जगजीत सिंह जी की गयी एक बहुत मशहूर गज़ल है , शायद आपको याद हो, देर लगी आने में तुमको...उस ग़ज़ल में एक शेर है :-
झूट है सब तारीख हमेशा अपने को दोहराती है
अच्छा मेरा ख़्वाबे-जवानी थोडा सा दोहराए तो
ग़ज़ल के इस शेर में शायर ने इस बात को नकार दिया है के इतिहास अपने आपको दोहराता है...जबकि ये बात झूट नहीं है, सच है...बहुत सारी घटनाएँ जीवन में दुबारा घटित होती हैं. अब आपके साथ हुईं या नहीं मुझे नहीं पता लेकिन मेरे साथ हुई है. जो घटना दिसंबर 2009 में मेरे साथ घटित हुई वो हू बहू फिर से अगस्त 2010 में घटित हो गयी. मैंने अपनी किताबों की दुनिया-20 में इस बात का जिक्र किया है, जो सज्जन उस घटना को वहाँ जा कर न पढ़ना चाहें उनके लिए उसे फिर से यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.
"शायरी करना तो अभी का शौक है लेकिन शायरी पढना बहुत पुराना.बरसों से अच्छे शायरों को पढता रहा हूँ और ये काम अभी भी बदस्तूर जारी है. इसी शौक की वजह से मैं आपका तारुफ्फ़ नयी नयी किताबों से करवाने का प्रयास करता हूँ. किताबों के आलावा नेट पर भी जहाँ कहीं सम्भावना नज़र आये नज़रें दौड़ाता रहता हूँ. 'अनुभूति' मेरी प्रिय साईट है जिसे 'पूर्णिमा वर्मन' जी चलाती हैं.इस साईट पर हर हफ्ते अंजुमन के तहत नए अशार पढने को मिलते हैं. अपनी इसी खोज के दौरान मैं चंद ऐसी ग़ज़लों से रूबरू हुआ जिन्होंने मुझ पर गहरा असर डाला.
शायर का नाम देखा तो मुझे अनजाना लगा. मुझे अनजान शायरों को पढने में बहुत मजा आता है क्यूंकि आप नहीं जानते की वो कैसे हैं, कैसा लिखते हैं, क्या सोचते हैं याने आपके मन में उनकी कोई पूर्व छवि बनी हुई नहीं होती. आप उन्हें निष्पक्ष हो कर पढ़ते हैं. इसी में मजा आता है. वहीँ अनुभूति की साईट पर उनका परिचय भी दिया हुआ था जिसमें उनकी ग़ज़ल की किताब का जिक्र भी था. अनुभूति से ही उनकी मेल का पता मिला और तुरंत उन्हें पुस्तक भेजने का अनुरोध कर डाला."
जी हाँ आप ठीक समझे जिस शायर का जिक्र ऊपर किया गया है वो हैं जनाब संजय ग्रोवर साहब और जिस शायर का जिक्र मैं अब करने जा रहा हूँ उनका नाम है जनाब 'अनमोल शुक्ल अनमोल'. तारीख़ ने अपने आपको दोहराया या नहीं बताइए ? संजय जी की जगह अनमोल जी से परिचय हो गया बस ये ही परिवर्तन हुआ. याने अनमोल साहब की शायरी मैंने अनुभूति पर पढ़ी उनसे संपर्क किया और उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक अपनी किताब मुझे भेज दी.
बहुत कम शायर होते हैं जो अपने नाम को सार्थक करते हैं, अनमोल जी उनमें से एक हैं. नाम अनमोल और शायरी भी अनमोल. तो आईये हम आज की पोस्ट में उनकी इस अनमोल शायरी का लुत्फ़ उठाते हैं , जिसे उन्होंने अपनी किताब "दरिया डूब गया" में समेटा है.
किसी के प्यार में हस्ती मिटा देना हंसी है क्या ?
वही जानेगा जिसने प्यार की गहराइयाँ जी हैं
अगर कुछ काम अच्छा है तो रखती याद हैं नस्लें
बदन पर अपने गिलहरियों ने जैसे धारियां जी हैं
कोई कुछ भी कहे 'अनमोल' को लेना है इससे क्या
ग़ज़ल में उसने केवल सत्य की बारीकियां जी हैं
कितना पानी रोक लेता होगा उन आँखों का बाँध
जिनको बच्चे का खिलौना बेबसी लगने लगे
हे प्रभो आंधी कोई सारे मुखौटे ले उड़े
जिससे हर इक आदमी फिर आदमी लगने लगे
उसके दिल के ज़ख्म का अंदाज़ होगा क्या भला
बात भी करता है वो तो शायरी लगने लगे
एक कोशिश ये हमेशा ही रही 'अनमोल' की
हो ग़ज़ल उसकी उसकी मगर वो आपकी लगने लगे
जिस मुफलिस की स्यानी बेटी घर में बैठी हो
उसको तो अपना ही गाँव, गली घर चुभता है
परदेसी ने लिखा है जिसमें, लौट न पाऊँगा
विरहन को उस खत का अक्षर-अक्षर चुभता है
कोई त्यौहार क्या निर्धनों के लिए
ईद-होली-दिवाली, सभी कैक्टस
देखिये, स्वार्थवश हो रहा आजकल
आदमी के लिए आदमी कैक्टस
उसकी बेरोजगारी का संकेत है
उसके चेहरे पे उगती हुई कैक्टस
सीखने की प्रबल इच्छा, मेहनत और लगन के कारण ही बिजनौर में लगभग नौ वर्ष तक बिना किसी साहित्य गोष्ठी में गए, बिना किसी साहित्यकार से मिले अनमोल जी स्वांत सुखाय के लिए छूट-पुट लिखते रहे. सन 2003 में उनकी भेंट श्री मनोज 'अबोध' जी से हुई और उसके बाद ही उनके लेखन में सुधार आता चला गया. डा. अजय जनमेजय ने ग़ज़ल के व्याकरण को समझने में उनकी बहुत सहायता की और उन्हें जनाब निश्तर साहब से मिलवाया जो बाद में उनके गुरु बने. जनाब 'दिलकश बदायूँनी' और 'निश्तर खानक़ाही' जैसे उस्तादों की रहनुमाई में अनमोल साहब की शायरी संवरी और परवान चढ़ी.
जो जितना नम्र है उतनी ही उसकी हैं सरल राहें
किसी दरिया को बहने से कभी पत्थर ने रोका क्या
हमेशा पोंछती रहती है आंसू अपने बच्चों के
सुना तुमने, किसी माँ का कभी आँचल भीगा क्या
हमेशा देश से माँगा, दिया क्या देश को तुमने
कभी इस बात को गंभीरता से तुमने सोचा क्या
यूँ तो मैंने महफ़िल महफ़िल आधी उम्र बिताई है
पर जो पल भरपूर जिए हैं वो मेरी तन्हाई है
सबके आगे देखा उसको हाथों में पानी थामे
चुपके चुपके जिसने मेरे घर को आग लगाई है
एक न इक दिन ढल जाता है सबके जलवों का सूरज
सारी उम्र, बताओ किसकी चलती कब ठकुराई है
अनमोल जी की इस किताब में तरेसठ गज़लें हैं जिनमें जिंदगी के सैंकडों रंग भरे पड़े हैं, आपको इसमें रोचक नए काफियों से सजी ग़ज़लें भी पढ़ने को मिलेंगी तो छोटी और बड़ी बहर की ग़ज़लें भी. चलिए चलते चलते उनकी एक छोटी बहर की गज़ल की बानगी देखते हैं.
आप बिन जो कटी
जिंदगी त्रासदी
एक तू, तू ही तू
बस मेरी जिंदगी
तू नहीं पास जब
एक पल इक सदी
आप अनमोल जी को मोबाईल पर बधाई दीजिए तब तक हम निकलते हैं आपके लिए एक और किताब की तलाश में...मिलते हैं, एक छोटे से ब्रेक के बाद.
47 comments:
नीरज अंकल, आपके गुरुदेव पंकज सुबीर जी को जन्मदिन की बधाई, आज फिर सोमवार का इत्तेफाक हमने आपकी तरफ से सौगात पाई।
और पहली बार पहला कमेंट मेरा। ऐसा लग रहा है टिप्पणी का गोल्ड मेडल जीता है।
ग़ज़लों में कैक्टस शब्द तो पहली बार पढ़ा, काफी प्रयोगवादी लगते है शायर साहब ....
इसी तरह छुपे हुनरों से मिलते रहिये ... आभार ...
किसी के प्यार में हस्ती मिटा देना हंसी है क्या ?
वही जानेगा जिसने प्यार की गहराइयाँ जी हैं
....वाह-वाह...बहुत खूब लिखा..एक खूबसूरत समीक्षा...बधाई.
हे प्रभो आंधी कोई सारे मुखौटे ले उड़े
जिससे हर इक आदमी फिर आदमी लगने लगे
उसके दिल के ज़ख्म का अंदाज़ होगा क्या भला
बात भी करता है वो तो शायरी लगने लगे
एक कोशिश ये हमेशा ही रही 'अनमोल' की
हो ग़ज़ल उसकी उसकी मगर वो आपकी लगने लगे
गज़ब का प्रस्तुतिकरण है, गज़ल अदायगी लाजवाब है ,,,,,,,,,हर शेर मुक्कमल और ज़िन्दगी से जुडा है………………पढवाने के लिये बहुत बहुत आभारी हैं।
नीरज जी ,
एक बार फिर एक नए (हमारे लिए)शायर का त’आरुफ़ करवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ,
कितना पानी रोक लेता होगा उन आँखों का बाँध
जिनको बच्चे का खिलौना बेबसी लगने लगे
बहुत उम्दा ,ज़िंदगी की हक़ीक़त को बयान करने का अच्छा अंदाज़ है
जो जितना नम्र है उतनी ही उसकी हैं सरल राहें
किसी दरिया को बहने से कभी पत्थर ने रोका क्या
सचमुच अनमोल...
यूँ तो मैंने महफ़िल महफ़िल आधी उम्र बिताई है
पर जो पल भरपूर जिए हैं वो मेरी तन्हाई है
नायाब...
सबके आगे देखा उसको हाथों में पानी थामे
चुपके चुपके जिसने मेरे घर को आग लगाई है
बेशक़ीमती...
बहुत अच्छे शायर के कलाम से रूबरू कराया नीरज जी.
बहुत सुन्दर शेर , अनमोल जी की शायरी से मिलवाने का शुक्रिया , सचमुच जब ग़ज़ल हमें हमारी बात कहती लगे , तो वो इतनी अपनी हो जाती है ...कमाल है ..
कितना पानी रोक लेता होगा उन आँखों का बाँध
जिनको बच्चे का खिलौना बेबसी लगने लगे
chayan achha rahta hai, bahut badhiyaa laga
अनमोल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व से आपने परिचय कराया, सचमुच उनकी शायरी लाजवाब है, अनमोल है...मुबारकबाद।
गज़ब का प्रस्तुतिकरण है, पढवाने के लिये बहुत बहुत आभारी हैं।
Neeraj Ji,
I salute to you for your contribution of this great work.
कुछ शेर बहुत पसंद आये .........जिंदगी की कड़वी सच्चाइयों के इर्द-गिर्द घुमती है 'अनमोल' जी की शायरी .....वाकई नाम की तरह ही उनका कलाम भी अनमोल है |
अनमोल जी की ग़ज़लों में जीवन से जुडी संवेदनाओं का भरपूर अहसास हो रहा है । बहुत सच्चे दिल से लिखी गई लगती हैं सारी ग़ज़लें ।
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए दिल से आभार ।
हे प्रभो आंधी कोई सारे मुखौटे ले उड़े
जिससे हर इक आदमी फिर आदमी लगने लगे
*
हमेशा पोंछती रहती है आंसू अपने बच्चों के
सुना तुमने, किसी माँ का कभी आँचल भीगा क्या
*
एक न इक दिन ढल जाता है सबके जलवों का सूरज
सारी उम्र, बताओ किसकी चलती कब ठकुराई है
-ये ही नहीं , लेख में उद्धृत सारे शेर उत्कृष्ट हैं , जिससे शायर की प्रतिभा का अनुमान लगता है |
आपने निष्पक्ष होकर सटीक समीक्षा की है!
एक अच्छे रचनाकार की रचनाओं में कैनवास पर उकेरी गयी तस्वीरों के रंगों और तूलिकाओं की जो विविधता अपेक्षित होती है वह आज के रचनाकार अनमोल की ग़ज़लों में मौज़ूद है।
नीरज जी, नए नए शायरों से मिलवाना और उनकी किताबों के माध्यम से उनकी शायरी से परिचित करवाने का एक बहुत ही उम्दा और श्रमसाध्य कार्य आप कर रहें हैं....इसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए कम होगा.
अनमोल जी की शायरी बेहतरीन हैं....पढवाने का शुक्रिया
बेहतरीन काव्य रचनायें हैं। रचनाकार व परिचयकर्ता, दोनों का आभार।
बहुत सुंदर रचनायें, रचना को रचना कार से मिलाने के लिये आप का धन्यवाद
नीरज जी… आपकी पारखी नज़र से भला कोई भी शायर छिप सकता है! और छिपना भी चाहे तो कितनी देर तक! जो अनमोल नगीना आपने खोज निकाला है वो सचमुच नायाब है.. बानगी के लिए जो दाने आपने बिखेरे हैं उनकी चमक से अभी तक भौंचक हूँ... आभार आपका!
आनन्द आ गया अनमोल जी की अनमोल शायरू के नमूने देख कर....
अगर कुछ काम अच्छा है तो रखती याद हैं नस्लें
बदन पर अपने गिलहरियों ने जैसे धारियां जी हैं
क्या कहना...आप की तो लायब्रेरी पूरी उड़ा ले जाने लायक है..(आप सहित) :)
हे प्रभो आंधी कोई सारे मुखौटे ले उड़े
जिससे हर इक आदमी फिर आदमी लगने लगे
बहुत खूब.... इन पंक्तियों को रचने वाले और हमारे सामने लाने वाले यानि आप
दोनों का आभार....
यूँ तो मैंने महफ़िल महफ़िल आधी उम्र बिताई है
पर जो पल भरपूर जिए हैं वो मेरी तन्हाई है
बस इत्ता ही.........
जय राम जी की.
यूँ तो मैंने महफ़िल महफ़िल आधी उम्र बिताई है
पर जो पल भरपूर जिए हैं वो मेरी तन्हाई है
आभार....
अनमोल जी के अनमोल शेर पढ़वाने का बहुत बहुत शुक्रिया .....
नगीने चुने हैं आपने .... जो समुंदर में छलाँग लगाने को मजबूर कर देते हैं ... बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी ...
कितना पानी रोक लेता होगा उन आँखों का बाँध
जिनको बच्चे का खिलौना बेबसी लगने लगे
...लाज़वाब प्रस्तुतीकरण...हर चुना हुआ शेर अपने आप में अविस्मर्णीय है....एक अच्छी पोस्ट के लिए बधाई...
देर आयद दुरुस्त आयद .... एक और लाजवाब पोस्ट के लिए शुक्रिया .... और बधाई !!
कितना पानी रोक लेता होगा उन आँखों का बाँध
जिनको बच्चे का खिलौना बेबसी लगने लगे
बेहतरीन रचनायें को पढवाने के लिये आभार
नीरज हैं अनमोल और उनका चयन भी।
एक और प्यारी किताब...
____________________
'पाखी की दुनिया' के 100 पोस्ट पूरे ..ये मारा शतक !!
किसी के प्यार में हस्ती मिटा देना हंसी है क्या ?
वही जानेगा जिसने प्यार की गहराइयाँ जी हैं
bahut khoob prastuti.sir utsahi ji ne bilkul theek likha aapke baare main bhi unse sahamat hun.bhaut hi achhe rachnakar se parichay karane ke liye aapko bahut bahut dhanyvaad.
poonam
अनमोल जी कमाल के शायर लगते हैं ।
आपका शुक्रिया अदा करें कैसे, आप तो, मोती लुटाते ही चले जाते हैं ।
हे प्रभो आंधी कोई सारे मुखौटे ले उड़े
जिससे हर इक आदमी फिर आदमी लगने लगे
ये शेर बहुतही अच्छा लगा ।
किसी के प्यार में हस्ती मिटा देना हंसी है क्या ?
वही जानेगा जिसने प्यार की गहराइयाँ जी हैं
सही है ....यूँ ही नहीं हीर राँझा ,लैला मजनू हुए .....
कितना पानी रोक लेता होगा उन आँखों का बाँध
जिनको बच्चे का खिलौना बेबसी लगने लगे
अद्भुत ......
जो जितना नम्र है उतनी ही उसकी हैं सरल राहें
किसी दरिया को बहने से कभी पत्थर ने रोका क्या
ये तो आपके लिए फिट बैठता है .....
सच्च कुछ दिनों पहले आपका ज़िक्र हुआ तो कुछ ऐसे ही विचार आये थे मन में ......
शुक्रिया इस सुंदर प्रस्तुति के लिए .....!!
virahan ko us khat ka akshar akshar chubhta hai...
bahut hi kya kahuin anmol ji ki rachnaye padkar bahut aanand ki anubhuti hui namaste
अनमोल जी तो वाकई अनमोल हैं। इस अनमोल रत्न से मिलवाने का शुक्रिया।
................
वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
नमस्कार नीरज जी,
किताबों की दुनिया में से एक और 'अनमोल' नगीना आप लाये हैं.
अनमोल जी के शेर वाकई अनमोल है, शेर पढ़ते वक़्त अपने से जुडा लगता है और यही इसकी कामयाबी है.
हे प्रभो आंधी कोई सारे मुखौटे ले उड़े
जिससे हर इक आदमी फिर आदमी लगने लगे
उसके दिल के ज़ख्म का अंदाज़ होगा क्या भला
बात भी करता है वो तो शायरी लगने लगे
यूँ तो मैंने महफ़िल महफ़िल आधी उम्र बिताई है
पर जो पल भरपूर जिए हैं वो मेरी तन्हाई है
अनमोल जी ने अपना नाम सार्थक कर दिया । किताब तो ये शेर देख कर ही लगता है कि लाजवाब होगी। आपकी पसंद की भी दाद देनी पडेगी। धन्यवाद।
जिस मुफलिस की स्यानी बेटी घर में बैठी हो
उसको तो अपना ही गाँव, गली घर चुभता है
-------------------------
bahut sunder sabhi panktiyan kamaal ki hain...
कोई त्यौहार क्या निर्धनों के लिए
ईद-होली-दिवाली, सभी कैक्टस
देखिये, स्वार्थवश हो रहा आजकल
आदमी के लिए आदमी कैक्टस
उसकी बेरोजगारी का संकेत है
उसके चेहरे पे उगती हुई कैक्टस
Achchha prayog hai. Baqi bhi kai sher achchhe lage..Aalasyavash saare nahiN dohra raha...shukriya aur badhaayi..
जो जितना नम्र है उतनी ही उसकी हैं सरल राहें
किसी दरिया को बहने से कभी पत्थर ने रोका क्या
हमेशा पोंछती रहती है आंसू अपने बच्चों के
सुना तुमने, किसी माँ का कभी आँचल भीगा क्या
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
Really very nice post....Neeraj ji..
I like it very much.Thanks for such a nice post.
thanks a lot, neerajji !
neeraj jee
pranam !
jitne sunder sher hai otni hi sunderta se aap ne prastut kiya hai anmol jee ko bhi bahut bahut badhai !
har sher achcha laga .
saadar
नीरजजी ,नवरात्री की शुभकामनायें । नईपुस्तकों का परिचय और नए कवियों से पहचान में आपका जवाब नहीं ,शुक्रिया ।
E-mail received from Om Prakash Sapra Ji:-
shri neeraj ji
wah
aapne kamal kar diya
anmol ji ki anmol shairi pesh kar ke.
thanks and dhanyawad,
regds,
-om sapra delhi-9
9818180932
अनमोल जी तो मेरे अपने हैं इसलिए इस बड़े काम के लिए नीरज जी आपको बधाई देना चाहता हूं । अपनी 11 साल पहले छपी किताब एक बार आपको भेजना चाहता हूं, अब पता तो आप ही बताएंगे ना00
AADRNEEYA NEERAJ JI,
AISA TO KOI ANMOL HI SOCH SAKTA THA "DARIYA DOOB GAYA". YE EK MISAAL HAI. JEEVANT RACHANAON KE IS ANMOL SHAYAR KE PARICHAYA KE LIYE AAPKA AABHAR.
ASHUTOSH PANDEY
LUCKNOW.
CONTACT-9838502317
Post a Comment