हूँ के आप जीवन में पूछे जाने वाले प्रश्नों में पहले से ही उलझे हुए हैं उसपर अब किताबों की दुनिया जैसी पोस्ट में भी पूछा गया प्रश्न आपका मूड ख़राब कर सकता है, लेकिन इस प्रश्न का सम्बन्ध इस किताब के शायर से है तो आप पूछने दो न ,जवाब अगर आपको पता है तो क्या कहने और अगर नहीं पता तो हम अभी बता ही देंगे. प्रश्न है "आप भारत के उस एक मात्र शायर का नाम बताएं जिसकी पच्चीस, जी हाँ पच्चीस, ग़ज़लें देश के दो अलग अलग विश्व विद्यालयों के स्नातकोत्तर (हिंदी) पाठ्य क्रम में निर्धारित हुईं याने पढाई जाती हैं ? " देख रहा हूँ के बहुत कम लोग हैं जो इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए अपना हाथ खड़ा किये हैं बाकी अधिकांश मेरी तरह बगलें झाँक रहे हैं. बात को रबड़ की तरह लम्बा न खींचते हुए आपको बता दूं के आज किताबों की दुनिया श्रृंखला में हम शायर ज़हीर कुरैशी साहब की किताब " पेड़ तन कर भी नहीं टूटा " का जिक्र करेंगे.


आग में जल गया रस्सियों का बदन
फिर भी बल रस्सियों में बचा रह गया

वो जो पूरी तरह पारदर्शी लगा
कुछ तो उसके भी मन में छुपा रह गया

पंख मिलते ही पंछी उड़े पेड़ से
पेड़ अपनी जगह पर खड़ा रह गया

पिछले पैंतीस सालों के दौरान कही गयी ऐसी एक नहीं बल्कि अपनी सरल विचारवान और प्रयोग धर्मी लगभग आठ सौ ग़ज़लों से जहीर साहब देश के सर्वोपरि गज़लकार के रूप में आसानी से चिन्हित किये जा सकते हैं. हिंदी के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में उनकी ग़ज़लों का शामिल होना इसका पुख्ता प्रमाण है. ये ऐसा कारनामा है जो हिंदी ग़ज़लों के इतिहास में पहली बार हुआ है.

जो लोग थे जटिल वो गए हैं जटिल के पास
मिल ही गए सरल को हमेशा सरल अनेक

बिखरे तो मिल न पाएगी सत्ता की सुंदरी
सयुंक्त रह के करते रहे राज 'दल' अनेक

लाखों में कोई एक ही चमका है सूर्य सा
कहने को, कहने वाले मिलेंगे ग़ज़ल अनेक

"पेड़ तन कर भी नहीं टूटा " किताब जिसे अयन प्रकाशन , महरौली, दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है में ज़हीर कुरैशी साहब की चुनिन्दा एक सौ एक ग़ज़लें शामिल की गयी हैं. इस किताब से पहले ज़हीर साहब की ग़ज़लों की पांच किताबें "लेखनी के स्वप्न", "एक टुकड़ा धूप" ,"चांदनी का दुःख", "समंदर ब्याहने आया नहीं" और "भीड़ में सबसे अलग" प्रकाशित हो चुकी हैं.ज़हीर साहब की सभी ग़ज़लें उनकी सोच की नुमाइंदगी बहुत ख़ूबसूरती से करती हैं. एक बेहतरीन इंसान जो अपने आसपास हो रही घटनाओं से जुड़ा हुआ है लोगों की ख़ुशी और गम में अपने को शामिल करता है, ही एक बेहतरीन शायर हो सकता है. पैंतीस वर्षों के निरंतर सृजन काल के बावजूद ज़हीर साहब कहते हैं : मुझे लगता है कि अभी बहुत कुछ कहा जाना शेष है. मेरे अपने लिए, ग़ज़ल के फार्म में काव्य जीवन का सर्वश्रेष्ठ कहा जाना बाकी है अभी .

मानों घर भर भूल बैठा था ठहाकों का हुनर
खिलखिलाने की वजह बच्चे की किलकारी बनी

आप जैसी ही तरक्की मैं भी कर लेता, मगर
मेरे रस्ते की रूकावट मेरी खुद्दारी बनी

वो नज़र अंदाज़ कर देती है औलादों का जुर्म
बाँध कर पट्टी निगाहों पर जो गांधारी बनी

इस किताब में दिए एक इंटरव्यू में ज़हीर साहब अपने बारे में कहते हैं " एक संवेदनशील कवि के सामने तरह तरह की भीड़ होती है - लाभ की, लोभ की, कामना की, रिश्तों की, आलोचना की, प्रतिरोध की. इन तमाम स्तिथियों से लाभ, भीड़ में संतृप्त होकर ही प्राप्त किये जा सकते हैं. चूंकि मैं भीड़ में रहते हुए भी भीड़ को तटस्थ भाव से देखने की कोशिश करता रहा हूँ , इसलिए मेरे हिस्से में तो हानियाँ ही हानियाँ आती रही हैं."

ख़ुशी मुख पर प्रवासी दिख रही है
हंसी में भी उदासी दिख रही है

हमारे घर में घुस आई कहाँ से
कुटिलता तो सियासी दिख रही है

उसे खाते हैं खुश हो कर करोंड़ों
जो रोटी तुमको बासी दिख रही है

इसी किताब के अंत में हिंदी ग़ज़ल के प्रबल समर्थक ज़हीर साहब कहते हैं: "हिंदी ग़ज़ल आज की याने विचार युग की ग़ज़ल है. वो कोठों पर गई जाने वाली संगीत उन्मुख ग़ज़ल नहीं बल्कि खेतों, दफ्तरों, कारखानों में काम करते रफ-टफ लोगों की भावनाओं की निर्मल अभिव्यक्ति है. इसलिए रदीफ़, काफिया, अरूज़ का पालन करते हुए भी हिंदी ग़ज़ल अपने बर्ताव, अपनी भाव भंगिमा के आधार पर उर्दू ग़ज़ल से एकदम भिन्न नज़र आती है."

हिम पिघलते ही अभिमान का
सूर्य निकला समाधान का

आदमी में ही मौजूद है
मत पता पूछ शैतान का

काले पैसे को करना है श्वेत
अब यही सोच है 'दान' का

स्वागतम शब्द से भी अधिक
मूल्य होता है मुस्कान का

अगर आप दिल्ली शहर के बाशिंदे नहीं हैं तो इस किताब की प्राप्ति का सबसे आसान तरीका है कि आप "अयन प्रकाशन" के श्री भोपल सूद से उनके मोबाईल नंबर 09818988613 पर बात करें और उनसे इस किताब प्राप्ति का आसान रास्ता पूछ लें. मृदु भाषी भोपल साहब से बात करके आपको किताब प्राप्ति का रास्ता तो मिल ही जाएगा साथ ही आनंद भी प्राप्त होगा, यकीन न हो तो आजमा के देखें. किताब पढने के बाद आप और कुछ करें न करें लेकिन ग्वालिअर निवासी ज़हीर साहब को उनके मोबाइल 09425790565 पर बात करके इस किताब के लिए बधाई जरूर दें.

उसके तुरंत बाद ही बदली है ज़िन्दगी
जीवन में चंद फैसले इतने अहम् रहे

अनुयायियों ने धर्म की सूरत बिगाड़ दी
हिंसा में सबसे आगे अहिंसक धरम रहे

वो अपने बल पे दौड़ को जीते नहीं कभी
जो लोग, जोड़ तोड़ में सबसे प्रथम रहे

आशा है आपको ज़हीर कुरैशी साहब के कलाम की बानगी पसंद आई होगी. ज़हीर साहब के लेखन को पूरी तरह से देखने जानने समझने के लिए हमें उनका समग्र कहा पढना पड़ेगा तब तक इस पोस्ट में दिए शेर पढ़ कर आप उनके हुनर का अंदाज़ा तो आसानी से लगा ही पाए होंगे. अब हम ऐसे ही एक और विलक्षण शायर की किताब ढूँढने निकलते हैं तब तक आप उनके ये शेर और पढ़ लें :

मंदिर या मस्जिदों की तरफ मन नहीं किया
तर्कों ने आस्था का समर्थन नहीं किया

जो दोस्त भी बनाये, रखे उनसे फासले
यारों को अपनी आँख का अंजन नहीं किया

अपने लिए भी जीने के अवसर किये तलाश
परिवार के ही नाम ये जीवन नहीं किया

36 comments:

संजय भास्‍कर said...

नीरज जी
प्रणाम !
रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|

संजय भास्‍कर said...

पुस्तक और रचनाकार से परिचय कराने के लिये आभार..

Neeraj said...

हिंदी ग़ज़ल, उर्दू ग़ज़ल ?!?
हे भगवान, या खुदा !?!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

किताबों की दुनियाँ के माध्यम से हमें बहुत सी अच्छी ग़ज़लें और शेर पढ़ने का मौका मिल जाता है !
ज़हीर कुरैशी साहब की ग़ज़लें तो सीधे दिल में उतरती हैं !
बहुत आभार, नीरज जी,

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बहुत खूब !
शुक्रिया आपका....
=====================

ZEAL said...

.

आप जैसी ही तरक्की मैं भी कर लेता, मगर
मेरे रस्ते की रूकावट मेरी खुद्दारी बनी...

Very appealing lines .

.

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत सुंदर परिचय कराया आपने,अच्छा संग्रह है.
लेकिन यह भी कुछ कम नहीं है--
करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना के होली है
हिलोरें ले रहा हो मन ,समझ लेना के होली है
अगर महसूस हो तुमको कभी, जब सांस लो "नीरज "
हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना के होली है
--------------होली की शुभकामनायें...

vandana gupta said...

आग में जल गया रस्सियों का बदन
फिर भी बल रस्सियों में बचा रह गया

वो जो पूरी तरह पारदर्शी लगा
कुछ तो उसके भी मन में छुपा रह गया

पंख मिलते ही पंछी उड़े पेड़ से
पेड़ अपनी जगह पर खड़ा रह गया

गज़ब के शायर से मिलवाया हमेशा की तरह एक नायाब मोती ढूँढ कर लाये हैं……………आभार्।

राजेश उत्‍साही said...

जहीर साहब को हमने एक जमाने में सरिता और मुक्‍ता पत्रिका में खूब पढ़ा। सच कहें तो गज़ल का परिचय वहीं से हुआ।

रश्मि प्रभा... said...

prastuti shayar kee achhi hai , per ruk gaye yahan

करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना के होली है
हिलोरें ले रहा हो मन ,समझ लेना के होली है

अगर महसूस हो तुमको कभी, जब सांस लो "नीरज "
हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना के होली है

Anonymous said...

नीरज जी शानदार तोहफा है इस होली पर........कुरैशी साहब का कलम कबले तारीफ़ है कुछ शेर जो बहुत अच्छे लगे -

आप जैसी ही तरक्की मैं भी कर लेता, मगर
मेरे रस्ते की रूकावट मेरी खुद्दारी बनी

उसके तुरंत बाद ही बदली है ज़िन्दगी
जीवन में चंद फैसले इतने अहम् रहे

अनुयायियों ने धर्म की सूरत बिगाड़ दी
हिंसा में सबसे आगे अहिंसक धरम रहे

शारदा अरोरा said...

taareefe kabil hain ye hindi के sher ....jजहीर साहब ko badhaaee ...

रजनीश तिवारी said...

पढ़ने की बहुत , आदत तो नहीं पर आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत इच्छा होती है । जहीर साहब का परिचय भी आपके माध्यम से ही हो रहा है ।
आपकी ये लाइनें बहुत ही अच्छी लगीं :
करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना के होली है
हिलोरें ले रहा हो मन ,समझ लेना के होली है

अगर महसूस हो तुमको कभी, जब सांस लो "नीरज "
हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना के होली है
बधाई एवं शुभकामनाएँ

pran sharma said...

ACHCHHEE SHAAYREE SAAMNE LAANE KA
JO BEEDA AAPNE UTHAAYAA HAI VAH
PRASHANSIY HEE NAHIN ULLEKHNIY BHEE
HAI . ZAHEER QURESHI KEE GAZALON
KO PADHNAA ACHCHHA LAGTA HAI .

Kunwar Kusumesh said...

ज़हीर कुरैशी जी के ग़ज़ल संग्रह की समीक्षा और संग्रह के कुछ अशआर पढ़े .बहुत अच्छे लगे.

सौरभ शेखर said...

Zaheer kuraishi ek aise samkalin shayar hain jinke jariye ham me se kai logon ko gazal ki vidha se prem hua hai.Unki nai pustak ki samiksha ke liye Neeraj jee apko bahut dhanyavad.

vijaymaudgill said...

laga k thumke teri gali main sheershak k sath dainik bhaskar k punjab aur haryana edition main apke thumke shape hain aur uske sath apki photo bhi shapi hai jis par kisi artist ne apni kalakari dikhai hai jo acchi lag rahi hai. umeed karta hu apne dekhi hogi. agar nahi dekhi to kripya apna mail ID mujhe bata de main apko pdf ya jpg file mail kar doonga. vaise apki gali main aana accha laga

shukriya

डॉ टी एस दराल said...

होली की परिभाषा --माशा अल्लाह , क्या बात है ।

पंख मिलते ही पंछी उड़े पेड़ से
पेड़ अपनी जगह पर खड़ा रह गया

जो लोग थे जटिल वो गए हैं जटिल के पास
मिल ही गए सरल को हमेशा सरल अनेक

मानों घर भर भूल बैठा था ठहाकों का हुनर
खिलखिलाने की वजह बच्चे की किलकारी बनी

कितनी सरलता है , इन अशआर में ।
बहुत सुन्दर परिचय कराया ज़हीर कुरैशी साहब से । आभार ।

प्रवीण पाण्डेय said...

सरल को सरल मिलते हैं। परिचय का आभार।

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लेख, ओर कविता परिचय करवाने के लिये आप का धन्यवाद

Udan Tashtari said...

जहीर साहब से परिचय कराने का आभार...आनन्द आ गया....

आपकी लायब्रेरी रडार पर है उड़न तश्तरी के...संभलियेगा.

इस्मत ज़ैदी said...

अनुयायियों ने धर्म की सूरत बिगाड़ दी
हिंसा में सबसे आगे अहिंसक धरम रहे

हिम पिघलते ही अभिमान का
सूर्य निकला समाधान का

उसे खाते हैं खुश हो कर करोंड़ों
जो रोटी तुमको बासी दिख रही है

आप जैसी ही तरक्की मैं भी कर लेता, मगर
मेरे रस्ते की रूकावट मेरी खुद्दारी बनी

bahut sundar ! dhanyavaad ek achchhe shayar aur umda shayeri separichay karane ke liye

lekin

करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना के होली है
हिलोरें ले रहा हो मन ,समझ लेना के होली है

अगर महसूस हो तुमको कभी, जब सांस लो "नीरज "
हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना के होली है

in panktiyon ka bhi jawab naheen bahut sundar

mridula pradhan said...

अगर महसूस हो तुमको कभी, जब सांस लो "नीरज "
हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना के होली है
wah......wah.....wah....

mridula pradhan said...

आदमी में ही मौजूद है
मत पता पूछ शैतान का

काले पैसे को करना है श्वेत
अब यही सोच है 'दान' का
bemisaal.....

अरुण चन्द्र रॉय said...

किताबों की दुनियाँ के माध्यम से हमें बहुत सी अच्छी ग़ज़लें और शेर पढ़ने का मौका मिल जाता है !
"आप जैसी ही तरक्की मैं भी कर लेता, मगर
मेरे रस्ते की रूकावट मेरी खुद्दारी बनी

उसके तुरंत बाद ही बदली है ज़िन्दगी
जीवन में चंद फैसले इतने अहम् रहे

अनुयायियों ने धर्म की सूरत बिगाड़ दी
हिंसा में सबसे आगे अहिंसक धरम रहे "


ज़हीर कुरैशी साहब की ग़ज़लें तो सीधे दिल में उतरती हैं !

सदा said...

आप जैसी ही तरक्की मैं भी कर लेता, मगर
मेरे रस्ते की रूकावट मेरी खुद्दारी बनी...

बहुत खूब ...।

मुकेश कुमार तिवारी said...

नीरज जी,

श्री जहीर साहब से अब बात होनी बाकी है, गज़लों का खूब रस लिया आपकी पोस्ट पर। क्या कमाल की लेखनी पाई है आपने और विनम्रता भी।

होली के अंक में दैनिक भास्कर में आपको देखकर बहुत अच्छा लगा।

होली की शुभकामनाओं के साथ।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

डॉ .अनुराग said...

ज़हीर कुरैशी साहब को खूब पढ़ा है किताबो पत्रिकाओं में ...हिंदी शब्दों का इस्तेमाल वे खूब करते है अपनी गजलो में ....

ताऊ रामपुरिया said...

परिचय के लिये बहुत आभार, होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.

रामराम

महेन्‍द्र वर्मा said...

जहीर साब के बारे में पढ़कर काव्य पिपासा की अनोखी संतृप्ति हुई।
आपके प्रति आभार नीरज जी, उनसे और उनके कलाम से परिचय कराने के लिए।

SATISH said...

Respected Neeraj Sahab,
Once again thanks very much for introducing a poet and his lovely
poetries in this post.

Very beautiful Shers...

आप जैसी ही तरक्की मैं भी कर लेता, मगर
मेरे रस्ते की रूकावट मेरी खुद्दारी बनी
and....

उसे खाते हैं खुश हो कर करोंड़ों
जो रोटी तुमको बासी दिख रही है

Regards,
Satish Shukla 'Raqeeb'

ushma said...

'पेड़ तनकर भी नही टूटा '! जहीर कुरैशी साहब की गजलें पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ! आपकी समीक्षा बहुत ही दिल चस्प है ! आभार !

daanish said...

ज़हीर कुरैशी साहब के बारे में
विस्तृत जानकारी पढ़ कर
बहुत अच्छा लगा
डॉ विनय मिश्र जी ( अलवर ) ने भी
इन पर बहुत लिखा है

आभार स्वीकारें .

Manish Kumar said...

खालिस हिंदी शब्दों का चयन, छोटी बहरों की ग़ज़लों में भी उतनी ही मारक क्षमता और समसामयिक विषयों को छूते उनके शेर एक अलग ही अंदाज़ के लगे ये शायर। आभार इनकी क१तियों से मिलवाने का।

निर्मला कपिला said...

हमेशा की तरह सुन्दर फूल चुन कर लाये है। जहीर जी को बधाई आपका आभार

Unknown said...

धन्यवाद नीरज जी। ग़ज़ल के लिए आपका समर्पण
भाव सराहनीय है। शुभ कामनाएँ