जो होती हैं सी कर लब
सब जब कहते एक ही है
क्यों हिस्सों में बांटों रब
शाम हुई दिल बैठ रहा है
अभी बितानी सारी शब
रोना हँसना घुटना मरना
इस जीवन में मिलता सब
जलती जाती देह की बाती
बुझ जायेगी जाने कब
तुमको कल का बड़ा भरोसा
पर होता जो करलो अब
जाम उठाके पियो आज तो
कल जो होगा देखेंगे तब
"नीरज" आंखे खोल के देखो
हर सू उसके ही करतब
9 comments:
नीरज" आंखे खोल के देखो
हर सू उसके ही करतब
नीरज भैया,
बहुत बढ़िया..मन प्रसन्न हो गया..
एक और बेहतरीन रचना. बधाई.
स्वामी नीरज जी
छोटे बहर में ग़ज़ल कहना बहुत मुश्किल काम है, जिसे आपने ख़ुशसलुबी से निभाया है
आम फ़हम शब्दों का इस्तेमाल कर के आप ने चार चाँद लगा दिए हैं .
बड़ा ही रख रखाब ताम झाम है तुझमें
में तेरे बांकपन की हर अदा समझ्ता हूँ
और दिल से तारीफ करता हूँ .
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क
और मजा आये आपके मुख से
सुने इसे जब
पता नही ये मौका
मिलेगा
कब
हमेशा की तरह शानदार नीरज जी।
कुछ शब्दों को जोड़ने से इतनी सशक्त चीज कैसे बन जाती है. काश शब्दों और विचारों से अपनी भी ऐसी यारी होती!
बहुत सुन्दर.
छोटे-छोटे शब्दों के सहारे बहुत बड़ी बात!
बहुत अच्छी लगी।
Uncle. This is beautiful. Aap log devnagri mein kaise likhte ho?
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 11 - 08 - 2011 को यहाँ भी है
नयी पुरानी हल चल में आज- समंदर इतना खारा क्यों है -
Bahut sunder kavita ?utne hi sunder uske bhav?
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