इस बार मैं जिस किताब का जिक्र कर रहा हूँ उसका नाम है "आवाज" और इसके शाइर हैं जनाब "अशोक मिजाज़" साहेब. 'अशोक मिजाज़' साहेब 'सागर', मध्यप्रदेश के निवासी हैं. इस किताब के बारे में मशहूर शाइर बशीर बद्र साहेब ने फरमाया है की:
"चमकती है कहीं सदियों में आसुओं से ज़मीं
ग़ज़ल के शेर कहाँ रोज़ रोज़ होते हैं "
.
बद्र साहेब की ये बात एक दम साबित हो जाती हैं जब हम "आवाज" के पन्ने पलटते हैं. सलीके से छपी ये किताब अपने पहले चंद पन्नो पर बिखरे शेर से ही पढने वाले का मन मोह लेती है:
ज़ुल्म के सामने तलवार हूँ, खंज़र हूँ मैं
आज के दौर का बेबाक सुखनवर* हूँ मैं
*सुखनवर: लेखक
तुम जिसे पूजने आए हो ख़बर है तुमको
जिसको ठुकराया था तुमने वोही पत्थर हूँ मैं
कोई कुछ पल के लिए मेरे करीब आया था
आज तक उसकी ही खुशबू से मुअत्तर* हूँ मैं
मुअत्तर: महकता हुआ
मिजाज़ साहेब अपने लफ्जों से वो जादू बिखरते हैं जिसे पहले कभी पढ़ा सुना नहीं लगता, आपको यकीन न आए तो उनकी एक ग़ज़ल के ये शेर बतौर नमूना देखें:
मुहब्बतों में भी दुश्वारियां* निकलती है
वफ़ा के नाम पे लाचारियाँ निकलती हैं
दुश्वारिया: मुश्किलें
हमारे दिल का हर इक ज़ख्म भर गया लेकिन
कुरेदा जाए तो पिचकारियाँ निकलती हैं
मेरा मिजाज़ भी पत्थर सा हो गया है 'मिजाज़'
जो चोट खाऊं तो चिंगारियां निकलती हैं
अगर इन शेरों को पढ़ कर भी आप के मन में शंका रह गई है तो कोई बात नहीं एक सो पैतीस सफों की इस किताब में बेजोड़ शेरों की कमी थोडी ही है:
नींदें तो टूटती हैं कई बार रात में
इक ख्वाब है जो फ़िर भी कभी टूटता नहीं
चाहत पहन के बारिशों में घूमता हूँ मैं
ये वो लिबास है जो कभी भीगता नहीं
दोनों के दरमियाँ अना हो गई 'मिजाज़'
मुझको यकीं है कोई किसी से खफा नहीं
आज के बदलते माहौल पर मिजाज़ साहेब ने बखूबी अपनी कलम चलाई है और क्या खूब चलाई है...हालात चाहे देश के हों या इंसानी रिश्तों के उनकी नज़र सब पर है...अपने शेरों में वो बहुत शिद्दत से उसे बयां भी करते हैं:
इक्कीसवीं सदी की अदा कह सकें जिसे
ऐसा भी कुछ लिखो कि नया कह सकें जिसे
आधी सदी के बाद भी औरत को क्या मिला
आज़दिये-वतन का सिला कह सकें जिसे
घुलने लगा है ज़हरे-सियासत फजाओं में
अब वो हवा नहीं है, हवा कह सकें जिसे
अपनी ऊपर कही बात को और अधिक जोरदार तरीके से मैं उनके इन शेरों के माध्यम से आप तक पहूंचना चाहता हूँ :
खुशियाँ हमें तो सिर्फ़ ख्याली पुलाव हैं
मुफलिस के घर में ईद के त्योंहार की तरह
यूँ सरसरी निगाह से देखा न कीजिये
पढिये न मुझको मांग के अखबार की तरह
चट्टान बन के सामने आए थे जो कभी
गिरने लगे वो रेत की दीवार की तरह
मात्र पचासी रुपये की ये किताब शेरो सुखन के दीवानों के लिए किसी खजाने से कम नहीं. आप वाणी प्रकाशन से संपर्क करें या फ़िर पास के किसी किताब वाले की दूकान में इसे ढूँढ लें (हालाँकि ये इनता आसान नहीं है) लेकिन जो भी करें इस किताब को जरूर मंगवा कर पढ़ें. चलते चलते आप की नज़र मोहब्बत के ज़ज्बात से लबरेज़ ये दो बहुत खूबसूरत शेर पेश हैं जिन्हें आप अक्सर गुनगुना कर खुश होते रहें...तब तक मैं किसी और किताब से आप का परिचय करवाने की सोचता हूँ....खुदा हाफिज़.
कभी चाँद तारों के रूप में, कभी जुगनुओं की कतार में
वो तमाम भेष बदल बदल के तमाम रात मिला मुझे
सरे-आम तुझ पे बरस पढ़ें ये महकते फूलों की बारिशें
मैं मुहब्बतों का दरख्त हूँ तू बढ़ा के हाथ हिला मुझे
35 comments:
अशेक जी के साथ दो मुशायरों में पढ़ने का मौका मिला है । अभी पिछले साल बाबई में उनके साथ लम्बी बैठक भी जमी थी । जितनी अच्छी शायरी है उतने ही अच्छे इंसान भी हैं वे । उनका एक जबरदस्त् शेर है जो अभी याद नहीं आ रहा पर जल्द ही बताऊंगा ।
"चाहत पहन के बारिशों में घूमता हूँ मैं
ये वो लिबास है जो कभी भीगता नहीं
कितना लाजवाब शेर है ये.....हम तो सोचते ही रह गये पढ़ कर...."आवाज" जेसी नायब पुस्तक से रूबरू करने का आभार.."
Regards
सच ही कहा आपने नीरज जी कि
कभी चाँद तारों के रूप में, कभी जुगनुओं की कतार में
वो तमाम भेष बदल बदल के तमाम रात मिला मुझे
क्योंकि कम से कम आप ही के मध्यम से जनाब "अशोक मिजाज़" साहेब की शाइरी रूपी एक चमकते सितारे से तो रू-ब्-रू हो गए.
आपने इनकी पुस्तक के जो शेर चुन कर हम सब तक पहुंचाए , सब एक से बढ़ कर एक कबीले तारीफ है , वो शायर ही क्या जो रोय - गिड़गीडाय. इसी से सम्बंधित उनका शेर गौर करने लायक है कि
हमारे दिल का हर इक ज़ख्म भर गया लेकिन
कुरेदा जाए तो पिचकारियाँ निकलती हैं
मेरा मिजाज़ भी पत्थर सा हो गया है 'मिजाज़'
जो चोट खाऊं तो चिंगारियां निकलती हैं
आधी सदी के बाद भी औरत को क्या मिला
आज़दिये-वतन का सिला कह सकें जिसे
और इसी कड़ी में यह और कि हम जानते हैं कि होना जन कुछ भी नही, पर कितना भी बुरा दौर आंधी तूफ़ान की तरह क्यों न आए पर बदलाव की उम्मीद न छूटती है न भीगती है बल्कि लवरेज रहती है. इसे के मद्देनज़र ये शेर भी कुछ कम कबीले-तारीफ नही है
चाहत पहन के बारिशों में घूमता हूँ मैं
ये वो लिबास है जो कभी भीगता नहीं
बन्दे का राम -राम !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
चन्द्र मोहन गुप्त
NEERAJ JI MIZAZ SAHAB KE BARE ME JAANKAR HARSHIT HUA,AB YE KITAB KAHA UPLABDHA HAI JARA ISKE BARE ME BATA DETE TO BADI MEHARBAANI HOTI ... PICHALI DAFA JAB GAUTAM JI NE MUNVAR RANA SAHAB KI KITABON KE BARE ME JANKARI KE SATH VINAPRAKASHAN KA NO. BHI DIYA THA MAINE SARI KITABEN MANGA LI HAI AB UNKO HI PADHANE ME MASRUF HUN.. UPLABDHATA KE BARE ME JANKARI DEN TO MAZA AAJAYE..
ARSH
sach teen char baar har sher padhkar bhi jiya nahi bhara,behad sundar kitaab,rubaru karane ka shukran
नीरज जी, मिजाज साहब को मेरा नमन...इससे ज्यादा श्रद्धा मैं उन्हें कैसे दूँ समझ नहीं आया...एक
एक शे'र गहराइयों से लिखा हुआ-
ज़ुल्म के सामने तलवार हूँ, खंज़र हूँ मैं
आज के दौर का बेबाक सुखनवर* हूँ मैं
*सुखनवर: लेखक
तुम जिसे पूजने आए हो ख़बर है तुमको
जिसको ठुकराया था तुमने वोही पत्थर हूँ मैं ...वाह !!
कोई कुछ पल के लिए मेरे करीब आया था
आज तक उसकी ही खुशबू से मुअत्तर* हूँ मैं ....वाह क्या कहूँ...?
नीरज जी आपका तहे दिल से शुक्रिया ऐसे नायाब शायार से मिलवाने के लिए..!
पंकज जी आप खुशनसीब हैं जो ऐसे माहौल में रहते हैं कुछ हमें भी इस हूनर की दिक्षा दे दें...!!
नीरज जी अब किताबें भेजने का जिम्मा भी आप ही उठा लो कीमत आपको ही भेज देगें...?
Neeraj ji , namaskar !
aapne bahut umda jaankari di hai ,is kitaab ke baaren men aur mijaj saheb ke baaren men bhi.
aapko bahut bahut badhai ...
sher padkar bahut khushi hui ..
wah ji wah
शुक्रिया नीरज जी इस बढ़िया किताब से रूबरू करवाने के लिए
नीरज जी
बहुत शुक्रिया आवाज़ से मिलवाने का.........अशोक जी का मिजाज़ बहोत खूब है, बहुत ही खूबसूरत शेर हैं जो आपने सुनाये, एक से बढ़ कर एक. मुझे लगता है एक शायर की सोच का कोई अंत नही होता, लितना पढो.....उतनी ही नयी नयी दुनिया सामने आती रहती है.
चाहता तो आपके जितनी लम्बी पोस्ट ही लिखना पर मुझे लगा सब के सब शेर दुबारा लिख दूँगा इसलिए इन शेरों को ही बस दुबारा लिख रहा हूँ जो बहुत ही खूबसूरत लगे हैं
कोई कुछ पल के लिए मेरे करीब आया था
आज तक उसकी ही खुशबू से मुअत्तर* हूँ मैं
मेरा मिजाज़ भी पत्थर सा हो गया है 'मिजाज़'
जो चोट खाऊं तो चिंगारियां निकलती हैं
चाहत पहन के बारिशों में घूमता हूँ मैं
ये वो लिबास है जो कभी भीगता नहीं
यूँ सरसरी निगाह से देखा न कीजिये
पढिये न मुझको मांग के अखबार की तरह
आप की जादुई कलम से की गयी व्याख्या ने इन्हे और भी खूबसूरत बना दिया है
बहुत शानदार समीक्षा
---
गुलाबी कोंपलें
"चमकती है कहीं सदियों में आसुओं से ज़मीं
ग़ज़ल के शेर कहाँ रोज़ रोज़ होते हैं ......... वाह....
इक्कीसवीं सदी की अदा कह सकें जिसे
ऐसा भी कुछ लिखो कि नया कह सकें जिसे
........ वाह....
एहसासों की बगीचे में घुमाना इसे ही कहते हैं
चाहत पहन के बारिशों में घूमता हूँ मैं
ये वो लिबास है जो कभी भीगता नहीं
क्या बात है नीरज जी। बहुत ही बेहतरीन व्याख्या की है आपने एक शानदार शाइर के कलाम और दीवान की। बहुत आभार आपका।
दिलचस्प शाख्स्सियत है' मिजाज साहब ",उनके शेर यहाँ बांटने का शुक्रिया......आपने भी मेहनत की है किताबो को खंगालने में
sabse pahle to itne badhiya sher padhwane ke liye badhayi sweekar karen.
har sher jaise ek dastan bayan kar raha ho.
vaise to har sher khas hai magar yeh sher to kuch khas hi ban pada hai.............
chattan ban ke samne aaye the jo kabhi
girne lage wo ret ki deewar ki tarah
bahut umda sher hain................shabd nhi ai tarif ke liye ..........kam pad rahe hain.
तुम जिसे पूजने आए हो ख़बर है तुमको
जिसको ठुकराया था तुमने वोही पत्थर हूँ मैं
यूँ सरसरी निगाह से देखा न कीजिये
पढिये न मुझको मांग के अखबार की तरह
क्या बात है ....! नीरज जी आप का कितना धन्यवाद दिया जाये
पहले तो इस पुस्तक से परिचय कराने का शुक्रिया। आपकी पसंद बहुत ही अच्छी है।
avaaj se milvane ke liye aabhaar.
आपकी पुस्तक कब आ रही है?
shukriya, is tohfe ke liye.
लगता है नीरज जी मेरी किताबों की अलमारी का एक हिस्सा आपकी अलमारी में जाकर खुलता है ...अभी बस दो महीने पहले ही तो खरीद कर लाया हूँ ये अनमोल किताब और संयोग से मेरे पास इनकी "समन्दरों का मिज़ाज" और सम्पादित वाला "गज़ल २०००" भी हैं..
अशोक जी के शेरों में कुछ मेरे सबसे पसंदीदा शेर हैं
"पिघलेगा किसी रोज मुहब्बत की तपन से/पत्थर पे यूं ही फूल चढ़ाने नहीं आते"
और
"महफ़िल में उनको शौक से सुनते हैं सब ’मिज़ाज’/गज़लें जो रोज़ कहते थे तन्हाइयों में हम"
और एक ये भी
"जिंदगी आज भी मसरूफ़ बहुत है लेकिन/हम चले आये तेरे पास चुराकर लम्हे"
...शुक्रिया नीरज जी
aapka bahut bahut shukriya is aawaaz se parichay karaane ke liye
बहुत सुंदर महन हस्तियो से मिलवने के लिये आप का धन्यवाद
मिजाज साहब को मेरा नमन.पसंद अच्छी है...
is badiya kitaab se mulakaat karvane ke liye dhanyvaad ek shaer ke bare me kya kahoon saari post hi lajavab hai.
tum jise poojane aaye ho khabar hai tumhen thhukraayaa tha jise vahi patthher hoon maikya khoob kaha hai bahut bahut dhanyvaad
dear niraj ji
namastey
i liked your commentary about book "AWAJ'' by Shri ashok mijaj of sagar, MP.
चट्टान बन के सामने आए थे जो कभी
गिरने लगे वो रेत की दीवार की तरह
This sher is really touching and cruel truth of life.
Congratulations fro your efforts to bring forwards such beautiful poetry before us.
i would like to inform you that earlier also vani prakashan has published one book with a similar name "AWAJ KA RISHTA'' by Prof. kuldip salil containg a good colledction of his shairi- nazms and gazals.
it would be good of yu, if you also bring it readers of your site. thanks for your remarkable work for literature on net.
with love and regards,
-Om Sapra
N-22, Dr. Mukherji Nagar, Delhi-9
9818180932
"खुशियाँ हमें तो सिर्फ़ ख्याली पुलाव हैं
मुफलिस के घर में ईद के त्योंहार की तरह"
इतनी जीवंत समीक्षा के लिए धन्यवाद, नीरज जी.
आपकी समीक्षा की शैली किताब को पढने के लिए बेबस करती है। पर अफसोस कि इतनी मंहगी किताबों को खरीद पाना हर किसी के वश में नहीं होता।
जानकारी के लिए आभार।
कमाल है साहब !
कितना सुंदर, कैसा भाव पूर्ण !
=======================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
चाहत पहन के बारिशों में घूमता हूँ मैं
ये वो लिबास है जो कभी भीगता नहीं
Behad umda!
-आप जिस खूबी से किताबों की समीक्षा करते हैं.लगता है अभी मिल जाए तो पढ़ डालें.
आप का चुनाव भी अच्छा है.
यह किताब आवाज़...अशोक मिजाज़ जी की लिखी हुई से आप ने जो हिस्से हमें बताये हैं सभी बहुत अच्छे लगे..
अब नोट कर रही हूँ सब के नाम...देखें कब ली जाती हैं.
प्रणम्य प्रस्तुति.... बेहतर चयन है आपका..
... हर पल कुछ नया-नया,बहुत-बहुत धन्यवाद।
प्रकृति ने हमें केवल प्रेम के लिए यहाँ भेजा है. इसे किसी दायरे में नहीं बाधा जा सकता है. बस इसे सही तरीके से परिभाषित करने की आवश्यकता है. ***वैलेंटाइन डे की आप सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ***
-----------------------------------
'युवा' ब्लॉग पर आपकी अनुपम अभिव्यक्तियों का स्वागत है !!!
Dear , neeraj ji
*sadar saprem naman*
Bank service me ziyada mashroof hone ki wajah se aapki inayaton se bahut der bad ru-ba-ru hua. awaz ki review ke liye bahut- bahut shukriya. apane ek sher ke sath "PHOOL HO KAR BHI KISI KAAM NA AATA SHAYAD , TUM JO KHUSABU SA BIKHARNE NAHIN DETE MUJHAKO ,
AB MERE PAWON ME KANTE NAHIN CHUBH PAYENGE, LOG PALKON SE UTARNE NAHIN DETE MUJHAKO.
Aap sabhi ka apana *ASHOK MIZAJ*
mob. no- 09926346785
नीरज जी अच्छी समीक्षा की है आपने इस किताब की |
अशोक मिजाज़ ग़ज़ल की दुनिया में किसी शायर का नाम नहीं है.....अशोक मिज़ाज ग़ज़लों के एक नये युग का नाम है.....तारीख़ लिक्खी जाएगी..
Post a Comment