खोला करो आँखों के दरीचों को संभल कर
इनसे भी कभी लोग उतर जाते हैं दिल में
मित्रों जब भी आप किसी प्रतिष्ठित लेखक या शायर की किताब खरीदते हैं तो उसमें प्रस्तुत सामग्री की गुणवत्ता से आपकी अपेक्षाएं शत प्रतिशत होती हैं, चलिए शत प्रतिशत ना भी सही अस्सी प्रतिशत तो होती ही हैं, ये बात किसी ऐसे लेखक या शायर पर लागू नहीं होती जो अधिक प्रसिद्द न हो या आपने जिसे कभी न पढ़ा हो. इसके फायदे और नुक्सान दोनों ही होते हैं. मेरे ख्याल से फायदे अधिक होते हैं और नुक्सान कम, क्यूँ की प्रसिद्द लेखक की पुस्तक अगर गुणवत्ता पर खरी न उतरे तो आपको निराशा होती है,लेकिन अनजान लेखक की किताब ख़राब गुणवत्ता वाली भी हो तो आप अधिक परेशान नहीं होते और अगर वो किताब आपकी अपेक्षाओं से भी अधिक गुणवत्ता की हो तो जो ख़ुशी मिलती है उसे वो ही समझ सकता है जिसने ये अनुभव किया हो.
मुझे जनाब "सादिक" साहेब की किताब "सिर पर खडा शनि है" पढ़ कर जो ख़ुशी हुई उसे ही मैं आपके साथ आज बांटना चाहता हूँ. उज्जैन मध्य प्रदेश में जन्में "सादिक" साहेब दिल्ली विश्व विद्यालय के उर्दू विभाग में प्रोफेसर हैं. आप की शायरी की बहुत सी किताबें हिंदी और उर्दू में छप चुकी हैं.
"सादिक" साहेब की शायरी आम इंसान के समझ में आने वाली है. निहायद सादा जबान में वो कमाल के शेर कह देते हैं. जैसे जैसे आप इस किताब के वर्क पलटते हैं वैसे वैसे आपको उनकी शायरी के अलग अलग रंग दिखाई देने लगते हैं.
मेरे वजूद के कोई मानी नहीं रहे
पैना-सा एक तीर हूँ टूटी कमान का
आकाश कोसने से कोई फायदा नहीं
बेहतर है नुक्स देख लूं अपनी उडान का
जब से हुआ है राज पिशाचों का शहर पे
जंगल में हमको खौफ़ नहीं अपनी जान का
एक और खूबी जो मुझे नज़र आयी "सादिक" साहेब की शायरी में वो हिंदी के शब्दों का बड़ी खूबसूरती से अपने शेरों में इस्तेमाल करते हैं, मजे की बात ये है की हिंदी के ये शब्द कभी भी, कहीं भी भरती के नहीं लगते बल्कि बड़े सहज ढंग से आते हैं:
उसके तकिये पर कढा सुन्दर सुमन
आंसुओं से हो गया गीला, तो फिर
हम तो सच-सच मुंह पे कह देंगे मगर
रंग उसका पड़ गया पीला, तो फिर
देख सुन्दरता अभी तो मुग्ध हो
सांप वो निकला जो ज़हरीला, तो फिर
हम तो अपने पर रखें संयम मगर
आके दिखलाये मदन लीला, तो फिर
ग़ज़लों में नए प्रयोग आज कल सभी करने लगे हैं, रिवायती ग़ज़लें अब कल की बातें हो गयीं हैं. ज़िन्दगी को बारीकी से देखने का हुनर ग़ज़लों में आ गया है. "सादिक" साहेब की एक ग़ज़ल के ज़रा ये शेर पढें :
तेरा वजूद तो निर्भर हवा पे है नादाँ
जो फूला फिरता है इक बार फट के देख ज़रा
यूँ बैठे-बैठे तो खुलते नहीं किसी के गुण
ये तेग खींच के,मैदां में डट के देख ज़रा
लगाना चाहे जो अंदाजा अपनी कीमत का
तो अपने पद से तू इक बार हट के देख ज़रा
"डालफिन बुक्स", 4855-56/24 ,हरबंस स्ट्रीट ,अंसारी रोड ,दरिया गंज, दिल्ली से प्रकाशित एक सौ बारह पृष्ठ की, सौ रुपये मूल्य की ये किताब चार भागों में विभक्त है :1..मेरे हाथ में कलम था,2. डूबते ज़जीरों में, 3..सच्चाईयों के कहर में, और 4. शिकस्त मुझको गवारा नहीं. चारों भागों को पढने का अपना अलग आनंद है, इस आनंद को उठाने के लिए ज़रूरी है की आप खुद इस किताब को पूरा पढें जो यहाँ मेरे ब्लॉग पर संभव नहीं है.
किताब की जानकारी मैंने आपको देकर अपना फ़र्ज़ पूरा किया है, अब आप इसे खरीद कर अपना फ़र्ज़ निभाएं.( वैसे आज के दौर में फ़र्ज़ अदायगी नहीं होती सिर्फ फ़र्ज़ की रस्म अदायगी ही होती है). चलते चलते उनकी एक ग़ज़ल के कुछ शेर पढ़ते जाईये:
शरण हरेक को मिलती थी जिसके होने में
कराहता है पड़ा घर के एक कोने में
वो जिसको पाने में जीवन तमाम खर्च किया
लगा बस एक ही क्षण उसको हमसे खोने में
हमारे दुःख को वो महसूस किस तरह करता
मज़े जो लेता रहा सूईयाँ चुभोने में
ज़मीन सख्त है, मौसम भी साज़गार नहीं
यहीं तो लुत्फ़ है ख्वाबों के बीज बोने में.
आप ख्वाबों के बीज बोकर फसल उगने का इंतज़ार कीजिये ,हम निकलते हैं एक और नायाब किताब ढूढने और मिलते हैं ब्रेक के बाद....तब तक मेरी ही कोई अगली पिछली पोस्ट पढ़ते रहिये न .
चलते चलते अपने आप को उनका ये शेर पढ़वाने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ...अब पढ़ भी लीजिये न प्लीज़ ऐसी भी क्या जल्दी है.....:))
उस मुख पे देखने के लिए जीत की ख़ुशी
हम खुद तमाम बाजियां हारे चले गए
43 comments:
न जाने कहाँ कमी रह गई
किताबो से यारी मेरी न रही
आपके द्वारा सादिक साहब के चंद शेर पढ़े . सच मे मुझ जैसे आम समझ के दिमाग को भी समझ आ गए
उसके तकिये पर कढा सुन्दर सुमन
आंसुओं से हो गया गीला, तो फिर
हम तो सच-सच मुंह पे कह देंगे मगर
रंग उसका पड़ गया पीला, तो फिर
waah kya gazab ka likhate hai ye shayar,bahut shukran inse milwane ka,wo dharichewala sher bhi bada bha gaya.
बहुत आभार आपका इन बेमिसाल पुस्तकों से परिचय के लिये.
रामराम.
शुक्रिया नीरज जी इस किताब के बारे में इतने सुन्दर ढंग से जानकारी देने के लिए
neeraj ji,
saadik ji ki kitaab aur unse rubaru karaane ke liye aapka bahot bahot aabhaar... main aaj hi ye pushtak leke aata hun...
arsh
आप कह रहे हैं तो अच्छी तो होगी ही... शेरो शायरी की किताबे तो ना के बराबर ही पढ़ी है. पर कभी मौका मिला तो जरूर पढेंगे.
आकाश कोसने से कोई फायदा नहीं.
बेहतर है नुक्स देख लूँ अपनी उडान का.
क्या खूब बात कही है.
उसके तकिये पर कढा सुन्दर सुमन
आंसुओं से हो गया गीला, तो फिर
शुक्रिया , आभार आपका नीरज जी इस किताब के बारे में जानकारी देने के लिए
Regards
ek achche shaayar aur unki kitaab ke baare mein jaankari dne ke liye shukriya....
वाह वाह नीरज जी आपकी बात निराली। क्या क्या न ख़ुद ही बस पढ़ते बल्कि हम सबको भी पढ़वा देते हो आप । बहुत आभार है आपका । समझ लेना के होली है तो ज़बरदस्त बन पड़ी। हम वायरसों से परेशान बावक्त पढ़ ना पाये । कोई साइट खुलती थी कोई नहीं। राजजी दिनेशजी आदि की न जाने कितनी पोस्टें मिस करते रहे। खैर अब कुछ राहत है जी।
neeraj ji , mazaa aa gaya ye sher padhkar main bhi lekar aaunga ye book, parichay karana ke liye hardik dhanyawaad.
शुक्रिया जो आपने सादिक साहेब के बारे मे बताया । और उनके द्वारा लिखित खूबसूरत शेर भी पढ़वाए ।
Vaakai acchi kitaab aur lekhak ka parichay karaya aapne.
gandhivichar
उस मुख पे देखने के लिए जीत की ख़ुशी
हम खुद तमाम बाजियां हारे चले गए
शानदार! सादिक साहब और उनकी किताब, दोनों शानदार हैं.
जब आप कोई किताब लाते हैं तो उस किताब के साथ साथ आपकी समीक्षा भी इतनी सुन्दर होती है की नाम करता है बस अभी से ये किताब मिल जाये और इसे पढना शुरू कर दूं. पर हमारी तो मजबूरी है जनाब, विदेश में मिलती नहीं देश की किताबें ..
सारे के सारे शेर सादिक साहब के रोज्मर्र से जुड़े लगते हैं...चाहे वो
आकाश कोसने से कोई फायदा नहीं.....
या
लगाना चाहो जो अंदाज अपनी कीमत का ........
और से जो आपने अंत में लिखा वो तो दिल को चीर कर निकल गया.....
उस मुख पर देखने के लिए जीत की ख़ुशी.....
बहूत बहूत शुक्रिया
sadik saheb se milna achha laga.......
नीरज जी मिष्टी वाकई ईश्वर की अद्वितीय कृति है।
सादिक साहब के अशआर भी अच्छे लगे।
अच्छी लग रही है किताब, मौका मिलते ही पढ़ेगें
आकाश कोसने से कोई फायदा नहीं.
बेहतर है नुक्स देख लूँ अपनी उडान का.
आप का धन्यवाद इन सुंदर पुस्तको से मिलवाने ्के लिये, ओर इन के लेखको के बारे जानकारी देने के लिये
किताब के बारे में बताने का शुक्रिया!
समीक्षा पढकर अपने एक शेर के माध्यम से "दाद" देना चाहूँगा :-
"कुछ इस तरह अंदाजे बयाँ है तेरा
जिधर देखूँ बस तू ही तू आता है नजर।"
aadarniya neeraj ji , ab aisa lag raha hi ki main aapse ye gujarish karun ki aap hamesha do copy kharide , ek aapke liye aur ek mere liye ..
bahut sundar kitaab ki bahut hi acchi vivechana..
badhai
बेहतरीन शायर की खूबसूरत शायरी ।
भयोन्मूलन के लिये यह पंक्तियां बड़े काम की हैं -
जब से हुआ है राज पिशाचों का शहर पे
जंगल में हमको खौफ़ नहीं अपनी जान का
जंगल में अगर भय न रहे तो जंगल की व्यवस्था क्या कर लेगी। शेर से ज्यादा भय शेर की दहाड़ का होता है। इन पिशाचों का अस्तित्व भी इसी कारण से है कि उनसे भय खाया जाता है।
पुस्तक समीक्षा लिख कर हम जैसे कविता-पुस्तक कम पढ़ने वाले का आप काफी भला कर देते हैं।
आप की पसंद लाजवाब है.यह किताब भी यकीनन बहुत ही अच्छी होगी ..इस की समीक्षा भी आप ने बेशक खूबसूरती से की है.सभी प्रस्तुत शेर खुबसूरत हैं.सादिक साहब की शायरी अगर आम आदमी की समझ में आती है तो यह जरुर एक लोकप्रिय किताब साबित होगी.धन्यवाद और शुभकामनायें!
आप कहाँ से ले आते है इतनी बेहतरीन किताबें। और आपकी पसंद भी बहुत अच्छी है।
जमीन सख्त है, मौसम भी साज़गार नहीं
यहीं तो लुत्फ है ख्वाबों के बीज बोने में.
वाह वाह ....
आपका जो ये ख्वाब परोसने का हुनर है, बहुत नायब है.
बड़ा ही रोचक विवरण दिया है पुस्तक का आपने। किताब निस्संदेह अच्छी होगी। शुक्रिया आपका इससे परिचित करवाने का।
Aapki rachnaon pe tippanee karnekee qabiliyat mai nahee rakhti...kshama karen...bohot dinose aapke saath koyi sampark nahee hua hai...
Blog padhke mai chuchaap nikal padtee hun...waisebhee aajkal samay behad kam mil raha hai blogke liye.
Intezar rehta hai aapkaa blog padhneka harsamay...
नीरज जी,
भला हो आपका,,,ऐसे शानदार शेर पढ़वाए हैं,,के सोच रहा हूँ के आपने छाँट कर लिखे हैं या पूरी किताब ही भरी पड़ी है,,,,,,बेहद लाजवाब,,,,,
भाई नीरज जी,
आप सही मने में
शब्द और भाव संसार की
सराहनीय सेवा कर रहे हैं.
सादिक साहब का सुन्दर परिचय
देने का आभार....इसके एक शेर से
अपनी कीमत समझने का
एक पैमाना ही मिल गया हमें.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
सादिक साहब को पढ़ा है नीरज जी.....यहाँ मेरे कुछ पसंदीदा शेर दोहराहने के लिए शुक्रिया ...आपकी इस बात से इत्तिफाक रखता हूँ की कुछ शायर कभी निराश नहीं करते......मुझे निदा साहब हर बार ऐसे ही लगे
Bahut khub...padhkar man bag-bag ho gaya.
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गणेश शंकर ‘विद्यार्थी‘ की पुण्य तिथि पर मेरा आलेख ''शब्द सृजन की ओर'' पर पढें - गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का अद्भुत ‘प्रताप’ , और अपनी राय से अवगत कराएँ !!
उस मुख पे देखने के लिए जीत की ख़ुशी
हम खुद तमाम बाजियां हारे चले गए
maja aa gaya sir ji .. behtreeen thanku
शुक्रिया नीरज जी एक और किताब से रूबरू करवाने के लिये और मेरी लाइब्रेरी में शीघ्र ही एक और ग़ज़ल-संग्रह का इजाफ़ा कराने में...
बहूत खूब. आपकी हर पोस्ट शानदार होती है... दिल को छू लेने वाली होती है.
बहुत आभार आपका, इस किताब के बारे में इतने सुन्दर ढंग से जानकारी देने के लिए.
आपकी इस बात से इत्तिफाक रखता हूँ की कुछ शायर कभी निराश नहीं करते.............
एक बार फिर आनंद आया आपकी किताबों की दुनिया में आकर...
is post ke liye aapka shukria...
नीरज जी पढ़ने के लिए तैयार हू आपकी ये पेशकश लेकिन दिल में गजब सी हलचल है । दिल कुछ और कहता है और नज्म कुछ औऱ कहती है खासकर आपने जो लिखा है कि उस मुख पे देखने के लिए जीत की खुशी
हम खुद तमाम बाजियां हारे चले गए
दिल में उतर आया है शुक्रिया
कभी कभी समीक्षा किताब के कद और बढा देती है। और आपकी समीक्षाओं में अक्सर ऐसा ही होता है।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
अच्छी जानकारी दी है आपने .
MAAN GAYE NEERAJ JEE,
KYA PADHTE HO AUR PADHVATE HO BHAYI CHUN CHUN KAR.SIKHATE BHEE CHALTE HO....
CHALIYE HAM BHEE KAHE DETE HAIN....THODA SA ALAG ANDAZ ME .
US MUNH PE DEKHNE KE LIYE JEET KEE KHUSHEE,
KYA JEETNEE THEEN BAZIYAN, HARE CHALE GAYE !
AB TO KHUSH !
AAMEEN!
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