जैसे उजड़े हुए मंदिर में हवा का झोंका
ऐसे आ जाएँ कभी लौट के आने वाले
मुझसे क्या पूछते हो मैंने उन्हें कब देखा
पेड़ की आड़ में थे तीर चलाने वाले
ढूंढ कर लाओ कोई हो तो सुलाने वाला
सैंकड़ों लोग हैं दुनिया में जगाने वाले
दुनिया वालों ने फकत उसको हवा दी थी 'निजाम'
लोग तो घर ही के थे आग लगाने वाले
ऐसे जबरदस्त शेर कहने वाले हैं जोधपुर में जन्मे और आज उर्दू शायरी के आकाश पर चमकते हुए सितारे जनाब " शीन काफ निजाम" उर्फ़ "शिव कुमार निजाम". उनकी एक किताब "वाग्देवी प्रकाशन" बीकानेर ने प्रकाशित की है " सायों के साए में" शीर्षक से, आज इसी किताब का जिक्र करेंगे.
पहले ज़मीन बांटी थी फिर घर भी बट गया
इंसान अपने आप में कितना सिमट गया
अब क्या हुआ की खुद को मैं पहचानता नहीं
मुद्दत हुई कि रिश्ते का कोहरा भी छट गया
गाँवों को छोड़ कर तो चले आये शहर में
जाएँ किधर कि शहर से भी जी उचट गया
जीत के ज़ज्बे ने क्या जाने कैसा रिश्ता जोड़ दिया
जानी दुश्मन भी मुझको अब मेरा अपना लगता है
इस बस्ती की बात न पूछो इस बस्ती का कातिल भी
सीधा-सादा, भोला-भाला,प्यारा प्यारा लगता है
दरवाज़े तक छोड़ने मुझको आज नहीं कोइ आया
बस, इतनी सी बात है लेकिन जाने कैसा लगता है
पेड़ों को छोड़ कर जो उड़े उनका जिक्र क्या
पाले हुए भी गैर की छत पर उतर गए
यादों की रुत के आते ही सब हो गए हरे
हम तो समझ रहे थे सभी ज़ख्म भर गए
आज हर सम्त भागते हैं लोग
गोया चौराहा हो गए हैं लोग
अपनी पहचान भीड़ में खो कर
खुद को कमरों में ढूंढते हैं लोग
ले के बारूद का बदन यारों
आग लेने निकल पड़े हैं लोग
हर तरफ इक धुआँ सा उठता है
आज कितने बुझे बुझे हैं लोग
शीन काफ निजाम साहब को मैंने जयपुर की महफ़िलों में अक्सर सुना है और उनकी गहरी आवाज़ और अदायगी का कायल हूँ. आपने उनके शेर तो बहुत सुने होंगे लेकिन वो निदा फाजली साहब की तरह कमाल के दोहे भी कहते हैं तो चलिए अब पढ़ते और सुनते हैं उनकी लाजवाब शायरी और दोहे उन्हीं की जुबानी:
ये कैसा इनआम है ,ये कैसी सौगात
दिन देखे जुग हो गए, जब जागूं तब रात
****
पतझड़ की रुत आ गयी, चलो आपने देश
चेहरा पीला पड़ गया, धोले हो गए केश
****
करे जुगाली रात दिन, शब्दों की नादान
है पोथी का पारखी, अक्षर से अनजान
****
चौपालें चौपट हुईं सहन में सोया सोग
अल्लाह जाने क्या हुए, आल्हा गाते लोग
****
गोबर से घर लीप कर गोरी हुई उदास
दुहरायेगा कौन कल आँगन का इतिहास
आप वाग्देवी प्रकाशन वालों वालों को लिखें या बात करें तब तक चलते हैं एक और किताब खोजने आपके लिए. मेरा मकसद सिर्फ और सिर्फ अच्छी सच्ची शायरी की किताबों की जानकारी आपतक पहुँचाना भर है...मील के पत्थर हैं भाई हम तो सिर्फ ये बताते हैं मंजिल किधर और कितनी दूर है....चलना तो आपको ही है
45 comments:
पेड़ों को छोड़ कर जो उड़े उनका जिक्र क्या
पाले हुए भी गैर की छत पर उतर गए
यादों की रुत के आते ही सब हो गए हरे
हम तो समझ रहे थे सभी ज़ख्म भर गए
waah ..........bahut hi sundar sher.........seedhe dil mein utar gaye.........shukriya.
आपका शायरों और उनकी किताबों से परिचय कराने का अंदाज़ लाजवाब है !!
मुझसे क्या पूछते हो मैंने उन्हें कब देखा
पेड़ की आड़ में थे तीर चलाने वाले
ढूंढ कर लाओ कोई हो तो सुलाने वाला
सैंकड़ों लोग हैं दुनिया में जगाने वाले
बहुत लाजवाब, आज विडियो भी लगे हैं शाम को फ़ुरसत मे आनंद लेंगे. बहुत शुक्रिया जनाब आपका.
रामराम.
आपका शायरों और उनकी किताबों से परिचय कराने का अंदाज़ लाजवाब है !!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
शुक्रिया आप वाकई में बहुत खूबसूरत लफ़्ज़ों से रूबरू करवा देते हैं ..पढने की इच्छा स्वयम ही जाग जाती है शुक्रिया
शीन काफ़ निज़ाम साहब की 'नीम की पत्तियॉं' पढ़ी थी करीब 25 साल पहले। आज भी याद है: शेर शीरीं हुए, गीत गोली नहीं...'। आज भी संग्रह में है। अदबी नफ़ासत से भरी इनकी रचनायें बार-बार बुलाती हैं पढ़ने को।
आपका विशेष धन्यवाद। इनकी नई पुस्तक से परिचय कराने के लिये।
behad khoobsurat collection hai apki.
क्या हुआ की खुद को मैं पहचानता नहीं
मुद्दत हुई कि रिश्ते का कोहरा भी छट गया
...........yahan aakar ek khula aakashiye vistaar milta hai
सायों के साए में मेरे पास है और इसकी लगभग सभी ग़ज़लें और नज्में मुझे याद हैं... खासकर समंदर पर जो siries है ...
कुछ लाइन शेयर करना चाहूँगा
और कुछ देर शोर मचाये रहिये
आसमान है तो उसे सर पर उठाये रखिये
मेरी गजलों में ढल गया होगा
जाने कितना बदल गया होगा
बेसबब अश्क आ नहीं सकते
कहीं कोई पत्थर पिघल गया होगा
रास्तों को वो जानती ही कब थी
पांव ही था फिसल गया होगा
मंजिलें दूर क्यों हुई हैं 'निजाम'
शायद रास्ता बदल गया होगा
यह सब उन्ही का है... एक और
"और कितने जन्मों के जजीरे
यूँ ही
हमारे सामने इस्तकबाल को आते रहेंगे
और हम भी...
जब तक बहार का सन्नाटा
अन्दर के कोहरे मं
घुल मिल नहीं जाता
... शीन काफ निजाम मेरे फेवरेट शयरों में से एक हैं... आपने साँझा किया अच्छा लगा.... शुक्रिया
neeraj ji namaskar ...
ek aur shaandar kitaab aur kitaab se jyaada ek aur shaayar se ruburu hona ... aapki kalam ke sahare.. waah ye silsila to aisa ban padha hai ki , hume intjaar rahta hai ..aapki post ka .. saare sher behatreen hai , gajab ke hai ...lekin iska jawaab nahi ....
ढूंढ कर लाओ कोई हो तो सुलाने वाला
सैंकड़ों लोग हैं दुनिया में जगाने वाले
....sir ji bahut dino se koi comedy rachna nahi daali hai ... jaldi se kuch likhiye ...
aapka
vijay
हमेशा की तरह इस बार भी आप गहरे पानी से मोती ढूँढ कर लाए हैं ..... शेरों से निज़ाम सागब के तेवर नज़र आ रहे हैं ... इतनी आसानी से पूरा फलसफा सिमेट दिया है ह्र शेर में और आपने ऐसे ही फलसाफॉन को चुन चुन कर पिरो दिया है इस लाजवाब श्रंखला में ...... बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी .......
NEERAJ JEE,BEHAD KHUSHEE HOTEE
HOTEE HAI JAB AAP KISEE SHAYAR
AUR USKEE SHAAYREE SE PARICHAY
KARWAATE HAIN.
और नामवर सिंह कहते हैं " मुझे हैरत है इस उम्र में निजाम को यह बशिरत कैसे मिल गयी"
खुद निदा फाजली से शब्दों में...
"अपना अक्स तुममें देखता हूँ, तुम फर्द हो"
इतने बढ़िया शेर और गजलों वाली पुस्तक सिर्फ ३५ रूपये में !आश्चर्य है।
खैर हमने तो मुफ्त में ही पढ़कर आनंद ले लिया। आभार इस प्रस्तुति का।
शीन काफ जी को कई बार सुना है.. बहुत अच्छा लिखते है और बहुत अच्छे इंसान है...
पुस्तक की कीमत अगर एसी हो तो हर कोई पढ़े खरीद कर..
आभार...
पारखी नज़र परख ही लेते हैं
शुक्रिया
aapke parichey karane ka andaj sachmuch nirala hai...
उम्दा परिचय-उम्दा पोस्ट.
sir ! kahan se itni khubsurat gazlen bator laye ?
आपकी पुस्तक चर्चा। बहुत अद्भुत होती है। सच में। क्योंकि झूठ बोलना आता ही नहीं।
शीन काफ निजाम साहेब को सुनकर और उनके शेर पढ़कर किताब पढ़ने की इच्छा जाग उठी.
अबदुल्ला साहब का मंच संचालन देख रहा था. उनके साथ वाशिंग्टन में पढ़ने का सौभाग्य रहा.
बहुत बेहतरीन समीक्षा. आभार!
पुस्तक समीक्षा बहुत करीने से की है आपने!
नीरज जी, आदाब
आपका आभार, कि आप शायरी की दुनिया की ऐसी नायाब हस्तियों से मिलवाते हैं..
अब क्या हुआ की खुद को मैं पहचानता नहीं
मुद्दत हुई कि रिश्ते का कोहरा भी छट गया
वाह....वाह
पेड़ों को छोड़ कर जो उड़े उनका जिक्र क्या
पाले हुए भी गैर की छत पर उतर गए
कितना ’सच्चा’ कहते निजाम साहब..
निजाम साहब न सिर्फ जोधपुर के बल्कि देश के नमी शायरों में से एक है उनकी एक रचना जो मुझे बेहद पसंद है पेशे खिदमत है
और कुछ देर यूँ ही शोर मचाए रखिए
आसमाँ है तो उसे सर पर उठाये रखिए
उँगलियाँ गर नहीं उट्ठे तो न उट्ठे लेकिन
कम से कम उसकी तरफ आँख उठाए रखिए
खिड़कियाँ रात को छोड़ा न करें आप खुलीं
घर की है बात तो घर में ही छिपाए रखिए
अब तो अक़्सर नज़र आ जाता है दिल आँखों में
मैं न कहता था कि पानी है दबाए रखिए
कौन जाने कि वो कब राह इधर भूल पड़े
अपनी उम्मीद की शमा को जलाये रखिए
कब से दरवाज़ों को दहलीज़ तरसती है 'निज़ाम'
कब तलक गाल को कोहनी पे टिकाये रखिए
दरवाज़े तक छोड़ने मुझको आज नहीं कोइ आया
बस, इतनी सी बात है लेकिन जाने कैसा लगता
आप का लेख ओर अन्य रचनाये बहुत सुंदर लगी धन्यवाद
दुनिया वालों ने फकत उसको हवा दी थी 'निजाम'
लोग तो घर ही के थे आग लगाने वाले
वाह! कितना धन्यवाद करूं आपका. साधुवाद.
नीरज जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति रही
पढ़ कर पता चल जाता है कि सागर से मोती निकालना और किसी के लिए मुश्किल होगा नीरज जी के लिए नहीं
शानदार प्रस्तुति
nizam sahab se parichay ke liye aabhaar.
E-mail received from Om prakash Sapra Ji from Delhi:-
Shri neeraj ji
namastey,
thanks for your mail.
gazals of sheen kaaf nizam as presented by you are very nice and have a good depth. thanks for sending this beautiful "GULDASTA''.
congrats,
regards,
-om sapra, delhi-9
E-mail received from Dr.bhoopendra ji:-
नीरज जी ,
आपने शीन काफ निजाम का जो परिचय दिया उस से अनजान था .
आभार ,धन्यवाद
सादर,
भूपेन्द्र
Dr.bhoopendra
Rewa M.P
bhiaya se aapke bare me bahut suna hai mene..
i m sonu from sehore (Pankaj Purohit)
http://sameerpclab2.blogspot.com
इत्तिफाक से इनकी अगली पीड़ी से मुलाकात हुई है ओर वे साहब भी इनकी तरह काबिलियत रखते है .....
शुक्रिया इस परिचय के लिए.
आप साहितय की जौहरी हैं पता नहीं कहाँ से ढूँढं कर लाते हैं हमारे लिये ये अनमोल मोती। और शायरी से रूबरू करवाने की कला कोई आपसे सीखे। निज़ाम जी की शायरी ने किताब पढने के लिये उतसुकता बढा दी है । उन्हें सुन रही हूँ और हज़ार हज़ार दुया कर रही हूँ उनकी कलम यूँ ही चलती रहे उन्हें बहुत बहुत बधाई
E-Mail received from Sunil Ji:-
हर तरफ इक धुआँ सा उठता है
आज कितने बुझे बुझे हैं लोग
Regarding neeraj saab ye sher aap ko nazar karta hua aap..
sadar pranam karta hoo,
regarding nizam ke baare me padh kar accha laga. mera shoubhagya hai hai ki main rubru oonse 2 . 3. baar sahitiyak karykarm me mil chuka hoo. hala ki hamare hi pados me dr. sh. nand kisoore achnaya ji ke ghar akasar aate, jigri dost hai. aabhar aap ko ki aap ne oonki kitab ke baare me bataya,
aap ki betrin gazalon ka bhi aashirwad hamari web magzine ko prapt hoto rahege, ye kamna hai.
sadar
Sunil Gajjani
President Buniyad Sahitya & Kala Sansthan, Bikaner
Add. : Sutharon Ki Bari Guwad
Bikaner (Raj.)
Aapke blog pe pahunch gaye to lautna bhool jate hain log..
ये खिड़की में कब तक कल के ब्लॉगर रहेंगे। उनका भी ब्लॉग बना दीजिये न!
इस "मील के पत्थर" के लिये तो शुक्रिया के सारे शब्द छोटे पड़ गये हैं अब।
आप तो पूरे साहित्य के जौहरी निकले. सबको ढूंढ़कर उनकी सुन्दर-सारगर्भित चर्चा कर रहे हैं..यह पोस्ट भी पूर्ववत लाजवाब !!
नहीं पढ़ा था 'निजाम' साहब को कभी. एक से बढाकर एक शेर हैं आपकी समीक्षा में. यह किताब ले आता हूँ कहीं से. आपकी यह सीरीज ऐसी किताबों के लिए एक रेफेरेंस पॉइंट रहेगी.
हर बार की तरह कमाल की पोस्ट. गज़ब के शेर ले के आये हैं इस बार भी .........खूबसूरत .... खूबसूरत !!
hum nizam sahab ke pados me hokar bhi unse ru b ru nahi ho sake.unki kalam se parichit karane ka shukriya neeraj sahab!
"मुझसे क्या पूछते हो मैंने उन्हें कब देखा
पेड़ की आड़ में थे तीर चलाने वाले"
वाह वाह नीरज भाई !,
रोज और खूबसूरत लग रहे हैं आप !
सादर
nice
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