Sunday, September 30, 2007

आंखे खोल के देखो







जान उन बातों का मतलब

जो होती हैं सी कर लब


सब जब कहते एक ही है

क्यों हिस्सों में बांटों रब


शाम हुई दिल बैठ रहा है

अभी बितानी सारी शब


रोना हँसना घुटना मरना

इस जीवन में मिलता सब


जलती जाती देह की बाती

बुझ जायेगी जाने कब


तुमको कल का बड़ा भरोसा

पर होता जो करलो अब


जाम उठाके पियो आज तो
कल जो होगा देखेंगे तब


"नीरज" आंखे खोल के देखो

हर सू उसके ही करतब




9 comments:

Shiv said...

नीरज" आंखे खोल के देखो
हर सू उसके ही करतब

नीरज भैया,

बहुत बढ़िया..मन प्रसन्न हो गया..

Udan Tashtari said...

एक और बेहतरीन रचना. बधाई.

haidabadi said...

स्वामी नीरज जी
छोटे बहर में ग़ज़ल कहना बहुत मुश्किल काम है, जिसे आपने ख़ुशसलुबी से निभाया है
आम फ़हम शब्दों का इस्तेमाल कर के आप ने चार चाँद लगा दिए हैं .
बड़ा ही रख रखाब ताम झाम है तुझमें
में तेरे बांकपन की हर अदा समझ्ता हूँ
और दिल से तारीफ करता हूँ .

चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क

Pankaj Oudhia said...

और मजा आये आपके मुख से

सुने इसे जब

पता नही ये मौका
मिलेगा
कब


हमेशा की तरह शानदार नीरज जी।

Gyan Dutt Pandey said...

कुछ शब्दों को जोड़ने से इतनी सशक्त चीज कैसे बन जाती है. काश शब्दों और विचारों से अपनी भी ऐसी यारी होती!
बहुत सुन्दर.

अनुनाद सिंह said...

छोटे-छोटे शब्दों के सहारे बहुत बड़ी बात!

बहुत अच्छी लगी।

Your's Truly said...

Uncle. This is beautiful. Aap log devnagri mein kaise likhte ho?

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 11 - 08 - 2011 को यहाँ भी है

नयी पुरानी हल चल में आज- समंदर इतना खारा क्यों है -

दर्शन कौर धनोय said...

Bahut sunder kavita ?utne hi sunder uske bhav?