तुमसे दिल में रोशनी है
ऐ खुशी तू शम्अ सी है
छोड़ जाती है सभी को
ज़िंदगी किसकी सगी है
आप की सांगत है प्यारी
गोया गुड़ की चाशनी है
बारिशों की नेमतें हैं
सूखी नदिया भी बही है
मिटटी के घर हों सलामत
कब से बारिश हो रही है
नाज़ क्योंकर हो किसी को
कुछ न कुछ सबमें कमी है
कौन अब ढ़ूढ़े किसी को
गुमशुदा हर आदमी है
बांट दे खुशियाँ खुदाया
तुझको कोई क्या कमी है
5 comments:
नीरज जी, आपके लेखन में जो उन्मुक्त प्रसन्नता है, उसमें तो कोई कमी ढ़ूंढे भी न मिलेगी।
यह आपकी प्रत्येक पोस्ट से परिलक्षित होता है।
आपका ब्लॉग और आपका सम्पर्क - दोनो हमारी उपलब्धियां हैं।
शमः जलती रहे सर जी. आप इसी तरह ये शमः जलाते रहें. बाज़ दफ़ा बहुत ज़रूरत महसूस होती है इस शमः की. हर शेर बाकमाल है.
नाज़ क्योंकर हो किसी को
कुछ न कुछ सबमें कमी है
sacchi aur acchi baat...
kya bhavpurn aur sundar gazal hai
नीरज जी
आदरणीय प्राण साहेब की ग़ज़ल पर टिप्पणी देना तो ऐसा लगेगा जैसे सूरज के सामने टिमटिमाता हुआ दिया रख दिया हो। मैं ने प्राण साहेब की एक बड़ी ख़ूबसूरत ग़ज़ल 'कादम्बिनी' के अगस्त १९९६ में पढ़ी थी जो आज भी मेरे पास है। उन दिनों वे
यहां कवेन्ट्री में रहते थे। ग़ज़ल का नाम था - 'वतन को छोड़ आया हूं।'
उनकी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
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